संगीता पुरी का नमस्कार, सभी को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं, ब्लॉग4वार्ता की 500 वीं पोस्ट लेकर हाजिर हूँ विजयादशमी के विविध रंगो के साथ।
आज विजयदशमी है. सुनते हैं भगवान राम ने आज ही के दिन रावण का वध किया था. अपनी-अपनी सोच है. कुछ लोग कहते हैं आज विजयदशमी इसलिए मनाई जाती है कि भगवान राम आज विजयी हुए थे. कुछ लोग ये भी कहते हुए मिल सकते हैं कि आज रावण जी की पुण्यतिथि है. आँखों का फरक है जी. हाँ तो बात हो रही थी कि आज विजयदशमी है और आज ही के दिन राम ने रावण का वध कर दिया था. आज ही के दिन क्यों किया? इसका जवाब कुछ भी हो सकता है. ज्योतिषी कह सकते हैं कि उसका मरना आज के दिन ही लिखा था. यह तो विधि का विधान है. लेकिन शुकुल जी की बात मानें तो ये भी कह सकते हैं कि भगवान राम और उनकी सेना लड़ते-लड़ते बोर हो गई तो रावण का वध कर दिया.
इस अवसर पर हम विजय की बात करते हैं। उसका अर्थ क्या है ? क्या यह आधिपत्य है, अथवा अपने लिए किसी वैभव की प्राप्ति है ? यदि हम ध्यान से प्राचीन दिग्विजयों का वर्णन पढ़ें तो तीन बातें स्पष्ट होती हैं - एक तो इन दिग्विजयों का उद्देश्य आधिपत्य स्थापित करना नहीं रहा हैं। कालिदास ने एक शब्द का प्रयोग किया है -...उत्खात प्रतिरोपण....। यानी उखाड़ कर फिर से रोपना। जैसे धान के बीज बोए जाते हैं, फिर पौधे होने पर उखाड़ कर पास के खेत में रोपे जाते हैं। और इस धान की फसल बोए हुए धान की अपेक्षा दुगुनी होती हैं। इसमें अपने आप में दुर्बल पौधे नष्ट हो जाते हैं और सबल पौधे अधिक सबल हो जाते हैं। यह उस क्षेत्र के हित में होता है जिसमें जीत कर पुन: उसी क्षेत्र के सुयोग्य शासक को वहां का आधिपत्य सौंपा जाता हैं। इससे उस क्षेत्र की दुर्बलताएं अपने आप नष्ट हो जाती है और उसकी शक्ति और अधिक उभर कर आ जाती है।आगे पढें
बंगाल में विजयदशमी के दिन शादीशुदा महिलाएं सिंदूर खेला में हिस्सा लेती हैं... बंगाल की ये परंपरा आस्था के रंगों में पगी होती है।
उत्तर भारत में इन दिनों रामलीला की धूम है। न केवल जगह-जगह रामलीला का मंचन हो रहा है, बल्कि कुछ रामलीला समितियां तो अब इंटरनेट द्वारा इसका दुनिया भर में सीधा प्रसारण भी कर रही हैं। इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि राष्ट्रमंडल खेलों का आनंद लेने भारत आए कई विदेशी खेलप्रेमी न केवल राजधानी दिल्ली में, बल्कि कुमायूँ और रामनगर-वाराणसी तक पहुँच कर भगवान राम के जीवनचरित्र का मंचन देख रहे हैं। [रामनगर से शुरुआत] क्या आप जानते हो कि मंच पर रामलीला की शुरुआत कब हुई थी? कहा जाता है कि इसकी शुरुआत वर्ष 1621 में रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की प्रेरणा से हुई और आयोजक थे तत्कालीन काशी नरेश। इसी साल काशी के अस्सीघाट पर गोस्वामी तुलसीदास ने एक नाटक के रूप में रामलीला का विमोचन किया था। इसके बाद काशी नरेश ने हर साल रामलीला करवाने का संकल्प लिया और इसके लिये रामनगर में रामलीला की भव्य प्रस्तुति करवाई। रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला 22 दिनों में पूरी होती है।
कल दशहरा है. इस दिन का बड़ा इंतजार रहता था कभी. दशहरा आयेगा तो मेला भी होगा और फिर वो जलेबियाँ, चाट, गुब्बारे, बांसुरी, खिलौने...और भी न जाने क्या-क्या. अब तो कहीं भी जाओ ये सभी चीजें हर समय उपलब्ध हैं. पार्क के बाहर खड़े होइए या मार्केट में..गुब्बारे वाला हाजिर. मेले को लेकर पहले से ही न जाने क्या-क्या सपने बुनते थे. राम-लीला की यादें तो अब मानो धुंधली हो गई हैं. घर जाता हूँ तो राम लीला में अभिनय करने वाले लोगों को देखकर अनायास ही पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं. एक तरफ दुर्गा पूजा, फिर दीवाली के लिए लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ खरीदना इस मेले के अनिवार्य तत्व थे. हमारी लोक-परम्पराएँ, उत्सव और सामाजिकता ..इन सब का मेल होता था मेला.
भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मैसूर दशहरा प्रसिद्ध है। मैसूर में छह सौ सालों से अधिक पुरानी परंपरा वाला यह पर्व ऐतिहासिक दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण है ही कला, संस्कृति और आनंद का अद्भुत सामंजस्य भी है महालया से दशहरे तक इस नगर की फूलों, दीपों एवं विद्युत बल्बों से सुसज्जित शोभा देखने लायक होती है। 'दशहरा उत्सव' का प्रारंभ मैसूर में चामुंडी पहाड़ियों पर विराजने वाली देवी चामुंडेश्वरी के मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और दीप प्रज्ज्वलन के साथ होता है। इस उत्सव में मैसूर महल को ९७ हजार विद्युत् बल्बों तथा १.६३ लाख विद्युत् बल्बों से चामुंडी पहाड़ियों को सजाया जाता है। पूरा शहर भी रोशनी से जगमगा उठता है। जगनमोहन पैलेस, जयलक्ष्मी विलास एवं ललिता महल का अद्भुत सौंदर्य देखते ही बनता है।
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी रावणों की तलाश जारी है। बहुत सारे नाम बहुत सारे चेहरे लोगों द्वारा चिन्हित किए जा रहे हैं। क्या रावण सिर्फ एक नाम है जिसका वर्ष में एक दिन हम दहन करते है और उस पर बहस करते हैं और बाकी के 364 दिनों के लिए भूल जाते हैं। मेरे विचार में रावण को एक नाम के रूप में याद करना या दहन करने का कोई फायदा नहीं है जब तक हम उसके मर्म को न समझे। आज का रावण लंकाधिपति दशानन नहीं है। आज रावण उस भ्रष्ट व्यवस्था का नाम है जिससे हम सब आक्रंतित है। एक ऐसी व्यवस्था जिसमें ईमानदार व्यक्ति अपनी लाख कोशिशों के बावजूद अपने परिवार को वो सबकुछ नहीं दे पाता, जो एक भ्रष्ट व्यक्ति पल भर अपने परिवार के लिए मुहैया करा देता है और लोग ऐसे व्यक्तियों को कामयाबी के तमगों से भी नवाजते है और एक ईमानदार व्यक्ति का अव्यवहारिक कहा जाता है जिसे समय की नब्ज़ की पहचान नहीं है, जो समय की ताल से ताल मिला कर नहीं चल पाता।
कुछ दिन पूर्व ही किसी ब्लॉगर मित्र की एक गंभीर पोस्ट पढ़ी थी जिसमे सबसे बड़ा सवाल था कि आखिर रावण ही क्यों जलता है. हम भी सोचने के लिए मजबूर हो गए थे. आखिरकार रावण एक महान पंडित था, हर विषय का, चाहे विज्ञान ही क्यों न हो. श्री राम ने भी अपने अनुज लक्ष्मण को निर्देशित किया था कि वह मृत प्रायः पड़े रावण से कुछ ज्ञान प्राप्त कर ले. रावण ने केवल एक गलती की थी, केवल सीता का अपहरण, उससे आगे कुछ नहीं. चाहता तो कर भी सकता था. यह उसने जान बूझ कर ही किया था, जन्नत की प्राप्ति के लिए. एक महान पंडित के नाते उसे तो मालूम ही था कि श्री राम कौन हैं और उनके हाथों मृत्यु प्राप्त होती है तो उसे मोक्ष ही मिलेगा. मंदोदरी के सलाह दिए जाने पर कि वह सीता को मुक्त कर दे, तो रावण का जवाब था कि फिर तो श्री राम के हाथों उसे मुक्ति नहीं मिलेगी.
कागज के पुतले को जला देने से भर से कलयुग का रावण नहीं जल सकता है। केवल रस्म अदायगी ही हो सकती है। इतने से ही कैसे काम चलेगा? कुछ समझ में नहीं आता है। घोर कलयुग में जहां पर नजर दौड़ायें दशानन ही नहीं बल्कि हजारों सिर लिए हुए रावण ही रावण नजर आते हैं। जहां हाहाकार मचा हुआ है। घोर मानसिक कष्ट है। अवसाद है। भुखमरी है। गरीबी है। उत्पीडऩ है। छटपटाहट है। द्वेष है। चीख-पुकार मची है, कहीं बलात्कार, कहीं चोरी, कहीं हत्या, कहीं गंदगी, कहीं निरक्षरता, कहीं बेरोजगारी, कहीं भ्रष्टाचार और कहीं बीमारी की। इसके लिए दोषी कौन है, जो सिंहासन पर बैठा है। अगर वहीं रावण है तो निश्चित ही चारों ओर राक्षस ही राक्षस होंगे। इस स्थिति में जनता निर्भय होकर कैसे रह सकेगी?
करते श्रम ,अर्थ व्यर्थ !
कर भस्म इन प्रतीकों को,
हर बार भ्रम में जीते हैं.
जब कि ,रावण जीवित है अभी,
माया के मृग भी मरे नहीं
,निडर ताड़का घूम रही,
लिए अहिरावन और खरदूषण.संताप ,
पाप व्यभिचारी संगहर ओर आपदा झूम रही.।
घट में रावण पल रहा , काहे नहीं जलाय ?
!मात्र मनोरंजन करें , हम सब सालों - साल !
मिट मिट कर फिर से बने रावण वृहद विशाल !!
लाख – करोड़ों खर्च कर’ हाथ लगावें आग !
इससे बेहतर , बदलिए दीन – हीन के भाग !!
लाखों हैं बेघर यहां , लाखों यहां ग़रीब !
मत फूंको धन , बदलदो इनका आज नसीब !!
दशहरा, विजयदशमी या विजयपर्व, कुछ भी कहें पर मतलब तो एक ही है – धर्म की अधर्म पर विजय. किसी ने प्रश्न किया–क्या राम में कोई बुराई नहीं थी और क्या रावण में कोई अच्छाई नहीं थी? श्रीराम और रावण को व्यक्ति के रूप में देखें तो यह प्रश्न स्वाभाविक ही है. इसका निराकरण उन्हें दो प्रतीकों के रूप में देखने में ही है.रावण अनेकान्न्य शक्तियों का स्वामी होने पर भी भयभीत था. ऋषियों के होम में उसे अपना अंत दिखता था और वह उन्हें भंग करने को उद्धत हो जाता. वह मदांध था, इसीलिए ज्ञानी होने पर भी उसे पराई स्त्री का अपहरण करने में संकोच नहीं हुआ. अधर्मी था इसीलिए उसे अपनी प्रजा का हित नहीं दिखा.
रावण जलाया तो मृत्यु निश्चित शिव नगरी में बैजनाथ में,,शिव नगरी बैजनाथ में लोगों की मान्यता पुतला जलाना तो दूर सोचना भी महापापआज सुबह मै पूजा में बैठा हि था कि मोबाईल बजने लगा मेरे शिष्य का फोन था कह रहा था कि यहां पर जागरण में छपा हैं कि पुतला जला तो मौत हैं मुझे भी पढने कि इच्छा हुई फैक्स मिला पढने में नही आया फिर थोडी देर में फोन आया तो कहां आप इसे हाथ सें लिख कर भेजो बेचारे ने मेहनत करी पढा आर्श्चय हुआ फिर सोचा यह जानकारियां सभी को हो इस कारण लिख रहां हूं। जागरण टीम, बैजनाथ/धर्मशाला : देशभर में भले ही विजयदशमी की धूम हो मगर एक जगह ऐसी भी है जहां लंकापति रावण का पुतला जलाना तो दूर इस बारे में सोचना भी महापाप है।
विजयदशमी के दिन नीलकंठ पक्षी को देखना शुभ माना जाता है। नीलकंठ पक्षी सुंदर और उसका गला नीला होता है, इसी कारण उसे नीलकंठ कहा जाता है। इस पक्षी में लोग विषपायी शिव के दर्शन करते हैं। नीलकंठ! आपको नमस्कार है।पर्यावरण के परिवर्तन का प्रभाव मनुष्यों के साथ-साथ अन्य वन्य जंतुओं पर भी पड़ने लगा है। दिल्ली जैसे शहर में नीलकंठ के दर्शन तो मुश्किल ही है। इसलिए ऑनलाईन दर्शन से ही काम चला लिया जाए...
500 वी पोस्ट पर विजयादशमी की सभी पाठको को बधाई
17 टिप्पणियाँ:
विजय दशमी की बहुत बहुत बधाई और मंगल कामना
रोचक वार्ता ...
आभार!
विजयदसमी और 500वीं पोस्ट की बहुत बधाई!
सुबह सुबह नीलकंठ दर्शन दर धन्य हुए।
500 वी वार्ता एवं दशहरा पर्व की बधाई।
विजय दशमीं पर हार्दिक शुभ कामनाएं |५००वी पोस्ट के लिए बधाई |अच्छी रही वार्ता
आशा
500 पोस्ट की बधाई, विजयदशमी पर्व की बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएँ
अच्छी वार्ता...
५००वीं पोस्ट और विजयादशमी की सादर बधाईयाँ...
500वीं पोस्ट तो यादगार बन गई है. बहुत सुंदर.
विजय दशमी की बहुत बहुत बधाई .
500 वीं वार्ता सुन्दर रही.
विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
विजय दशमीं पर हार्दिक शुभ कामनाएं...५००वी पोस्ट के लिए बधाई...
500 वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई।
500 वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई।
http://medianewslive.blogspot.com/
विजयादशमी पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं।
जय हो ताई गज़ब वार्ता
दशहरा पर्व के अवसर पर आपको और आपके परिजनों को बधाई और शुभकामनाएं...
badhai......... bahut achcha aalekh.
आपका ब्लॉग पढ़ कर हमें अच्छा लगा।विजयादशमी और
दशहरा क्यों मनाया जाता है इसकी जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पे विजिट करें ।
http://www.dishanirdesh.in/vijayadashmi-11-october-2016/
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