प्रशांत भूषणजी पर तीन युवकों द्वारा हमला.... किये जाने की खबरिया ने सबको हताश किया . भारतीय-प्रजातंत्र में वो सब कुछ हो रहा है जो नहीं होना चाहिये भय है कि कहीं ये न हो चुप्पी ओढ़ परिन्दे सोये सारा जंगल राख हुआ -वैसे होना तो नही चाहिये हो सकता है मैं हां जैसी न कहे देता हूं वरना कल आपका सवाल हो गधा कौन ?
राजकाज में ये मिलेगा ”अर्र, ए साउंड, इधर आओ जे का लगा दिया, मुन्नी-शीला बजाओगे..? अरे देशभक्ति के लगाओ. और हां साउण्ड ज़रा धीमा.. हां थोड़ा और अरे ज़रा और फ़िर मनी जी की ओर मुड़ के बोला “इतना भी सिखाना पड़ेगा ससुरों को “ ...... बहुत मन मानी करते हैं ..सुनते नहीं है जल्दी ..हाँ..हाँ कह कर बात को टाल देते हैं ---
"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!" कोई बोलता है बेटी बचाओ देश बचाको तो कोई बोलता है भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ कोई कहता है रजिया को बचाओ रजिया गुण्डों में फँस गयी है ! रजिया को ही बचाने में लगे हो एकाध गुण्डों का अंत करने की सोच ले तो देश का काया कल्प हो जाएगा पक्के में.
आज केवल राम का जन्मदिन है .क्या आज केवल रामजी का जनम दिन है ..? जी नहीं वो तो राम नवमीं को आता है आज तो “केवलराम जी का जन्म दिन है जिसे उनने सस्वर मनाया ”."इधर भाई इधर"
कल जब शरद पूर्णिमा का चांद गौर से देखा सच पुरानी यादें शरद कोकास जी की.. ताज़ा हों गईं ख़्वाब....हकीकत...या कोई ख़्याल हो क्या बात है याद न जाए....बीते दिनों की.. अब शरद जी हों या रश्मि प्रभा जी ये लेखक लेखिकाएं कोई भी पुरानी यादों को भूलना ही नहीं चाहते
आज भी याद है वो दिन ,तब मेरी उम्र लगभग १४ वर्ष थी और मेरी हम उम्र थी फरगुदिया ! फरगुदिया से जुडी यादें उनकी आँखों के सामने चलचित्र की तरह दौड़ रहीं हैं.
अरे हां इसके पहले कि जाड़ा रजैया मंगाने लगे हम पचमढ़ी यात्रा. तो कर हीं लें. पाबला जी न तो जनम दिन भूलते न ही कतरनें लगाना
मित्रो कसी रही वार्ता बात निकली दूर तक गई न ..
चलते चलते वंदना दुबे अवस्थी की पोस्ट "कोई आहट, कोई हलचल हमें आवाज़ न दे....
चलते चलते वंदना दुबे अवस्थी की पोस्ट "कोई आहट, कोई हलचल हमें आवाज़ न दे....
2 टिप्पणियाँ:
बढ़िया प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई ||
अच्छी प्रस्तुति..बहुत बहुत बधाई ||
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