गुरुवार, 13 मई 2010

हमने कहा :ज्ञानदत्त जी से गलती हुई है खुशदीप बोले बुज़ुर्गो से भी गलतियां होती हैं...

समीरलाल ने जिस अंधड़ की ओर संकेत किया है स्पष्ट तौर पर एक चिंतनीय विषय है. अब वो समय आ गया है है जब कुछ अधिक सुस्पष्ट मुखर हो जाए ताकी ओछी-हरकतों को हवा न मिले , चलिये इस बीच प्रतिभा सक्सेना जी की कविता को मौका निकाल के देख लीजिये . अदा जी की कविता को भी सराहे बिना न रहिये गा
मंज़िल पर पहुँच कर

फिर मैं राह भटकी हूँ 
मेरा शक मुझसे ही
मेरा सबूत माँग रहा है 
इक तसल्ली कर लूँ ज़रा 
कि मैं साँस लेती हूँ  
वर्ना हर गोशे में 
तेरे नाम के अलफ़ाज़ 
मुझसे उलझते हैं [आगे-यहां से]
बिगुल बज चुका है शायद इसकी अनुगूंज आप तक आ ही गई होगी =>"आखिरकार ढेरों किस्म की सात्विक शब्दावलियों को सहने के बाद एक अनाम चमचा बिल से बाहर निकल आया है। चमचे ने मेरे ब्लाग पर आकर मुझे टिप्पणी के जरिए यह सूचना दी है कि हिन्दी ब्लाग जगत नामक ब्लाग ने ज्ञानदत्त से जलो मत.. बराबरी करो [आगे इधर से ].
आज़ ताउ ने सामयिक न होते हुए भी जो चित्र लगाया जो ब्लाग जगत पर फ़िट बैठ गया http://img718.imageshack.us/img718/5281/solar1b.jpgदेखने योग्य है . देशानामा पर खुशदीप जी का आलेख भी अच्छा लगा .कुक अंश देखिये
=>''कहते हैं न...क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात...बच्चे गलतियां करते हैं, बड़ों का बड़प्पन इसी में है कि उन्हें क्षमा करें...बुज़ुर्ग अगर मन में बात रखेंगे तो उससे दिक्कतें बढ़ेंगी ही कम नहीं होंगी...बुज़ुर्ग भी नए ज़माने की दिक्कतों को समझें...जिस तरह के प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में आज जीना पड़ रहा है, पहले ऐसा नहीं था...ज़ाहिर है नौकरियों में पैसा बढ़ा है तो तनाव भी उतना ही बढ़ा है...अब पहले वाला ज़माना नहीं रहा कि दस से पांच की ड्यूटी बजा दी और काम खत्म...आज चौबीसों घंटे आपको अपने काम के बारे में सोचना पड़ता है...अन्यथा करियर में पिछड़ जाने की तलवार हमेशा सिर पर लटकी रहेगी...फिर बच्चों के लिए भी अब कॉम्पिटिशन बहुत मुश्किल हो गया है...इसलिए बीच की पीढ़ी को बच्चों को भी काफी वक्त देना पड़ता है...ठीक वैसे ही जैसे कि आप अपने वक्त में देते थे..''
जहा तक ज्ञानदत्त जी का मामला है साफ़ करेगीं ये पोस्ट
७.ज्ञान दत्त जी का पोस्ट ... विषय चुकने का आभास दे गई
इसे भूल गये गोया 
.वे नहीं जानते थे कि उनकी इस कदर मट्टी पलीद की जाएगी : हिन्‍दी ब्‍लॉग विवाद
                  या फ़िर आप इधर या इधर देखिये और सुनिये

10 टिप्पणियाँ:

बढिया है,
आप भी मजे ले लीजिये, ;-)

बहुत बढिया वार्ता की है गिरीश जी
आभार
आपका तो अंदाज ही निराला है।

जनाब, वार्ताओं के लिए एक से एक अच्छी पोस्ट हैं. यदि उन्हें रचनात्मक रूप में स्थान दें तो उत्तम. हम लोगों के विवादों को हवा देते हैं, फिर उस पर विमर्श करते हैं. ब्लोगिंग को न्यूज चैनल न बनाया जाय तो बेहतर. ..रचनात्मक चर्चा का क्रम जारी रहे..शुभकामनायें !!

बहुत बढिया वार्ता की है गिरीश जी

बंधुवर लगे रहिए.. तटस्थ नहीं है यह जानकार अच्छा लगा।

विवाद समर्पित एवं तमाशा देखू चर्चा....लगे रहिए :-)

बढ़िया चर्चा!
अब इस विवाद को शान्त करने का प्रयत्न कीजिए!

वत्स जी
शुक्रिया
इशारा पर्याप्त है

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