शुक्रवार, 28 मई 2010

विश्व में हिंदी भाषा का स्थान क्या है, हिंद का जिन्दा-ब्लाग 4 वार्ता राजकुमार ग्वालानी

ब्लाग 4 वार्ता  का आगाज करने से पहले सभी ब्लागर मित्रों को राजकुमार ग्वालानी का नमस्कार- आएं मिलकर बांटते चले सबको प्यार  
 
आज हम सीधे चर्चा पर चलते हैं-
 
 हमारे देश की विशेषता क्या है यह प्रायः सभी जानते हैं. अनेकता में एकता इसी राष्ट्र में देखने को मिलती है. अलग अलग भाषा, अलग बोली, रहन सहन में भी भिन्नता पर बस एक अवधारणा "हम सब एक हैं" यही मुख्य विशेषता है...
 
इस कहानी का कोई पात्र काल्पनिक नहीं है.. या फिर ये भी कह सकते हैं कि यह कोई कहानी नहीं है.. यह असल जिंदगी कि कड़वी सच्चाई है.. वैसे भी मेरा मानना रहा है कि असल जिंदगी से बढ़कर कोई कहानी नहीं होती है.. यह म...
 
हिंद का जिन्दा क्या हिंद का जिन्दा कॉप रहा है ???? गूंज रही है तदबिरे, उकताए है शायद कुछ कैदी....... और तोड़ रहे है जंजीरे !!!!! दीवारों के नीचे आ आ कर यू जमा हुए है ज़िन्दानी ..... सी...
 
हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया किसी अखाड़े से कम नहीं लग रही! रोटी पर चिपुड़ने के लिए रखा हुआ घी चूल्हे की आग में गिर जाता हैं और आग भड़क उठती हैं! कुछ लोगो की राय में विवादों का उठाना हिंदी ब्लॉगिंग के लिए नुकसान...
 
भविष्य की एक ब्लोग बैठक का दृश्य सोचा था कि इस पोस्ट में दिल्ली ब्लोग्गर्स बैठक की तीसरी कडीं में उस बैठक की बची हुई बातें , भविष्य में आयोजित की जाने वाली बैठकों की रूपरेखा और इसके लिए एक निश्चित स्थान...
 
मैं शेरशाह सूरी का मकबरा हूं। वही शेरशाह जिसके बचपन का नाम फरीद था पर जिसने युवावस्था में ही एक आदम खोर शेर को मार यह नाम हासिल किया था। वैसे भी वह शेरों का शेर था। यह वही शेरशाह था जिसने मुगल सल्तनत को झक...
 
संस्कारधानी जबलपुर के प्रेस फोटोग्राफर भाई मदन सोनी जी फोटोग्राफी के क्षेत्र में बेमिसाल प्रतिभा के धनी है . समय समय पर ज्वलंत सामयिक घटनाओं के फोटो, नगर में चल रही सांस्कृतिक समारोहों के , सामाजिक कार्यक्...
 
जनवरी 2008 में हमने अपने आरंभ में किस्‍सानुमा छत्‍तीसगढ़ के इतिहास के संबंध में संक्षिप्‍त जानकारी की कड़ी प्रस्‍तुत की थी तब छत्‍तीसगढ़ के इतिहास पर कुछ पुस्‍तकों का अध्‍ययन किया था। हमारी रूचि साहित्‍य म...
  
उसने उस दिन मेरे गाल पर झन्नाटा लिखा था कोई ताड़ न पाये इसलिये मैनें सन्नाटा लिखा था . उसकी गली में आया था कुत्ते पीछे पड़ गये थे पढ़कर देखते मेरे चेहरे पर ज्वार-भाटा लिखा था . चमन में आया था मैं चश्मे-नम करने की ख़ातिर मेरे भाग्य में तो निगोड़ा यह सूखा कांटा
  
यह जो आप पढ रहे हैं यह लाइन सबसे अंत में लिखी गई है पहले हमें लगा इसे कोई श्रृंखला जैसा कोई नाम दे दें । फिर उसी चीज के एक दो तीन पढते पढते होने वाली ऊब के याद आने की वजह से एक शीर्षक दे दिया ।शीर्षक पर न जाऍं क्‍योंकि आपको पता ही है कि शीर्षक और पोस्‍ट
  
मैं अक्सर देखता चला आ रहा हू की लखनऊ  ब्लागर असोसिएसन पर आजकल धार्मिक जंग छिड़ी हुई है, कोई हिन्दू धर्म को बड़ा बता रहा है तो कोई इस्लाम को, मैं समझता हूँ प्रत्येक धर्म अच्छाई का रास्ता ही बताते हैं, मजहब नहीं सिखात आपस में बैर रखना फिर हम जिस जंग
  
किं चित, थोड़ा या अत्यल्प के अर्थ में हिन्दी में जरा शब्द सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। जरा सी बात, जरा सी चीज या जरा सा काम जैसे वाक्यांशों से साफ है कि बोलचाल में इस जरा का बहुत ज्यादा महत्व है। हिन्दी में किंचित, क्वचित की तुलना में सर्वाधिक लोकप्रिय
  
आज हमरी एकलौती बेटी सुबहे से बहुत उदास है.अभी पीछे जे हम पटना गए थे, त ऊ ऊहाँ हमरा बेटा (हमरा भाई का बेटा - हमरा संजुक्त परिवार में हम लोग भतीजा नहीं बोलते हैं) यानि अपना भाई से मिलकर बहुत खुस थी. बगले में हमरा भगिना अऊर भगिनी रहता है सब. एक जगह, एक साथ
  
जीने के कई तरीके हैं। अलग अलग लोग अलग अलग तरीके से जीते हैं। उपर उपर सरल गति से चलती जिन्दगी में भी सतह के अंदर तनाव और चिंता की लहरें मन को परेशां करती रहती हैं। हमें बहुत कुछ करना होता है। बहुत सारी चिंताएं होती हैं। एक काम करते हुए दुसरे काम के बारे
 
 अब आपसे लेते हैं हम विदा-  लेकिन दिलों से नहीं होंगे जुदा
 
 
 
 
 
 
 
 

5 टिप्पणियाँ:

बहुत बढ़िया चर्चा लगी. पोस्ट को सम्मिलित करने के लिए ...आभार

आएं मिलकर बांटते चले सबको प्यार
nice varta

मेरी पोस्ट को सम्मान देने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद, आभारी हूँ आपका !!

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