सोमवार, 31 मई 2010

पुरुष की आंख कपड़ा माफिक है मेरे जिस्‍म पर, मरा सभी की आंख का पानी,, हे प्रभु!! ये कैसी दुनिया तेरी! - ब्लाग 4 वार्ता राजकुमार ग्वालानी

ब्लाग 4 वार्ता  का आगाज करने से पहले सभी ब्लागर मित्रों को राजकुमार ग्वालानी का नमस्कार
चलिए आज सीधे बांटते हैं चर्चा का प्यार- नहीं करवाते ज्यादा इंतजार
कल मैंने एक सवाल पूछा था...आदिवासियों का नेता कौन...कोई साफ़ जवाब नहीं आया...ले दे कर एक नाम गिनाया गया *शिबू सोरेन*...तो जनाब शिबू सोरेन के नाम में ही सब कुछ छुपा है...*क्या ये अपने आप में ही भारतीय राजनी...
मैं लन्दन के जिस इलाके में रहती हूँ, वो शहर से काफी दूर है.हमारे कॉलोनी में एक लोकल इंडियन रेस्टरान्ट खुला अभी पिछले सप्ताह.पुरे लन्दन में तो भारतीय रेस्टरान्ट तो भरे पड़े हैं.हमारे एरिया में जो रेस्टरा

सर शेखर कुमावत जी को समर्पित है मेरी यह रचना। जो पुरुष मानसिकता की पोल खोलती है। नहीं दिया है जबकि नो ऑब्‍जेक्‍शन शेखर जी ने और वे जानते हैं कि मैंने यह कविता उन्‍हें ही क्‍यों समर्पित की है।* पहनती ह...
योगेन्द्र मौदगिल द्वारा 12 घंटे पहले पर पोस्ट किया गया
बिग-बी, राखी, एकता रानी घर-घर की बस यही कहानी टेली-वीज़न देख-देख कर बच्चों पर चढ़ रही जवानी सास बनी है बास अगर तो बहू स्वयंभू है पटरानी नाती-पोते कम्प्यूटर के देख फालतू दादी-नानी विग्यापन भी कैसे-कैसे म...
  
खुशदीप भाई के यहां से विदा लेते समय अविनाश जी ने फ़ोन पर बताया कि आज वे दांतों की दुकान में जाएंगे इसलिए विलंब हो जाएगा। अगर दिल्ली में कहीं घुमना हो तो बताएं। मैने कहा कि आप दांतों की दुकान से हो आएं फ़िर आपसे सम्पर्क करता हुँ। अविनाश जी ने दांत में नैनो
रीते आँगन का सूनापन भर जाता दसों दिशाओं में, विगलित हो जाता है कण-कण ! रीते आँगन का सूनापन ! नव पल्लव आच्छादित पीपल रक्तिम तन सिसकी सी भरता, सूने कोटर के पास बया चंचल हो परिक्रमा करता, उसके नन्हे-मुन्नों...
आज रवीवार है। आज आपको एक प्यारे से भोले से बंदे के बारे में बताता हूं। इनका नाम है नूरा। ये बड़े पिंड के रहने वाले हैं। इनकी खासीयत है कि ये जो भी काम हाथ में लेते हैं उसे पूरा करते हैं। चाहे कुछ भी हो जाए।.
साप्ताहिक अवकाश रविवार ब्लॉग जगत में " पापा जी " अवतरित हुए हैं दो चार ब्लॉग में जा बच्चों को डांट पिलाया है वैसे डांट पिलाने के पहले सहलाया है अभी तो सहलाया है, बाद में देखेंगे कहते हुए देखो कैसे मै...
अमीर धरती गरीब लोग में ज़िंदगी के लिये मौत की छलांग!
ज़िंदगी के लिये मौत की छलांग!जी हां ये सच है और उस छलांग की कीमत भी कितनी?आप कल्पना भी नही कर सकते कि इंसान की ज़िंदगी इतनी सस्ती है।महज़ कुछ सौ रूपये,बस।एक छ्लांग के लिये इतना और छलांग सही हुई तो दूसरी छलांग...
आप एक पोस्ट लिखते हैं और उसमें एक टिप्पणी भी आ जाती है कुछ इस तरह सेः "मेरे फलाँ ब्लोग में आकर कृपया अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें।" *याने कि आपने अपने पोस्ट में क्या लिखा है, क्यों लिखा है, सही लिखा है या ...
नई राह, नये हौसलेनये जज्बे, नये कदमचलो चलें हमनई सुबह के साथउस ओर, जहां हैमेरे ख्बाबों की बस्तीसच, आतुर हूं मैंपहुंचने के लियेअपनी नई मंजिल परख्बाबों के साथख्बाबों की बस्ती में !
  
पता नहीं किसका प्रभाव लज्जा के बन्धन खोले हैमन का इकतारा अब केवल तुमही तुमही बोले है ओढ़ी हुई एक कमली की छायायें हो गईं तिरोहितनातों की डोरी के सारे अवगुंठन खुल कर छितरायेबांधे अपने साथ सांस को द्रुत गति चले समय के पहिये उगी भोर के साथ साथ ही संध्या के
  
युवा लड़की भी चाहती है तितलियों की तरह उडना कोयल की तरह कूकना झरने की तरह बहना पर घर से गंतव्य तक नजरे झुकाए रास्ते पर चलती है युवा लड़की नेत्र रहकर भी नेत्रहीन हो जाती है,युवा लड़की. सूनसान रास्तों पर अकेले नहीं जा सकती युवा लड़की पदयुक्त होकर भी पदहीन
कमर का दर्द, वैसे तो अब काहे की कमर, कमरा ही कहो, हाय!! बैठने नहीं देता और ये छपास पीड़ा, लिखूँ और छापूँ, लेटने नहीं देती. कैसी मोह माया है ये प्रभु!! मैं गरीब इन दो दर्दों की द्वन्द के बीच जूझता अधलेटा सा - दोनों के साथ थोड़ा थोड़ा न्याय और थोड़ा थोड़ा
  
आखिरकार झारखण्ड में नेताओं की नौटंकी का पर्दा पड़ ही गया. अभी तक जिस तरह से शिबू सोरेन कुर्सी से चिपके हुए थे उससे तो यही लगता था की अभी यह मामला और खिंचने वाला है पर किसी भी दल द्वारा उनको समर्थन न दिए जाने से आखिर कार उनकी कुर्सी चली ही गयी. एक नया
  
प्रिय ब्लागर मित्रगणों,आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में प. डी.के. शर्मा "वत्स", की रचना पढिये.लेखक परिचय :-नाम:- पं.डी.के.शर्मा "वत्स"जन्म:- 24/8/1974 (जगाधरी,हरियाणा)स्थायी निवास:- लुधियाना(पंजाब)शिक्षा:- एम.ए.--(संस्कृ्त), ज्योतिष आचार्यकईं वर्षों
  
कूड़े के ढेर से जीवन चुनता है दिन भर खुद का बोझ ढोता है इस शहर को फख़्र है बड़प्पन का उफ ! यहाँ तो बचपन ऐसे सोता है चित्र : मोबाईल कैमरे से
  
कार से डरते दिल्‍ली के ऑटोसच कह रहा हूंइनसे लग रहा है डरनहीं मालूम क्‍यों हुए हैंइतने निडरमाफ कर देना ईश्‍वरनहीं जानतेये क्‍या कर रहे हैं ?आज दैनिक हरिभूमि में चिंता किसको है पेज 4 पर क्लिक करके असलियत जानिए।
अब आपसे लेते हैं हम विदा
 लेकिन दिलों से नहीं होंगे जुदा

6 टिप्पणियाँ:

आपकी वार्ता बहुत अच्छी लगी ! मेरी माँ की कविता, 'रीते आँगन का सूनापन' इसमें सम्मिलित करने के लिए आपकी आभारी हूँ ! बहुत बहुत धन्यवाद !

बहुत बढ़िया चर्चा!

सुन्दर और समग्र चर्चा के लिये साधुवाद

बहुत बढिया चर्चा राजकुमार जी
आप चर्चा के भी राजकुमार हैं।

आभार

सच ! अभी पुरुष में इतनी ताकत नहीं, जो मेरा सामना करे, किसमें है औकात ? http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/05/blog-post_31.html मुझे याद किया सर।

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