शुक्रवार, 14 मई 2010

.मेरा लेखन कचरा है!!, मुकद्दर का सिकंदर कौन? - समीरलाल या अनूप शुक्ल?- ब्लाग 4 वार्ता- राजकुमार ग्वालानी

ब्लाग 4 वार्ता  का आगाज करने से पहले सभी ब्लागर मित्रों को राजकुमार ग्वालानी का नमस्कार
आएं मिलकर बांटते चले सबको प्यार

ब्लाग जगत में इन दिनों जंग जैसा माहौल बना हुआ है। समझ नहीं आता है कि आखिर ऐसा करके क्या मिल जाता है। क्या यह सब महज टीआरपी बढ़ाने का खेल है या फिऱ इसके पीछे वास्तव में खराब मानिसकता काम कर रही है। अब यह तो वहीं लोग बता सकते हैं जो ऐसा कर रहे हैं। कौन क्या सोचता है उन प छोड़ते हुए हम चलते हैं आज की चर्चा की तरफ..
  दोस्तों!…इस समय हिंदी ब्लॉगजगत में इस बात को लेकर धमासान मचा हुआ है कि ब्लोग्वुड का बादशाह कौन?…हिंदी का सच्चा सेवक कौन? …इस सब का सिलसिला शुरू ..

दो दिन हो गये सारा घटनाक्रम देखते. ढ़ेर प्रशंसक/ चहेते/मित्र सामने आये माननीय ज्ञानदत्त जी की पोस्ट  पर मेरे विषय में टिप्पणी देखकर. जान पाया सबका प्यार. अभिभूत हुआ, लोगों को इस पर नाराजगी भी हुई कि मैं क्यूँ असभ्यता से किये गये विरोध के बावजूद भी
 
रात महफ़िल जमी-सुरों के साथ...........!
कल रायपुर में कवि सम्मेलन था जिसमें भारत के नामी गिरामी कविता पढने आए थे, मुझे पता चला की राजस्थान के माननीय कवि ताउ शेखावाटी भी रायपुर पधार रहे हैं। उनसे मुलाकात हुए 12 वर्ष हो चुके थे। उनका मोबाईल नम्बर भी मुझसे गुम गया था। इसलिए मैने सुबह सुबह
मतलब वही*, *नये बोतल में पुरानी शराब*, यही होगा न? कि सरल और निर्दोष से दीखते इस वाक्‍य में कहीं इससे भी ज्‍यादा गूढ़ार्थ घुसे हुए हैं? ठीक है, आपकी बला से घुसे रहें, यह कोई डिकंस्‍ट्रक्शनिस्‍ट सेशन नही...

उमड़त घुमड़त विचार -में सूर्यकान्त गुप्ता बता रहे हैं  "जरा सा"
  दो छोटे छोटे शब्द; " *जरा सा". * इनका प्रयोग कितना प्रभावशाली. चेतावनी के लिए अति उपयुक्त. आजकल आप किसी दुकान में या कार्यालय में नीति वचन के रूप में लिख़ा देख सकते हैं. कुछ 
खुशदीप सहगल* यानि मैं...इनसान हूं...सुख में खुश और दुख में दुखी भी होता हूं...शांत रहने की कोशिश करता हूं लेकिन कभी-कभार गुस्सा भी आ जाता है...पंजाबी ख़ून का असर है या कुछ और...कह नहीं सकता...ब्लॉग पर भी ...

यौन शिक्षा - चुनौतीपूर्ण किन्तु आवश्यक प्रक्रिया डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर =================================== (2) यौनांगों के प्रति उत्सुकता - पाँच से दस वर्ष की अवस्था ==================================...
14 मई 2010 को हरिभूमि समाचारपत्र के नियमित स्तंभ 'ब्लॉग की दुनिया से' में अदालत, राजतंत्र, *नया जमाना* तथा *आर्यावर्त* की पोस्ट्स 
*मुक्तक १* शीशे के सपने मत सजाओ पल भर में चूर हो जायेंगे लोहे के सपने सजाओ तूफानों में भी टूट न पाएंगे *मुक्तक २* मुकाम हासिल उन्हें ही होते हैं लोहे के सपने जो सजोते हैं वो अपनी किस्मत पर रोते हैं शीश...

शची के यहाँ से निकला....निरुद्देश्य सा इधर उधर भटकता रहा थोड़ी,देर...कुछ लोगों से बातें की...मन में भले ही झंझावात चल रहें हों..पर प्रोफेशनल ड्यूटी तो निभानी ही है...जिस काम के लिए आया है,उसे तो अंजाम देन...
अभी हाल ही में पूछा गया कि बताईये कौन चुनेंगे , लाल कि शुक्ल ? लो अव्वल तो यही पता नहीं कि पूछा किससे गया था , लेकिन अब चूंकि ब्लोगजगत पर पूछे गए हर सवाल को हम जरा निजि रूप से ले लेते हैं 
नुक्कड़ - में डा.सुभाष राय पूछ रहे हैं- कलम के सिपाही किधर चल पड़े
आप जानते हैं *समाचार क्या होता है?* जब मैंने समाचार की दुनिया में दाखिला लिया था, तब मुझे पता नहीं था कि समाचार क्या होता है। समाचार लिखता था, मेरे लिखे समाचार प्रकाशित भी होते थे, प्रशंसाएं भी मिलती थी
समयचक्र - में महेन्द्र मिश्र  बता रहे हैं - ए जालिम तू हँस ले जी भरकर...
ए जालिम तू हँस ले जी भरकर मेरे इन ताजे जख्मों को कुरेदकर. तेरा भी कल ऐसा वक्त आयेगा तू जियेगा जब आहें भरभर कर. 0000 जब याद किसी की आती है ए दिल मेरा बेकाबू हो जाता है . दिल को मेरे चैन तब आता है जब दिलरुबा ...
 आरंभ में संजीव तिवारी पूछ रहे हैं- क्‍या हमारा यह ब्‍लॉगिंग प्रयास सफल है : अपनो से अपनी बात

हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में जैसे तैसे हमारा चार साल का वक्‍त गुजर रहा है और हम भरसक प्रयत्‍न कर रहे हैं कि इस ब्‍लॉग में छत्‍तीसगढ़ के संबंध में यथेष्‍ठ जानकारी आपको नियमित देते रहें. कुछ मित्रों नें हमारी 
  
गँवई तलइया में बस्तर धोवै जात की बेरियाँ धोबी-धोबिनी आपन हियरे क मरम एक दुसरे से बतियाव तारन ! लुगाई गरीबी क रोवना रोव तिया तऽ मनसेधू ओकरा के गवें-गवें ढाढस दे तारन, समझावत-बुझावत बाड़न । इहै आपसी पति-पत्नी संवाद चल रहल बा - धोबिन- रहि-रहि जियरा कचोटै ला
रो रही है सर पटक कर ज़िंदगी और बढता जा रहा है कारवाँ संहार का ! कंठ में भर स्वर प्रभाती का मधुरअलस कलिका संग कीलित नव उषा,खिलखिलाती आ गयी जब अवनितलदेख उसका लास यह बोली निशा,ह्रास मेरा दे रहा जीवन तुझे,क्रम यही है निर्दयी संसार का ! रो रही है सर पटक कर
  
शिक्षा पर लोंगो की चिंताएँ अब केवल आयोजनी अवसरों पर ही सुनने में आती हैं.शिक्षा को लेकर कोई आंदोलन इतिहास की बात हो गईं.छात्र नेतृत्व भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की ऐशगाह बना हुआ है.मुझे कहने में लिहाज़ नहीं कि भारतीय शिक्षा मर चुकी है.स्कूली शिक्षा हो या उच्च
  
पद चुनने में आरक्षण के हक को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है। इससे अरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को बहुत बड़ा संबल मिला है। गौरतलब है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में जो अभ्यर्थी अपनी मेरिट के आधार पर सामान्य वर्ग में आ जाते थे, उन्हें सामान्य वर्ग की भांति ट्रीट
  
बहुत अच्छा लगता है मिलना मिलते रहना किन्तुयह भी सत्य है कि अपनी ज़मीं तलाशते लोग जिनको भ्रम है कि वे नियंता हैं चीर देतें हैं लोगो के सीने कलेजों निकालने फ़िर उसे खुद गिद्ध की तरह चीख-चीख के खाते हैं खिलाते हैं अपनों को शुक्रिया साथियो तब अवकाश ज़रूरी जब
  
मुल्क पर उन जैसा हक़, मेरा नहीं है ।नागरिक तो हूँ मगर ,पैसा नहीं है॥पहले भी रोज़ो-शब् , न थे अच्छे मगर।अब हमारे हाल पर , पर्दा नहीं है॥तुम ऐसे वक़्त मेरी, छाँव की तलाश।तपी है पीठ उस पर कपडा नहीं है॥हुई तसल्ली शहर की , बदहवाशी से।दिले बर्बाद हाल तू ,तनहा
   
अखिल भारतीय कवि सम्मलेन और डाक्टर राय एवंडाक्टर परिहार का सम्मानआगरा ही नहीं हिंदी जगत की प्रतिष्ठित संस्था आनंद मंगलम सा तत्वावधान में १४ मई २०१० को माथुर वैश्य सभा भवन आगरा पर अखिल भारतीय कवि सम्मलेन और डाक्टर राय एवं डाक्टर व डाक्टर रंजन, परिहार का
  
छीछा-लेदरनौंक-झौंकगाली-गुल्लीनामी-बेनामीलडो-भिडोगिरो-पडोपटका-पटकीमत-करोनींबू-मिर्चीकाला-टीकाआरती-पूजाकरो-करोभूत-प्रेतदीमक-घुनभूखे-प्यासेकूद-पडेबचो-बचाओचिट्ठे-चर्चेजान-बचाओचिट्ठे-चर्चे !!
  
गर्मी का मौसम यानी आम का मौसम. आम का शेक , आम का पापड़, आम का अचार, आम का शरबत और अब आम की आइसक्रीम
  
  निरुपमा पाठक की मौत का मामला अभी अखबारी सुर्खियों से हटा भी नहीं था कि इलाहाबाद  में ऐसे ही क्रूर कथानक की पुनरावृत्ति हो गयी। इस बार किसी सन्देह या अनुमान की गुन्जाइश भी नहीं है। पुलिस को घटनास्थल पर मिले सबूतों के अनुसार परिवार वालों ने
अब आपसे लेते हैं हम विदा
 लेकिन दिलों से नहीं होंगे जुदा
 

10 टिप्पणियाँ:

शुक्रिया..मेरी पोस्ट शामिल करने का ...अच्छे लिंक्स हैं

हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा

"अनूप जी और ज्ञानदत्त जी दबे हुए संस्कार ऐसे ही बाहर निकल आते हैं" वाली पोस्ट के बाद ब्लॉगवाणी तिलमिलाई!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

जिसने धर्म के नाम पर आने वाली संवेदनशील ब्लोगों को नहीं निकाला उसने इस अनोखे ब्लोग को घबड़ाकर ब्लोगवाणि से निकाल दिया!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

आज की पोस्ट देखनी है तो आगे पढ़ें

अरे वाह!...बहुत बढ़िया...
अपुन कि पोस्ट को इसमें स्थान देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया


पोस्ट ऑफ़ दॅ डे..
राजीव तनेजा की पोस्ट ,
और उस पर की गयी बेहतरीन कलाकारी

स्थान देने के लिए शुक्रिया...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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