ब्लाग 4 वार्ता का आगाज करने से पहले सभी ब्लागर मित्रों को राजकुमार ग्वालानी का नमस्कार- कोई तो आएं जो ब्लाग जगत से विवाद हटाकर बरसाएं प्यार
ब्लाग जगत को न जाने किस की नजर लग गई है जो विवाद समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा है। विवाद है कि बढ़ते ही जा रहा है।
ब्लाग जगत को न जाने किस की नजर लग गई है जो विवाद समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा है। विवाद है कि बढ़ते ही जा रहा है।
अरे भाई क्यों इस पचड़े में पड़े हैं
जमाने में और भी गम पड़े हैं
नजरें उठाकर देखें हर कदम पर दोस्त खड़े हैं
अरे गोली मारो बड़े होने को
कह दें हम छोटे सही आप तो बड़े हैं
तो चलिए चलते हैं आज की चर्चा की तरफ
ओतेक बड़े त नई हो गे हन. तभो ले अतका कहे के लाइक हो गे हन अपन लइका मन ला के हमर लैकाई मा ए दइसे दइसे होवत रहिसे. पहिली संगवारी बनावे त एक दूसर बर मर मिटैया संगवारी बनावें. अपन दोस्ती ल पुख्ता करे बर आनी ...
लेखन की दुनियां में बस्तर सदैव लोगों के आर्कषण का केन्द्र रहा है। अंग्रेजी और हिन्दी में उपलब्ध बस्तर साहित्य के द्वारा संपूर्ण विश्व नें बस्तर की प्राकृतिक छटा और निच्छल आदिवासियों को समझने-बूझन...
कुछ भी...कभी भी. में अजय कुमार झा बता रहे हैं गुर्राते हए आया चिचियाते हुए गया .......... हिंदी ब्लोग्गिंग वर्सेस अंग्रेजी ब्लोग्गिंग
बहुत से प्राणी जीव जंतु आजकल इसी ताक में रहते हैं कि कब हिंदी ब्लोग जगत में कोई उठापटक हो और वे अपनी सारी नोक्सी लगा कर पिल पडें । और जैसे बारिश की बूंदों के पडते ही कई टाईप के बायोलोजिकल और हर्बल से
कभी कभी ऐसा होता है कि बातें काम नहीं करतीं और कविता अपना काम कर जाती है | इन दिनों जो कुछ भी चल रहा है ब्लॉग जगत में वह सब जानते हैं | मुझे एक मित्र ने सलाह दी कि आप चुप क्यों हैं आप को भी कुछ कहना चा...
ब्लाग एक सार्वजनिक अभिव्यक्ति का माध्यम है लेकिन कईं बार ऐसा लगता है कि लोग इसे बपौति मान रहे हैं अपनी समझ से बाहर है मामला मगर कुछेक टिप्पणियों के पढ़ने के बाद एक ताज़ा छंद आप सब की नज़्र करता हूं कि...
मेरे मामा जी जिनका मै पारिवारिक डाक्टर भी हूँ का सुपुत्र वेणु पिछले ३ सालों से परीक्षा के समय तनाव ग्रस्त हो जाता था . उसको मामाजी के मित्र ,वेणु के टीचर ,तमाम पारिवारिक गुरुजन , मनोचिकित्सक , कौंसलर इत...
शेखा-कुल रा लाडला,धाकड़ धुनी सुजान | उजला सूरज-कुल-रतन,भैरूं सिंघ मतिमान ||१ मरुधर-माटी री महक,जन-मन का सरदार | दीन-हीन-रक्षक सुधी,थे भारत-गल-हार ||२ भोग्यो जीवन गांव रो,देख्या घणा अभाव | पण सांचा अनथक...
चर्चा पान की दुकान पर पर पूछ रहे हैं ललित जी- गिरी्श दादा जहां कहीं भी हो चले आओ-(गुमशुदा की तलाश)---------ललित शर्मा
गिरीश दादा जी, पान की दुकान पर निरंतर चर्चा चल रही है कि आप कहां चले गये, लोग कयास लगा रहे हैं। हमारा निवेदन है कि आप जहां कहीं भी हो लौट आओ, आपके जाने से हमें बहुत ही झटका लगा है। आपने ब्लाग जगत को पॉडकास...
परसो हालात शीर्षक से एक पोस्ट लिखी थी। दरअसल, मन भारी हो गया था और उसे हल्का करना जरूरी था। अगर यह पोस्ट नहीं लिखता तो किसी छपास रोगी या नेता की ऐसी-तैसी होना तय थी। पर शुक्र है, पोस्ट लिख ली और मन भी हल्का ..
आज के 'टाइम्स आफ़ इन्डिया' (15 मई, 2010) में एक लेख छपा है "विचारों की शक्ति". यह लेख चीन के बारे में है. इसमें चीन की राजनैतिक व्यवस्था व पूंजी स्रोत से इतर, केवल विचारों की बात की गई है. जैसे:- - अके...
पुरानी चीजों की तरह पुराने नाप-तौल भी चलन के बाहर होते चले गए। कभी-कभी मुहावरों में या किसी ख़ास खरीद फरोक्त वगैरह में उन्हें भले ही याद कर लिया जाता हो नहीं तो आज की पीढी को तो वे अजूबा ही लगते होंगे। चलि...
एक छोटी सी पोस्ट और उसके जरिये छोटे-छोटे कुछ सवाल भी।आज वर्ल्ड फ़ैमिली डे है।फ़ैमिली!इस शब्द ने आज मुझे चौंका दिया!बहुत दिनों बाद इस शब्द का अर्थ ढूंढने की कोशिश की।बहुत सोचा तो बहुत सारे जवाबों के साथ-साथ
धान के देश में! जीके अविधया बता रहे हैं- क्या अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के ब्लोगर्स में भी कभी बड़े छोटे ब्लोगर्स का विवाद हुआ है?
हम गूगल कर-कर के थक गये यह जानने के लिये कि क्या अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के ब्लोगर्स में भी कभी बड़े छोटे ब्लोगर्स का विवाद हुआ है? अनेक प्रकार से सर्च किया कभी सर्च बॉक्स में history of blogging लिखकर
पिछले एक साल में ज़िंदगी का पहला हवाई सफ़र किया...मन ही मन राइट ब्रदर्स का शुक्रिया अदा किया...फिर कुछ और सफ़र। जाना कि बादल इतने ख़ूबसूरत भी लग सकते हैं...जाना कि आसमां के पार वाकई कोई आसमां होता होगा और ...
हिन्दी ब्लॉग जगत के प्रचार और प्रसार के लिए हम सभी के द्वारा प्रयासों की आवश्यकता है। क्योंकि विश्व स्तर पर तथा ब्लॉग जगत में हिन्दी का स्थान अभी अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। एतदर्थ हिन्दी ब्लॉग टिप्स के सुझाव के अनुसार एक ब्लॉग एग्रीगेटर बनाया है ‘‘ब्लॉग
हाँ तो मैं बात कर रहा था उस बच्चे की जिसके गले में एक रोटी बांध दी जाती थी जो उसके खेलने और खाने के काम आती थी | कभी -कभी उसकी माँ यह समझाने के लिए कि धरती ,सूरज ,चाँद आदि भी गोल है,उस रोटी को उदाहारण के रूप में
प्रिय ब्लागर मित्रगणों,आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में श्री जी. के. अवधिया की रचना पढिये.लेखक परिचय :-नाम : जी.के. अवधियाउम्र : 59 वर्ष, सेवानिवृतशहर : रायपुर (छ्ग)मैं एक संवेदनशील, सादे विचार वाला, सरल, सेवानिवृत व्यक्ति हूँ। मुझे अपनी मातृभाषा
अखिल भारतीय श्वान सम्मेलन में व्यक्त चिंताएं वीरेन्द्र जैन अगर कोई जाति दलित पिछड़ी या उपेक्षित होती है तो वह अपनी पहचान बनाये रखकर भी अपनी जाति को प्रचलित नामों की जगह संस्कृतनिष्ठ शब्दों में बदलकर अपना जाति सम्मेलन आयोजित करती है। शायद यही कारण रहा होगा
लेकिन दिलों से नहीं होंगे जुदा
5 टिप्पणियाँ:
राजकुमार भाई साहब बहुत बहुत धन्यवाद्। आपकी चर्चा मे यह अदना ब्लोगर शामिल रहता है। और यह भी काबिले तारीफ़ है कि आप कम से कम रोज इस चर्चा मन्च मे सामग्री अवश्य डालते है। आभार!
गिरीश दादा लौट आओ-नही तो आज गाना सुनाएंगे।
बहुत बढिया चर्चा राजकुमार भाई
आभार
अक्षय तृतीया-भगवान परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत ही सुंदर चर्चा रही राज भाई , उम्दा लिंक्स मिले
बहुत बढिया चर्चा
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