मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

दीवारें नहीं, पुल चाहिए... ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार...कन्या को जन्म से पूर्व मार डालने की कुप्रवृत्ति को रोकने के लिए समाज के दृष्टिकोण को बदलने की जरुरत है. कुछ दिन पूर्व नागपुर में कचरे के ढेर में ३ कन्या भ्रूण मिले. ऐसे ही दृश्य हर शहर हर गाँव में देखे जाते हैं.जबकि सभी जगह "बेटी बचाओ अभियान" चलाये जा रहे हैं. आखिर इन आंदोलनों की जरुरत क्यों पड़ती है, जबकि होना यह चाहिए कि नारी को "देवी" उपमा से सम्मानित करने कि परंपरा वाले इस देश में कन्या जन्म पर खुशियाँ मनाई जाये. आवश्यकता है कि हम अपने मन से उस संकुचित मानसिकता को ही जड़ से उखाड़ फेंके, जो परिवार में कन्या के जन्म का विरोध करती है, तभी हम उसे गर्व से "कन्या-रत्न "  कह सकेंगे...
लीजिये अब प्रस्तुत है आज कि वार्ता कुछ चुनिंदा लिंक्स के साथ....   

दीवारें नहीं, पुल चाहिए
मानव सभ्यता के विकास में दीवारों और पुलों की बहुत महती भूमिका है . उसने अपने आश्रय के लिए दीवारों का निर्माण किया और खुद को सुरक्षित महसूस किया , और पुलों का निर्माण कर उसने एक सीमा से दूसरी सीमा में प्रव...

नित नित प्रभु का ध्यान धरो
इस भजन को लिखकर तो मैं खुद में तीरथ महसूस ही कर रही थी .... सजीव सारथी जी के माध्यम से यह आदित्य विक्रम जी तक पहुंचा और आज आदित्य जी द्वारा कम्पोज़ किये इस गीत को उनकी ही आवाज़ में सुनकर मेरे रोम रोम ने...

जिंदगी को भरपूर जिया है
मैंने जिंदगी को कई कोणों से देखा है हर कोण है विशिष्ट हर रंग निराला है | होता जीने का अंदाज गहराई लिए तो कभी अहसास केवल सतहीपन का दे जाता बहुत कुछ जो होता दूर हर व्यक्ति की पहुँच से | दीखता उस रस...

कशिश
प्यासी धरा .. जान कर भी वो अनजान है . वो इस कदर बेईमान है . मजा लेते है , किसी के रुसवाइयों का . और कहते है , कि. हम तुम्हारे कदरदान है,.. नाता न कोई उनसे , बस जरा सी .. जान-पहचान है .. वो ठहरे .बहता...

कुछ मुक्तक .
*1.तुम्हारे जाने से गुलशन तो न खाली होगा * *पर एक फूल डाली से जुदा होगा * *महकेंगी गलियाँ तुम्हारी भी * *पर तुम्हारी साँसों का ज़िक्र यहाँ होगा* * * *2.गुनगुनाने से गाने का सबब बनता है * *खो जाने से पाने क...

बड़ी मुश्किल है यूँ रिश्ता निभाना ...
किसी को उम्र भर सर पर बिठाना बड़ी मुश्किल है यूँ रिश्ता निभाना हज़ारों ठोकरें मारीं हो जिसने उसी पत्थर को सीने से लगाना मेरे गीतों में खुद को पाओगे तुम कभी तन्हाई में सुनना सुनाना बड़ी म...

चाटुकारिता का तर्पण 
जिसकी आत्मा मरी होती है उसके विरुद्ध कोई समाज परिवार नहीं होता बल्कि सभी मरी आत्मा के साथ चलने लगते हैं चाटुकारिता का तर्पण अर्पण करते हैं - रश्मि प्रभा

दिल्ली कि तरफ ...
ऐसे ही नहीं आग लगाते रहे हैं लोग, जलने का सलीका भी सिखाते रहे हैं लोग | थोड़ी बहुत तो मेरी फिकर भी रही उन्हें, अपने तमाम फ़र्ज़ निभाते रहे हैं लोग | ये करना, ये न करना, नेकी बदी कि राह, हर पाठ तसल्...

सिलसिला-ए-जिंदगी
और फिर कृष्ण ने अर्जुन से कहा :- न कोई भाई, न बेटा, न भतीजा, न गुरु एक ही शक्ल उभरती है हर आईने में आत्मा मरती नहीं, जिस्म बदल लेती है  धड़कन इस सीने की जा छुपती है उस सीने में,  जिस्म लेते हैं जन्म...

आखिर इस दिल को क्या कहिये...
एक रोज़ हो जाता है हर कोई नाउम्मीद और बचा हुआ ऐतबार खो जाता है. हालाँकि सब पहले से ही जानते हैं कि किसी दिन यह दोस्तों को सुनाने लायक, एक किस्सा भर रह जायेगा कि किस तरह बोरियत भरे दिनों को इश्क़ विश्क क...

हम पहले ही मारे जा चुके हैं....
हम पहले ही मारे जा चुके हैं.... सारा कच्चा माल पड़ा है वहाँ अस्तित्त्व के गर्भ में.... जो जैसा चाहे निर्माण करे निज जीवन का ! महाभारत का युद्ध पहले ही लड़ा जा चुका है अब हमारी बारी है... वहाँ सब कुछ है ! थम...

रीत सी रही मोरी प्रीत ....!!
सुर के पीछे पीछे चलना .... सुर साधना .... बने अगर मन की यही आराधना ... बहुत कठिन है ये अर्चना ... ....!! सांस तो चलती है न ....?आस आज भी जागी- जागी सी है .... है ,पर कहीं कुछ भाव में फर्क है .... कभी अपना...

कार्टून :- आओ शांति‍ वार्ता का खेल खेलें
काजल कुमार Kajal Kumar at Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून

किसी भी आईडी को डिलीट करने का बेहतरीन तरीका
मेरे पास ऐसे बहुत से लोगो की मेल आती है जो मुझ से पूछते है कि फेसबुक कि आईडी या जीमेल कि आईडी को केसे डिलीट करते है उनका जवाब मैं मेल से ही दे देता हु अब वो ही तरीका मैं आज मैं आपको बताने वाला हु कि कैसे ...
 
*आग से गुज़रा हुआ हूँ, और भी निखरा हुआ हूँ। उम्र भर के अनुभवों के, बोझ से दुहरा हुआ हूँ। देख लो तस्वीर मेरी, वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ। बेबसी बाहर न झाँके, लाज का पहरा हुआ हूँ। आज बचपन के अधूरे, * *ख़्वा...
 
* * मन रे ! तू भागे क्यों ? क्यूँ भागे इन गलियन में- जो उलझी सी हैं आपस में गाँठ भी पड़ती जाती है सुलझाने की कोशिश में आखिर क्या पायेगा भटकन में.......... क्यूँ भागे...मन क्यूँ भागे... ...
 
दोस्तों दर्द-ए-दिल का पैमाना जब छलकता है तो जज्बातों की बरात कुछ यूँ शोर करती है... ज़रा गौर फरमाइयेगा .... प्यार के बदले में खरीदा उसने और मुझे हासिल समझ लिया.. पलकों पे चले आये है अश्क मुसाफिर बन कर.. ......
 
अब लेते हैं आपसे विदा मिलते हैं, अगली वार्ता में, चलते-चलते यहाँ देखें... नमस्कार.......

6 टिप्पणियाँ:

यहाँ देखें के चक्कर में मेरी पूरी टिप्पणी ही गायब हो गयी |पर कविता पढ़ कर मजा आ गया |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |यह फिर से टाइप कर रही हूँ |पिछले मांह हमारे घर मेरे नाती के यहाँ एक परी आ गयी है |हम सब बेहद खुश हैं |
मेरे ख्याल से अब लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है |मेरी बेटी ने तो इतनी सी बच्ची का डेस्कटॉप पर फोटो डाल लिया है |सुबह होते ही उसकी छबि देखती है |
आशा

बेहतर लिंक्स संयोजन .....!

सुंदर लिक्‍स ..
अच्‍छी वार्ता !!

सुव्यवस्थित वार्ता.

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