ललित शर्मा का नमस्कार, बैसाखी का त्यौहार भारत के पंजाब, हरियाणा और हिमाचल के किसानों द्वारा सर्दियों की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियों के जैसे मनाया जाता हैं। वैसाखी त्यौहार का नामकरण वैशाख के महीने पर रखा गया है। बैसाखी पंजाब और आसपास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार है। यह खरीफ की फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है। इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु गोविंदसिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिख इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। सभी पाठकों को बैसाखी एवं खालसा पंथ स्थापना दिवस की हार्दिक बधाईयाँ एवं शुभकामनाएं………अब चलते हैं आज की वार्ता पर… प्रस्तुत हैं कुछ लिंक ब्लॉग जगत से……
लाख सताओ, नहीं मरूंगा/ इस पंकज में जान बहुत है..... - *माना के धनवान बहुत है* *इसका उसे गुमान बहुत है* * नम्र बनो ऐ प्यारे भाई * *जान गए के ज्ञान बहुत है* * किसको जा कर शीश झुकाएँ * * भीतर का भगवान् बहुत है* * झ... मंगल पर निस दिन मंगल हो और चाँद पर हो इक आशियां! - यह सचमुच हैरान करने वाली बात है कि हमारे आदि पूर्वजों ने भी कभी अन्तरिक्ष में एक शहर बसाने का सपना देखा था ....इस बारे में मय दानव और उसके द्वारा बसाए ग... भाव संप्रेषित करने की क्षमता हर प्राणी में होती है। - *यदि ध्यान से पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों के कार्य-कलाप को देखा जाए तो बहुत सारे आश्चर्यजनक तथ्य सामने आते हैं। यदि इनकी आवाजों पर ध्यान दिया जाए तो साफ पता ...
जब चाहा इस्तेमाल किया जब चाहा फ़ेंक दिया वाह! - * * *जब चाहा इस्तेमाल किया जब चाहा फ़ेंक दिया। क्या है यह सब? मै समझ नही पाती हूँ। जब भी किसी ने पुरूष के खिलाफ़ एक शब्द भी लिखा, उसका विरोध किया गया। स्त... अब आचमन को गंगा कहाँ से लाऊँ? - पानी ठहर गया है शायद बहना भूल गया है तभी तो अब इसमें हिलोरें नही उठतीं कहीं काई तो नही जम गयी अब आचमन को गंगा कहाँ से लाऊँ? गिफ्ट वाली पायल-2 - *पिछले भाग से आगे... * गली में मुड़ते ही उन्हें झुग्गी के आगे तीन चार जन खड़े दिखाई दिये और बेटी के रोने की आवाज़ सुनाई देने लगी। दोनों के कदम तेज हो गये।...
हाल-ए-मुफलिसी ... - कभी इस पार, तो कभी उस पार बता आखिर तेरी रज़ा क्या है ? ... 'उदय' कहता है, जख्मों को छिपा के रखना यारो जो भी देखेगा, कुरेद कर चला जाएगा ! ... हाल-ए-मुफल... दोस्ती - आजकल इंडियन आइडल का एक विज्ञापन आ रहा है जिसमे एक कालेज का लड़का खुद शर्त लगा कर हारता है किसी ओर लडके की आर्थिक मदद के लिए. वैसे तो टी वी पर कई विज्ञाप...वृद्ध लोगों को वर्तमान में जीने के बजाय अतीत में जीने की आदत सी हो जाती है। - है तो यह वैशाख का महीना किन्तु दोपहर में घर से बाहर निकलने पर लगता है कि यह वैशाख नहीं बल्कि ज्येष्ठ माह है जिसमें ग्रीष्म अपनी चरमावस्था में होती है और गर...
शिल्प और पेंटिंग के विलक्षण कलाकार जेराम पटेल - श्वेत-श्याम रंगों से अपनी कलाकृतियों को एक विशिष्ट पहचान देने वाले विख्यात कलाकार जेराम पटेल का जन्म 1930 में सोजित्र, गुजरात में हुआ। आपने सर जे. जे. स्... सब कुछ कहने के लिए...... - सब कुछ कहने के लिए नहीं होता, सब कुछ लिखने के लिए नहीं होता, सब कुछ पढने के लिए नहीं होता...... कुछ समझने-सोचने, कुछ सहने-भोगने, कुछ महसूस करने के लिए होता ...क्यों कहते हो फिर बेटियों को लक्ष्मी...खुशदीप - कब बदलेगी संस्कारवान होने का दावा करने वाले इस देश की सोच ..... बेबी फलक ने दिल्ली के एम्स में15 मार्च को दम तोड़ा, दो साल की फलक को 18 जनवरी को बड़े ..
प्रेम कहानी से सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक - एक लड़का व लड़की कहीं पैदल जा रहे थे। तभी लड़के की टांग पत्थर से टकराई और रक्त बहने लगा, लड़के ने मदद की आस लगाते हुए लड़की की तरफ देखा कि शायद वह अपना ... सब कुछ कहने के लिए...... - सब कुछ कहने के लिए नहीं होता, सब कुछ लिखने के लिए नहीं होता, सब कुछ पढने के लिए नहीं होता...... कुछ समझने-सोचने, कुछ सहने-भोगने, कुछ महसूस करने के लिए होता ... वृद्ध लोगों को वर्तमान में जीने के बजाय अतीत में जीने की आदत सी हो जाती है। - है तो यह वैशाख का महीना किन्तु दोपहर में घर से बाहर निकलने पर लगता है कि यह वैशाख नहीं बल्कि ज्येष्ठ माह है जिसमें ग्रीष्म अपनी चरमावस्था में होती है और गर...
जानवर - ** ** ** ** image courtesy : narnia movie *** * *अक्सर शहर के जंगलों में ; मुझे जानवर नज़र आतें है ! इंसा... आदत........(मतला और एक शेर) - किसी की मौत पर बहाने के लिए, दो आंसू कहाँ से लाऊं मैं। मुझको तो आंसूओं को पीने की , आदत जो पड़ गयी हैं । आजकल मेरी मुस्कराहटें भी, मुझसे नाराज़ ह...कहीं ऐसा न हो .... - कहीं ऐसा न हो .... अत्युक्ति में सुन्दरतम सत्यों का कुरूपतम उपयोग अदम्य अभियान न हो जाए अतुष्टि से भाग्य के ढाँचे में अकर्मण्यता ढलकर सतत अनुष्ठान न हो जा...
मानव तू मानव तो बन ले - अपने अन्दर झाँक ले मानव, तब तो कुछ कर पाएगा, मानव तू मानव तो बन ले, तब तू सबको भाएगां सबका खून लाल है बन्दे, जटिल प्रश्न तो नहीं है ये, सबका स्वामी एक है बन.. ओस से कोमल एहसास ... जीवन की गहराईयों में डूबने लगा जब मन ... टूटने क्यों लगे ... नयनो के प्यारे सपन ... जैसे तेज़ धूप से कुम्हलाने लगा हो ... कोमल पुष्प का तन ...!! करती हूँ कोशिश .. बंद कर लूं नयन ... ढलकने न दूं उन्ह...
विषैली जाति
कुतिया ने जनेछ: बच्चे
एक को खा गयी
पाँच बचे
उन्हें दो महीने
दूध पिलाया
बड़ा किया
अब वे मोहल्ले में
शान से घुमते हैं
घर घर डोलते हैं
वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद राम राम ----
6 टिप्पणियाँ:
हर उम्र का व्यक्ति आगे की सोच नहीं पाता तो पीछे कि सोच कर ही खुश हो लेता है तब बृद्धों को उनसे क्यूँ अलग रखा जाए |उनके आगे तो अंधकार ही नजर आता है|नशारी सुख ना ही मन का सुख |अच्छी लिनस पर थोड़ी |
आशा
वाह! बेहतरीन वार्ता ललित जी... गिरीश पंकज जी की ग़ज़ल तो बहुत बढ़िया लगी...
बढ़िया वार्ता, बहुत अच्छे लिंक्स... बैसाखी एवं खालसा पंथ स्थापना दिवस की बधाईयाँ एवं शुभकामनाएं...
बेहतरीन वार्ता...
बढ़िया वार्ता
रोचक वार्ता
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