आप सबों को संगीता पुरी का नमस्कार , अब फेसबुक ट्विटर या यूट्यूब से ई-मेल तक पूरी वेब दुनिया पर शिकंजा कसने के लिए इंटरनेट मॉनीटरिंग की अब तक की सबसे बड़ी परियोजना पर अमल शुरू हो गया है। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की पहचान , वेब पर संवाद सामग्री पर ही नहीं , एक-एक क्लिक, एक-एक सर्च, अपडेट, चैट और मेल पर नजर रखने में खुफिया एजेंसियों का पूरा दस्ता लगा है। स्थलीय नेटवर्क से लेकर उपग्रह और समुद्री केबल तक सभी जगह इंटरनेट ट्रैफिक मॉनीटरिंग प्रणाली लगाई जा रही है। देश में अलग-अलग जगहों पर करीब 53 मॉनीटरिंग मॉड्यूल स्थापित हो चुके हैं। इंटरनेट से जुडी इस खास खबर के बाद ब्लॉग जगत के कुछ महत्वपूर्ण पोस्टों पर नजर डालते हैं .....
अदृश्य प्रात की पहली किरण पर, शब्द उग आत़े स्वयं जो, सोचता हूँ पत्र में लिख दूँ, या यूँ ही भेंट कर दूँ। मन के वन की वीथियों में, पुष्प झर आत़े स्वयं जो, सोचता हूँ इत्र में गढ़ दूँ, या यूँ ही भेंट कर दूँ। आज वह मर गया … आज वह मर गया; ऐसा नहीं कि पहली बार मरा है अपने जन्म से मृत्यु तक होता रहा तार-तार; और मरता रहा हर दिन कई-कई बार, उसके लिए रचे जाते रहे चक्रव्यूह, मुक्तसर आँगन में जब खिला तो ,सौगात की तरह था , खेतों में खिल रहा है ,खर -पतवार की तरह है - आँचल वो अंक में था, निशान -ए - आशिकी , बिकने लगा बाजार में,अब सामान की तरह है- गुजरात की खुश्बू फैले है अब पार समन्दर के लोगो. ग़ज़ल पत्थर जो उछाले थे सबने, घर उससे बनाया है हमने. कांटे जो बिछाये राहों में, घर उससे सजाया है हमने. लपटों औ धुओं की बातें कर, इल्ज़ाम लगाते हो हर दम, कुंदन की तरह अग्नि में बहुत खुद को भी तपाया है
खन खन सिक्कों जैसा। मैं पंखों के रंग भरे कंटूर दिखाता रहा वह पिजरे का दाम मोलाता रहा। सौदे के बाद बोला आप की बातें भी कविता होती हैं। उस दिन से मैं अर्थ का अर्थ करने में लगा हूँ वह प्रसन्न है कि पाखी बोलता है - खन खन यदि हम गए होते सारनाथ जब हम बनारस में थे एक बार सारनाथ जाने का कार्यक्रम बना पर किसी कारण वश सफल नहीं हो पाया तब मैंने यह कविता लिखी थी. यदि हम गए होते सारनाथ झड़ गया होता मन का हल्का सा भी तनाव हरे पेड़ों की छाँव में, खुद कृपा के लिए लाचार है निर्मल बाबा ... *नि*र्मल बाबा मुश्किल में हैं, भक्तों के लिए ईश्वर की कृपा का रास्ता खोलने वाले बेचारे बाबा अब खुद कृपा के लिए लाचार हैं। हालत ये हो गई है कि अब उन्हें अपने ही भक्तों की जरूरत पड़ रही है। 'खीझ का रिश्ता'...(संस्मरण ) 'देवा माय जी' 'अरे कुछो तो दे देऊ माय जी' ऐसी ही कुछ वो हाँक लगाता था वो, जब भी आता था... एक भिखारी जैसा दिखता है, वैसा ही दिखता था वो, उसके आने का वक्त करीब सुबह आठ से साढ़े आठ के बीच होता था,
ब्लॉग चर्चा हम बहुत परेशान हैं जी। ईर्ष्या और जलन से हमारी छाती फटी जा रही है।उंगलियों मे खुज़ली हो रही है। जिसे देखो वही लिखे जा रहा है ! सुबह डैशबोर्ड में चार नईपोस्ट, शाम होते होते चौदह ! पता नहींकहां-कहाँ से इसमें कोई संशय नहीं अक्सर सब कुछ वैसा ही तो नहीं होता की समा जाए हमारी अपेक्षा के आकार में अक्सर एक अदृश्य सर्प लटपटा जाता है कर्मक्षेत्र की देहरी पर संशय की फुंफकार से छुड़ा देना चाहता हो जैसे हमारा आगे बढना अनमनेपन में हा! आफरीन...कैसे कैसे दुष्कृत्य कर जाते हैं हम.... सुबहा होने लगता है कि हम इंसान हैं.... आफरीन को जानकार कुछ दिन पूर्व मेरी पोस्ट बेटियाँ की क्षणिकाएं कमल की पंखुरियों में थिरकती ओस की बूँद और रजनीगंधा के फूल के रूपक्या आप ने ऐसी घडी देखि है । कभी आपने सोचा है अगर आपकी घड़ी में ही स्मार्टफोन के सभी फीचर दिए गए हो कितना अच्छा होता , सोनी एरिक्सन ने ऐसे ही घ़ड़ी बाज़ार में लौंच की है जिसमें न सिफ आप समय देख सकेंगे बल्कि कालिंग के साथ
नॉक नॉक, हू इस देयर? बुनकी* का रोते-रोते दिल सूज गया है. उसके लाल फूल वाले रिबन की चोरी हो गई है. जबकि मनोज के पेट में इतना दरद उठ रहा था, रो-रोकर बच्चा का बुरा हाल, तब्बो मन्नो मौसी से कान उमेंठवा कर स्कूल जाये सेमृदुल उपहार ...... आक्षेपों और आक्रोश सहते-सहते व्यथित क्लांत मन ,दृढमना बनने की चाह में एक अकेला कोना तलाश कुण्डलिनी जगाता , बिचारी दूर्वा सा ,पुन: शीश उठा उन्मत्त हो तत्परता से विपरीत धारा में बहने चला व्यक्ति व व्यवसाय के जीवन में दूर दृष्टि का महत्व ..... पिछले दिनों मैं एक दिन के लिये कुछ व्यक्तिगतकाम से दिल्ली (गुड़गाँव) गया था , तो कुछ समय-अवकाश लेकर अपने घनिष्ठ मित्र श्रीअनिल जांगिड़ से मिलने फरीदाबाद भी गया ।आओ मेरे खुदा मैं साथ चलूँ , तेरे हाथ में हाथ देकर मैं मैंने कल सोचा अपने मौन में ये साँस कैसे आती जाती है ? क्यों नहीं भूल जाती आना कैसे अनवरत ये आती जाती है हर साँस से होता है नया जन्म जिसने दी हैं साँस हमें सोचो क्या कभी उसने भुलाया है
प्लेस्टेशन के वर्चुअल वर्ल्ड में बिखरता बचपन प्लेस्टेशन और कम्प्यूटर के वर्चुअल वर्ल्ड में चल रहे खेल उत्तेजना से भरे हैं, बच्चे घंटों उनके सामने से हटना नहीं चाहते। गैजेट्स की दुनिया इतनी तेज़ी से बदल रही है कि उनके साथ कदम ताल करना परिवर्तन परिवर्तन परिवर्तन सृष्टि का नियम है ये प्रगति का द्योतक है, ये ही समय की मांग है. फिर भी कभी वांछनीय, कभी अवांछनीय है पुरुष वेश में स्त्री, स्त्री वेश में पुरुष तो आज मान्य है किन्तु स्त्री का पूर्ण पुरुषथका हुआ मन मन की बात न पूछो तुम, कितनी बड़ी इसकी है दुम? अकेला मन यह जाता ऊब, और देख भीड़ घबराता खूब. ऊब अकेलापन से ही यह अरमान सजाकर दुई हुआ. कुछ बढ़ा चढ़ा इतना अनुरागछोटा सा हादसा, अखबारों की लाचारगी और असहमति की बेवकूफी: महफूज़ *आज एक* छोटा सा हादसा हुआ. हुआ क्या कि मैं गोमतीनगर से सी.एम.एस. स्कूल के रास्ते हज़रतगंज जा रहा था कि विपुल खंड के मोड़ पर एक बुज़ुर्ग साहब के स्कूटी को मैंने टक्कर मार दी हालांकि टक्कर हलकी थी!
आज बस इतना ही .. मिलते हैं एक ब्रेक के बाद ....
अदृश्य प्रात की पहली किरण पर, शब्द उग आत़े स्वयं जो, सोचता हूँ पत्र में लिख दूँ, या यूँ ही भेंट कर दूँ। मन के वन की वीथियों में, पुष्प झर आत़े स्वयं जो, सोचता हूँ इत्र में गढ़ दूँ, या यूँ ही भेंट कर दूँ। आज वह मर गया … आज वह मर गया; ऐसा नहीं कि पहली बार मरा है अपने जन्म से मृत्यु तक होता रहा तार-तार; और मरता रहा हर दिन कई-कई बार, उसके लिए रचे जाते रहे चक्रव्यूह, मुक्तसर आँगन में जब खिला तो ,सौगात की तरह था , खेतों में खिल रहा है ,खर -पतवार की तरह है - आँचल वो अंक में था, निशान -ए - आशिकी , बिकने लगा बाजार में,अब सामान की तरह है- गुजरात की खुश्बू फैले है अब पार समन्दर के लोगो. ग़ज़ल पत्थर जो उछाले थे सबने, घर उससे बनाया है हमने. कांटे जो बिछाये राहों में, घर उससे सजाया है हमने. लपटों औ धुओं की बातें कर, इल्ज़ाम लगाते हो हर दम, कुंदन की तरह अग्नि में बहुत खुद को भी तपाया है
खन खन सिक्कों जैसा। मैं पंखों के रंग भरे कंटूर दिखाता रहा वह पिजरे का दाम मोलाता रहा। सौदे के बाद बोला आप की बातें भी कविता होती हैं। उस दिन से मैं अर्थ का अर्थ करने में लगा हूँ वह प्रसन्न है कि पाखी बोलता है - खन खन यदि हम गए होते सारनाथ जब हम बनारस में थे एक बार सारनाथ जाने का कार्यक्रम बना पर किसी कारण वश सफल नहीं हो पाया तब मैंने यह कविता लिखी थी. यदि हम गए होते सारनाथ झड़ गया होता मन का हल्का सा भी तनाव हरे पेड़ों की छाँव में, खुद कृपा के लिए लाचार है निर्मल बाबा ... *नि*र्मल बाबा मुश्किल में हैं, भक्तों के लिए ईश्वर की कृपा का रास्ता खोलने वाले बेचारे बाबा अब खुद कृपा के लिए लाचार हैं। हालत ये हो गई है कि अब उन्हें अपने ही भक्तों की जरूरत पड़ रही है। 'खीझ का रिश्ता'...(संस्मरण ) 'देवा माय जी' 'अरे कुछो तो दे देऊ माय जी' ऐसी ही कुछ वो हाँक लगाता था वो, जब भी आता था... एक भिखारी जैसा दिखता है, वैसा ही दिखता था वो, उसके आने का वक्त करीब सुबह आठ से साढ़े आठ के बीच होता था,
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नॉक नॉक, हू इस देयर? बुनकी* का रोते-रोते दिल सूज गया है. उसके लाल फूल वाले रिबन की चोरी हो गई है. जबकि मनोज के पेट में इतना दरद उठ रहा था, रो-रोकर बच्चा का बुरा हाल, तब्बो मन्नो मौसी से कान उमेंठवा कर स्कूल जाये सेमृदुल उपहार ...... आक्षेपों और आक्रोश सहते-सहते व्यथित क्लांत मन ,दृढमना बनने की चाह में एक अकेला कोना तलाश कुण्डलिनी जगाता , बिचारी दूर्वा सा ,पुन: शीश उठा उन्मत्त हो तत्परता से विपरीत धारा में बहने चला व्यक्ति व व्यवसाय के जीवन में दूर दृष्टि का महत्व ..... पिछले दिनों मैं एक दिन के लिये कुछ व्यक्तिगतकाम से दिल्ली (गुड़गाँव) गया था , तो कुछ समय-अवकाश लेकर अपने घनिष्ठ मित्र श्रीअनिल जांगिड़ से मिलने फरीदाबाद भी गया ।आओ मेरे खुदा मैं साथ चलूँ , तेरे हाथ में हाथ देकर मैं मैंने कल सोचा अपने मौन में ये साँस कैसे आती जाती है ? क्यों नहीं भूल जाती आना कैसे अनवरत ये आती जाती है हर साँस से होता है नया जन्म जिसने दी हैं साँस हमें सोचो क्या कभी उसने भुलाया है
प्लेस्टेशन के वर्चुअल वर्ल्ड में बिखरता बचपन प्लेस्टेशन और कम्प्यूटर के वर्चुअल वर्ल्ड में चल रहे खेल उत्तेजना से भरे हैं, बच्चे घंटों उनके सामने से हटना नहीं चाहते। गैजेट्स की दुनिया इतनी तेज़ी से बदल रही है कि उनके साथ कदम ताल करना परिवर्तन परिवर्तन परिवर्तन सृष्टि का नियम है ये प्रगति का द्योतक है, ये ही समय की मांग है. फिर भी कभी वांछनीय, कभी अवांछनीय है पुरुष वेश में स्त्री, स्त्री वेश में पुरुष तो आज मान्य है किन्तु स्त्री का पूर्ण पुरुषथका हुआ मन मन की बात न पूछो तुम, कितनी बड़ी इसकी है दुम? अकेला मन यह जाता ऊब, और देख भीड़ घबराता खूब. ऊब अकेलापन से ही यह अरमान सजाकर दुई हुआ. कुछ बढ़ा चढ़ा इतना अनुरागछोटा सा हादसा, अखबारों की लाचारगी और असहमति की बेवकूफी: महफूज़ *आज एक* छोटा सा हादसा हुआ. हुआ क्या कि मैं गोमतीनगर से सी.एम.एस. स्कूल के रास्ते हज़रतगंज जा रहा था कि विपुल खंड के मोड़ पर एक बुज़ुर्ग साहब के स्कूटी को मैंने टक्कर मार दी हालांकि टक्कर हलकी थी!
आज बस इतना ही .. मिलते हैं एक ब्रेक के बाद ....
4 टिप्पणियाँ:
बड़े तगड़े लिंक हैं! काश आज छुट्टी होती:( शाम को पढ़ना पड़ेगा।..आभार।
सुंदर वार्ता.... बढ़िया लिंक्स...
सादर आभार।
अच्छे लिंक्स
मुझे भी जगह देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार
बहुत सुन्दर लिंक संयोजन।
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