शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

चौकी नंबर ११ - ये क्या हुआ और क्यों हुआ ? ब्लॉग4वार्ता --- ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार, ईश उपनिषद की एक सुक्ति में प्रश्न किया गया है "कस्य स्विदधनम्" , यही प्रश्न किस की है यह दौलत? द्विवेदी जी ने भी उठाया है। प्रश्न का उत्तर भी इसी सुक्ति में हैं अधिक जानना है तो पोस्ट पर जाना होगा। इधर बुड्ढों की शामत आ गयी है, बूढा है की मरता ही नही बिना टैम आए जाने वाला नहीं है। अमर पटा लिखा लाया इसलिए बस मेरे शहर चली आईउस स्टेशन पर तुम बदहवास सी दौड़ रही थी गाड़ी तो आई नहीं थी ,पर तुम घबरा रही थी कुछ इसे ही पलो मे टकराई थी तुम मुझ से फिर सिलसिला शुरू हुआ मुलाकातों का ना तुम थी मेरे शहर की, ना मै था तुम्हारे शहर का। वार्ता पर आगे बढते हैं........।

मुर्गियों की बेवफ़ाई से चचा गालिब हलकान परेशान और इधर साल दर साल कम होती ज़िन्दगी कयामत ढा रही है। हमने समझाया भी, इस उमर में अब काशी (बनारस) की शरण ले लो। बुढापा सुधर जाएगा। भली करेंगे बाबा बिस्वनाथ। उनकी शरण में जो गया उसका कल्याण हो गया। हमाई बात पे कोई शक हो तो इनसे बंचवा लो, नीर क्षीर हो जाएगा। कुछ महत्वपूर्ण जानकारी खाने के बारे में इधर है। सीढ़ियाँ चढ़ते चढ़ते घुटने दर्द करें तो अमावस की रात को इसे जतन से सुनना। मामला फ़िट हो जाएगा। समस्या से निजात मिल जाएगी।

धान के देश में बौछारें पड़ रही हैं, चौकी नंबर ११ का बुलावा था, दो बार जाना स्थगित किया। बरसात रुकती ही नहीं थी। बरसात में हरी भाजी नुकसान कर सकती है, खास कर बाल-वृद्धों को इसलिए आम का अचार सेहत के लिए ठीक है। कम मात्रा होने पर भी कैलोरी भरपूर है। डॉ्क्टर साहब ने बताया और नारायण की खोज में निकल लिए। हम आरज़ुएँ हज़ार रखते हैं पर पूरी नहीं  होती, साक्षीभाव ही अपनाना सही है, मिल जाए तो ठीक नहीं मिला तो भी ठीक, तुम्हारी भी जै जै, हमारी भी जै जै, दिख जाएगा किसका है पलड़ा भारी?

ढूंढता हूँ मैं उसे, जिन्हें भूल न पाया हूँ और भुला भी नहीं सकता, प्रतीक्षारत नयनों में आशा अथाह है मोबाईल की घंटी सवालों में उलझा देती है। सवालों के जवाब हों तो दिए जाएं, कुछ सवाल हमेशा अनुत्तरित रह जाते हैं। जिनका जवाब नहीं होता। मूर्खता जन्मजात नहीं होती पर लोग कहते हैं कि रेड़ीमेट मुर्ख भी होते हैं, जिनके टेम्पलेट की कोडिगं में कम्पनी से ही फ़ाल्ट रहता है। येल्लो ये खूबसूरत चेहरे देखकर दीवानगी में कसीदे पढे जा रह हैं चलते रहिये इसके आगे और भी खूबसूरत जहान है। परन्तु बड़े मियाँ दीवाने हैं कुछ समझे तब ना। न समझे तो हमारी बला से।

कुटिल सब्बल बाबू  सुधरगें नहीं। अंग्रेजों के जमाने के जेलर जो हैं, सोहणी चनाब दे किनारे पहुंच गए, और कहने लगे माँ ...वहां तो बड़ा खतरनाक जंगल है, किसने कहा था भैया कि डोगी राजा की तरह हरकत तुम भी करो। उनसे तो कहो आप महान हैं !! और महान हरकत आप ही कर सकते हैं, हमने भी समझाया था और  उसने कहा था, नासमझ समझे तब न, अनकहे लफ्ज़ जो समझ जाए वही समझदार है। जिद्दी कहीं का. समझता ही नहीं। मेरे समझ में नहीं आ रहा है कि ये क्या हुआ और क्यों हुआ, बात समझ की है, समझ में आए तो हम भी बताएं।

वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं शार्ट ब्रेक के बाद, अगली वार्ता इनके हवाले राम-राम

12 टिप्पणियाँ:

वार्ता की रोचक शैली ...
आभार !

बहुत अच्छी लिंक्स के साथ वार्ता बहुत अच्छी लगी |
आशा

ललित भाई बहुत मेहनत का काम है, ये चर्चा बनाना भी, कहाँ कहाँ से तलाश करते होंगे

आजकल वार्ता को लगाने का यह अंदाज .....काफी प्रभावित करता है ....आपकी मेहनत को सलाम .!

बहुत अच्छे लिंक्स....

शानदार लिंक्स...बेहतरीन पठन सामग्री...

क्या बात है ..गज़ब का ताना बाना बुना है.

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