संध्या शर्मा का नमस्कार.....खो गए सारे शब्द देता नहीं कोई एक आवाज भी अब जबकि जानता है वो वही थी एक आवाज मेरे जीने का संबल वो जा बैठा है दूर...इतनी दूर जहां मेरा रूदन वो सुनकर भी नहीं सुनता ना ही पलटकर देखता है कभी एक बार रेत के समंदर में रोज उठता है एक तूफान मेरे वजूद को ढक लेती है रेत भरी आंधियां.... आस भरी आंखों में अब है रेत....केवल रेत मिर्च सी भरी है आंखों में....अब रोउं भी तो कैसे....देखो जानां....एक तेरे न होने से क्या-क्या बदल जाता है......लीजिये प्रस्तुत है, आज की वार्ता .......
तुम खुद को छलते हो
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धरा पर गर्जन करते
समंदर का निर्माण तुमने किया है,
गंगा,यमुना,सरस्वती को
रास्ता तुमने दिया है,
सृष्टि को जीवंत करने वाले
दिन को जरूर
तुमने ही बनाया होगा...तोता है सीबीआई हमारी
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सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को तोता बतलाते हुए सरकार की जो पोल खोली है, वह देश
के श्वान समुदाय के मुंह पर ऐसा जोरदार तमाचा है कि उनका मुंह काला हो गया
है। सर..मामा - मामा भूख लगी..........
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डिस्क्लेमर ........इसका रेल, बस या हवाईजाहज .... किसी भी घोटाले से दूर दूर
तक कोई सम्बन्ध नहीं है ।
जैसा राजा वैसी प्रजा । जैसे छात्र वैसे प्रश्न ।...
बातों के शेर
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> चार दिन पहले बीस- पच्चीस साल पूर्व लिखी एक कविता पोस्ट की...जो उस वक़्त
> के हालात बयान करती थी. पर आज भी कुछ नहीं बदला ...हालात वैसे के वैसे ही हैं.
>...अम्बर भी है बातें करता
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अम्बर भी है बातें करता
एक सहज उल्लास जगायें
भीतर इक विश्वास उगायें,
प्रेम लहर अंतर को धोए
कैसे वह प्रियतम छिप पाए !
यहीं कहीं है देख न ...
हो जाता है रिश्तों का रासायनिकरण
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जब रिश्ते पारदर्शी होकर भी,
कफ़स में कैद से लगते हैं, तब
दो लोगों के बीच की डोर ,
छूटने लगती है ,
टूटने के लिए |
या फिर गिरह पड़ जाते हैं
उस डोर में ...
कर्नाटक की जनता हैरान है ------- कि हमने तो कांग्रेस को वोट ही नही दिया फिर भी कांग्रेस जीत कैसे गयी ?
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[image: सभी एडमिन भाई इस फोटो को अपने पेज पर जरुर पोस्ट कर्नाटक की जनता
हैरान है ------- कि हमने तो कांग्रेस को वोट ही नही दिया फिर भी कांग्रेस जीत
कैसे .
कर्नाटक का चुनाव और उसका संदेश
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*हरेश कुमार*
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कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम ने एक बार फिर से राजनीतिक दलों को
अपने गिरेबां में झांकने का अवसर दिया है। चुनाव का परिणाम ...
.एक हसींना के इश्क में गिरफ़्तार ताऊ
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ताऊ को एक हसीं परी जैसी सख्शियत से इश्क हो गया. वो अपनी दो चार सहेलियों के
साथ रोज सुबह व दोपहर आने लगी. दोनों का इशक परवान चढने लगा. अपनी मधुर स्वर
लहर...
कौन ले जाता है ?
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कोई तो बता दे मुझे
कौन ले जाता है ?
मेरी नींद
सेंध कुछ ऐसी लगती है
मानो कोई
अशर्फियों से भरी संदूकड़ी को
मेरे सिरहाने ही लगा जाता है
और समुचित संरक्षण ...प्रेम की डोर सखी घट बांधे...
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मधु ,मकरंद निश्छल सरिता
मद अभिशप्त हुआ करता
धोती सरिता अपशिष्ट मैल
मद ,जीवन कांति क्षरा करता -
कुछ पल भ्रम, व्यतिक्रम के
जीवन आचार ...असमाप्य बिछोह के रुदन का आलाप
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हवा के जादुई स्पर्श के बीच असमाप्य बिछोह के रुदन का पहला लंबा आलाप कानों
में पड़ता है। मैं डर कर चौकता हुआ जाग जाता हूँ। मैं अपने घर की सीढ़ियाँ उतर ...
कितने कर्ज़ उतारूँ माँ..... ? ओ माँ... मैं तेरे कितने कर्ज़ उतारूँ ? तूने जीने के जो लिये साँसें दीं उसका कर्ज़ उतारूँ या फिर तूने जो जीने का सलीका सिखाया उसका क़र्ज़ उतारूँ ! तूने ताउम्र मेरे तन पर ना जाने कितने परिधान सजाये कभी रंग कर, कभी सिल कर उसका क़र्ज़ उतारूँ ...तुम्हारे बारे में !!!!!! मां सोचती हूँ कई बार तुम्हारा प्यार और तुम्हारे बारे में जब भी तो बस यही ख्याल आता है क्या कभी शब्दों में व्यक्त हो सकता है तुम्हारा प्यार तुम्हारा समर्पण, तुम्हारी ममता तुम्हारा निस्वार्थ भाव से किया गया हर बच्चे से समानता का स्नेह ...प्रेम की डोर सखी घट बांधे...मधु ,मकरंद निश्छल सरिता मद अभिशप्त हुआ करता धोती सरिता अपशिष्ट मैल मद ,जीवन कांति क्षरा करता - कुछ पल भ्रम, व्यतिक्रम के जीवन आचार नहीं होते जब स्नेह पयोधि हृदय में होवे कई जन्म यहाँ जीया करता...
budh religion in rewalsar ,रिवालसर में बौध धर्म ये दीपक एक जगह जल रहे थे क्यों ? मुझे पता नही कोई पूजा का तरीका होगा बौध धर्म के मानने वालो और तिब्बतियो के लिये रिवालसर का बहुत अधिक महत्व है । गुरू पदमसंभव का प्राचीन मंदिर यहां पर है यहां रिवालसर में गोम्पा है । .....ये 'बितनुआ' क्या है और क्या यह जहरीला है? अक्सर अखबारों में यह समाचार छपता है कि जहरीले जंतु के काटने से मौत. और जानकारी मिलती है कि किसी 'बितनुआ' नाम के जंतु के काटने से मौत हुयी है. ऐसे में पाठकों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर यह बितनुआ क्या है ? ..मेरी अभिलाषा तुम करो श्रृंगार मैं दर्पण बन जाऊं तेरे अधरों की लाली (अधर : होंठ) नैन अंजन बन जाऊं. (अंजन: काजल) तुम करो श्रृंगार मैं दर्पण बन जाऊं सजूँ सुमन बन बेनी में, (बेनी : स्त्री का जूडा ) मुक्ता हार बन जाऊं (मुक्ता : मोती) तेरा रूप अपरूप बड़ा (अपरूप : बहुत सुन्दर)....
कार्टून :- गुप्तदान को कमाई जताने वाली जमात -
दीजिये इजाज़त नमस्कार.......
9 टिप्पणियाँ:
अच्छी वार्ता......
लिंक्स भी जितने देखे अच्छे हैं...
शुक्रिया संध्या जी.
सस्नेह
अनु
वाह सुंदर वार्ता ...
बहुत अच्छी लगी वार्ता ...आभार..
अच्छी वार्ता !!
आभार आपका संध्या जी मेरी रचना को अपनी वार्ता में सम्मिलित करने के लिये ! इतने अच्छे लिंक्स दिए हैं आपने कि बीच के व्यवधान का मलाल समाप्त हो गया है ! शुभकामनायें !
बहुत आभार मुझे वार्ता में शामिल करने के लिए. सारे लिंक्स बड़े सुन्दर लगे..
सादर
नीरज कुमार 'नीर'
अच्छी वार्ता
dhanyvaad....
सुंदर वार्ता ...
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