आप सबों को संगीता पुरी का नमस्कार , दस करोड़ रूपए की रिश्वतखोरी के मामले में केंद्रीय रेल मंत्री पी के बंसल के भांजे विजय सिंगला के करीबी और कथित बिचौलिया अजय गर्ग को दिल्ली की एक अदालत में आज आत्मसमर्पण करने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया । अदालत ने उसे 9 मई तक के लिए सीबीआई हिरासत में भेज दिया। विशेष सीबीआई न्यायाधीश स्वर्ण कांता शर्मा ने गर्ग से हिरासत में पूछताछ की अनुमति दे दी। जब पच्चीस पच्चास साल पुराने घोटालों की असलियत अबतक नहीं खुल सकी है तो इस घोटाले का भी कुछ नहीं होना , आने वाले दिनों में भी जनता को नए नए घोटालों का तोहफा मिलता रहेगा , हम ब्लॉगर्स भी क्या करें , हम सिर्फ देख सकते हैं , सुन सकते हैं , लिख सकते हैं ।
इस मध्य ब्लॉग जगत की भी एक महत्वपूर्ण खबर है , फख्र की बात है हिन्दी के सर्प संसार ने दुनियां की दर्जन भर भाषाओं में से सबसे रचनात्मक और सृजनात्मक कटेगरी का बाब्स यूजर पुरस्कार जीत लिया है
इस खास खबर के बाद देखिए ब्लॉग जगत के कुछ महत्वपूर्ण लिंक ......
' जन गन मन ' के रचयिता , भारत माता के लाल , गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर को उनकी १५२ वीं जंयती पर शत शत नमन |
आजकल खबरें आपको परेशान नहीं करतीं... वे अपनी शॉक-वैल्यू खो चुकी हैं... यह एक ऐसा दौर है जिसमें हमारे पतन की कोई सीमा नहीं है... कहीं भी, किसी के द्वारा भी, कैसा भी और कुछ भी संभव है... लगभग हर चीज बिकाऊ है और बिकाऊ दिख भी रही है...पवन बंसल जी यूपीए की सरकार में एक साफ और बेदाग छवि के भरोसेमंद और काबिल नेता के तौर पर जाने जाते रहे हैं... उनका भांजा रेल मंत्रालय से होने वाली नियुक्ति और प्रमोशन के बदले लंबी चौड़ी घूस लेते सीबीआई के हाथों पकड़ा गया है... पवन बंसल कसूरवार हो भी सकते हैं और यह भी हो सकता है कि जाँच के बाद यह पता चले कि पवन बंसल इस मामले में शामिल नहीं थे और उनके रिश्तेदारों ने केवल उनकी सदाशयता का अनुचित लाभ उठाया है...
हमारे जीवन में अध्यात्म का आना एक नियत समय पर होता है. इस ज्ञान को जिस क्षण हमने अपने हृदय में स्थापित कर लिया, उसी दिन से हमारे उद्धार की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है. ज्ञान का आश्रय लेकर हम अपने इर्द-गिर्द बने झूठे आश्रयों से किनारा करते चलते हैं. हम जिस जगत का सहारा लेकर खड़े थे, वह तो स्वयं ही डगमगा रहा है, तो हमें क्या संभालेगा.
केन्द्र सरकार जिस तरह से अपने भ्रष्ट मंत्रियों का बचाव करने में लगी है वह देश के लिए चिंता का विषय है. विद्रूपता ये है कि न केवल मंत्री बल्कि तमाम मंत्रालयों, विभागों में बैठे शीर्षस्थ पदाधिकारी भी मनमाने ढंग से अपने मंत्रियों की, अपनी कारगुजारियों को छिपाने का काम कर रहे हैं. बंसल के भांजे के रिश्वत काण्ड के साथ-साथ कोयला घोटाले की अनियमितता के सामने आने ने भविष्य की स्थिति की भयावहता को ही प्रकट किया है.
हमारे देश में सदियों से राजतन्त्र प्रणाली शासन प्रणाली चलती रही धीरे धीरे इस प्रणाली में संघ राज्य की शक्तियाँ क्षीण होती गयी और नतीजा छोटे छोटे स्वतंत्र राज्यों ने जन्म ले लिया, कई सारे स्वतंत्र राज्य होने, उन पर कई वंशानुगत अयोग्य शासकों के आसीन होने के चलते हमारी शासन प्रणाली में कई तरह के विकार उत्पन्न हो गए जो बाहरी आक्रान्ताओं खासकर मुगलों के आने बाद बढ़ते ही गये| मुगलों के आने से पहले हमारे यहाँ के शासक आम जनता से किसी तरह की दुरी नहीं रखते थे पर मुगलों के सम्पर्क में आने के बाद उनका अनुसरण करते हुए वे भी शानो-शौकत से रहने लगे, यहाँ के कई राजा मुगलों के सामंत बन गए तो अपना राज्य सुचारू रूप से चलाने को उन्होंने भी अपने अपने राज्यों में सामंतों की एक बड़ी श्रंखला पैदा कर दी|
पेश है! फ्रेश है!
इस साल जनवरी के पहले सप्ताह में मैंने मुंडन करवाया था (क्यों?_वो छोडिये!)। मैं नए उगने वाले बालों के बारे में तरह-तरह के विचारों से जूझ रहा था। घर से बाहर निकलने में लाज आती थी! '...ऊंहूं..बेई, कोई देखतई तो का बोलतई ..!' गनीमत यह थी की सीजन जाड़े का था, जिसमें टोपी के इस्तेमाल से लाज-लगाने वाली बात को छिपाया जा सकता था। फ़ौरन उनी टोपी ने मेरे कंटीले चाँद पर अपना मुकाम बना लिया, और शक्ल को एक समझौता के लायक फ्रेम प्रदान किया! बाबूजी हमेशा कहा करते थे कि :'..बबुआ के ललाट बड़ी ऊँच बा!' अभी देखते तो यही कहते कि '...अंतहीन बा!!' ...अबकी बार लम्बे बाल रखने का खूब मन है। सच्ची!! अनुपम सिन्हा सर के जैसा!
ताऊ पहले लूटमार, चोरी उठाईगिरी करके अपना काम चलाता था. फ़िर कुछ समय बाद डकैतियां डालने लगा. फ़िर एक ऐसा दौर आया कि उसको डाकूगिरी से सरेंडर करना पडा क्योंकि एक अच्छी डील मिल गयी थी.सरेंडर के बाद खुली जेल में रहा जहां कुछ ब्लागरों से दोस्ती हो गई. जेल में रहने के दौरान ही वो ब्लागिंग के गुर सीख चुका था. सजा काटने के बाद उसने धमाकेदार ब्लागरी शुरू कर दी. जैसे कोई नशे का आदी हो जाता है उसी तरह ताऊ भी ब्लागरी का आदी हो गया.
जो होता है वह नजर आ ही जाता है ---------------------------------------- सूरज अपने प्रकाश का विज्ञापन नहीं देता चन्द्रमा के पास भी चांदनी का प्रमाणपत्र नहीं होता! बादल कुछ पल, कुछ घंटे , कुछ दिन ही ढक सकते हैं ,रोक सकते हैं प्रकाश को , चांदनी को ... बादल के छंटते ही नजर आ जाते हैं अपनी पूर्ण आभा के साथ पूर्ववत!
अभी दिन ही कितने हुए हैं। सवा साल ही तो। किसी इलाके में इतनी थोड़ी अवधि में किसी बड़े परिवर्तन की उम्मीद कैसे की जा सकती है। लेकिन उम्मीदों से परे भी घटित हुआ है कोंडागांव में। यदि इसे चमत्कार कह दें तो यह शब्द भी छोटा पड़ जाएगा। चमत्कार कहना उस वैज्ञानिक सोंच और दूरदृष्टि को नजरअंदाज कर देना भी होगा, जिसकी वजह से नक्सलवादियों से पीड़ित इस इलाके के लोग अब खुद को मुक्ति-पथ पर पा रहे हैं।
वह संगीतज्ञ कब से हमारे घर में घुसा बैठा था मुझे पता ही नहीं चला . वो तो रात में पहली झपकी के दौरान ही एक ऐसे तेज संगीत से नीद उचट गयी जिसके आगे जाज और बीटल्स सब फेल थे ....नींद टूटने के बाद अपने को संयत करते हुए ध्यान संगीत के स्रोत की और फोकस किया ...ऐसा लगा कि कर्कश संगीत लहरियां मेरे स्टडी रूम से आ रही हैं। भारी मन से उठा और ताकि देख सकूं यह बिन बुलाया मेहमान कब से चुपके से आ गया था मेरे स्टडी कक्ष में -जयशंकर प्रसाद की एक कविता भी अनायास याद आयी -
एक दिन गुबरैला गोबर से निकल कर घूमते घूमते काली चींटियों की बस्ती में जा पहुंचा . चींटियाँ उसके भारी भरकम शरीर को देखकर आश्चर्य चकित हो गई . कुछ ही दिन में गुबरैला चींटियों का राजा बन बैठा और वह बहुत ही अभिमानी हो गया .सारे चींटे उसके हर आदेश का पालन करते थे और अपने गुबरैला राजा को तरह तरह की खाने पीने की चींजे उपलब्ध कराते रहते थे .
मैं हांफता-कांपता गोंडा जाने के लिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा, तो वहां पहले से मौजूद वरिष्ठ पत्रकार सुखहरण जी ने बताया कि हम दोनों में से किसी का भी टिकट कन्फर्म नहीं हो पाया है। मैं गुस्से से चीख पड़ा, ‘आपने तो कहा था, पीएमओ से हो जाएगा, रेलमंत्री कार्यालय से हो जाएगा। ये मंत्री करा देंगे, वे विधायक करा देंगे...अब क्या हुआ?’ सुखहरण जी ने झुंझलाते हुए कहा, ‘एक बात समझो, नहीं हो पाया...तो नहीं हो पाया। प्रधानमंत्री जी कनाडा गए हैं गिल्ली डंडा मैच का उद्घाटन करने, रेल मंत्री जी चार्ट तैयार होने तक छुट्टी पर थे। मंत्री-विधायक सभी टूर पर गए हुए हैं।’
बिना आँच के भट्टी सा सुलगता दर्द रूह पर फ़फ़ोले छोड गया आओ सहेजें इन फ़फ़ोलों में ठहरे पानी को रिसने से ………… कम से कम निशानियों की पहरेदारी में ही उम्र फ़ना हो जाये तो तुझ संग जीने की तलब शायद मिट जाये क्योंकि ……… साथ के लिये जरूरी नहीं चांद तारों का आसमान की धरती पर साथ साथ टहलना यूँ भी फ़ना होने के हर शहर के अपने रिवाज़ होते हैं …………
हर ख़ुशी है लोगों के दामन में ,
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं .
दिन रात दौड़ती दुनिया में ,
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं .
माँ की लोरी का एहसास तो है ,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं .
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके ,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं .
मेरी फैली हुयी बाहें....
ये मेरी –
फैली हुयी बाहें दो –
शाख़ पेड़ की हो,
कब से मुंतज़िर हैं तेरी.....
पतझड़ है तो क्या हुआ –
इस मध्य ब्लॉग जगत की भी एक महत्वपूर्ण खबर है , फख्र की बात है हिन्दी के सर्प संसार ने दुनियां की दर्जन भर भाषाओं में से सबसे रचनात्मक और सृजनात्मक कटेगरी का बाब्स यूजर पुरस्कार जीत लिया है
इस खास खबर के बाद देखिए ब्लॉग जगत के कुछ महत्वपूर्ण लिंक ......
' जन गन मन ' के रचयिता , भारत माता के लाल , गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर को उनकी १५२ वीं जंयती पर शत शत नमन |
आजकल खबरें आपको परेशान नहीं करतीं... वे अपनी शॉक-वैल्यू खो चुकी हैं... यह एक ऐसा दौर है जिसमें हमारे पतन की कोई सीमा नहीं है... कहीं भी, किसी के द्वारा भी, कैसा भी और कुछ भी संभव है... लगभग हर चीज बिकाऊ है और बिकाऊ दिख भी रही है...पवन बंसल जी यूपीए की सरकार में एक साफ और बेदाग छवि के भरोसेमंद और काबिल नेता के तौर पर जाने जाते रहे हैं... उनका भांजा रेल मंत्रालय से होने वाली नियुक्ति और प्रमोशन के बदले लंबी चौड़ी घूस लेते सीबीआई के हाथों पकड़ा गया है... पवन बंसल कसूरवार हो भी सकते हैं और यह भी हो सकता है कि जाँच के बाद यह पता चले कि पवन बंसल इस मामले में शामिल नहीं थे और उनके रिश्तेदारों ने केवल उनकी सदाशयता का अनुचित लाभ उठाया है...
हमारे जीवन में अध्यात्म का आना एक नियत समय पर होता है. इस ज्ञान को जिस क्षण हमने अपने हृदय में स्थापित कर लिया, उसी दिन से हमारे उद्धार की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है. ज्ञान का आश्रय लेकर हम अपने इर्द-गिर्द बने झूठे आश्रयों से किनारा करते चलते हैं. हम जिस जगत का सहारा लेकर खड़े थे, वह तो स्वयं ही डगमगा रहा है, तो हमें क्या संभालेगा.
केन्द्र सरकार जिस तरह से अपने भ्रष्ट मंत्रियों का बचाव करने में लगी है वह देश के लिए चिंता का विषय है. विद्रूपता ये है कि न केवल मंत्री बल्कि तमाम मंत्रालयों, विभागों में बैठे शीर्षस्थ पदाधिकारी भी मनमाने ढंग से अपने मंत्रियों की, अपनी कारगुजारियों को छिपाने का काम कर रहे हैं. बंसल के भांजे के रिश्वत काण्ड के साथ-साथ कोयला घोटाले की अनियमितता के सामने आने ने भविष्य की स्थिति की भयावहता को ही प्रकट किया है.
हमारे देश में सदियों से राजतन्त्र प्रणाली शासन प्रणाली चलती रही धीरे धीरे इस प्रणाली में संघ राज्य की शक्तियाँ क्षीण होती गयी और नतीजा छोटे छोटे स्वतंत्र राज्यों ने जन्म ले लिया, कई सारे स्वतंत्र राज्य होने, उन पर कई वंशानुगत अयोग्य शासकों के आसीन होने के चलते हमारी शासन प्रणाली में कई तरह के विकार उत्पन्न हो गए जो बाहरी आक्रान्ताओं खासकर मुगलों के आने बाद बढ़ते ही गये| मुगलों के आने से पहले हमारे यहाँ के शासक आम जनता से किसी तरह की दुरी नहीं रखते थे पर मुगलों के सम्पर्क में आने के बाद उनका अनुसरण करते हुए वे भी शानो-शौकत से रहने लगे, यहाँ के कई राजा मुगलों के सामंत बन गए तो अपना राज्य सुचारू रूप से चलाने को उन्होंने भी अपने अपने राज्यों में सामंतों की एक बड़ी श्रंखला पैदा कर दी|
पेश है! फ्रेश है!
इस साल जनवरी के पहले सप्ताह में मैंने मुंडन करवाया था (क्यों?_वो छोडिये!)। मैं नए उगने वाले बालों के बारे में तरह-तरह के विचारों से जूझ रहा था। घर से बाहर निकलने में लाज आती थी! '...ऊंहूं..बेई, कोई देखतई तो का बोलतई ..!' गनीमत यह थी की सीजन जाड़े का था, जिसमें टोपी के इस्तेमाल से लाज-लगाने वाली बात को छिपाया जा सकता था। फ़ौरन उनी टोपी ने मेरे कंटीले चाँद पर अपना मुकाम बना लिया, और शक्ल को एक समझौता के लायक फ्रेम प्रदान किया! बाबूजी हमेशा कहा करते थे कि :'..बबुआ के ललाट बड़ी ऊँच बा!' अभी देखते तो यही कहते कि '...अंतहीन बा!!' ...अबकी बार लम्बे बाल रखने का खूब मन है। सच्ची!! अनुपम सिन्हा सर के जैसा!
ताऊ पहले लूटमार, चोरी उठाईगिरी करके अपना काम चलाता था. फ़िर कुछ समय बाद डकैतियां डालने लगा. फ़िर एक ऐसा दौर आया कि उसको डाकूगिरी से सरेंडर करना पडा क्योंकि एक अच्छी डील मिल गयी थी.सरेंडर के बाद खुली जेल में रहा जहां कुछ ब्लागरों से दोस्ती हो गई. जेल में रहने के दौरान ही वो ब्लागिंग के गुर सीख चुका था. सजा काटने के बाद उसने धमाकेदार ब्लागरी शुरू कर दी. जैसे कोई नशे का आदी हो जाता है उसी तरह ताऊ भी ब्लागरी का आदी हो गया.
जो होता है वह नजर आ ही जाता है ---------------------------------------- सूरज अपने प्रकाश का विज्ञापन नहीं देता चन्द्रमा के पास भी चांदनी का प्रमाणपत्र नहीं होता! बादल कुछ पल, कुछ घंटे , कुछ दिन ही ढक सकते हैं ,रोक सकते हैं प्रकाश को , चांदनी को ... बादल के छंटते ही नजर आ जाते हैं अपनी पूर्ण आभा के साथ पूर्ववत!
अभी दिन ही कितने हुए हैं। सवा साल ही तो। किसी इलाके में इतनी थोड़ी अवधि में किसी बड़े परिवर्तन की उम्मीद कैसे की जा सकती है। लेकिन उम्मीदों से परे भी घटित हुआ है कोंडागांव में। यदि इसे चमत्कार कह दें तो यह शब्द भी छोटा पड़ जाएगा। चमत्कार कहना उस वैज्ञानिक सोंच और दूरदृष्टि को नजरअंदाज कर देना भी होगा, जिसकी वजह से नक्सलवादियों से पीड़ित इस इलाके के लोग अब खुद को मुक्ति-पथ पर पा रहे हैं।
वह संगीतज्ञ कब से हमारे घर में घुसा बैठा था मुझे पता ही नहीं चला . वो तो रात में पहली झपकी के दौरान ही एक ऐसे तेज संगीत से नीद उचट गयी जिसके आगे जाज और बीटल्स सब फेल थे ....नींद टूटने के बाद अपने को संयत करते हुए ध्यान संगीत के स्रोत की और फोकस किया ...ऐसा लगा कि कर्कश संगीत लहरियां मेरे स्टडी रूम से आ रही हैं। भारी मन से उठा और ताकि देख सकूं यह बिन बुलाया मेहमान कब से चुपके से आ गया था मेरे स्टडी कक्ष में -जयशंकर प्रसाद की एक कविता भी अनायास याद आयी -
एक दिन गुबरैला गोबर से निकल कर घूमते घूमते काली चींटियों की बस्ती में जा पहुंचा . चींटियाँ उसके भारी भरकम शरीर को देखकर आश्चर्य चकित हो गई . कुछ ही दिन में गुबरैला चींटियों का राजा बन बैठा और वह बहुत ही अभिमानी हो गया .सारे चींटे उसके हर आदेश का पालन करते थे और अपने गुबरैला राजा को तरह तरह की खाने पीने की चींजे उपलब्ध कराते रहते थे .
मैं हांफता-कांपता गोंडा जाने के लिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा, तो वहां पहले से मौजूद वरिष्ठ पत्रकार सुखहरण जी ने बताया कि हम दोनों में से किसी का भी टिकट कन्फर्म नहीं हो पाया है। मैं गुस्से से चीख पड़ा, ‘आपने तो कहा था, पीएमओ से हो जाएगा, रेलमंत्री कार्यालय से हो जाएगा। ये मंत्री करा देंगे, वे विधायक करा देंगे...अब क्या हुआ?’ सुखहरण जी ने झुंझलाते हुए कहा, ‘एक बात समझो, नहीं हो पाया...तो नहीं हो पाया। प्रधानमंत्री जी कनाडा गए हैं गिल्ली डंडा मैच का उद्घाटन करने, रेल मंत्री जी चार्ट तैयार होने तक छुट्टी पर थे। मंत्री-विधायक सभी टूर पर गए हुए हैं।’
बिना आँच के भट्टी सा सुलगता दर्द रूह पर फ़फ़ोले छोड गया आओ सहेजें इन फ़फ़ोलों में ठहरे पानी को रिसने से ………… कम से कम निशानियों की पहरेदारी में ही उम्र फ़ना हो जाये तो तुझ संग जीने की तलब शायद मिट जाये क्योंकि ……… साथ के लिये जरूरी नहीं चांद तारों का आसमान की धरती पर साथ साथ टहलना यूँ भी फ़ना होने के हर शहर के अपने रिवाज़ होते हैं …………
श्रीगंगानगर-कुछ ऐसी चीजें होती हैं जो दूर से ही सुहानी लगती है। ठीक ऐसे, जैसे अन्ना हज़ारे टीवी पर ही सजते हैं। ऊंचे मंच पर तिरंगा फहराते अन्ना हर किसी को मोहित,सम्मोहित करते हैं। चेहरे पर आक्रोश ला जब वे वंदे मातरम का नारा लगाते हैं तो जन जन की उम्मीद दिखते हैं। वे अपने लगते हैं...जो इस उम्र में लाखों लोगों की आँखों में एक नए भारत की तस्वीर दिखाते हैं। अनशन के दौरान मंच पर निढाल लेटे अन्ना युवाओं के दिलों में चिंता पैदा करते हैं....हर ओर एक ही बात अन्ना का क्या हुआ?
8 , 9 और 10 मई 2013 को सामान्य तौर पर ग्रहों की स्थिति शुभ फलदायक है , इसका असर शेयर बाजार और मौसम पर अनुकूल दिखेगा , वृश्चिक राशि वालों के लिए शुभ तथा कन्या रावालों के लिए अशुभ रहेगा .. तीनो ही दिन 2 बजे से 4 बजे दिन का समय कुछ अशुभ तथा 7 बजे से 9 बजे रात्रि का समय शुभ फलदायी रहेगा। विस्तार में अपने अपने लग्न से देखिए अपना अपना राशि फल , इस राशि फल में आपके लिए शुरूआती पंक्ति अधिक महत्वपूर्ण होगी , बाद की पंक्तियां कम महत्वपूर्ण होती जाएंगी ......
फ़िलहाल ये मेरी आखरी पोस्ट है। लौट कर आऊँगी लेकिन कब आऊँगी मालूम नहीं। आज ही निकल रही हूँ होलैंड और उसके बाद भारत के लिए। शायद आ पाऊं ब्लॉग पर या शायद न भी आ पाऊं। जो भी है आप सभी को हैपी-हैपी ब्लॉग्गिंग। कोई टंकी-वंकी पर नहीं चढ़ रही हूँ, बस एक बार फिर बीजी होने वाली हूँ। तो मिलते हैं एक छोटे/लम्बे ब्रेक के बाद :):)
जब भी लौट कर आऊँगी यहीं आऊँगी :)
मिला जब वो प्यार से, तो गुलाब जैसा है
आँखों में जब उतर गया, शराब जैसा है
खामोशियाँ उसकी मगर, हसीन लग गईं
कहने पे जब वो आया तो, अज़ाब जैसा है
"नासिर" क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है
दीवाना है दीवाने के मुँह न लगो तो बेहतर है
कल जो था वो आज नहीं जो आज है कल मिट जायेगा
रूखी-सूखी जो मिल जाये शुक्र करो तो बेहतर है
फ़िलहाल ये मेरी आखरी पोस्ट है। लौट कर आऊँगी लेकिन कब आऊँगी मालूम नहीं। आज ही निकल रही हूँ होलैंड और उसके बाद भारत के लिए। शायद आ पाऊं ब्लॉग पर या शायद न भी आ पाऊं। जो भी है आप सभी को हैपी-हैपी ब्लॉग्गिंग। कोई टंकी-वंकी पर नहीं चढ़ रही हूँ, बस एक बार फिर बीजी होने वाली हूँ। तो मिलते हैं एक छोटे/लम्बे ब्रेक के बाद :):)
जब भी लौट कर आऊँगी यहीं आऊँगी :)
मिला जब वो प्यार से, तो गुलाब जैसा है
आँखों में जब उतर गया, शराब जैसा है
खामोशियाँ उसकी मगर, हसीन लग गईं
कहने पे जब वो आया तो, अज़ाब जैसा है
"नासिर" क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है
दीवाना है दीवाने के मुँह न लगो तो बेहतर है
कल जो था वो आज नहीं जो आज है कल मिट जायेगा
रूखी-सूखी जो मिल जाये शुक्र करो तो बेहतर है
प्रभु ने हम दोनों की , किस्मत एक बनाई !
दुनिया में हम दोनों को , ज़िंदा मारा जाता ,
मुझे गर्भ के भीतर ,तुमको बाहर काटा जाता !
हर ख़ुशी है लोगों के दामन में ,
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं .
दिन रात दौड़ती दुनिया में ,
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं .
माँ की लोरी का एहसास तो है ,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं .
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके ,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं .
मेरी फैली हुयी बाहें....
ये मेरी –
फैली हुयी बाहें दो –
शाख़ पेड़ की हो,
कब से मुंतज़िर हैं तेरी.....
पतझड़ है तो क्या हुआ –
आज के लिए बस इतना ही ... मिलते हैं एक ब्रेक के बाद .....
9 टिप्पणियाँ:
वाह पढ़ाई करने के लिए इतने सारे लिंक।
लिंक को क्लिक करने पर मनबजे संगीत।
sangeet se aachhdit behad sundar sanyojan
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आदरणीय संगीता जी,
अच्छी चर्चा, शानदार लिंक...
आपका आभारी हूँ...
...
सुन्दर वार्ता !!
आज की ब्लॉग वार्ता मे मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार संगीता दीदी !
bahut badhiya charcha ki hai ... mere blog ki post ko shamil karne ke liye abhaar
रोचक सूत्रों से सजी वार्ता..
क्या बात है। सुंदर ...
बढ़िया वार्ता सूत्रों से सजी |
आशा
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