ब्लाग 4 वार्ता का आगाज करने से पहले सभी ब्लागर मित्रों को राजकुमार ग्वालानी का नमस्कार
चलिए आज सीधे बांटते हैं चर्चा का प्यार- नहीं करवाते ज्यादा इंतजार
कल मैंने एक सवाल पूछा था...आदिवासियों का नेता कौन...कोई साफ़ जवाब नहीं आया...ले दे कर एक नाम गिनाया गया *शिबू सोरेन*...तो जनाब शिबू सोरेन के नाम में ही सब कुछ छुपा है...*क्या ये अपने आप में ही भारतीय राजनी...
बिग-बी, राखी, एकता रानी घर-घर की बस यही कहानी टेली-वीज़न देख-देख कर बच्चों पर चढ़ रही जवानी सास बनी है बास अगर तो बहू स्वयंभू है पटरानी नाती-पोते कम्प्यूटर के देख फालतू दादी-नानी विग्यापन भी कैसे-कैसे म...
खुशदीप भाई के यहां से विदा लेते समय अविनाश जी ने फ़ोन पर बताया कि आज वे दांतों की दुकान में जाएंगे इसलिए विलंब हो जाएगा। अगर दिल्ली में कहीं घुमना हो तो बताएं। मैने कहा कि आप दांतों की दुकान से हो आएं फ़िर आपसे सम्पर्क करता हुँ। अविनाश जी ने दांत में नैनोरीते आँगन का सूनापन भर जाता दसों दिशाओं में, विगलित हो जाता है कण-कण ! रीते आँगन का सूनापन ! नव पल्लव आच्छादित पीपल रक्तिम तन सिसकी सी भरता, सूने कोटर के पास बया चंचल हो परिक्रमा करता, उसके नन्हे-मुन्नों...
अमीर धरती गरीब लोग में ज़िंदगी के लिये मौत की छलांग!
ज़िंदगी के लिये मौत की छलांग!जी हां ये सच है और उस छलांग की कीमत भी कितनी?आप कल्पना भी नही कर सकते कि इंसान की ज़िंदगी इतनी सस्ती है।महज़ कुछ सौ रूपये,बस।एक छ्लांग के लिये इतना और छलांग सही हुई तो दूसरी छलांग...
नई राह, नये हौसलेनये जज्बे, नये कदमचलो चलें हमनई सुबह के साथउस ओर, जहां हैमेरे ख्बाबों की बस्तीसच, आतुर हूं मैंपहुंचने के लियेअपनी नई मंजिल परख्बाबों के साथख्बाबों की बस्ती में !
पता नहीं किसका प्रभाव लज्जा के बन्धन खोले हैमन का इकतारा अब केवल तुमही तुमही बोले है ओढ़ी हुई एक कमली की छायायें हो गईं तिरोहितनातों की डोरी के सारे अवगुंठन खुल कर छितरायेबांधे अपने साथ सांस को द्रुत गति चले समय के पहिये उगी भोर के साथ साथ ही संध्या के
कमर का दर्द, वैसे तो अब काहे की कमर, कमरा ही कहो, हाय!! बैठने नहीं देता और ये छपास पीड़ा, लिखूँ और छापूँ, लेटने नहीं देती. कैसी मोह माया है ये प्रभु!! मैं गरीब इन दो दर्दों की द्वन्द के बीच जूझता अधलेटा सा - दोनों के साथ थोड़ा थोड़ा न्याय और थोड़ा थोड़ा
आखिरकार झारखण्ड में नेताओं की नौटंकी का पर्दा पड़ ही गया. अभी तक जिस तरह से शिबू सोरेन कुर्सी से चिपके हुए थे उससे तो यही लगता था की अभी यह मामला और खिंचने वाला है पर किसी भी दल द्वारा उनको समर्थन न दिए जाने से आखिर कार उनकी कुर्सी चली ही गयी. एक नया
प्रिय ब्लागर मित्रगणों,आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में प. डी.के. शर्मा "वत्स", की रचना पढिये.लेखक परिचय :-नाम:- पं.डी.के.शर्मा "वत्स"जन्म:- 24/8/1974 (जगाधरी,हरियाणा)स्थायी निवास:- लुधियाना(पंजाब)शिक्षा:- एम.ए.--(संस्कृ्त), ज्योतिष आचार्यकईं वर्षों
कूड़े के ढेर से जीवन चुनता है दिन भर खुद का बोझ ढोता है इस शहर को फख़्र है बड़प्पन का उफ ! यहाँ तो बचपन ऐसे सोता है चित्र : मोबाईल कैमरे से
कार से डरते दिल्ली के ऑटोसच कह रहा हूंइनसे लग रहा है डरनहीं मालूम क्यों हुए हैंइतने निडरमाफ कर देना ईश्वरनहीं जानतेये क्या कर रहे हैं ?आज दैनिक हरिभूमि में चिंता किसको है पेज 4 पर क्लिक करके असलियत जानिए।
ज़िंदगी के लिये मौत की छलांग!जी हां ये सच है और उस छलांग की कीमत भी कितनी?आप कल्पना भी नही कर सकते कि इंसान की ज़िंदगी इतनी सस्ती है।महज़ कुछ सौ रूपये,बस।एक छ्लांग के लिये इतना और छलांग सही हुई तो दूसरी छलांग...आप एक पोस्ट लिखते हैं और उसमें एक टिप्पणी भी आ जाती है कुछ इस तरह सेः "मेरे फलाँ ब्लोग में आकर कृपया अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें।" *याने कि आपने अपने पोस्ट में क्या लिखा है, क्यों लिखा है, सही लिखा है या ...
नई राह, नये हौसलेनये जज्बे, नये कदमचलो चलें हमनई सुबह के साथउस ओर, जहां हैमेरे ख्बाबों की बस्तीसच, आतुर हूं मैंपहुंचने के लियेअपनी नई मंजिल परख्बाबों के साथख्बाबों की बस्ती में !
पता नहीं किसका प्रभाव लज्जा के बन्धन खोले हैमन का इकतारा अब केवल तुमही तुमही बोले है ओढ़ी हुई एक कमली की छायायें हो गईं तिरोहितनातों की डोरी के सारे अवगुंठन खुल कर छितरायेबांधे अपने साथ सांस को द्रुत गति चले समय के पहिये उगी भोर के साथ साथ ही संध्या केयुवा लड़की भी चाहती है तितलियों की तरह उडना कोयल की तरह कूकना झरने की तरह बहना पर घर से गंतव्य तक नजरे झुकाए रास्ते पर चलती है युवा लड़की नेत्र रहकर भी नेत्रहीन हो जाती है,युवा लड़की. सूनसान रास्तों पर अकेले नहीं जा सकती युवा लड़की पदयुक्त होकर भी पदहीन
कमर का दर्द, वैसे तो अब काहे की कमर, कमरा ही कहो, हाय!! बैठने नहीं देता और ये छपास पीड़ा, लिखूँ और छापूँ, लेटने नहीं देती. कैसी मोह माया है ये प्रभु!! मैं गरीब इन दो दर्दों की द्वन्द के बीच जूझता अधलेटा सा - दोनों के साथ थोड़ा थोड़ा न्याय और थोड़ा थोड़ा
आखिरकार झारखण्ड में नेताओं की नौटंकी का पर्दा पड़ ही गया. अभी तक जिस तरह से शिबू सोरेन कुर्सी से चिपके हुए थे उससे तो यही लगता था की अभी यह मामला और खिंचने वाला है पर किसी भी दल द्वारा उनको समर्थन न दिए जाने से आखिर कार उनकी कुर्सी चली ही गयी. एक नया
प्रिय ब्लागर मित्रगणों,आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में प. डी.के. शर्मा "वत्स", की रचना पढिये.लेखक परिचय :-नाम:- पं.डी.के.शर्मा "वत्स"जन्म:- 24/8/1974 (जगाधरी,हरियाणा)स्थायी निवास:- लुधियाना(पंजाब)शिक्षा:- एम.ए.--(संस्कृ्त), ज्योतिष आचार्यकईं वर्षों
कूड़े के ढेर से जीवन चुनता है दिन भर खुद का बोझ ढोता है इस शहर को फख़्र है बड़प्पन का उफ ! यहाँ तो बचपन ऐसे सोता है चित्र : मोबाईल कैमरे से
कार से डरते दिल्ली के ऑटोसच कह रहा हूंइनसे लग रहा है डरनहीं मालूम क्यों हुए हैंइतने निडरमाफ कर देना ईश्वरनहीं जानतेये क्या कर रहे हैं ?आज दैनिक हरिभूमि में चिंता किसको है पेज 4 पर क्लिक करके असलियत जानिए।अब आपसे लेते हैं हम विदा
लेकिन दिलों से नहीं होंगे जुदा
लेकिन दिलों से नहीं होंगे जुदा

...रास्ते में अविनाश जी ने पवन चंदन जी और त्रिपाठी जी को साथ लिया और ब्लागर मिलन स्थल की ओर चल पड़े। नांगलोई रेल्वे स्टेशन के पास राजीव जी पहुंच चुके थे हमें रास्ता बताने के लिए, जाट धर्मशाला पहुंचे तो वहां जय कुमार झा जी, संजु भाभी जी, माणिक(राजीव जी के
पश्चिम बंगाल के मिदनापुर इलाके मे इस बार मओवादियो के निशाने पर मुंबई -हावरा एक्सप्रेस ट्रेन आई .जिसके चपेट मे १०० से ज्यादा लोग बे मौत मारे गए .पश्चिम बंगाल पुलिस का दाबा है की नक्सली समर्थित पी सी पी ऐ यानि पीपुल्स कमिटी अगेंस्ट पुलिस अट्रोसिटी के दस्ते
आज मालिक और ड्राइवर दोनो उदास और परेशन से नज़र आ रहे हैं . दोनो कुछ अपने ही सोच मे डूबे हुए हैं . दोनों के चेहरे पर चिंता की सिलवटें एक जैसी है (राज बाद में खुलेगा .. पढ़ते रहिये ) .२० मिनिट की लंबी यात्रा तक कोई बात नही हुई. दोनों का पूरा दिन बहुत बुरा
शेष नारायण सिंह भाई मंसूर नहीं रहे. पाकिस्तान के शहर कराची में मंसूर सईद का इंतकाल हो गया. मौलाना अहमद सईद का एक पोता और चला गया .मृत्यु के समय मंसूर सईद की उम्र 68 साल थी . वे जियों टी वी में बहुत ऊंचे पद पर थे. उनकी पत्नी आबिदा , कराची में एक मशहूर
भेजा था मैनें, उस दिन एक दस्तक तुम्हारे दरवाजे के नाम और तुम्हारा दरवाजा अनसुना कर गया था; तभी तो खुलने से मना कर गया था. मुझे पता है यह हौसला दरवाजे का नहीं हो सकता वह उन दिनों तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था. शायद उसने यह बात तुमसे भी नहीं बतायी होगी
प्रिय ब्लागर मित्रगणों,आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर की रचना पढिये.लेखक परिचय नाम- डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर पिता का नाम- श्री महेन्द्र सिंह सेंगर माता का नाम- श्रीमती किशोरी देवी सेंगर शिक्षा- पी-एच0डी0, एम0एम0
जिसे ता उम्र सोचा वो लड़की शहर की थीउसने छोड़ा जिस जगह वो धूप दोपहर की थी।मुझको तसल्ली देती रही वक्ते रुख़सती परपर्चा दवा का हाथ में, शीशी ज़हर की थी।अरमाने इश्क मुझको ले आया था कहाँन पता था शाम का, न ख़बर सहर की थी।थक-हारके दरख्त के नीचे मैं आ गयाहालात
मेरी एक दोस्त घर जल्दी जाना चाहतीं थी। कल संडे हैं। उन्हें आज ही ब्यूटी पार्लर जाना है। जरूरी। कल उन्हें शादी के लिए एक लड़का देखने जाना है। उनकी शादी की तैयारियां जोरों से चल रही हैं। किसी रविवार वे दिखने जाती है। तो कभी लड़का देखने। शायद आपको यह बात


विवाह की रंगीन संध्या और खाने पीने के शुभ अवसर पर हम भी पंडित जी के घर इकठ्ठी भीड़ में शामिल थे… भीड़ के कोलाहल से थोड़ी दूर बैठे हम अपनी बारी का इन्तज़ार कर रहे थे… साथ ही यह सोच भी रहे थे कि माता श्री की आज्ञा का पालन किया जाय, (जिसमें सबको खिलाने पिलाने
सुबह आँखें मलते सूरज को देखते मैं सच को टटोलती हूँये मैं , मेरे बच्चे और मेरी ज़िन्दगी फिर एक लम्बी सांस लेती हूँसारे सच अपनी जगह हैं अविश्वास नहींएक अनजाना भय कहो इसे हाँ भयउन्हीं आँधियों का जिसने मेरा घरौंदा ही नहीं तोड़ामुझे तिनके-तिनके में बिखराया

उसने उस दिन मेरे गाल पर झन्नाटा लिखा था कोई ताड़ न पाये इसलिये मैनें सन्नाटा लिखा था . उसकी गली में आया था कुत्ते पीछे पड़ गये थे पढ़कर देखते मेरे चेहरे पर ज्वार-भाटा लिखा था . चमन में आया था मैं चश्मे-नम करने की ख़ातिर मेरे भाग्य में तो निगोड़ा यह सूखा कांटा
यह जो आप पढ रहे हैं यह लाइन सबसे अंत में लिखी गई है पहले हमें लगा इसे कोई श्रृंखला जैसा कोई नाम दे दें । फिर उसी चीज के एक दो तीन पढते पढते होने वाली ऊब के याद आने की वजह से एक शीर्षक दे दिया ।शीर्षक पर न जाऍं क्योंकि आपको पता ही है कि शीर्षक और पोस्ट
मैं अक्सर देखता चला आ रहा हू की लखनऊ ब्लागर असोसिएसन पर आजकल धार्मिक जंग छिड़ी हुई है, कोई हिन्दू धर्म को बड़ा बता रहा है तो कोई इस्लाम को, मैं समझता हूँ प्रत्येक धर्म अच्छाई का रास्ता ही बताते हैं, मजहब नहीं सिखात आपस में बैर रखना फिर हम जिस जंग
किं चित, थोड़ा या अत्यल्प के अर्थ में हिन्दी में जरा शब्द सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। जरा सी बात, जरा सी चीज या जरा सा काम जैसे वाक्यांशों से साफ है कि बोलचाल में इस जरा का बहुत ज्यादा महत्व है। हिन्दी में किंचित, क्वचित की तुलना में सर्वाधिक लोकप्रिय
आज हमरी एकलौती बेटी सुबहे से बहुत उदास है.अभी पीछे जे हम पटना गए थे, त ऊ ऊहाँ हमरा बेटा (हमरा भाई का बेटा - हमरा संजुक्त परिवार में हम लोग भतीजा नहीं बोलते हैं) यानि अपना भाई से मिलकर बहुत खुस थी. बगले में हमरा भगिना अऊर भगिनी रहता है सब. एक जगह, एक साथ
जीने के कई तरीके हैं। अलग अलग लोग अलग अलग तरीके से जीते हैं। उपर उपर सरल गति से चलती जिन्दगी में भी सतह के अंदर तनाव और चिंता की लहरें मन को परेशां करती रहती हैं। हमें बहुत कुछ करना होता है। बहुत सारी चिंताएं होती हैं। एक काम करते हुए दुसरे काम के बारे



