शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

तुम गाँव में ही रहो, शहर मत आना पगली ---- ब्लॉग4वार्ता --- ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार, 2009 में  पढी गोदियाल जी द्वारा रचित एक गीत आ गया। उसके बोल बड़े ही अर्थकारक के, कभी कभी उस गीत के बोल मेरे ख्यालों में आ जाते हैं। आज शाम को वह गीत फ़िर याद आ गया। उसे मैने आपके लिए ढूंढा। एक बार अवश्य पढें। कभी कभी होता है कि कहीं पढी गयी रचना बरसों याद रहती वह जेहन में स्थायी रुप से बस जाती है। बस ऐसा ही मेरे साथ हुआ। भाई गोदियाल जी को आभार उत्कृष्ट रचना के लिए। अब चलते हैं आज की ब्लॉग4वार्ता पर और सैर करते हैं ब्लॉग नगरिया की.........

ध्यान लिंग – एक अभिनव प्रयोग - कोयम्बतूर (तामिलनाडू) से लगभग ३० किलोमीटर दूर वेल्लियांगिरी पर्वत की तलहटी में, वर्षा वनों के मध्य, १५० एकड़ के भूभाग में फैला एक संस्थान है, “ईशा”. एक आध... सरदी,सड़क और कोहरा ! - *दोपहर बीत जाने के बाद * *कोहरा और घना हो चला था* *मैं कब तक सेल में बंद रहता * *थोड़ी ही देर में * *ढके आकाश के नीचे ढका था,* *रास्ते पर चल चुका था !* * *... छत्तीसगढ़िया भाव जगाए मं, काबर लजाथन? - भारत ल मदर इंडिया कइथन, भारत माता मं काबर लजाथन? छत्तीसगढ़ मं हमन रइथन, छत्तीसगढ़-महतारी कहे मं काबर लजाथन? छत्तीसगढ़ के अनाज सबे खाथन, जय छत्तीसगढ़ कहे मं... 

बिना शीर्षक - मेरी एक तमन्ना थी की भाजपा ख़त्म हो जाए लेकिन इस तरह यह तो कभी सोचा ना था . भाजपा का पतन तो उसी समय शुरू हो चुका था जब बंगारू लक्ष्मण को वोटो की खातिर अध्य...अफवाहें - उडाती अफवाहें बेमतलब तुमने शायद नहीं सुनीं जब सामने से निकलीं लोगों ने कुछ सोचा और | मन ही मन कल्पना की कोइ सन्देश दिया होगा तुम मौन थीं तो क्या हुआ आँ... सुरभि अनोखी - सुरभि अनोखी गूंजती हैं जब वेद ऋचाएँ कहीं या हवा के कंधों पर उड़कर आती हैं अजान की आवाजें..ले आती हैं सुगन्धि उसकी... आत्मा के नासापुट ढूँढते रहे हैं जिस सु... 

Parashar Lake पराशर झील ट्रेकिंग - पराशर झील... ह्म्म्म। आखिरकार 7 दिसम्बर को इसे देखने हम निकल ही पडे। ऐसा नहीं है कि यह मेरी पहली कोशिश थी इसे देखने की। इससे पहले भी एक बार नाकाम कोशिश कर ... भय - सदियों से जीता आ रहा हूँ मै एक भय में एक डर जो कभी मेरा साथ नहीं छोड़ता जो मै हूँ क्या वही हूँ मै ? या जो मै नहीं हूँ उसी को लोग मुझे क्यों समझते ह... अंजुरी भर सुख - *तुम जब भी आते हो मुस्कराते हुए आते हो, कौन जान सका है इस मुस्कान के पीछे छिपी कुटिलता को ? * *हर बार तुम दे जाते हो करोड़ों आंखों को दरिया भर आंसू करोड़ो... 

अस्पताल से ............... - आये थे कुछ वादों के साथ ....लौट गए ख़ामोशी से ...इस बार की ये तेरी ख़ामोशी खूब खलेगी वर्ष ..... ऐसा लगता है ये वर्ष जल्द बीत गया ...कई वादे थे ....उम्मीदें थी... सपना और सच्चाई - स्वच्छ नीलाकाश में चिड़ियों का मस्त तिरना, कोमल-रक्ताभ कोपलों पुष्पों के मध्य फिरना, बचपन से मुझे लालसा के झूले में झुलाता है निर्बन्ध-सीमाहीन दुनिया में बुल... खाली शुभकामनाओं से काम नहीं चलेगा, शुभ काम भी करने पड़ेंगे -- - एक और वर्ष भूतकाल की गर्त में चला गया । रह गई तो बस यादें , कुछ खट्टी , कुछ मीठी । अब आशा भरी नज़र से देखते हैं वर्ष २०१२ की ओर । शुभकामनाओं का दौर ज़ारी ... 

बाबा रामदेव को सत्ता सुंदरी का विरह वेदना पत्र - प्यारे बाबा जब से आप रामलीला मैदान में, मंच से कूद सलवार पहन कर जान बचा कर भागे हो। तब से आपके इंतजार में मेरी रातो की नींद खो गयी है। ये मुई मीडिया भी आ... नया साल. - नन्हे ,रफीक, मुन्नी आज सुबह जल्दी ही कचरा बीनने घर से निकल गए. आज उनमे रोज़ जैसी मस्ती नहीं थी.उनकी निगाहें जल्दी जल्दी यहाँ वहां अपने काम की चीज़ें ढूं...राजधानी में सर्दी का प्रकोप - नपुंसक जनता एक बार फिर गिलाफ में गुस गयी - कारवाँ गुजर गया – गुबार देखते रहे .. वो निकल गयी बस से और हम बस देखते रहे. रोड पर साये उस कुहासे को दिमाग में औड लिया, माने, औड ली चुनरिया तेरे नाम की. रोड...

जा रहा है बचपन आ रहा पचपन .... - सुबह सुबह अच्छी खासी नींद लगी थी की बच्चों का शोरगुल सुना तो नींद खुल गई . कमरे से बाहर निकल कर देखा की परिवार के बच्चे कह रहे थे आज इकतीस दिसंबर है और कल ... गयी भैंस पानी में - *ना*टक का पटाक्षेप हो गया. फिर ढांक के तीन पात. चालीस साल हो गये... चले कितना...? अढाई कोस भी नहीं. वाह! जय हो दिल्ली की.... चालीस साल में दसों बार सदन म... सत्य देव दुबे की उपस्थिति फिर भी रंगमंच को स्पंदित करती रहेगी - हिन्दी रंगमंच के जिन नामों ने भारतीय कला फिल्मों के आन्दोलन के लिये मजबूत जमीन तैयार की, और उसे संभावनाओं का पोषण देते रहे , बिलासपुर के पंडित सत्य देव दु... 

वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद, राम राम ...............

14 टिप्पणियाँ:

अच्छी रही वार्ता |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा

umda.

Waah...

विश्व संस्कृति की तरह ही भारतीय संस्कृति भी बड़ी अद्भुत है।
http://mypoeticresponse.blogspot.com/2012/01/blog-post.html

दो साल बाद भी किसी ब्‍लॉगर की रचना याद आ जाती है .. तो यह सामान्‍य बात नहीं .. रचना के भाव और रचनाकार की अभिव्‍यक्ति की विशेषता को दर्शाती है .. बाकी सारे लिंक भी अच्‍छे हैं .. बढिया वार्ता के लिए आपका आभार !!

तुम गाँव में ही रहो, शहर मत आना पगली,
क्या बताऊ, यहाँ के तो पत्थर भी कमीने है !

बहुत सुंदर कविता पढ़ाई आपने सुबह -सुबह ----धन्यवाद --

कविता का याद आना उसकी सार्थकता को सिद्ध करता है और आपके गहन पठन को भी दर्शाता है .....आज की बेहतर वार्ता के लिए सलाम ...!

सचमुच कविता के भाव बहुत निर्मल हैं, और एक निर्मल ह्रदय इन भावों का निवास स्थान फिर उनका याद आना स्वाभाविक है... अच्छी वार्ता, अच्छे लिंक्स..

बढ़िया प्रस्तुति...नव वर्ष के आगमन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें...

अतीत के पन्नो में ले जाने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार ललित जी !

बढ़िया सूत्र... सुन्दर वार्ता...
सादर आभार.

हमें तो यहां कुछ न्या सीखने को मिला

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