मंगलवार, 31 जनवरी 2012

मैने साथ निभाया अब तुम्हारी बारी है.... ब्लाग 4 वार्ता.......संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार...प्रतिदिन लाखों विद्यार्थी आज भी बड़े भाव से गाते हैं "साथ दें तो धर्म का, चलें तो धर्म पर" कितना उदात्त और प्रेरणा से भरा है ना यह पद. इस एक पंक्ति में ही मनुष्य के कर्तव्य और ध्येय मार्ग का बोध हो जाता है. यही संस्कार उन्हें एक अच्छा इन्सान बनाते हैं, वेद कहते हैं "मनुर्भव:"। मनुष्य और पशु दोनो के जन्म लेनी की प्रक्रिया में साम्यता है। यदि मनुष्य को संस्कार न मिलें तो पशु और मनुष्य के आचरण में अंतर कर पाना कठिन है। इसलिए कहते हैं "संस्कारवानं लभते ज्ञानम्"। प्रस्तुत हैं आज की वार्ता में कुछ पोस्ट लिंक…………

गांधीजी की आकस्मिक हत्या न सिर्फ भारत को ही नहीं हिला दिया था बल्कि सम्पूर्ण विश्व इस घटना से स्तब्ध रह गया था । मानवता के पुजारी को खो कर सिर्फ हम नहीं रोये बल्कि स्वतंत्रता के और भी सेनानी रो पड़े । उनकी...  
तेरे गम को साझा किया मैने, अब तक न हिम्मत हारी है आज अभी अब दुखी हूँ मैं भी अब तुम्हारी बारी है। १ मेरे उर ने पढे हैं तेरे नैनों की की सब भाषा सागर तेरे पास है फिर भी तुम क्यों बैठे प्यासा ? म...

posted by गिरीश"मुकुल" at नुक्कड़

तो कुछ बात बने.. (Part-2)
जिसे बरसों से लहू देके, मैने सींचा है, वही इक फूल जो मुर्झाए, तो कुछ बात बने.. जो मेरे लाख बुलाने पे भी, नहीं आया, सिसक-सिसक मुझे बुलाए, तो कुछ बात बने.. जो मेरी याद पे काबिज़ है, वही शख़्स कभी, मुझे हर स...

तोहमत
कुछ न निकला दिल में दाग- ए-हसरते-दिल के सिवा हाय ! क्या-क्या तोहमतें थी आदमी के नाम पर, अब ये आलम है कि हर पत्थर से टकराता हूँ सिर मार डाला एक बुत ने बंदगी के नाम पर, कुछ इलाज उनका भी सोचा तुमने ए ! ...
वैसे तो कविता और आशा का गहरा रिश्ता है बात निराशा से शरू हो सकती है पर आशा की किरण अंत में अवश्य जगमगाती है! कविता और ख़ुशी भी पर्याय हो सकते हैं पर ऐसा क्यूँ है कि दुःख की रागिनी ही कविता में अक्सर गाती है...
मन अभिमन्यु मैंने तुम्हें हर बार रोका पृष्ठ खोल महाभारत का दृश्य दिखाया पर तुमने चक्रव्यूह से पलायन नहीं किया ... तुमने हर बार कहा बन्द दरवाज़े की घुटन न हो तो कोई रास्ते नहीं खुलते ना ही बनते हैं ! ...
बेगानी है हरी दूब भी मरुथल बियाबान के वासीफूलों से रहते अनजाने, बूंद-बूंद को जो तरसे हैं नदियों से रहते बेगाने ! स्वप्न सरीखे उनको लगते उपवन, सरवर, झरने, पंछी, जिसने मीलों रेत ही देखी बेगानी है हरी दूब भी !...
*गांधीजी की पुण्य तिथि पर प्रस्तुत हैं मम्मी की लिखी कुछ पंक्तियाँ ---* (चित्र साभार: गूगल इमेज सर्च ) बापू गांधी को टांग दीवार पर श्रद्धांजलि देने का स्वांग करते 30 जनवरी पर चलते नहीं उनकी लीक लकीर पर...
सरोगेट के केस से, बच्चे लेते सीख । पालक धोखे खा रहे, नया ट्रेंड इक दीख । नया ट्रेंड इक दीख, टाल शादी का प्रेसर । हायर जोड़ीदार, करें शादी ठेके पर । टोओबो डट कॉम, चाइना में खुब छाए । नया भिड़ाए जोड़, जान...
*अपनी इक पुरानी ग़ज़ल को झाड़-पौंछ कर फिर से प्रस्तुत कर रहा हूँ , उम्मीद है पसंद आएगी* खौफ का खंजर जिगर में जैसे हो उतरा हुआ आज कल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ चाहते हैं आप खुश रहना अगर, तो लीजिये, हाथ ...
खुली आँखों से जब देखा जिंदगी भुरभुरा रेत का एक टीला सा लगी जो कभी बहुत गर्म तो कभी ठंडी हो जाती कभी लहरें बहा ले जाती तो कभी तेज आंधियां अपने संग उड़ा ले जाती उस रेगिस्तान कि तरह जहां सिर्फ धसना और सिर्फ ...

मंगल उवाच।  
देखो, वह चूहा मर चुका है। उससे डरना मूर्खता है। **************** कॉकरोच मटर की फली के कीड़े जैसा ही जीव है। यूँ हाय तौबा मचाने और भागने की आवश्यकता नहीं।... 
"नमस्कार लिख्खाड़ानन्द जी!" "नमस्काऽऽर! आइये, आइये टिप्पण्यानन्द जी!" "लिख्खाड़ानन्द जी, टिप्पणी तो हम करते ही रहते हैं, पर कभी-कभी एकाध पोस्ट लिखने की भी इ. 
स्वाधीनता के 62 बरस बाद लोकतंत्र का सच क्या गणतंत्र दिवस के मौके पर कोई यह कहने की हिम्मत कर सकता है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश बनना भारत के ल... 
सदा श्वेत वस्त्रम, खुंसे अंग शस्त्रम, च वाहन विशालादि सत्ता सुखम ... चमचा कृपालम, विरोधस्य कालम, सुवांगी श्रुतमचैव लारम भजे... नमो भ्रष्ट पोषी, च स्विस ब...   

फिर नैनों ने चाल चली है.... (गीत)  
फिर नैनों ने चाल चली है, हो सके तो बचना. तू ना फंसना चालों में दिल तू ना फंसना... तू ना फंसना धोखे में दिल तू ना फंसना.... १. हल्की- हल्की बूंदा-बांदी, भ... 

प्रतीक्षा .....................
*प्रतीक्षा * *हम तो इंतज़ार में बैठे रहे यूँ ही ,दिन भर वो आए तो करीब मेरे ,पर बिन देखे कि मेरी आँखों में इंतज़ार के आँसू भी हैं उसने ना आने के सौ बहाने ब...   

सारे तीज - त्यौहार एक तरफ, लोकतंत्र का त्यौहार एक तरफ ....  
आहाहा ...कैसी अनुपम छटा है | अभूतपूर्व रौनक है | सारे तीज - त्यौहार एक तरफ, लोकतंत्र का त्यौहार एक तरफ | अभी कल ही की तो बात थी जब धड़ाधड़ करके जब सरकारी... 

अब लेते हैं आपसे विदा मिलते हैं, अगली वार्ता में, नमस्कार... 

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