रविवार, 24 फ़रवरी 2013

न इर्द-गिर्द तांकिये, अपने गिरेवाँ में झाँकिये !...ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार.......झांकी फ़ेसबुकिस्तान की  ये एक ऐसा आभासी मेला है जिसमें सतत् रेले चलते हैं। जहाँ मेले के सारे रंग दिख जाएगें। जहाँ इंटरनेट कनेक्ट हो जाए, इसे वहीं लगा हुआ पाएगें। इस मेले का नहीं कोई ठौर ठिकाना, कोई अपना है पराया है और बेगाना। यह मेला सोशल मीडिया मेला या आभासी मेला कहलाता है। 24X7 कल्लाक चलता है रुकता नहीं कभी, सबका मन बहलाता है।। कब दिन होता और कब रात होती, पता ही नहीं चलता। इसे मैं फ़ेसबुकवा मेला कहता हूँ, जो रात 2 बजे भी जमता। यहाँ मेलार्थी खा पीकर विचरण करते मिल जाएगें। कुछ तो ऐसे फ़ेसबुकिए हैं कि जिनकी बत्ती सदा हरी रहती है। बासंती सम्मिलन मुद्रा में सदा हरियाए रहते हैं। जहाँ देखी कबूतरी लाईन लगाए रहते हैं। चल छैंया छैंया छैया ये हिन्दी फ़ेसबुक है भगिनी-भैया…इस मेले की सैर के बाद आइये चलते हैं एक और मेले में हमारा अपना ब्लॉग जगत ये भी किसी मेले से कम नहीं . लीजिये प्रस्तुत है आज की वार्ता ... 

कभी अपने आप नूं पढ्या ही नहीं... - दिमाग के कमरे में किताबों का एक ढेर है। बायोडाटा में न जाने कितनी डिग्रियां दर्ज हैं। जिंदगी कहां दर्ज है याद नहीं। कभी-कभी किन्हीं लम्हों में जिंदगी हमे...ख्वाब - *सुनो !* *आज दावत दी है मैंने* *ख़्वाबों को * *तुम्हारी आखों में * *आने के लिए * *आज मत करना इन्तजार * *मेरे आने का * *बस पलकें मूँदना * *और ...कोहिनूर ... - उन्नें,....बम फोड़े, धमाके किये, जानें ले लीं ............................. अब अपनी बारी है ? ... सुनते हैं, आसमाँ में, कहीं ...घर है 'खुदा' का कि......

लड़की... - सुना था मैंने वो जो बहती है न! नदी होती है लेकिन जाना मैंने वो जो बहती है न! जिंदगी होती है... सुना था मैंने वो जो कठोर होता है पत्थर होता है लेकिन जाना.....मेरा प्रेम स्वार्थी है … - मैने तो सीखा ही नही मैने तो जाना ही नहीं क्या होता है प्रेम मैने तो पहचाना ही नहीं क्योंकि मेरा प्रेम तुम्हारा होना माँगता है तुमसे मिलन माँगता है ... बेईमानों को गले लगाओं ईमानदारों को दूर भगाओं - शशिमोहन के बाद सौमित्र प्रताडि़त घपलेबाजों के दबाव में हुुआ चौबे का तबादला छत्तीसगढ़ में रमन सरकार के सुराज की कलई खुलने लगी है । चौतरफा भ्रष्टाचार ...  

मैं आप की पोस्ट नही पढ़ पाया ??? - *मैंने अपनी आँख का आप्रेशन करवाया था * *डाक्टर साहब ने दस दिन का रेस्ट बताया था * *मेरी आँखों पे काला चश्मा लगवाया था* *मुझे लैपटॉप से दूर रहने को जताया था... इन्टरनेट के मैनर्स तो सीख लो जी - सुनिए ना........ कहना हम सब चाहते हैं पर क्या इसमें मामला मुश्किल तब पड़ जाता है कि क्या बोला जाए और कैसे . अब जरा ध्यान दिया जाए कि इस दुनिया में हर कोई ....अनिश्चितता का सिद्धान्त - कोई आपसे पूछे कि आप किसी विशेष समय कहाँ पर थे, स्मृति पर जोर अवश्य डालना पड़ेगा पर आप बता अवश्य देंगे। आप यदि स्वयं याद नहीं रखना चाहते तो मोबाइल का जीपी... 

न इर्द-गिर्द तांकिये, अपने गिरेवाँ में झाँकिये ! - * ** ** ** ** ** ** ** ** ** **पुष्प-हार क्या मिलेगा, पदत्राण खाओगे, * *जैसा बोओगे, फसल वैसी ही तो पाओगे। * * **जानता हूँ कि कहना,लिखना व्यर्थ है सब, * *...  व्यंग्य नरक में डिस्काऊंट ऑफ़र का कविता रुप - *सुप्रभात मित्रों... सुबह-सुबह माथा खराब हो उससे पहले चलिये कुछ हॉस्य हो जाये... :)* * **सेल की दुकान देखते देखते* *एक आदमी * *नरक के दरवाजे आ गया* *यमराज ....यकीन..... - प्रेम, प्यार, प्रीति, मुहब्बत, प्रणय, चाह, ...... किसी भी नाम से पुकारूँ तुम्हें, या..फिर खामोश रहूँ... बरसों- बरस. मुझे यकीन है.. ज़िन्दगी.. !!... 

भीगा मन - * * *चंद लफ्ज काफी है जज्बात बयां करने को * *ग़र कोई जज्बाती मिल जाए तो....* * * * * *मुस्कुराऊँ तो किस नज़ारे को देखकर * *आँखों में तुमने आंसू भर दिए है....  my dreams 'n' expressions - *आज मेरा ये ब्लॉग एक साल का हो गया.....* *घुटनों घुटनों सरकते आज अपने पैरों पर चल रहा है...डगमगाते क़दमों से ही सही:-) * ब्लॉग की पहली पोस्ट की पहली पंक्तिया...यक़ीन के रास्‍ते में !!!! दबी जुबान का सच सुनकर तुम्‍हें यक़ीन होता है क्‍या ??? फिर आखिर उस सच के मायने बदल ही गये न ! शक़ का घेरा कसा पर यह कसाव किस पर हुआ कैसे ह‍ुआ हर बात बेमानी हुई सच आज भी अपनी जगह अटल है पर दबी जुबान का सच शक़ के घेरे में ही रहता है यक़ीन के रास्‍ते में ...

धमाकेविहीन जिंदगी का सूनापन मिटा - वाह! बहुत दिनों बाद कुछ खालीपन दूर हुआ; कुछ अच्छा-अच्छा सा महसूस हुआ। बहुत दिन हो गये थे और कोई धमाकेदार खबर सामने नहीं आई थी, ऐसा लगने लगा था ...गृह मंत्री ने दी गाली - सुशिल कुमार शिंदे जी ने हिन्दु-आतंकवाद कहकर गाली दी पहले फिर परिस्थितियां विरोधी देखकर एक औपचारिक 'माफ़ी' भी मांग ली १ क्या समझा जाए? शिंदे खुद को बेवक़ूफ़..हमारे पास पहले से सूचना थी और इंतजार कर रहे थे - हमारे पास पहले से सूचना थी.... हम इंतजार कर रहे थे कि कब बम ब्लास्ट हों.... और कब हम निंदा करें.... सरकार में हैं तो आखिर कुछ न कुछ करना तो पड़ता ही है।...  

सच ठिठकी निगाहों का - सफर के दौरान खिड़की से सिर टिकाये ठिठकी सी निगाहें लगता है कि देख रही हैं फुटपाथ और झाड़ियाँ पर निगाहें होती हैं स्थिर चलता रहता है ... यह दिन भला-भला लगता है - यह कविता मैंने अपनी उस सखी के लिए लिखी है, जो उम्र के चौथे दशक के आखिरी पड़ाव में कार चलाना सीख रही है, आज उसके विवाह की छब्बीसवीं सालगिरह है....रक्षक सरहद का - माँ ने सिखाया गुर स्वावलंबी होने का पिता ने बलवान बनाया 'निडर बनो ' यह पाठ सिखाया बड़े लाड़ से पाला पोसा व्यक्तित्व विशिष्ट निखर कर आया बचपन से ही सुनी....


 

दीजिये इजाज़त नमस्कार........

15 टिप्पणियाँ:

चर्चा में हर रंग है शामिल !

बहुत सुन्दर सूत्रों से सजी वार्ता..

इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

कार्टून को सम्‍मि‍लि‍त करने के लि‍ए आभार

बढ़िया वार्ता दीदी हार्दिक बधाई स्वीकारें

बहुत सुन्दर लिंक्स

आज कल ब्लॉग वार्ता बहुत इन्तजार करवाती है |क्या बात है संध्या जी बहुत व्यस्तता है क्या ?
पर्याप्त लिंक्स विभिन्न प्रकार की |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा

बढिया वार्ता संध्या जी…………आभार

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