शनिवार, 13 मार्च 2010

कमीनो से मुकाबला--------- ब्लाग 4 वार्ता------------(ललित शर्मा)

ज दोपहर से ही हवाएं कुछ सर्द होने लगी थी. अभी होली के बाद जो गर्मी का मौसम बना था उससे कुछ राहत मिली. दोपहर  को कुछ छींटे पानी के भी बरसे. उसके बाद पावला जी अभनपुर पहुँच गए. उनसे मिलना बड़ा अच्छा लगा. आज बालकृष्ण अय्यर जी का थियेटर शो था और मैंने उन्हें प्ले देखने का वादा किया था लेकिन पहुंच नहीं सका...... वादा तो जबलपुर जाने का था लेकिन आज एक अत्यावश्यक कार्य आ गया इसलिए वहां जाना भी अचानक स्थगित करना पड़ा. मै जबलपुर के साथियों से क्षमा चाहता हूँ. हमारे आने की घोषणा महेंद्र मिश्र जी ने एक पोस्ट पर कर दी थी. अब वादा नहीं आने की पुरजोर कोशिश करूँगा. अब मै ललित शर्मा  आपको ले चलता हूँ आज कि ब्लाग 4 वार्ता पर..................
आज मै एक महत्वपूर्ण पोस्ट की वार्ता करता हूँ ..........राजकुमार सोनी जी अपने ब्लाग बिगुल पर बड़ी बेबाकी से लिखते हैं और वैसी ही उनकी शख़सियत है. वे अनाथ आश्रम के बच्चों और संचालक के साथ हुए अन्याय के खिलाफ प्रेस से छुट्टी लेकर मैदान में डट गए हैं......... इस तरह का माद्दा कम ही इंसानों में पाया जाता है..... जो घर फूंके आपना वो चले हमारे साथ...... कुछ ऐसा ही है. वे अपनी पोस्ट कमीनो से मुकाबला पर लिख रहे हैं...............
यह मेरी भाषा नहीं है, लेकिन पिछले दिनों हुई एक घटना के बाद न जाने क्यों यह लगने लगा है कि यह सही भाषा है। अखबार के बाद इधर ब्लाग के मेरे थोड़े बहुत जो भी पाठक है वे यह सोच सकते हैं कि आखिरकार ऐसा कौन सा कारण है जिस वजह से मुझे लिखना पड़ रहा है कि मुकाबला कमीनों से है, लेकिन राजधानी रायपुर के अनाथ आश्रम में बच्चों के साथ जो कुछ हुआ है और हो रहा है उसके बाद तो मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि इस बार की लड़ाई में सचमुच मेरा पाला कुछ ऐसे कमीनों से पड़ गया है। ऐसे कमीनों से जिनका वाकई कोई दीन-ईमान नहीं है। मुझे कमीनों से लड़ने में मजा आता रहा है। अपने उतार-चढ़ाव भरे जीवनकाल में मैं भांति-भांति के कमीनों से मिल चुका हूं। घाट-घाट का पानी पीकर लोगों का जीना मुहाल करने वाले कमीने चाहे जैसे भी थे उसूल वाले थे। जीवन में पहली बार ऐसे कमीनों से मुलाकात हो रही है जिन्हें देखकर मैं क्या कोई भी यह कहने का मजबूर हो जाएगा कि बस अब इस धरती का अंत निकट है।
इधर अमीर धरती गरीब लोग पर अनिल पुसदकर जी प्रदेश के गृह मंत्री को कह रहे हैं..थानेदारों को भ्रष्ट कहना आपकी ईमानदारी नही बेबसी का सबूत है गृहमंत्री जी!... संगीता जी २२ वर्षों के वैवाहिक जीवन के विषय में बता रही हैं.......शिखा जी स्पन्दन पर कह रही हैं हम ऐसे क्यों हैं? दिनेश राय दिवेदी जी बता रहे है कि दिमाग पर स्पेस संकट......अब कैसा संकट है आप वहां जाकर देखें.......... विद्रोही पर वरुण झा बता रहे हैं कि अबोध बच्ची को लेकर पत्रकारों के बीच वैचारिक द्वंद की शुरुवात हो चुकी है ........डॉ.कुमारेन्द्र सिंह जी वित्त मंत्री को माफ़ करिए कह रहे हैं और उनकी नादानी को नजर अंदाज किया जाये......
रविन्द्र प्रभात जी परिकल्पना पर ब्लॉग उत्सव २०१० लेकर आ गए है .......इस पर कार्यक्रम दो महीने चलेंगे..... आप भी शामिल हो सकते हैं खुला निमंत्रण है....... यहाँ भी पढ़िए महिला आरक्षण को लेकर एक पोस्ट ......... गांव बसा नहीं डकैत पहले पहुँच गए........ यही होता है लोग अपना जोड़ तोड़ निकाल ही लेते हैं...........डॉ. श्रीमती अजित गुप्ता सुना रही हैं एक स्मरण ना मेल है और ना ही फिमेल है.........अब क्या है आप ही देखिये ब्लाग पर जा कर..... साझा सरोकार पर शहरोज जी बता रहे हैं कि नमाज संस्कृत का शब्द है  इधर ताऊ जी ने बुढाऊ ब्लागर एसोसियेशन की स्थापना कर दी है हुक्का गुड गुड़ाते हुए ........ कौन कौन बुढाऊ ब्लागर वहां पहुचे है ये देखिये.......
सतिश सक्सेना जी ने एक बहुत ही प्यारी प्रेम पाती लिखी hai उसके कुछ लाइने मैं यहाँ पर दे रहा हूँ........
आज स्वप्न में, देख तुझे 

झंकार उठे वीणा के स्वर 

शायद जैसे तुमने मुझको 

याद किया , अंतर्मन से  ,

जैसे  तड़प उठी हो सजनी , करके यादें प्यार की  !

लगता पहली बार महकती बगिया अपने प्यार की !




कैसे भूल सकी होगी तुम 

मिलना  पहली बार का 

कैसे  सह  पायी  होगी  ,

इस तरह बिछड़ना प्यार का 

लगता  कोई सखी सहेली ,  याद  दिलाये  प्यार  की  !

दिल से उठे सुगंध आज क्यों प्रिये  तुम्हारे प्यार की !




कैसे प्रिये ! छिपा पाऊं,यह

प्रीति  भला अपने मन में 

कैसे भला  बता  पाऊं ,

जो टीस उठे मेरे दिल में 

मन में आता है बतला दूं , सबको  बातें  प्यार   की  !

लगता सारा गगन पढ़ रहा ,पोथी  अपने प्यार की  !




लोग पूंछते तरह तरह के 

प्रश्न , लिए शंका मन में  ,

किसको क्या बतलाऊं कैसा

रंग चढ़ा व्याकुल मन में ,

गली गली  में चर्चा चलती  सजनी अपने प्यार  की  !

लिख लिख बारम्बार फाड़ता, चिट्ठी तेरे नाम की  !

पंकज मिश्रा जी ने दूर से आवाज लगाई है साहेबा मै आ गया हूँ....... अब आ गए तो आपका स्वागत है, इधर अरविन्द मिश्रा  जी अपनी टिप्पणी वापस मांग रहे हैं......... काव्य तरंग पर रानी विशाल जी कह रही हैं हमें तुम भूल भी जाओ ... गिरिजेश राव जी आज सिर्फ एक अक्षर से ही काम चला रहे हैं और वह अक्षर भी ऐसा है कि जिसे एक पूरा शब्द भी कहा जाता है........ इस अक्षर की महिमा ही निराली है......... आप भी पढ़िए......... कौन सा शब्द है....... मनोज जी त्याग पत्र पे त्याग पत्र दिये जा रहे हैं.........आज त्याग पत्र नंबर है १८......... राज भाटिया जी एक पहेली लेकर आये हैं बूझो तो जाने....... खुल्ला खेल फरुक्खाबादी लेकर आ गए हैं उड़नतश्तरी.......... अब भैया अदा जी कह रही हैं मै हूँ ना.........


बस आज चर्चा को यहीं देते हैं विराम...............आपको ललित शर्मा का राम राम

18 टिप्पणियाँ:

ਨਾਇਜ ...ਵੈਰੀ ਨਾਇਜ ਚਿਤ੍ਥਾਚਾਰਚਾ

नाईस...वैरी...वैरी नाईस चिट्ठाचर्चा

बहुत ही रोचक शैली में की गई वार्ता.

रामराम.

बढियां समग्र चर्चा

ललित भईया चर्चा पढ़कर मजा आ गया ।

वाह सर चर्चा का ये अंदाज अब तक का सबसे आकर्षक लगा मुझे तो ..जारी रखिए ..बढिया है
अजय कुमार झा

ബഹുത ധിയാ ചര്ചാ കീ ഹൈ, ലലിത ഭാഈ...ആപ ബധാഈ കെ പാത്ര ഹൈം.

मस्त चर्चा...आनन्द आया/// जय हो!!!

ਚਿੱਠਾਚਰਚਾ ਤਾਂ ਵਧੀਆ ਹੈ ਸ਼ਰਮਾ ਜੀ
ਹੁਣ ਗਲ ਬਣੀ

ਬੀ ਏਸ ਪਾਬਲਾ

बहुत अच्‍छी चर्चा .. कई लिंक्स मिले .. आभार !!

वाह ललित जी! नये अन्दाज में चर्चा पढ़कर आनन्द आ गया!

आपने मेरी पोस्ट को महत्व दिया, उसके लिए मैं आपका आभारी हूं। मैं तो यह मानकर चल रहा हूं कि इस लड़ाई में आप मेरे साथ है। सहयोग के लिए एक बार फिर धन्यवाद

ललित भाई !!
बहुत खूबसूरत चर्चा , प्रेम पाती को कुछ अधिक ही इज्ज़त मिल गयी यहाँ लगता है आप अपने मित्रो का अधिक पक्ष लेते हो :-)
धाराप्रवाह अंदाज़ और आम भाषा आपकी खासियत है , शुभकामनायें !

नये अन्दाज में चर्चा पढ़कर आनन्द आ गया!

आपने मुझे इस लायक समझा कि बड़े-बड़े ब्रागरों के बीच भी मेरा छोटा सा स्थान बना दिया। इसके लिए मैं सदा आपका आभारी रहुंगा। वैसे किसी भी फैसले के दौरान हमें अपनी भावनाएं नहीं लानी चाहिए... शायद बच्चों की खरीद फरोख्त के मामले में आप भी मेरी राय से सहमत होंगे।

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