शुक्रवार, 9 मार्च 2012

होली के साथ घुल कर आया महिला दिवस .. ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

नमस्‍कार .. देश में कुछ जगहों पर होली का त्‍यौहार मना लिया गया है और कुछ जगहों पर कल मनाया जाएगा , होली पर बहुत सक्रिय रहें हमारे ब्‍लोगर बंधु .. जमकर लिखा है .. क्‍या क्‍या लिखा देखिए इस स्‍पेशल वार्ता पर ....


प्रति वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होली पूजन- दहन तथा इससे अगले दिन गुलाल आदि रंगों से उल्लासपूर्ण उत्सव का चित्र भारत भर में कहीं भी देखा जा सकता है। होली दहनके पश्चात् तथा रंग खेलने में सभी परिचितों- अपरिचितों के प्रति सौहार्द एवं भ्रातृत्व का भाव इस पर्व की विलक्षणता को और अधिक विस्तृत छवि प्रदान करता है। मेरे घर में गोबर के उपले बना कर सामुदायिक होली की अग्नि द्वारा घर के आँगन में होली जलाना व उस अग्नि में गेहूँ- जौ के बालों को भूनना, अग्नि को अर्पित करने के पश्चात् घर के पास के परिवारों में उसे राम-राम कहते हुए वितरित करना, इस परम्परा का मैं साक्षी हूं। 


"होली " वेदों-पुराणों में इससे सम्बंधित अनेक कथाएं मिलती हैं।पर इतने उल्लास, खुशी, उमंग, वैमन्सय निवारक त्यौहार का स्वरूप आज विकृत होता या किया जा रहा है। हंसी-मजाक की जगह अश्लील गाने, फूहड़ नाच, कुत्सित विचार, द्विअर्थी संवाद, गंदी गालियों की भरमार, काले-नीले ना छूटने वाले रंगों के साथ-साथ वैर भुनाने के अवसर के रूप में इसका उपयोग कर इस त्यौहार की पावनता को नष्ट करने की जैसे साजिश चल पड़ी है। समय रहते कुछ नहीं हुआ तो धीरे-धीरे लोग इससे विमुख होते चले जायेंगे। होली का त्यौहार कबसे शुरू हुआ यह कहना बहुत ही मुश्किल है। वेदों-पुराणों में इससे सम्बंधित अनेक कथाएं मिलती हैं।


भारतीय परम्परा में अनेक उत्सव आते है | पर्व चाहे लोकिक हो या अलोकिक—एक साधक आत्म – अवेषणा हेतु प्रत्येक त्योंहार से अध्यात्म को ग्रहण कर सकता है | समग्रता से कहा जाये तो प्रतिक्रमण, षडावशयक, होली इत्यादि साधक को अनेक मार्गो से ले जाकर परमात्म-अवस्था की मंजिल को प्राप्त करवाने में अपनी विशेष भूमिका निभाते है |जहाँ एक और चातुर्मासिक पाक्षिक की दृष्टी से होली आत्मालोचन करने का एक विशिष्ठ अवसर है, वहीं दूसरी और रंगों से मनाया जाने वाला वह पर्व हमें इन्ही रंगों के द्वारा आत्म-भूमिकाओं की सर्वश्रेष्ठ अवस्था—-सिद्ध अवस्था में भी प्रस्थापित कर सकता है | किंतु प्रश्न यह है कि क्या मात्र एक दिन के लिए रंगों से खेलना पर्याप्त है ? क्यों न हम जीवन-पर्यन्त इन रंगों का उपयोग करें | हम जीवन भर इन रंगों का उपयोग कैसे करे कि जिससे आत्म-विशोधि की राह पर आगे बढ़ते रह सके |




ऋतुराज का मदमाता यौवन...! सोलह शृंगार सजी पीतवसना प्रकृति रानी...!! अलस मधुमास....!!! आज पुनः मुझे खींचे लिए जाता है मेरे गाँव। वैसे तो मेरे संसार का श्री गणेश ही मेरे गाँव से होता है। स्नातक की शिक्षा तक तो मुझे पता भी नहीं था कि गाँव से अलग भी कोई दुनिया होती है। मैं समझता था लोग दूर शहरों में रहते भले हैं मगर घर सब का गाँव में ही होता है। पता नहीं शायद अभी भी मैं ऐसा ही समझता हूँ। मैं ने पर्व-त्योहार, हाट-बाजार, मेला-मंडप, रीति-व्यवहार सब-कुछ गाँव में ही देखा। सभी पर्वों का उल्लास न्यूनाधिक एक-सा ही होता है। होली में उस उल्लास की उद्दाम अभिव्यक्ति भी होती है या होती थी गाँवों में। बसंत-पंचमी के दिन देवताओं को गुलाल चढ़ाने के बाद फ़गुआ आ जाता था। 

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी महीने भर से ही हिंदी ब्‍लोगरों को होली का इंतजार था , अबतक साथ साथ मनाते और आनंद लेते जो आ रहे थे। इस साल की होली में धूम कैसे मचायी जाए , कार्यक्रम की रूप रेखा बनाने के लिए कुछ दिन पूर्व ही सभी हिंदी ब्‍लॉगर इकट्ठे हुए थे । जाति , धर्म , विचार , नारी पुरूष के मामले , जो कि अक्‍सर हमारे संबंधों में दरार डालते हैं , को दरकिनार करते हुए उल्‍लासपूर्ण वातावरण में होली मनाने के लिए आभासी दुनिया को वास्‍तविक दुनिया से दूर होना आवश्‍यक था। इसलिए सबसे पहला काम कार्यक्रम के लिए ऐसे स्‍थल का चुनाव करना था , जहां दुनियादारी का कोई मुद्दा रोडा न बने। इसी कारण होली के अवसर पर हिंदी ब्‍लॉग जगत के सभी सदस्‍यों का सर्वसम्‍मति पृथ्‍वी से बाहर जाने का कार्यक्रम बना।


अपनी पारंपरिक सुंदरता और खुशियों के मिश्रण का विहंगम संगम, होली आज बदरंग हो चुकी है। अगर कुछ बचा है तो वह है परम्पराओं के नाम पर रिवाजों को ढोने की मज़बूरी और धार्मिक आस्था, जिसे मानव समाज छोड़ नहीं सकता। एक वह समय होता था, जब होली की खुमारी फागुन के पूरे महीने रहती थी। फाग गाने से लेकर एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाने की औपचारिकता तो अभी भी है लेकिन वो चीजें नहीं दिखती जब होली के सामाजिक मायने होते थे। होली का मतलब पुरानी दुश्मनी को भुलाकर एक नये रिश्ते की शुरुआत होती थी। मुझे अभी भी याद है गाँव की गलियों में हुल्लड़ मचाती युवकों की टोली और रंग से बचने के लिए भागते लोग। उस समय मैं बच्चों की श्रेणी में आता था जिसकी अलग टोली होती थी।

होली के साथ घुल कर आए इस महिला दिवस में गुलाल का एक टीका उस औरत के नाम पर भी लगाइएगा जिसमें अदम्य शक्ति है, लय, ताल और संगीत है। दुख के विराट मरूस्थल बनाकर देते पुरूष को स्त्री का इससे बड़ा जवाब क्या होगा कि मारे जाने की तमाम कोशिशों के बावजूद वह मुस्कुरा कर कह दे - थी. हूं.. रहूंगी...।


पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं के साथ सदियों से दोयम दर्जे का बर्ताव किया जाता रहा है। इतिहास और संस्कृति की पडताल करेंगें तो पायेंगें कि इस भेदभाव की जडें बहुत गहरी हैं और ये जन मानस में इतनी मजबूती से जड पकड गयी हैं कि इनके विरूद्ध आवाज उठाने पर अनेक तरह की मुश्किलों का सामना करना पडता है। शोचनीय स्थिति यह है कि उत्पीडन का शिकार स्त्री वर्ग भी अपनी स्थिति से क्षुब्ध होने या उससे उभरने के प्रयास करने की अपेक्षा उसी में सन्तोष किये है और कई बार तो उसे ही अपना सम्मान और गौरव मान लेता है। उसके आदर्श हैं सीता,सावित्री,उर्मिला,तारा। इनमें क्या आदर्श है जीवन भर अपमान सहना और पति की मान रक्षा के लिये स्वयं को बलिदान कर देना। 

मित्रों,आपने भी किताबों में पढ़ा होगा कि होली उल्लास और सद्भाव का या फिर असत पर सत की विजय का पर्व है परन्तु आपने यह भी पाया होगा कि किताबों में लिखी बातें अक्सर सच्चाई के धरातल पर गलत निकलती हैं.यह बड़ा ही दुखद है कि आज उल्लास और सद्भाव का त्योहार होली पियक्कड़ई का पर्याय बनकर रह गयी है.अक्सर हमारे किशोर और युवा होली के नाम पर इस दिन इस नामाकुल शराब को मुँह से लगा लेते हैं और फिर यह इस तरह उनके गले पड़ जाती है कि पूरा जीवन कब नशे में बीत जाता है पता ही नहीं चलता. 

आज मदनोत्सव है - फागुन महीने की अंतिम तिथि। मदन जो कि अनंग है, जिसमें वह मद है जो मन को बहकाता है, जो देहाभाव की पूर्ति हर प्राणी के अंग अंग समा कर करता है और जिसके दमन हेतु समाज संहितायें गढ़ता रहा है। स्थान स्थान होली जला वसंत की बिगड़ी बयार शुद्ध कर दी गई है और हम नवरस का सन्देश ले एक पक्ष बाद आने वाले नवसंवत्सर का स्वागत करने को तैयार हैं। कल से चैत चढ़ रहा है, वही चैत जिसके बारे में कहा गया है – चुअत अन्हरवे अँजोर, देहियाँ टुटेले पोर पोर। वही चैत जिसमें हल बेच कर भी सजनी के लिये सजन हार गढ़वाता है। इस लास्य की भूमिका है फागुन माह की होली।


राशिफल -- होलियाना ... होली की ढेर सारी शुभकामनाएँ -----------------


1.मेष -- मेषवालों के लिए खुशखबरी हैं, उनके लिए होली का ये सप्ताह खुशियों से भरा होगा। दही की पोटलियां उनके माथे पर पच पच करने के लिए मचल रही है, यहीं नहीं दोनों हाथों में सालियों द्वारा मिले रसगुल्ले कमाल दिखायेंगे, ये रसगुल्ले स्वतः विस्फोट कर, आपको और आपकी शाली दोनों के गालों को लाल कर देंगे, ठीक उसी तरह जैसे यूपी में समाजवादी पार्टी के नेता और मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार अखिलेश यादव के गाल लाल हैं।




मन मटूकी प्रेम रंग भर आयो मोरो रंग रसिया ..
कैसे कैसे समझाउं जग को, है वो मोरा मनमोहन पिया.
अंग अंग मोरा भड़के, धक् धक् धड़के, गभराए मोरा जिया …
बसा है मेरे अंतर्मन में मोरा प्राणजीवन प्रेमसुंदरपिया…
मयूरपिंछ मुकुट धारी गिरधारी ने चुरा लिया मोरा जिया ….

और दफ के शोर खडकते हों,तब देख बहारें होली की

परियों के रंग दमकते हों, तब देख बहारें होली की
खम शीशे जाम छलकते हों ,तब देख बहारें होली की 

होली के इस जश्न में अबीर भी मलंग हैं --
नीले -पीले और गुलाबी ----
रंग उडाए पिचकारियाँ ---
गालो को भी लाल करे ---
आज मतवालों की टोलियाँ ----
बुरा न मानो होली हैं भाई --
बुरा न मानो होली हैं ऐ ऐ ऐ ऐ ---



  • तुम्हारे बाल तुम्हारी संपत्ति नहीं हैं, ये तुम्हारी संतति की संपत्ति हैं। तुम इन्हें अपनी लापरवाही से हरगिज़ नहीं उड़ा सकते, इन्हें नोचने का हक़ सिर्फ तुम्हारे बच्चों-बीवी को है।
  • दूधवाले भैया, बहुत देर कर दी! आज देर से सो कर उठे क्या?
नहीं! मैं तो टाइम से ही उठ गया था...
फिर?
   वो...भैंस जरा देर से उठी।







10 टिप्पणियाँ:

होली की रंग बिरंगी वार्ता के लिए आभार, होली की ढेर सारी शुभकामनाएं

अच्छे लिंक्स
होली की शुभकामनाएं

रंग विरंगी वार्ता.

आकर्षक वार्ता... अच्छे लिंक्स... आभार

रोचक वार्ता....
होली की हार्दिक शुभकामनायें !

कई रंग लिए लिंक्स |
महिला दिवस पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
आशा

अच्छे लिंक्स
होली की शुभकामनाएं

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