सोमवार, 26 मार्च 2012

क्रांति जुल्‍म की पराकाष्‍ठा का परिणाम .. ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

आप सबों को संगीता पुरी का नमस्‍कार , करीब एक साल के बाद रविवार को अन्ना हजारे एक बार फिर जंतर मंतर पर अनशन पर बैठे। एक दिन का यह सांकेतिक अनशन हालांकि जन लोकपाल बिल और विसल ब्लोअर बिल को लेकर था, लेकिन इस मौके का इस्तेमाल अन्ना ने एक बार फिर देशवासियों को झकझोरने के लिए किया। अन्ना ने कहा कि जिन मंत्रियों के खिलाफ करप्शन या क्राइम के मामले हैं उनके खिलाफ अगर अगस्त महीने तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई तो जेल भरो आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा।  

किसन बाबूराव हज़ारे (जन्म: १५ जून, १९३७), भारत के एक प्रसिद्ध गांधीवादी विचारधारा के सामाजिक कार्यकर्ता हैं। अधिकांश लोग उन्हें अन्ना हज़ारे (मराठी: अण्णा हज़ारे) के नाम से ही जानते हैं। सन् १९९२ में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। सूचना के अधिकार के लिये कार्य करने वालों में वे प्रमुख थे।


साफ-सुथरी छवि वाले हज़ारे, भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करने के लिये प्रसिद्ध हैं। जन लोकपाल विधेयक को पारित कराने के लिये अन्ना ने १६ अगस्त २०११ से आमरण अनशन आरम्भ किया है, जिसे जनता से अपार समर्थन मिल रहा है जिससे घबराकर भारत सरकार भी उनकी मांगों पर विचार करने को राजी हो गयी है।
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जन्म :१५ जून, १९३७, भिंगार,अहमदनगर, महाराष्ट्र
राष्ट्रीयता : भारतीय
अन्य नाम : किसन बापट बाबूराव हज़ारे
प्रसिद्धि कारण : भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन
धार्मिक मान्यता : हिन्दू
अन्ना हजारे साहब फिर भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने आंदोलन की तीसरा चरण शुरु करने वाले हैं। वह एक दिन के लिये अनशन पर बैठेंगे और इस बार भ्रष्टाचार के विरुद्ध शहीद होने वाले लोगों के परिवार जन भी उनके साथ होंगे। ऐसे में देश के लोगों की हार्दिक संवेदनाऐं उनके साथ स्वाभाविक रूप से जुड़ेंगी जिसकी इस समय धीमे पड़ रहे इस आंदोलन को सबसे अधिक आवश्यकता है । अन्ना हजारे के समर्थकों ने इस बार भ्रष्टाचार के विरुद्ध शिकायत करने वालों को संरक्षण देने के लिये भी कानून बनाने की मांग का मामला उठाया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि विषयवस्तु की दृष्टि से उनके विचारों में कोई दोष नहीं है। वैसे भी उन्होंने जब जब जो मुद्दे उठाये हैं उनको चुनौती देना अपनी निष्पक्ष विचार दृष्टि तथा विवेक का अभाव प्रदर्शित करना ही होगा।
जंतर-मंतर पर समाजसेवी अन्ना हजारे ने अनशन के दौरान लोगों को संबोधित करते हुए एक बार फिर सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने एक बार फिर राइट टू रीकॉल की बकालत की। अन्ना ने कहा यह जरुरी है कि सत्ता लोगों के हाथ में आए। उन्होंने रामदेव के आंदोलन को समर्थन देने का भी ऐलान किया इसके साथ्‍ा ही अपने आंदोलन में रामदेव का साथ लेने की बात भी कही। उन्होंने वहां उपस्थित हुए सभी लोगों का शुक्रिया अदा किया। हजारे का यह अनशन मजबूत लोकपाल समेत भ्रष्टाचार से लड़ते हुए जान दे चुके लोगों के समर्थन में आयोजित किया गया।
क्रांति जुल्म की पराकष्ठा का परिणाम होती है। ये अपने साथ विनाश और विकास की एक नई दिशा लेकर आती है। हालांकि इसकी विनाश लीला ज्यादा भयावह होती है। उससे उबरने में काफी समय लगता है। इसमें जान और माल दोनों की काफी बर्बादी होती है, लेकिन एक विकासशील समाज के लिए ये अति आवश्यक भी है। पिछले दो सालों में दुनियाभर में कई क्रांतियां देखने को मिली, जो तानाशाही और भ्रष्टाचार के खिलाफ हुईं। ये क्रांति अपने साथ बर्बादी को लेकर तो आईं, लेकिन विकास की एक नई दिशा देकर गईं। ट्यूनीशिया, मिश्र, लीबिया, यूनान या दुनिया के दूसरे हिस्सों में हुईं क्रांतियां हो या फिर भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना का आंदोलन। इन सभी क्रांतियों का मकसद आम लोगों को जुल्म से मुक्ति दिलाना था।
कोई भी राजनीतिक दल भ्रष्टाचार को खत्म नहीं करना चाहता। बातें सभी करते हैं, किन्तु किसी में ऐसी इच्छाशक्ति नहीं है, क्योंकि भष्ट लोग सभी पार्टियों प्रभुत्व रखते हैं। अन्यथा, लोकपाल विधेयक तो जब पास होना होगा तब होगा, क्योंकि बहुमत का रोना है, लेकिन मौजूदा कानूनों के अंतर्गत तो जहां जिस पार्टी की सरकार है, कार्यवाही करे, लेकिन नहीं होती। एक छोटी-सी लेकिन बहुत बडी बात है कि जितने भी निर्माण विभाग हैं, उनमें भ्रष्टाचार एक शिष्टाचार बना हुआ है,किसी को कुछ मांगना नहीं पडता। सबका प्रतिशत निर्धारित है, बाबू, लेखाकार, जेइएन, एईएन, एक्सियन। बिल तभी पास होता है, जब सबको अपना-अपना हिस्सा मिल जाता है। देश के निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार के कारण ही सडकें और पुल एक बारिश में ही बह जाते हैं और कोई कुछ नहीं बोलता।
अवसर मिलता है कभी कभी सोया भाग्य जगाने का
लोकतंत्र के हैं हम जनार्दन लो बीड़ा देश बचाने का
हैं राष्ट्रऋषि रामदेव जी दिशा नई दिखलाने को
बन करके सारे अन्ना आ जाओ देश बचाने को
हुंकार भरो एकसाथ चलो ,धरती कांपे नभ थर्राए
इतिहास बने गौरव गाथा सदिओं तक देश गीत गाये.
वन्देमातरम !
अन्ना के अनुभव यथार्थ के नजदीक रहते हैं ,वो जो कहते हैं वह जमीनी हकीकत है ,आम
आदमी अन्ना में अपना अक्श ढूंढ़ता है क्योंकि उसे भी मालुम है कि उसका नेता चोर है ,
कपटी है,झूठा है ,मायावी है,फरेबी है ,धूर्त है.
हमें दैवीय और आसुरी शक्तियों के संघर्ष के बारे में मालुम है .हम पाखंडी साधू वेशधारी
रावण कि कुटिल नीतियों से अनजान नहीं हैं ना ही हम दुर्योधन और शकुनी को भूले हैं
हमें जयचंद भी याद है .सभी काल में दैवीय शक्तियां हमें पिछड़ती हुई महसूस होती है
मगर सत्य यही है कि विजय हमेशा दैवीय शक्तियों कि ही हुई है.
पिछले पूरे वर्ष तारसप्तक में सरकार के खिलाफ अलाप लेने वाली भाजपा का सुर बिगड़ गया है। गुजरात और कर्नाटक में उसके विधायक विधानसभा सत्र के बीच पोर्नोग्राफी (अश्लील फिल्में) देखते पाए गये। लोगों को यह जानने की उत्सुकता है कि क्या यह विधायक राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रशिक्षित कार्यकर्ता रहे हैं या नहीं?
तमाम विवादों के बावजूद बमुश्किल मुख्यमंत्री के पद से हटाए गए येदुरप्पा लगातार अपने दल के राष्ट्रीय नेतृत्व को धमका रहे हैं कि उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री बनाया जाऐ वर्ना भाजपा का दक्षिण भारत में एक मात्र किला भी ढहा देंगे। कर्नाटक के उपचुनाव में भाजपा का लोकसभा उम्मीदवार हार गया है और जीत हुई है कांगे्रस के प्रत्याशी की। इसी तरह नरेन्द्र मोदी के गढ़ में भी कांग्रेस के उम्मीदवार का विधानसभा चुनाव में जीतना भाजपा के लिए खतरे की घण्टी बजा रहा है। उधर अप्रवासी भारतीय अंशुमान मिश्रा की झारखण्ड से राज्यसभा की उम्मीदवारी रद्द होना भाजपा को भारी पड़ गया है। एक तरफ तो यशवंत सिन्हा जैसे नेताओं का भारी विरोध और दूसरी तरफ अंशुमान मिश्रा का भाजपा नेताओं पर सीधा हमला, इस स्वघोषित राष्ट्रवादी दल की पूरी दुनिया में किरकिरी कर रहा है।
अन्ना हजारे जी ने देश के लिए जो किया, उसके लिए उन्हें कोटिशः धन्यवाद। अपने अथक परिश्रम, प्रयास और जनता के सहयोग से जिस सख्स ने हिंदुस्तान के हर नागरिक के हाथ में एक ऐसा ब्रह्मास्त्र दिया, जो स्वर्ग में भी सिर्फ इन्द्र के पास था। उस ब्रह्मास्त्र का नाम है आर.टी.आई.। और रामबाण (जनलोकपाल बिल ) के लिए अन्ना जी का आन्दोलन जारी है। घोर आलोचना और विरोध के बावजूद मौजूदा सरकार अन्ना के जन लोकपाल से सहमत नहीं हो पाई, क्योकि अगर सरकार जनलोकपाल मुद्दे पर अन्ना की बात मान लेती तो मीडियाबाजी होने लगती कि सरकार ने फिर अन्ना के आगे घुटने टेके, झुक गई आदि-आदि। और जनलोकपाल के पारित हो जाने के बावजूद सरकार के उच्च पदों पर बैठे लोगों की महत्ता घट जाती और अन्ना की चारो तरफ जय-जेकर होने लगती। और पहले से ही कांग्रेश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्ति ऐसी आलोचना को अपने आत्मसम्मान के खिलाफ मानते, और कत्तई इस बात को बर्दास्त करने की स्थिति में नहीं होते कि वे अन्ना हजारे से कम महत्वपूर्ण हैं।
आदरणीय अन्ना अंकल,
कल मैंने हमारी कक्षा की दो लड़कियों की बातें छुप कर सुनी।, आपको बता दूं
” भगत सिंह कितना रोमांटिक रहा होगा, ना?“
” तुम्हे कैसे पता ?“
” क्यों हिस्ट्री के पीरियड में मैडम बता तो रही थी कि उसने सपने तो देखे किसी ”क्रान्ति“ के लेकिन दुल्हन बना लिया ”आज़ादी“ को . इसी अफेयर की वज़ह से तो उसे प्राण भी गंवाने पडे़ .“
” सो सैड. मारा गया बेचारा. मैं तो कहती हूं यह ओनर-किलिंग रही होगी “
” सो तो है ही. इस क्रान्ति ने भी जाने कितने लड़कों को मरवाया होगा “
” यू मीन, क्रान्ति इतनी बेकार है?“
”और नहीं तो क्या ? नहीं तो आज़ भी लड़के हमारी बजाए उसी के पीछे न भागते?“
” सही कहा. वैसे टीचर ने क्या बताया भगत सिंह की दुल्हन का क्या हुआ?“
 
केंद्र की सत्ता पर आसीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल में एक और घोटाला सामने आया है। घोटाले-दर-घोटाले खुल रहे हैं। जैसे हद शब्द भी अपनी हदें पार कर रहा है। ऐसे में जब विपक्षी दल चीख-चीखकर गठबंधन सरकार को भ्रष्ट सरकार की संज्ञा देते हैं, उसे घोटालों की सरकार बताते हैं तो आम आदमी आसानी से भरोसा कर लेता है। उसे समाजसेवी अन्ना हजारे टीम के अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल की यह बात भी ठीक ही लगती है कि यह भ्रष्ट सरकार है इसीलिए उसने संसद में लोकपाल विधेयक पारित नहीं कराया। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोकपाल एक मजबूत हथियार है इसीलिए सरकार उसे पारित नहीं होने दे रही। 79 साल के ईमानदार छवि के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को बेईमान कहते लोगों को वह सुनता है। उनके स्वच्छ इतिहास को उसका दिमाग को मान लेता है लेकिन मन नहीं मानता। ... और ऐसा हो भी क्यों न? संप्रग-2 के अब तक के कार्यकाल में आएदिन घोटाले खुल रहे हैं।
चेटीचंड के इस जुलूस में जन लोकपाल बिल के पर बनाई गई झांकी को लोगों ने खूब सराहा। उक्त झांकी में अन्ना हजारे को किरण बेदी मोटर साईकिल पर बिठाये हुए थी व आगे एक बैनर लगा हुआ था जिस पर लोकपाल बिल पास करो लिखा हुआ था। किरण बेदी व अन्ना हजारे बने कलाकारों ने पूरे अजमेर में हर जगह लोगों का खूब मनोरंजन किया।
अब जब देश-दुनिया का अर्थशास्त्र बदल चुका है। बाजार के नए कायदे-कानून आ गए हैं। शहर चौगुणी गति से फैला है और रोजगार के कई नए दरवाजे खुले हैं, लेकिन स्थिति बदली नहीं है। इतने के बावजूद कैफी का लिखा उक्त गीत वर्तमान हालात पर उतना ही सटीक बैठता है, जितना कि तीन दशक पहले रहा होगा। आज लोग शहर आते तो हैं पर वे गांव लौटना जल्दी चाहते हैं। हालांकि, संभावनाओं की तलाश करते कुछ शहर में ही रम जाते हैं। कैफी उन्हें ही आवाज देते मालूम पड़ते हैं। अब देखिए, अन्ना आंदोलन चला तो फिल्म में रुचि रखने वाला वह कौन व्यक्ति होगा, जिसे 1989 में आई फिल्म ‘मैं आजाद हूं’ का यह गीत याद न आया होगा- “आओ...आ जाओ, जग पर छा... जाओ...।” दरअसल, सिनेमाई गीतों का यह वह रंग है, जिसकी संवेदनशील समाज पर गहरी छाप है।  


अब लेते हैं विराम .. मिलते हैं एक ब्रेक के बाद ...

7 टिप्पणियाँ:

अच्‍छा तो यह बात है
अन्‍ना हजारे को जानते नहीं
खूब बातें लिख आते हो
अन्‍नाभाई को जानते हो
फिर भी भुलाते हो
फेसबुक पर देख आइए
वे भी वहीं पर कहीं थे
और बहुत सारे
हिन्‍दी ब्‍लॉगर।

अन्नामय रोचक वार्ता

जय अन्ना ..बढ़िया वार्ता.

बढ़िया वार्ता... अच्छे लिंक्स...

अन्नामयी वार्ता बढ़िया रही ....

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