आप सबों को संगीता पुरी का नमस्कार , भारतीयों का नव वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिवस को होता है। इस समय भारतवर्ष का वातावरण मनोरम रहता है , वसंत का मौसम , न ग्रीष्म न ठंड न बारिश , पेडों में नए पत्ते लग जाते हैं। ज्योतिष के प्रसिद्ध ग्रंथ 'हिमाद्रि' व ब्रह्मापुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने चैत्र मास के शुक्ल पक्ष को प्रथम दिन सूर्योदय के समय सृष्टि की रचना की, इसलिए तिथि व वार का प्रारम्भ उसी वक्त से माना जाता है। भास्कराचार्य ने भी अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'सिद्धांत शिरोमणि' में लिखा है चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रारम्भ में रविवार के दिन से दिन, मास, युग एक साथ आरंभ हुए हैं। अत: यह दिन सृष्टि रचना का दिन है, तभी से कालगणना शुरू हुई। यही कारण है कि भारतवर्ष में प्रचलित अनेक संवत चैत्र शुक्ल प्रथम दिन को प्रारम्भ होते हैं तथा भारतीयों का नया साल इसी दिवस से विक्रमी संवत के रूप में मनाया जाता है। इस बार 23 मार्च को यह दिन हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। आप सबों को हिन्दू नव वर्ष की शुभकामनायें .
अब आपको लिए चलते हैं आज की वार्ता पर , कुछ चुने हुए लिंक्स , उस पोस्ट की चुनी हुई एक टिप्पणी के साथ ...
चलो.........
निदा साहब फरमाते हैं कि
अपना गम लेके कहीं और न जाया जाए,
घर में बिखरी हुई चीज़ों को संवारा जाए!
और आपकी कविता पढकर पता चला कि क्यों ज़रूरी है उन्हें संवारना!! बहुत आनंददायक!!
पर्यावरणीय दोहे
भाये ए सी की हवा, डेंगू मच्छर दोस्त ।
फल के पादप काटते, काटें मछली ग़ोश्त ।
काटें मछली ग़ोश्त, बने टावर के जंगल ।
टूंगे जंकी टोस्ट, मने जंगल में मंगल ।
खाना पीना मौज, मगन मानव भरमाये ।
काटे पादप रोज, हरेरी अपनी भाये ।।
सूर्यास्त
धरा की यही तो विशेषता है कि उसे किसी से कोइ गिला शिकवा नहीं होता |वह सदा ही क्षमाशील और अपने में सब को समेट लेना चाहती है |
अच्छी प्रस्तुति |
बार बार दिन ये आए , बार बार दिल ये गाए ---चुनाव .अब खुद ही सोचिये आप की जब एक अपनी संस्था(डीएम्ए) के चुनाव के अन्दर इतना रस है तो दिल्ली विधानसभा और लोकसभा के चुनाव के अन्दर कितना रस नहीं होगा ? :) :
शाश्वत प्यार .
प्रकृति के हर उपादानों में तो देना एक नैसर्गिक गुण है, पर बदले में हम प्रकृति को निचोड़ रहे हैं, शोषण कर रहे हैं। जितनी कोमल कविता की रचना की है हमें भी उतने ही कोमलता से प्रकृति के प्रति रुख रखना चाहिए। वरना एक दिन हम बूंद-बूंद जल को तरसेंगे।
सरिताओं के जीवन पर जब
करता तपन कठोर प्रहार
व्योम मार्ग से जलधि भेजता
उन तक निज उर की रसधार
अस्तित्व का भान!
निदा साहब फरमाते हैं कि
अपना गम लेके कहीं और न जाया जाए,
घर में बिखरी हुई चीज़ों को संवारा जाए!
और आपकी कविता पढकर पता चला कि क्यों ज़रूरी है उन्हें संवारना!! बहुत आनंददायक!!
पर्यावरणीय दोहे
भाये ए सी की हवा, डेंगू मच्छर दोस्त ।
फल के पादप काटते, काटें मछली ग़ोश्त ।
काटें मछली ग़ोश्त, बने टावर के जंगल ।
टूंगे जंकी टोस्ट, मने जंगल में मंगल ।
खाना पीना मौज, मगन मानव भरमाये ।
काटे पादप रोज, हरेरी अपनी भाये ।।
सूर्यास्त
धरा की यही तो विशेषता है कि उसे किसी से कोइ गिला शिकवा नहीं होता |वह सदा ही क्षमाशील और अपने में सब को समेट लेना चाहती है |
अच्छी प्रस्तुति |
बार बार दिन ये आए , बार बार दिल ये गाए ---चुनाव .अब खुद ही सोचिये आप की जब एक अपनी संस्था(डीएम्ए) के चुनाव के अन्दर इतना रस है तो दिल्ली विधानसभा और लोकसभा के चुनाव के अन्दर कितना रस नहीं होगा ? :) :
शाश्वत प्यार .
प्रकृति के हर उपादानों में तो देना एक नैसर्गिक गुण है, पर बदले में हम प्रकृति को निचोड़ रहे हैं, शोषण कर रहे हैं। जितनी कोमल कविता की रचना की है हमें भी उतने ही कोमलता से प्रकृति के प्रति रुख रखना चाहिए। वरना एक दिन हम बूंद-बूंद जल को तरसेंगे।
सरिताओं के जीवन पर जब
करता तपन कठोर प्रहार
व्योम मार्ग से जलधि भेजता
उन तक निज उर की रसधार
अस्तित्व का भान!
सबको अपने अस्तित्व का भान हो तो सूरज मुस्करा उठेगा।
हाथ में पहले तो खंजर दे दिया ...
एक बस फरमान साहूकार का
छीन के घर मुझको छप्पर दे दिया
ज़िन्दगी के अप विकासी ,प्रति गामी -चित्रों को ,आपने क्यों ग़ज़ल नाम दे दिया ?
कोई अशआर 'विशेष आर्थिक क्षेत्र 'स्पेशल इकोनोमिक ज़ोन 'पर व्यंग्य है कोई बलात्कारी व्यवस्था पर ,रेप पर .
ज़िन्दगी के अप विकासी ,प्रति गामी -चित्रों को ,आपने क्यों ग़ज़ल नाम दे दिया ?
कोई अशआर 'विशेष आर्थिक क्षेत्र 'स्पेशल इकोनोमिक ज़ोन 'पर व्यंग्य है कोई बलात्कारी व्यवस्था पर ,रेप पर .
आज का सारा फरेब और मक्कारी का अनुरूपण आपकी ग़ज़लों में है .
बस कोई ...
आहा ..
हर कार्य की संपूर्णता के लिए किसी का साथ जरूरी है .. बेहतरीन।
मृग कस्तूरी वन वन ....कार्टून कुछ बोलता है- गरीबी रेखा !
ऊपर आने के बाद का सच भी कितना कडुवा है ... सच है कार्टून बोल रहा है आज ... चीख चीख के ...
दिल जोड़ना ही सीखा.............
जवाबी ख़त का कोई जवाब नहीं है .. अति सुन्दर सृजन..
दालान की ढिबरी
ढिबरी और दादा
अब दोनों नहीं बनते,
हमारी दुनिया बदल रही है,
पहले की बात और थी
जब ढिबरी से भी
जुड़ते थे रिश्ते !
हाथ में पहले तो खंजर दे दिया ...
एक बस फरमान साहूकार का
छीन के घर मुझको छप्पर दे दिया
ज़िन्दगी के अप विकासी ,प्रति गामी -चित्रों को ,आपने क्यों ग़ज़ल नाम दे दिया ?
कोई अशआर 'विशेष आर्थिक क्षेत्र 'स्पेशल इकोनोमिक ज़ोन 'पर व्यंग्य है कोई बलात्कारी व्यवस्था पर ,रेप पर .
ज़िन्दगी के अप विकासी ,प्रति गामी -चित्रों को ,आपने क्यों ग़ज़ल नाम दे दिया ?
कोई अशआर 'विशेष आर्थिक क्षेत्र 'स्पेशल इकोनोमिक ज़ोन 'पर व्यंग्य है कोई बलात्कारी व्यवस्था पर ,रेप पर .
आज का सारा फरेब और मक्कारी का अनुरूपण आपकी ग़ज़लों में है .
बस कोई ...
आहा ..
हर कार्य की संपूर्णता के लिए किसी का साथ जरूरी है .. बेहतरीन।
मृग कस्तूरी वन वन ....कार्टून कुछ बोलता है- गरीबी रेखा !
ऊपर आने के बाद का सच भी कितना कडुवा है ... सच है कार्टून बोल रहा है आज ... चीख चीख के ...
दिल जोड़ना ही सीखा.............
जवाबी ख़त का कोई जवाब नहीं है .. अति सुन्दर सृजन..
दालान की ढिबरी
ढिबरी और दादा
अब दोनों नहीं बनते,
हमारी दुनिया बदल रही है,
पहले की बात और थी
जब ढिबरी से भी
जुड़ते थे रिश्ते !
कभी बड़ी मत होना
बहुत सुंदर प्रस्तुति ..
पर बडी होना भी तो आवश्यक है ..
कौन संभालेगा जीवनभर बचपन को !!
नोर्वे में भारतीये दंपत्ति से बच्चे छीने गए -- अनदेखा सच
निश्चित रूप से बहुत से तथ्य सामने नहीं आ रहे हैं। इन तथ्यों की खोज की जानी चाहिए। तभी कुछ कहना सही होगा। कयास लगाने से गलत नतीजे भी निकल सकते हैं।
यह सही है कि हम पेट काट कर पैसा बचाते हैं। शायद बुरे भविष्य के लिए। क्यों कि भारत में सामाजिक सुरक्षा नाम मात्र को भी नहीं है। बच्चों, वृद्धों और निर्बलों के लिए इस तरह के सामाजिक कानून उसी देश में हो सकते हैं जहाँ ऐसे लोगों के लिए सरकार ने पर्याप्त और संतोषजनक सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था की हो।
सूफ़ियों ने विश्व-प्रेम का पाठ पढ़ाया अंक-9
बड़ी-बड़ी धर्मसभाओं में भी अक्सर लोग पूछते हैं कि कौन सी किताब पढ़ें,किस भगवान को मानें? जवाब मिलता है कि मानव-धर्म को मानो। यह उत्तर बहुत भ्रामक है और अधूरा भी।वास्तव में,बिना गुरु ईश्वरप्राप्ति संभव नहीं। जिस मार्ग का पक्के तौर पर कुछ पता न हो,उसके लिए पूछना तो पड़ता ही है;गुरू इसलिए ज़रूरी है। गुरू इसलिए भी ज़रूरी है कि जब मंज़िल मिल जाए तो इसकी पुष्टि हो सके कि हां,यही है मंज़िल। इसलिए,मीरा ने कहाःसत् की नाव खेवटिया सतगुरू। अर्थात्, सत्य की नाव पर्याप्त नहीं,उसे पार लगाने वाला भी चाहिए। गुरू वही खेवैया है। गुरू इतना महत्वपूर्ण है कि कबीर ने कहा कि भगवान से द्रोह कर लो तो गुरू के यहां ठौर मिल सकता है,मगर गुरू से द्रोह किया तो कहीं ठांव नहीं।
असफल प्रयास.......
सच है जहाँ संवेदनहीनता की रेतीली ज़मीन हो वहां इन आंसुओं का कोई अस्तित्व नहीं होता... गहन भाव
आदतें
जिस्म से रूह का सफ़र रूह ही करती है
मेरी साईट का नया टेम्पलेट दिल को छूने वाले ब्लॉग के साथ मंयक भाई गुड मोर्निंग कल तो मेरे उस वक़्त होश उड़ गए जब आप की साईट पर लोगिन करने पर बार -बार एक चेतावनी आ रही थी ...की इस ब्लॉग पर जाने की आप को अनुमति नहीं ...आज सुवह नीद से जागते ही फिर प्रयास किया तो ये क्या देख रहा हूँ यहाँ तो सब कुछ बदल गया ..नहीं बदले वो है सिर्फ मेरे मयंक जी ...खैर देर आये दुरुस्त आये........बधाई हो मयंक जी आप ने तो कमाल ही कर दिया क्या टेम्पलेट लगाया है मज़ा आ गया ..बहुत-बहुत बधाई हो
होली के उन्माद में नाचना
भले गायन न सही नृत्य तो वास्तव में हमारे गुणसूत्रों में सदैव बना रहता है. यह होता भी रहता है परन्तु हमें आभास नहीं होता. होली एक ऐसा अवसर है जब व्यक्ति सभी संकोचों से बाहर आ जाता है. अच्छा लगा आप को अपने मूल स्वरुप में देख कर.
किसम-किसम के कर्मचारी
विष्णु जी, मेरी नज़र में सर्वश्रेष्ठ व्यंग्य वही होते हैं जिनमें सच के अलावा कुछ न हो, न रंचमात्र अतिश्योक्ति और न ही दाल में नमक के बराबर कड़वाहट, मगर मज़ा भरपूर हो। यह प्रविष्टि ऐसे ही उत्तम व्यंग्य आलेखों में से एक है। सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी के दौरान मेरा एक अवलोकन था कि पहले वर्ग के कर्मचारी बाकी दोनों वर्गों को ससम्मान अपने साथ चलाते (और घसीटते व धकियाते) हैं। मगर पूरे विभाग की गति अक्सर उतनी ही होती है जितनी तीसरे वर्ग की जब तक कि उन्हें पूरी तरह अदृश्य न मान लिया जाये। तीसरी श्रेणी में वे भी हैं जिनके दफ़्तर आने का एकमेव उद्देश्य दफ़्तर के फ़ोन से लेकर एसी तक का सदुपयोग करके वहाँ से अपना निजी उद्योग चलाना होता है और यह उद्योग शेयर ब्रोकर, महाजनी, वसूली आदि से लेकर लघु उद्योग तक कुछ भी हो सकता है। आजकल शायद इनमें से कुछ लोग दफ़्तर के समय में कमाई या व्यक्तिगत विकास के उद्देश्य से ब्लॉगिंग भी कर रहे होंगे।
सम्बोधि के क्षण
तभी कहते हैं कि बच्चों के सामने ज्यादा ज्ञान नहीं बघारना चाहिए। ज्योति कहाँ से आयी और कहाँ गयी? शब्द कहाँ से आए और कहाँ गए? हवा कहाँ से आयी और कहाँ गयी? ऐसे अनेक प्रश्न हो सकते हैं। बस सारा ही ज्ञान का पाखण्ड है और शब्दों से खेलने वाले लोग इसे बखूबी विस्तारित करते हैं। ऐसे ही विस्तारित करते हुए अनेक शिष्य बन जाते हैं। बस भारत में हजारों की संख्या में ऐसे गुरु उत्पन्न हो जाते हैं। आज गुरुओं के पास उनके भक्तों की अपार भीड़ है लेकिन फिर भी समाज सन्मार्ग पर नही है, अपितु ऐसे ही प्रश्नों के भ्रम जाल में उलझकर दिशाभ्रमित हो रहा है।
आसमान के ग्रहों के हिसाब से 22 , 23 और 24 मार्च 2012 को क्या क्या हो सकता है ??
तथाकथित प्रगतिशील और तथाकथित विज्ञानी लोग भले ही आश्चर्य व्यक्त करें या कटाक्ष परंतु बहन जी ने जो व्याख्या की है वैसा प्रत्यक्ष होता है। 1974 मे जब मै अधिक जानकारी नहीं रखता था तब 15 दिसंबर को प्रातः आगरा मे छोटे भाई का दूसरों की गलती से जबर्दस्त एक्सीडेंट हुआ था मै तब मेरठ मे जाब कर रहा था। एस एन मेडीकल कालेज के डाक्टर्स ने तीन दिन जिंदगी के लिए खतरनाक बताए थे। बहुत बाद मे विश्लेषण करने पर पाया की उस वक्त भाई के नवों ग्रह खराब स्थिति मे गोचर मे थे। ढाई दिन बाद चंद्रमा के राशि परिवर्तन के बाद ही लाभ शुरू हुआ और डॉ का अनुमान भी सही रहा। उस हादसे से उसे अब भी शारीरिक तकलीफ हो जाती है। अतः चेतावनी पर ध्यान अवश्य ही दिया जाना चाहिए।
जन्म दिन, ललित शर्मा का ....
बहुत सुंदर प्रस्तुति ..
पर बडी होना भी तो आवश्यक है ..
कौन संभालेगा जीवनभर बचपन को !!
नोर्वे में भारतीये दंपत्ति से बच्चे छीने गए -- अनदेखा सच
निश्चित रूप से बहुत से तथ्य सामने नहीं आ रहे हैं। इन तथ्यों की खोज की जानी चाहिए। तभी कुछ कहना सही होगा। कयास लगाने से गलत नतीजे भी निकल सकते हैं।
यह सही है कि हम पेट काट कर पैसा बचाते हैं। शायद बुरे भविष्य के लिए। क्यों कि भारत में सामाजिक सुरक्षा नाम मात्र को भी नहीं है। बच्चों, वृद्धों और निर्बलों के लिए इस तरह के सामाजिक कानून उसी देश में हो सकते हैं जहाँ ऐसे लोगों के लिए सरकार ने पर्याप्त और संतोषजनक सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था की हो।
सूफ़ियों ने विश्व-प्रेम का पाठ पढ़ाया अंक-9
बड़ी-बड़ी धर्मसभाओं में भी अक्सर लोग पूछते हैं कि कौन सी किताब पढ़ें,किस भगवान को मानें? जवाब मिलता है कि मानव-धर्म को मानो। यह उत्तर बहुत भ्रामक है और अधूरा भी।वास्तव में,बिना गुरु ईश्वरप्राप्ति संभव नहीं। जिस मार्ग का पक्के तौर पर कुछ पता न हो,उसके लिए पूछना तो पड़ता ही है;गुरू इसलिए ज़रूरी है। गुरू इसलिए भी ज़रूरी है कि जब मंज़िल मिल जाए तो इसकी पुष्टि हो सके कि हां,यही है मंज़िल। इसलिए,मीरा ने कहाःसत् की नाव खेवटिया सतगुरू। अर्थात्, सत्य की नाव पर्याप्त नहीं,उसे पार लगाने वाला भी चाहिए। गुरू वही खेवैया है। गुरू इतना महत्वपूर्ण है कि कबीर ने कहा कि भगवान से द्रोह कर लो तो गुरू के यहां ठौर मिल सकता है,मगर गुरू से द्रोह किया तो कहीं ठांव नहीं।
असफल प्रयास.......
सच है जहाँ संवेदनहीनता की रेतीली ज़मीन हो वहां इन आंसुओं का कोई अस्तित्व नहीं होता... गहन भाव
आदतें
जिस्म से रूह का सफ़र रूह ही करती है
मेरी साईट का नया टेम्पलेट दिल को छूने वाले ब्लॉग के साथ मंयक भाई गुड मोर्निंग कल तो मेरे उस वक़्त होश उड़ गए जब आप की साईट पर लोगिन करने पर बार -बार एक चेतावनी आ रही थी ...की इस ब्लॉग पर जाने की आप को अनुमति नहीं ...आज सुवह नीद से जागते ही फिर प्रयास किया तो ये क्या देख रहा हूँ यहाँ तो सब कुछ बदल गया ..नहीं बदले वो है सिर्फ मेरे मयंक जी ...खैर देर आये दुरुस्त आये........बधाई हो मयंक जी आप ने तो कमाल ही कर दिया क्या टेम्पलेट लगाया है मज़ा आ गया ..बहुत-बहुत बधाई हो
होली के उन्माद में नाचना
भले गायन न सही नृत्य तो वास्तव में हमारे गुणसूत्रों में सदैव बना रहता है. यह होता भी रहता है परन्तु हमें आभास नहीं होता. होली एक ऐसा अवसर है जब व्यक्ति सभी संकोचों से बाहर आ जाता है. अच्छा लगा आप को अपने मूल स्वरुप में देख कर.
किसम-किसम के कर्मचारी
विष्णु जी, मेरी नज़र में सर्वश्रेष्ठ व्यंग्य वही होते हैं जिनमें सच के अलावा कुछ न हो, न रंचमात्र अतिश्योक्ति और न ही दाल में नमक के बराबर कड़वाहट, मगर मज़ा भरपूर हो। यह प्रविष्टि ऐसे ही उत्तम व्यंग्य आलेखों में से एक है। सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी के दौरान मेरा एक अवलोकन था कि पहले वर्ग के कर्मचारी बाकी दोनों वर्गों को ससम्मान अपने साथ चलाते (और घसीटते व धकियाते) हैं। मगर पूरे विभाग की गति अक्सर उतनी ही होती है जितनी तीसरे वर्ग की जब तक कि उन्हें पूरी तरह अदृश्य न मान लिया जाये। तीसरी श्रेणी में वे भी हैं जिनके दफ़्तर आने का एकमेव उद्देश्य दफ़्तर के फ़ोन से लेकर एसी तक का सदुपयोग करके वहाँ से अपना निजी उद्योग चलाना होता है और यह उद्योग शेयर ब्रोकर, महाजनी, वसूली आदि से लेकर लघु उद्योग तक कुछ भी हो सकता है। आजकल शायद इनमें से कुछ लोग दफ़्तर के समय में कमाई या व्यक्तिगत विकास के उद्देश्य से ब्लॉगिंग भी कर रहे होंगे।
सम्बोधि के क्षण
तभी कहते हैं कि बच्चों के सामने ज्यादा ज्ञान नहीं बघारना चाहिए। ज्योति कहाँ से आयी और कहाँ गयी? शब्द कहाँ से आए और कहाँ गए? हवा कहाँ से आयी और कहाँ गयी? ऐसे अनेक प्रश्न हो सकते हैं। बस सारा ही ज्ञान का पाखण्ड है और शब्दों से खेलने वाले लोग इसे बखूबी विस्तारित करते हैं। ऐसे ही विस्तारित करते हुए अनेक शिष्य बन जाते हैं। बस भारत में हजारों की संख्या में ऐसे गुरु उत्पन्न हो जाते हैं। आज गुरुओं के पास उनके भक्तों की अपार भीड़ है लेकिन फिर भी समाज सन्मार्ग पर नही है, अपितु ऐसे ही प्रश्नों के भ्रम जाल में उलझकर दिशाभ्रमित हो रहा है।
आसमान के ग्रहों के हिसाब से 22 , 23 और 24 मार्च 2012 को क्या क्या हो सकता है ??
तथाकथित प्रगतिशील और तथाकथित विज्ञानी लोग भले ही आश्चर्य व्यक्त करें या कटाक्ष परंतु बहन जी ने जो व्याख्या की है वैसा प्रत्यक्ष होता है। 1974 मे जब मै अधिक जानकारी नहीं रखता था तब 15 दिसंबर को प्रातः आगरा मे छोटे भाई का दूसरों की गलती से जबर्दस्त एक्सीडेंट हुआ था मै तब मेरठ मे जाब कर रहा था। एस एन मेडीकल कालेज के डाक्टर्स ने तीन दिन जिंदगी के लिए खतरनाक बताए थे। बहुत बाद मे विश्लेषण करने पर पाया की उस वक्त भाई के नवों ग्रह खराब स्थिति मे गोचर मे थे। ढाई दिन बाद चंद्रमा के राशि परिवर्तन के बाद ही लाभ शुरू हुआ और डॉ का अनुमान भी सही रहा। उस हादसे से उसे अब भी शारीरिक तकलीफ हो जाती है। अतः चेतावनी पर ध्यान अवश्य ही दिया जाना चाहिए।
जन्म दिन, ललित शर्मा का ....
जन्मदिन पर आपने खींच दिया ललित चित्र
तह-ए-दिल से आपका शुक्रिया, धन्यवाद है मित्र
तह-ए-दिल से आपका शुक्रिया, धन्यवाद है मित्र
अब लेते हैं विराम .. मिलते हैं एक ब्रेक के बाद .....
11 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब संगीता जी
मन भावन चर्चा का संगीत है
धन्यवाद संगीता जी……… सुंदर वार्ता के लिए आभार
बहुत बहुत आभार ।
सुन्दर समन्वय ।।
बढ़िया वार्ता... सुन्दर लिंक्स के लिए आभार आपका...
nice...behtarin warta ke liye badhai..
अच्छी वार्ता
बहुत बढिया
बेहतरीन वार्ता संध्या जी ! ललित जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका धन्यवाद एवं आभार !
सुन्दर लिंक संयोजन्।
बेहतरीन वार्ता ! ललित जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका धन्यवाद एवं आभार !
bahut hi sundar links
कमाल के लिंक्स संजोए हैं आपने।
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