संध्या शर्मा का नमस्कार... घर-परिवार का रिश्ता कुछ ऐसा ही होता है। थोडा खट्टा, थोडा मीठा। कभी नोक-झोंक और कभी मान-मनौवल। इतना ही नहीं, कभी घात-प्रतिघात, कभी षडयंत्र और कभी एक-दूसरे के हितों के लिए जान तक दे देने का जज्बा। यह जज्बा सिर्फ कहने-सुनने तक ही सीमित नहीं होता, व्यवहार में भी दिखता है। शायद इसीलिए रिश्तों के संबंध में आम भारतीय कहावत है- खून हमेशा पानी से गाढा होता है। परिवार और सबके साथ रहने की इसी व्यवस्था ने हमें इतने रिश्ते दिए, जितने शायद दुनिया में कहीं और नहीं हैं, सिर्फ और सिर्फ हमारे अपने देश भारत में है... लीजिये प्रस्तुत हैं आज की ब्लॉग 4 वार्ता कुछ खास लिंक्स के साथ ...
आज कुदरत नागपुर पे कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गई .. :)
बेनकाब .*कभी पढ़ा है क्या तुमने* *अंधेरों को..* *देख सके हो कभी* *स्याह कागज़ पर उकेरे * *कोई शब्द???* * * *सुना है क्या तुमने कभी * *सन्नाटे को?* *जब कोई नहीं दूर दूर तक...* *तब पहुंची है क्या * *कोई आवाज़* *तुम ... शासन की डोर न सम्हाल सके शासन की डोर न सम्हाल सके सारे यत्न असफल रहे मोह न छूटा कुर्सी का क्यूंकि लोग सलाम कर रहे | ना रुकी मंहगाई ना ही आगे रुक पाएगी अर्थ शास्त्र के नियम भी सारे ताख में रख दिए | अर्थशास्त्री बने रहने की ... जोर का झटका ...धीरे से लगा !! जोर का झटका ...धीरे से लगा !!* * * ** *विपाशा कॉलेज से घर लौटी तो माँ के कराहने की आवाज सुनकर माँ के कमरे की और बढ़ ली .माँ पलंग पर लेटी हुई थी .विपाशा ने अपना बैग एक ओर रखा और माँ के माथे पर हाथ रख...
श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद आसक्ति हीन कर्म फल में सदा निराश्रित तृप्त है रहता. सदा कर्म करने पर भी वह, कुछ भी कर्म नहीं है करता. त्याग परिग्रह, काम निवृत्त हो, चित्त, शरीर नियंत्रित रखता. केवल. चक्रव्यूह कोई विशेष कला न जाने की थी न आने की ! निष्ठा थी आन की ..... अभिमन्यु ने उसी निष्ठा का निर्वाह किया और चक्रव्यूह में गया ... पर निकलना निष्ठा नहीं थी न निकलने का मार्ग ..और तुम वहीँ एक बुत बन जाओ ...........हवा, मिटटी और छुअन का ये शहरों की मिट्टियाँ भी अजीब होती हैं ना रूप रस गंध सबसे जुदा देखो आज मेरे क़दमों ने फिर तुम्हारे शहर की कदमबोसी की है कोई अनजानी सी हवा छूकर गयी है एक नमकीन सा अहसास करा गयी है मगर अजनबियत की गंध भी ...
अतीत से वर्तमान तक का सफर अतीत से वर्तमान तक का सफर*** * * * ** प्रस्तुतकर्ता :प्रेम सागर सिंह *** * ** ** * *मैं मानता हूं कि समय के साथ **अतीत** ...आये घन ,भाये मन * आज वरसे हैं घन , टूट के , * * ऊष्मा , तिरोहित हो गयी ..* * * *तप्त था आँचल ,अभिशप्त सा धरातल* *दग्ध था हृदय , मष्तिष्क में हलचल* *उबलते स्वेद कण बहते अहर्निश...आपकी आँखों में हम डूबे हुए हैं साहिब आपकी आँखों में हम डूबे हुए हैं साहिब कानपुर, लखनऊ क्योंकि सूखे हुए हैं साहिब जान दे देंगे तेरी आँखों से ना निकलेंगे मार्च से जून हुआ टूटे हुए हैं साहिब तेरी आँखों को कैद-ए-काला पानी जो कहते मेरी नजरों मे...
बनरा मोरा ब्याहन आया ... री सखी ... देख न .. सुहाग के बादल छाये .... उमड़ घुमड़ घिर आये ... सरित मन तरंग उठे.... हुलसाये ...!! झड़ी सावन की लागि ... माथे लड़ियन झड़ियन बुंदियन सेहरा ... गले मुतियन बुंदियन हार पहन ..... बनरा मोरा ...प्रणय-गीत - *मेरे जीवन की प्रथम-किरण,* * मेरे अंतर की कविता हो,* *हृदय अंध में डूब रहा ,* * प्रज्ज्वलित करो तुम सविता हो !* * * *मम भाग्य-विधाता तुम्ही. जिजीविषा - * * * * *कहो कुछ ऐसा, जो हो ताजी हवा के जैसा। * ** *जो छू सके इस पल को, * *जो मिल सके मेरे मन को।* * * * जिसमें हो ठंडक, ताजगी और सुकून जैसा कुछ,* * ..
सावधान, सावधान, सावधान -- जिस *बीमारी* का ईलाज नहीं, उसकी हजारों दवाएं हैं। लाईलाज बीमारियाँ लोगों को दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर करती हैं। *ऐलोपैथी* के प्रति अभी तक ग्रामीण अंचल में पूरी तरह लोगों को विश्वास नहीं है। ..... 6 वां अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन संयुक्त राज्य अमीरात में - 6 वां अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन संयुक्त राज्य अमीरात में रायपुर । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी और हिंदी-संस्कृति को प्रतिष्ठित करने के लिए संस्था व साहित्... कागज की किश्ती और दिल्ली जलबोर्ड का पानी - आया सावन घूम के फेसबुक के मित्र हम कागज की किश्तियां लेकर उस पर बैठकर कर रहे हैं मानूसन का सफर आज शुरू जो जो चाहें चलना अपनी अपनी किश्तियां मतलब कागज लेकर..
इस मानवीयता ने दिल को छू लिया - आज की आधुनिकता से परिपूर्ण जीवनशैली में यदि कोई छोटी से छोटी घटना इस तरह की दिख जाती है जिसमें संवेदना, मानवीयता का एहसास होता है तो मन प्रसन्न हो जाता ह... आज 'मैंगो डे' है... आपको आम अच्छे लगते हैं...आखिर किसे अच्छे नहीं लगेंगें. फलों का रजा आम तो मुझे बहुत पसंद है. अंडमान में तो साल भर में तीन बार आम की फसल होती थी, खूब आम खाती थी. यहाँ इलाहाबाद में भी खूब आम खा रही हूँ. दो आम..जिन्दगी की अजब कहानी - जिन्दगी की अजब कहानी: किस्मत से बढकर कुछ नहीं है मिलता देख लिया है जिन्दगी की आपा -धापी में सब कुछ था अजमाया हमने बस समझ ये ही आया ...
अब दीजिये इज़ाजत मिलते हैं अगली वार्ता में तब तक के लिए नमस्कार .......
10 टिप्पणियाँ:
आज आम दिवस है यह तो पता ही नहीं था |अच्छी
वार्ता |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
बढ़िया वार्ता संध्या जी.........आभार
धन्यवाद सन्ध्याजी। आपके परिश्रम का लाभ यह मिलता है कि क्या पढा जाए, इसकी कच्ची रूप रेखा बन जाती है।
अद्भुत वार्ता ....!
सुन्दर वार्ता काफी म्हणत लगी है...
अच्छे लिंक्स . मेरी कविता शामिल करने के लिए शुक्रिया संध्या जी
बढिया
सुन्दर अद्भुत वार्ता ....
बहुत सारे लिंक्स मिले ..
सुंदर वार्ता के लिए आपका आभार !!
सुन्दर ब्लॉग वार्ता..
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