मंगलवार, 17 जुलाई 2012

धत् तेरे साहित्य की,हम ब्लोगर हूँ -------- ब्लॉग4वार्ता -------- ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार, कुछ राज्यों में स्थायीय बोली को राजभाषा का दर्जा एवं संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने की मांग चल रही है। लेकिन केन्द्र सरकार के कानों में जूँ तक नहीं रेंग रही। राजस्थान में राजस्थानी बोली को राज-काज की भाषा बनाने की मांग भी अर्से  से  चल रही है,लेकिन इस मांग की ओर राज्य सरकार कोई ध्यान  नहीं है। स्थानीय भाषा को राज-काज की भाषा बनाने की दौड़ में छत्तीसगढ बहुत आगे निकल चुका है। इस प्रयास में एक और अध्याय तब जुड़ गया आज जब विधान सभा के सभाग़ृह में मुख्यमंत्री ने प्रशासनिक शब्दावली का विमोचन किया। अब छत्तीसगढ की विधान सभा में स्थानीय भाषा में भी प्रश्न किए जा सकते हैं और जवाब भी पाया जा सकता है। राज्य के कार्यालयों में छत्तीसगढी में आवेदन पत्र दिए जा सकते हैं। राज्य सरकार छत्तीसगढी को राज भाषा का दर्जा पहले ही दे चुकी  है। आज इस कार्यक्रम के हम भी साक्षी बने। यह कदम छत्तीसगढी भाषा को केन्द्र की आठवी अनुसूची में दर्ज कराने के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा……… अब चलते हैं आज की वार्ता पर, प्रस्तुत हैं कुछ पोस्ट लिंक्स………

फ़लसफ़ा-ए-ज़िंदगीहोश-ए-ज़िंदगी,यूं सरक गई--- ढूंढते हुए-फ़कत,इस पल के वज़ूद को और वो भी,मुठ्ठी से सरक गया यूं, बे आवाज----- २.किताबे-ज़िंदगी------ वर्क-दर-वर्क, रोज़ पढती हूं अगली सुबह,पहला वर्क ही, पलटती हूं------ ३...क्या सचमुच महान था सिकंदर महान ?सिकंदर एक महान विजेता था- ग्रीस के प्रभाव से लिखी गई पश्चिम के इतिहास की किताबों में यही बताया जाता है। मगर ईरानी इतिहास के नजरिए से देखा जाए तो ये छवि कुछ अलग ही दिखती है। प्राचीन ईरानी अकेमेनिड साम्राज्...बता दो कोई ठौरदेव भूमि ,* *आर्यावर्त ,* *देवता वास करते हैं ,* *अर्थतः* *उपासना स्वरूपा,* *सर्वशक्तिसमन्विता ,* *आर्या,यहाँ पूजी जाती हैं ...../* *वस्तुतः * *दैन्यता में .....* *आशा ,शक्ति, वीरांगना शत्रु -मर्दिन...

आस्था से खिलवाड़ " कहीं पर कुछ भी हम लोग मंदिरों का महत्व समझते है ! यह वह स्थान होता है जहाँ हम लोग अकेले या समूह में भगवान् या अपने इष्ट देव का पूजन करते हैं ! एक आदर्श मंदिर की विशेषता होती ...रंगमंच.करती हूँ अभिनय आती हूँ रंगमंच पर प्रतिदिन भूमिका पूरी नहीं होती हर बार ओढ़ती हूँ नया चरित्र सजाती, संवारती हूँ गढ़ती हूँ खुद को रम जाती हूँ रज कर कि खो जाये "मुझमे" "मैं" कहीं.... अब तो हो गई है आदत किरदा...उल्लसित धूपतम के गहन बादलों के बीच आज निकली है हल्की सी उल्लसित धूप और मैंने अपनी सारी ख्वाहिशें डाल दी हैं मन की अलगनी पर इन सीली सीली सी ख़्वाहिशों को कुछ हवा लगे और कुछ धूप और सीलन की महक हो सके ...

मानसून  मोसम बड़ा बेईमान है ये भी आजकल नेताओ की दुकान है आम आदमी की कही टूटी कही फूटी एक दुकान है ....आज मोसम मानसून आया है ये सरकार की शान है एक दिन से दस दिन का ही तो ये मेहमान है बंगाल में आया बम्बई में आया असाम...  देसी -विदेसी "कॉकटेल ".. हमारे पास रविवार शाम गुजारने के लिए दो विकल्प थे. एक बोल बच्चन और एक > कॉकटेल .अब बोल बच्चन के काफी रिव्यू पढने के बाद भी हॉल पर जाकर जेब खाली > करने की हिम्मत ना जाने क्यों नहीं हुई तो कॉकटेल पर ही... क्या कहिए एइसन लोगन को  ऐसा क्यूं होता है कि समाज के निचले तबके से उठ कर उपर पहुंचने वाला भी यहां आकर अपने खास हो जाने के एहसास में ऐसा जकड जाता है कि फिर उसे किसी आम से कोई लगाव ही नहीं रह जाता। * अभी एक खबर पढने को मिली कि ... 

अंततः  हो जाना है अंत सभी आयुधो का सभी बमवर्षक विमान धराशायी हो जायेंगे बंदूकों की नालियां हो जाएँगी बंद फौजों के बूटों के तलवो में लगी गिट्टियाँ घिस जाएँगी और तोपों के गोले हो जायेंगे फुस्स अंतर की दीव..  काश...  जीवेम शरदः शतम" किसकी तमन्ना है? ..मेरी तो क़तई नहीं! काश मैं तितली होती, भोर की किरण में पैदा. दिन भर उड़ती आज़ाद, खुली हवाओं में ताज़ी. रंग-बिरंगे फूलों से खेलती, छेड़ती, रस उनका पीती. गाँव की होती त...  आखिर कुछ पुरुषों/लड़कों के अंदर ही एक जानवर क्यूँ निवास करता है  गुवाहाटी में जो कुछ भी उस शाम एक बच्ची के साथ हुआ...ऐसी घटनाएं साल दो साल में हमारे महान देश के किसी शहर के किसी सड़क पर घटती ही रहती हैं. बड़े जोरो का उबाल आता है...अखबार..टी.वी...फेसबुक..ब्लॉग पर बड़े ती... 

जिंदगी कुछ इस तरह भी ..  रेल का एक सफर ....जो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता हैं ......सफर तय हैं ..और मंजिल भी ...पर राह में मिलने वाले लोग अनजान ही रहते हैं हमेशा ....सोच का क्या हैं ...कुछ भी देखो ...वो दिमाग में घूमती हैं ....  हम ब्लोगर हूँ.  ब्लोगर बनना आज कल का नया-नया फैशन हो गया है । अगर जे कौनो काम नहीं है आपके पास, तो कौनो  'चींते की बात नहीं', ब्लॉग्गिंग ऐसा परमानेंट काम है, जिसमें रिटायरमेंट का भी चान्स नहीं है,  बस दायें-बायें दो-चार महा...  धत् तेरे साहित्य की  पेंटिंगः मोरन डेनन आप जिसके प्रति जवाबदेह हैं उसी को बताएं, लेकिन बताएं *-रंजीत वर्मा* गुंटर ग्रास की कविता ’’जो कहा जाना चाहिए’’ जब हिंदी में अनुदित होकर आई, तो इसने अपनी तरह से एक बहस खड़ी की। इस कविता के... 

रोग-राई हरे बर हरेली खेती किसानी अउ बनि-भूति म रमे लोगन बर तिज-तिहार एक ठीन खुशी के ओढऱ भर नोहय बल्कि अइसन परब अउ रित रिवाज ह समाज म कोनो न कोनो किसम के संदेसा लानथे। मेहनत मजूरी म लगे लोगन ल वइसे बाहिर के दुनियां ले काहीं ले... प्यारे दलितो, टायलेट साफ़ कर दो न प्लीज साहब अमूमन हमारा मुंह काला होता नही। कारण कि यह शर्म की तरह है, आये तो ठीक, न आये तो ठीक। लेकिन आमिर खान के दलित समस्या के उपर किये कार्यक्रम में जो नंगी सच्चाई सामने आई। उससे मैं नही समझता कि मुंह काला हो... स्वाध्याय एवं चिंतन मनन से सब कुछ संभव है .... स्वाध्याय एवं चिंतन मनन की महत्ता का प्रतिपादन भारतीय ग्रंथों में विस्तारपूर्वक किया गया है . मनुस्मृति ३/७५ में स्पष्ट उल्लेख किया गया है " *स्वाध्याये नित्ययुक्त: स्यात* " इसका अर्थ है स्वाध्याय में नित्...

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वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद………राम राम

11 टिप्पणियाँ:

बहुत ही सुन्‍दर 'वार्ता' है। काफी कुछ समझने की धरती तैयार उपलब्‍ध करा देता है आपका परिश्रम। आपके परिश्रम को नमन और धन्‍यवाद।

सुन्‍दर 'वार्ता' ललित जी

छत्तीसगढ की विधान सभा में स्थानीय भाषा को स्थान मिला, जान कर बहुत ख़ुशी हुई..
बाकी लिंक्स तो आप हमेशा ही बहुत मेहनत से, चुन-चुन कर लगाते हैं..
धन्यवाद

बहुत सुंदर वार्ता ..

आभार ललित जी !!

आप ही आप नजर आते हैं.

बहुत बढ़िया वार्ता ललित जी....
सभी लिंक्स पढ़ लिए.

शुक्रिया
अनु

बढ़िया वार्ता ललितजी... आभार

बहुत खूबसूरत लिंक संयोजन्।

काफी सरे लिंक्स हैं. आभार.

आज तो सूत्रों की सुन्दर लड़ी लगी है...

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