बुधवार, 4 जुलाई 2012

जीवन के रंग संग कुछ तूफां ,बेचैन हवाएं ----------- ब्लॉग4वार्ता ------- ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार, सावन मास में भगवान शिव के ज्योर्तिलिंगों में पूजा करनेके लिए भक्तगणों की भीड उमड पडती है. इस मौके पर झारखंड के देवघर जिले में स्थित कामना ज्योर्तिलिंग की विशेष महत्ता है. मान्यता है कि यहां कामना करने से भगवान शिव उनकी पूर्ति जरूर करते हैं. झारखंड स्थित बैद्यनाथ धाम जिसे हृदयपीठ भी कहा जाता है अपने आप में अनूठा है. भक्तगण यहां से करीब 105 किमी दूर स्थित सुल्तानगंज के उतरवाहिनी गंगा से गंगा जल लाकर अभिषेक करते हैं. यह मंदिर 72 फीट उच्चा है एवं एक ही चट्टान से बना है, मान्यता है कि स्वयं भगवान विष्वकर्मा ने इसे बनाया था. रावण से संबंध होने के कारण इने रावणोश्वर महादेव भी कहते है. 22 मंदिरों वाले इस परिसर में महादेव मां के हृदय पर विराजमान है. मंदिर के शीर्ष पर त्रिशूल की जगह पंचशूल है जो काम क्रोध लोभ मद एवं मोह से मुक्त होने का प्रयास है. यह शरीर के पंचभूत क्षिति जल, पावक, गगन एवं समीर को निरूपित करता है. सामाजिक सौहार्द ऐसा कि शिवलिंग का नाग मुकुट वहां के जेल के कैदी ही तैयार करते हैं. सुल्तानगंज जहां से जल लिया जाता है वहां जहवानु मूनि का आश्रम था एवं उसका प्राचीन नाम गंगापुरी था. यहां अजगबी नाथ का पवित्न मंदिर है जिसका मतलब शिव से है जो गुप्त है। सभी मित्रों को श्रावण मास की शुभकामनाएं……आइए अब चलते हैं आज की वार्ता पर………

जीवन के रंग.संध्या वेला जीवन की हिसाब लगाया कितना कमाया क्या गंवाया  कमाया...? धन, ऐश्वर्य, मान गंवाया ...? स्नेह - सुख,अपनों  का साथ आयु घटी  बढ़ा धन अपने हुए दूर हाथ लगे बस चार क्षण दुःख मनाऊँ, अभिमान करूँ या स्नेह दूँ, सुख दूँ उन्हें जो कबके आगे निकल गए मुझे अकेला छोड़ किनारे नफे घाटे का हिसाब जोड़ते ....उसकी आँखों मै ख़ुद को लगी नई मैंआज फिर कुछ बिखरे मोती संजो लाइ हू कुछ पक्के होंगे कुछ नकली से लगे शायद ....पर कहीं न कहीं तो सजाने के काम आए हैं १.आइना अब तलक अजब सा अक्स दिखाता था , उसकी आँखों मै ख़ुद को लगी नई मैं उसके आने से  कुछ तूफा ,बेचैन हवाएं कुछ तूफा ,बेचैन हवाएं रुख ही मोड़ देते है साहिल क...: कुछ तूफा ,बेचैन हवाएं रुख ही मोड़ देते है साहिल का जो कश्ती थी बह रही ख़ामोशी से दिशा ही बदल देते हैं माझी जो समझा था बस अब सामने ही 

अपने चिंकी तिब्बती चेहरे के अलावा मैं भारतीय ज़्यादा हूँतिब्बत के युवा विद्रोही कवि तेनजिन त्सुंदे की कुछेक कविताएं आप कबाड़खाने में पहले पढ़ चुके हैं. आज पेश है उनका लिखा एक लेख जिसे २००१ का आउटलुक-पिकाडोर नॉन-फिक्शन अवार्ड मिला था. निर्णायकों ने इस निबंध को “छू...नाटकों के वर्गीकरण का लफड़ाएकल और ग्लोबल कूड़े का रंगमंच *- पुंज प्रकाश*घटनाओं को लेकर बढ़ती अनभिज्ञता अन्याय को मुख्य रूप से आश्रय देती है | - सालाविनी ( इतालवी लोकतंत्रवादी ) एकल नाट्य प्रस्तुति का अर्थ अमूमन ये लगाया जाता ...कैसे मान लूँ बोलो तो, कोई पासबाँ नहीं मेरा...ये तस्वीर कनाडा में Banff नेशनल पार्क की है... ये ज़मीं नहीं मेरी, वो आसमाँ नहीं मेरा ठहरी हूँ जहाँ मैं आज, वो जहाँ नहीं मेरा होगा क्या जुड़ कर भी, उस अनजाने हुज़ूम से  वो लोग नहीं अपने, वो कारवाँ ...

जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य  भारत में हिन्दुओं के चार धाम - बद्रीनाथ, रामेश्वरम्, द्वारिकापुर और जगन्नाथपुरी - के बारे में भला कौन नहीं जानता होगा? राष्ट्रीय एकता और सद्भाव के लिए इन चार धामों एवं द्वादश ज्योतिर्लिंगों की स्थापना आद... ब्लॉगर का रिपलाई कमेंट   गूगल खोज ब्लॉगर ने थ्रेडेड टिप्पणियों का विकल्प शुरु किया है जिसके अंतर्गत आप अपने प्रश्न का... [यह लेख का सारांश है, पूरा पढ़ने के लिए फ़ीड प्रविष्टी शीर्षक पर चटका लगायें...]  परमार्थी कर्कशता  कूंकती कोयल की वाणी मुग्ध सुनता रह गया राहगीर कोयल अपने लधु शिशुओं को पटक गयी कौए के घोंसले में | कर्कश कौआ ला रहा था छोटा छोटा दाना अपने नन्हें बच्चों के लिए एक क्षण राहगीर को भी लगा यूं स्वार्थी... 

गर्मी छुट्टी डायरिज़ समापन  गर्मी छुट्टियों से वापस आने का अफ़सोस ज़्यादा इसलिए सालता है क्योंकि पूरब में आषाढ़ के आगमन की आहट छोड़कर हम भट्ठी में झोंक दिए गए हैं। फिर छुट्टियां ख़त्म होना यूं भी किसे रास आता है? जैसे-जैसे जाने की घ...  .कहीं ऐसा तो नहीं  कहीं ऐसा तो नहीं की हम इस दुर्लभ जीवन के अनमोल क्षणों को गवा रहे है ? दुनिया की चकाचौंध में तो क्यों न हम स्वयं में झांके , की हम कितने पानी मैं है | कहीं ऐसा तो नहीं की हम अटक गए है आलस्य में , ...  छूटी सारी सोच पुरानी  आज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आप सभी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें....  छूटी सारी सोच पुरानी: आज से कुछ वर्ष पूर्व जब पहली बार मैंने ‘ आर्ट ऑफ लिविंग ’ का बेसिक कोर्स किया , तब श्री श्री रविशंकरजी के ना... 

कुछ बातें हैं दिल की  सच" कुछ बाते हैं दिल की, एक एक करके कहता हूँ, एक एक करके समेट लूँगा । "सच" यकी रख कोई आने से रहा, चल आज घर को फिर से सजाते हैं। "सच" मुझे अब समझाना नहीं, अँधेरे जहाँ ले चले मुझे जाने दे। "सच" कभी वक्त नि...  विज्ञान और कला: एक अध्ययन अमरीका/कनाडा में रहना अलग बात है और भारत में रहना अलग. इससे भला कौन न सहमत होगा. जो न होगा वो मूर्ख कहलायेगा और मूर्ख कहलाना किसी भी भारतीय को मंजूर नहीं- वो बिना अपनी इच्छा के भी सहमत हो जायेगा मगर मूर्... पथ से राजपथ तक ... पथ से जन-पथ ,* *राज-पथ तक की* *यात्रा ,* *विजेता की तरह हो गयी .....* *कितनी घटनाएँ ,दुर्घटनाएं ,* *उत्पन्न की ,* *निस्तारित की ... /* *उखाड़े ,दफनाये गए * *गैर- जरुरी मसले ..* *छिपाए खंजर ,* *खंजर क...

छूम छनन नन छन छन ......  आई ....सावन ऋतू आई ..भरमाई.. सुघड़ नार सी बलखाई ..बौराई ...इठलाई ... फिर ...शरमाई ...!! फिर घूम घूम ..झूम झूम ...घटा छाई ...!! काहे बुंदियन बरसान आई ...?? खिल-खिल लजाई ... रस फुहार लाई ...!! आई आ  प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर   मनसर (मणिसर) की ऊंचाई समुद्र तल से 280 मीटर है, यह स्थान 21.24' N एवं 79.1' E अक्षांश देशांश पर स्थित है। हमें पहाड़ी के रास्ते में पाषाण कालीन उपकरण दिख रहे थे। यहाँ प्राचीनतम अवशेष, प्रच...  शंख-सीपें   कहाँ जाये बिचारे जीव ये इंसान के मारे , * न दाना है न पानी है ,न छोड़ीं डालियाँ तरु की , बना कर नीड़ नन्हा-सा , शरण पा लें निशा भर की . कहाँ है चाँदनी अब तो समझ में ही नहीं आता , कि नकली रोशनी ने रात-दिन ... 

वार्ता को देते हैं विराम्……मिलते हैं ब्रेक के बाद

10 टिप्पणियाँ:

शुभप्रभात ललित जी ...बढ़िया वार्ता ....बहुत आभार मेरी रचना को स्थान मिला ...!!

अच्छे लिंक्स, बढ़िया वार्ता... 'जीवन के रंग' को स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार...

्बढिया लिंक संयोजन्।

प्रिय ललित जी अभिवादन ...बहुत सुन्दर लेख और सुन्दर चिट्ठों और रचनाओ का लिंक ...खूबसूरत रही ये साहित्य यात्रा ....
हमारे ब्लॉग' प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच 'से आप ने 'परमार्थी कर्कशता' को चुना देख कर ख़ुशी हुयी आभार
भ्रमर ५

अच्छी लिंक्स बढ़िया वार्ता |
आशा

...बढ़िया वार्ता
हमे स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार...ललित जी

वार्ता के लिंक्स अच्छे लगे।

बहुत अच्छे लिंक्स मिले -आभार आपका ,
'शंख-सीपें भी काम में आ गई ,इसके लिये भी !

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