बुधवार, 18 जुलाई 2012

निगलने से पहले देख ख़ून से हैं तर-ब-तर रोटियां...ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार...एक बार फिर महंगाई आंकड़ों में घट गई है. घटी दर 7 .55  से 7.25  पर आ गई है. अब सवाल यह उठता है कि आंकड़ों में घटी इस दर का असर बाज़ार में कब दिखेगा?  उधर सनातनकाल से भारत कि जीवनदायिनी रही गंगा मैया का जीवन संकट में आ गया है. उद्गम स्थल गोमुख से गंगा कि धारा का बंद हो जाना प्रकृति की नाराजगी का संकेत है, एक अनिष्टकारी कुदरती संकट, गंभीरता से सोचने और उसपर अमल करने का वक़्त आ गया है, वर्ना प्रकृति के कहर से बचना नामुमकिन हो जायेगा... अब चलते हैं ब्लॉग 4  वार्ता पर कुछ चुनिन्दा लिंक्स के साथ... 
खुश्क आँखें अब नम नहीं होतीं मेरी आँखें ज़िंदगी की तपिश ने कर दिया है खुश्क उनको अब तो जब भी झपकती हूँ पलक तो होता है बस एक एहसास चुभन का । ( आँखों में कुछ दिनों से जलन का एहसास हो रहा था ...कैसे होगा ये प्यार प्रिये ? नया बसाएं अपना संसार प्रिये करे प्रेम प्रीत और प्यार प्रिये तुम चिड़िया सी चहक जाना मै भवरे सा गुनगुनाऊंगा तुम चांदनी को आँचल देना मै सूरज की किरने लाऊंगा महक जाएगा घर बार प्रिये करे .. तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए *तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए* *हम तो बरसों-बरस अन्धेरे में रहे * * * *साथ चलते हुए यूँ भी अक्सर* *अजनबी भी बन जाते अपने * *ये कैसे सफ़र पे हम तुम* *दिन रात के फेरे से रहे * *तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए *...

गलतियाँ नयी हों अथवा.. जब से सुनना और सुने हुए को समझना आया , एक बात अक्सर सुनी कि " इंसान गलतियों का पुतला है " ...... अब तो सुनते-सुनते अभ्यासवश इस उक्ति को स्वीकार भी कर लिया है ! अब बस एक बहुत छोटी सी चाहत अक्सर .. जिंदगी सिगरेट का धुंवा ... .मुझे याद है धुंवे के छल्ले फूंक मार के तोड़ना तुम्हें अच्छा लगता था लंबी होती राख झटकना बुझी सिगरेट उंगलियों में दबा लंबे कश भरना फिर खांसने का बहाना और देर तक हंसना कितनी भोली लगतीं थीं ...ख्वाब क्यूँ?……………एक प्रश्नचिन्ह ? ख्वाब क्यूँ? एक प्रश्नचिन्ह ? बात तो सही है क्यूँ देखें ख्वाब? क्या जरूरी है ख्वाब पूरे हों ही मगर फिर भी ख्वाब तो देखे जाते हैं शायद उन्ही के सहारे ज़िन्दगी गुजार जाते हैं आधी अधूरी सी अधखिली सी ज़िन्दगी...

प्राकृतिक संसाधनों का नियंत्रित दोहन जरूरी है. आज समाचार पत्र में दो ख़बरें पढ़ीं .दोनों ही ख़बरें अगर सोचा जाये तो बहुत गंभीर चेतावनी देती हैं नहीं तो सिर्फ ख़बरें हैं. पहली खबर है नॅशनल जियोग्राफिक सोसायटी के एक सर्वे के बारे में है जो बताती है कि...ख़ून से हैं तर-ब-तर अनेक रोटियां ! यार ! निगलने से पहले देख रोटियां ! ख़ून से हैं तर-ब-तर अनेक रोटियां ! बस्तियां हिंदू-मुसलमां , जिसकी भी जलें आग कैसी भी कहीं हो ; सेंक रोटियां ! पाप पुण्य में बदलले ! झूठ सच बना ! चमचमाती-खनखनाती फेंक ... रोटी की कहानी रोटी के लिए तडफते नंगे बच्चे की तस्वीर लाखो में बिक गई ....?? रोटी की कहानी .. *************************** तुम जरा भी अचरज न करना सुनकर एक सच्ची कहानी ... 

आई देश में आंधियाँ.... अब डराने लग गई परछाइयाँ दूर होती जा रही अच्छाइयाँ , लोग कीचड फेकने आते सामने मौन होती है सब किलकारियाँ, तोड़कर दर्पण जो बगलें झांकते बिन बुलाये आती है कठनाइयाँ, दोस्ती के नाम पर जब विष घुले नष्ट हो जाती ... .........आज कुछ बातें कर लें .इस नाटक में ऐसे कई प्रसंग उन गहन अंतर्सत्यों को उद्घटित करते हैं जो रावण के प्रति अब तक की हमारी मान्यताओं और धारणाओं पर प्रश्न चिन्ह लगा, सुधि दर्शकों एवं पाठकों को एक पुनर्विश्लेषण क... .रह गई हो कोई बात दो बेवजह की बातें जो पड़ी रह गई ड्राफ्ट में जैसे किसी को कहते कहते रह गई हो कोई बात दूसरे पैग के बाद खरगोश ने कहा मुझे नहीं मालूम कि तनहा क्यों हूँ. ये भी नहीं पता कि किसी को चाहने से कोई किस तरह ह...

ये इशारे हैं उसी के .ये इशारे हैं उसी के वह जो धुन गहरे तक उतर जाती है कूक कोकिल की रह-रह के सताती है ये जो रातों को झांकते हैं तारे चाँदनी झरोखे से बिछौने पे बिछ जाती है और... झीलों में जो खिलते हैं कमल तिरें फूल... .ये खुदा तू मिला दे.... .*दो छोटी कविता है कुछ पंक्तियों की * *दर्द एक ही है बस शब्द भिन्न है.* *आप ही बताएं की बेहतर कौन सा है ?* *(१)* *काश ये * *ज़ालिम जुदाई ना होती,* *रब तुने दिल * *चीज बनाई ना होती,* *ना हम उनसे * *मिलते ना म..“तुमने क्या क्या है?” इस अजीब सी दिल की पुकार से मैने जो तुम्हारे अतीत को परछाईं की तरह बदल कर सोचा था की तुम सदा हमारे प्यार की निशब्द मिठास को जीवन मे उतार इन जज्बातो को बदल भाव के संगीत मे मंगल यापन करोगी। तुमने हमारे उन्माद....

समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष ... ज्‍योतिष के बारे में जन सामान्‍य की उत्‍सुकता आरंभ से ही रही है , गणित ज्‍योतिष के क्षेत्र में हमारे ज्‍योतिषियों द्वारा की जाने वाली काल गणना बहुत सटीक है। पर इसके फलित के वास्‍तविक स्‍वरूप के बारे में लो... कुछ बूंदे उम्‍मीद की !!!  कुछ बूंदे उम्‍मीद की बरसी हैं बादलों से झगड़कर आईं हैं धरती पर प्‍यास बुझाने उसकी मिलकर माटी से हो गई हैं माटी सोंधेपन की खुश्‍बु जब लिपट गई गई झूम के बयार से सावन ने हथेली में लिया प्‍यार से उम्‍मीद ...प्यासा मन  प्यासी धरती प्यासा सावन प्यासा पपीहे का तन मन घिर आई काली बदरिया पर वह न आए आज तक आगमन काली घटाओं का नन्हीं जल की बूंदों का हरना चाहता ताप तन मन का पर यह हो नहीं पाता अब है हरियाली ही हरियाली जहाँ ...

ज़ख्मये कौन डूब गया और उभर गया मुझमें  ये कौन साये की सूरत गुज़र गया मुझमें, ये किसके सोग में शोरीदा हाल फिरता हूँ  वो कौन शख्स था ऐसा कि मर गया मुझमें, अजब हवा-ए-बहारां ने चारासाज़ी की वो ज़ख्म जो ..गहूँ - गहूँ पीली - पीली उगूँ - उगूँ सीली - सीली बहूँ - बहूँ चली - चली रुकूँ - रुकूँ कली - कली फिरूँ - फिरूँ मिली - मिली कहूँ - कहूँ खिली -खिली दिखूँ - दिखूँ घड़ी - घड़ी पगूँ -... हरियाली अमावस: टोनही मंत्र शोधने का दिन धरती हरियाली से मस्त सावन का महीना प्रारंभ होते ही चारों तरफ़ हरियाली छा जाती है। नदी-नाले प्रवाहमान हो जाते हैं तो मेंढकों के टर्राने के लिए डबरा-खोचका भर ...
 
मिलते हैं अगली वार्ता में तब तक के लिए नमस्कार ............

16 टिप्पणियाँ:

सुन्‍दर। बहुत ही सुन्‍दर। उतनी ही रोचक भी।

संध्या जी, वार्ता सटीक और समसामयिक है|मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |

उम्दा लिंक संजोए हैं संध्या जी …… आभार

बढ़िया ...बहुत बढ़िया वार्ता संध्या जी....
कुछ लिंक्स जो बाकी रहे अब देखती हूँ.....

आपका शुक्रिया
सस्नेह
अनु

khubsurt warta link .. meri rachna ko apne link me shamil karne ke liye aabhar .. hareli tyohar ki badhai ... sandhya ji

बहुत सुंदर लिंक्स,
अच्छी वार्ता

रोचक चर्चा ... बेहतरीन लिंक ... शुक्रिया मुझे भी शामिल करने का ..

बहुत ही बेहतरीन लिंक्स का संचयन किया है आपने..
बेहतरीन ब्लॉग वार्ता:-)

वाह ... बेहतरीन लिंक्‍स लिये बेहतरीन प्रस्‍तुति ... आभार

शुक्रिया जज़्बात की पोस्ट 'ज़ख्म' को यहाँ साझा करने का.....पर मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिली वो तो मैंने अनायास ही यहाँ देख लिया।

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