सोमवार, 9 जुलाई 2012

पहली बारिश में ओह ! फिर बिजली चली गयी ... ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

आप सबों को संगीता पुरी का नमस्‍कार , सावन की शुरूआत हो गयी है , दो चार दिनों से बारिश भी तन मन को भिगो रही है। गर्मी के मौसम से परेशान लोगों को बारिश की फुहारों का इंतजार रहता है , आज की वार्ता में बारिश के कई रंग देखने को मिलेंगे , इंतजार से लेकर परेशानियों तक के ....
बारिश......

बारिश के आने का तो हर कोई इंतजार करता है. लगता है छम छम करते आएगी.
खूब गिरेगी. पहले धरती को, पेड़ों को, नदियों को और फिर हमारे मन को भिगो देगी.
पर अभी तक आई नहीं.जाने क्यों रूठी हुई है कहाँ बैठी है?
हम भी जानते हैं ज्यादा देर नहीं रूठेगी. आ ही जाएगी.
कब गरमी की रुत जाय

दिन दिन गर्मी के तेवर से
तन मन जन घबराय।
कब गरमी की रुत जाय।
लाय भरी जब चले पवन
तन मन पिघला जाये।
जेठ दुपहरी तपे अगन सी
रैन अषाढ़ जलाये
बचपन जाने कहा ग्रीष्‍म कहा 
धूप तपन और लाय।
बदलते मौसम
जब ज्यादा गर्मी पड़ती है
तो कितनी मुश्किल बढती है
बार बार बिजली जाती है
पानी की दिक्कत आती है
और जब आती बारिश ज्यादा
वो भी हमको नहीं सुहाता
सीलन,गीले कपडे, कीचड
और जाने कितनी ही गड़बड़
और जब पड़ती ज्यादा सर्दी
तो मौसम लगता बेदर्दी
तन मन की ठिठुरन बढ़ जाती
गरम धूप है हमें सुहाती
आशा की डोर
आसमां को देखते थे रोज इस उम्मीद से,
घुमड़ कर बादल घिरें,और छमाछम बरसात हो
ताकते थे अपनी खिड़की से हम छत पर आपकी,
दरस पायें आपका और आपसे कुछ बात हो
बादलों ने तो हमारी बात ससरी मान ली,
और वो दिल खोल बरसे, बरसता है प्यार ज्यूं
हम तरसते ही रहे पर आपके दीदार को,
आपने पूरी नहीं की,मगर दिल की आरजू
हो गयी निहाल धरती ,प्यार की बौछार से,
सौंधी सौंधी महक से वो गम गमाने लग गयी
और हम मायूस से है,मिलन के सपने लिये,
सावन की पहली झमाझम मानसूनी वर्षा

"हे भगवान इंह साल तो काफी तरसा रिहयो है के काळ ही गेरग्यो के? जेठ गयो साढ़ गयो और अब सावण भी जाण लाग्यो अब तक कुनी बरस्यो" ये ही बात हर किसान के मुँह पर सुनाई दे रही थी "शायद भगवान ने आज उनकी पुकार सुन ली ,आज से झुन्झुनूं जिले में मानसुनी वर्षा की शुरूवात हो गई
काफी दिन से बारिश की बाट देखते देखते आज आखिर कार भगवान हमारी नगरी पर मेहरबान हो ही गया और इस साल की पहली मानसूनी वर्षा कर दी और वैसे कहे तो सावन मास की भी पहली बारिश हुई
" गर्जत बरसत साहब आयो रे "

सावन का महीना मुझे तो बहुत अच्छा लगता है | कभी तेज़ तो कभी धीमी पडती बौछारें लगता है किसी सखी ने राहें रोक कुछ प्यारा सा गुनगुना दिया हो | इधर दो - तीन दिनों से अनवरत पड़ने वाली फुहारें ही एक नया उत्साह सा जगा रही हैं | जाने कितने भूले - बिसरे गीत यादों में दस्तक दे रहें हैं | सावन की सबसे बड़ी खासियत इसका संगीतमय रूप है ... इसमें फ़िल्मी गीत तो है ही कजली भी खूब याद आती है |
झूले पर अथवा बिना झूले के भी सब सावनी गीतों का आनन्द लेते हैं | अपनेराम भी सुबह से ही कई गीत बिना कमर्शियल ब्रेक के गुनगुना रहें हैं | इसमें "टिप टिप बरसा पानी " ,"सावन के झूले पड़े ", "बरसों रे मेघा ", "बरसात में हम से मिले तुम " जैसे कई गीतों के बाद , जैसे ही अगला गीत "गर्जत बरसत सावन आयो रे " शुरू किया भूकम्प के झटके से महसूस हुए |
बारिश का वो दिन, भरोसा......
एक कहावत है कि देहरादून की बरसात का कोई भरोसा नहीं है। देहरादून में कब बारिश हो जाए, यह कहा नहीं जा सकता। आसमान में धूप होगी और लगेगा कि अभी गर्मी और सताएगी। फिर अचानक हवा चलने लगेगी। मौसम करवट बदलेगा और बारिश होने लगेगी। बारिश भी ऐसी नहीं होती कि पूरा दून ही भीग रहा हो। कई बार तो शहर के एक हिस्से में बारिश होती है, तो दूसरे कोने में धूप चमक रही होती है।
बारिश यदि न हो तो इंसान परेशान और यदि ज्यादा हो तो तब भी व्यक्ति परेशान हो जाता है। ज्यादा बारिश अपने साथ आफत लेकर आती है। फिर भी बारिश इंसान के लिए जरूरी है। तभी तो बारिश को लेकर कई रचनाकारों में काफी कुछ लिखा है और प्रसिद्ध हो गए। बरसात में सूखी धरती हरी भरी हो जाती है। किसानों के चेहरे खिल उठते हैं। प्रकृति भी मनोरम छटा बिखेरने लगती है।
पहली बारिश में….
रात अचानक
बड़े शहर की तंग गलियों में बसे
छोटे-छोटे कमरों में रहने वाले
जले भुने घरों ने
जोर की अंगड़ाई ली
दुनियाँ दिखाने वाले जादुई डिब्बे को देखना छोड़
खोल दिये
गली की ओर
हमेशा हिकारत की नज़रों से देखने वाले
बंद खिड़कियों के
दोनो पल्ले
मिट्टी की सोंधी खुशबू ने कराया एहसास
हम धरती के प्राणी हैं !
ओह ! फिर बिजली चली गयी
गूंज रही मधु सम इक कूक
भोर सुहानी, तपती धूप,
जाने किस मस्ती में ड़ूबे
नन्हें शावक, सुंदर रूप !
बिजली-बिजली करता मानव
वे तपती दोपहर में गाते,
सर्दी, गर्मी, हो बहार या
सारे मौसम इनको भाते !
सावन - 2 हाइकु

सावन आया
मेघा कहाँ हो तुम
आ भी जाओ ना
2
कटते वन
ना मेघ ना घटाएँ
रूठा सावन
कविता:: 'बारिश ' --शिशिर साराभाई

बारिश आती है, तो कितनी यादें साथ लाती है
सौंधी खुशबू के साथ, कभी अमराई साथ आती है
कभी फूलों से भरे घर के बगीचे की याद आती है
कभी तेरे-मेंरे बीच की प्यारी बात गुनगुनाती है
बारिश आती है, तो कितनी यादें साथ लाती है
पहाड़ों पर कभी जब टूट कर बरसात होती है....
पहाड़ों पर कभी जब
टूट कर
बरसात होती है
तो पहले बादल घिर आते हैं
दिन में रात करते हैं
आज बस इतना ही .. मिलते हैं एक ब्रेक के बाद ......

12 टिप्पणियाँ:

अरे वाह? बिना बरसे बीत गए आषाढ और अब तक सूखे सावन के बीच, शुक्र है, कहीं तो बरसात है!

आपके परिश्रम को प्रणाम। आनन्‍ददायीहै।

सावन अभी बाकी है ,बारिश की आशा अभी बाकी है
ना हो उदास 'जीवन अभी काफी है
आशा

आज की ब्लॉग वार्ता सावनमय हो गयी..

आपकी वार्ता का अंदाज़ ही अलग होता है. सावन की काव्यमयी वार्ता के लिए आभार संगीता जी.

अहा यहाँ तो भारी बारिश हो रही है, सावन के झूले, मिट्टी की सौंधी सी खुशबू भी है लेकिन ये क्या फिर बिजली चली गई :))... वाह संगीताजी इस सुन्दर सी भीगी -भीगी वार्ता के लिए आपका आभार....

भीग गए हम भी.............
शुक्रिया संगीता जी.

सादर
अनु

बारिश की फुहारों सी भीगी भीगी यह वार्ता बहुत अच्छी लगी संगीता जी ! आभार आपका !

बारिश स्पेशल पोस्ट के लिंक की प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी

क्या मानसून आया है वार्ता पर ..वाह..

आज की वार्ता में झमाझम बारिश हुयी ... बढ़िया वार्ता

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