गुरुवार, 26 जुलाई 2012

आँखें मज़बूर सही दिल तो मज़बूर नहीं ---- ब्लॉग4वार्ता …… ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार,  प्रणव मुखर्जी ने भारत के 13 वें राष्ट्रपति के रुप में शपथ ग्रहण कर ली। उन्होने अपने भाषण में कहा कि भूख से बड़ा कोई अपमान नहीं है। राष्ट्रपति का आसन ग्रहण करने पश्चात उन्होने  देशवासियों के नाम संदेश में कहा कि आपने मुझे जो उच्च सम्मान दिया है उससे मैं अभिभूत हूँ, यह सम्मान इस पद पर बैठने वाले को आनंदित करता है और उससे यह भी अपेक्षा करता है कि वह देश की भलाई करते हुए व्यक्तिगत अथवा पक्षपात की भावना से उठ कर कार्य करे…… महामहिम राष्ट्रपति महोदय को ब्लॉग4वार्ता की तरफ़ से शुभकामनाएं एवं बधाई…… अब चलते हैं आज की वार्ता पर, प्रस्तुत हैं कुछ चिट्ठों की कहानी……… 

कहानी- बोनसाईजब तुम नहीं थीं, तब मैं तुम्हारा होना चाहता था. एक साया सा दाखिल होता था ख्यालों में. उसका कोई चेहरा नहीं होता था. लेकिन उस अनजाने साये से लिपटकर मैं खूब रोता था और मां के पूछने पर कि क्यों आंखें सूजी है..."शब्दों के अरण्य में"पिछले दिनों बहुत ही खुबसूरत साज-सज्जा के साथ मेरे प्रिय प्रकाशन संस्थान * "हिंद-युग्म"* से प्रकाशित व* श्रीमती रश्मि प्रभा* द्वारा सम्पादित, उनके नजरो में 60 श्रेष्ठ रचनाकारों की पुस्तक *"शब्दों के अर...तू मेरे साथ ना हों मौत भी मंजूर नहीं!!तू कहीं दूर है लेकिन तू कहीं दूर नहीं!! आँखें मज़बूर सही दिल तो मज़बूर नहीं!! तू मेरी साँसों में बसा है ऐ हमदम मेरे!! पास दिल के है सदा तू कहीं दूर तो नहीं!! तेरी पलकों में छिपी हूँ है ये मालूम तुझे!! ...

आदमीआदमी को कर रहा है, तंग आदमी, सभ्यता सीखा गया बे-ढंग आदमी, कोशिशें कर-2 हुआ है, कामयाब अब, आसमां में भर रहा है, रंग आदमी, देख के लो हो गयीं, हैरान अंखियाँ, ओढ़ बैठा है, बुरा फिर अंग आदमी, सोंच के ना...शह-मात ...लिखते रहो ..... लिखते रहो ..... लिखते रहो गर लोग मौन बने रहे, तो शब्द बोलने लगेंगे ? ... उसने पहले, दूर से ....... मुस्कुरा कर शह दी और फिर, पास आ के छू-कर मुझे मात दे दी ! ... न जाने क्या हुआ ऐं...हर पथिक पवन बन जाता हैधर्म समझ कर, कर्म किया तो कर्म हवन बन जाता है मानवहित में कहा गया हर शब्द भजन बन जाता है सेवाओं के स्वर्णशिखर पर पहुँचने वाले जान गये जनहित के पावन पथ का हर पथिक पवन बन जाता है * ...

सर के उड़े बाल -- कभी वापस नहीं आते ?जैसे किसान को अपनी लहलहाती फसल को देख कर और पिता को अपने ज़वान होते बेटे को देख कर आनंद आता है, वैसे ही एक पुरुष के सर पर काली जुल्फों की छटा देख कर आनंद आता है *. कॉलिज के दिनों में जब अपनी बुल्लेट पर मौन सी एक सुबह .मेरी चूड़ी सी ... वर्षा की बूंदो मे है खनखनाहट .... मेरी बिंदिया सी .. तुम्हारे चेहरे पे है मुस्कुराहट... अदरक की चाय सी .... सुबह में है खुश्बू.... खड़खड़ाता हुआ अख़्बार ... सुर लहरी छेड़ रहा है ... तु...काल चिन्तन- २जाति-प्रथा और छुआछूत के विकृत स्वरुप का अनुभव करने के लिए हमें डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर की आत्मकथा पढ़नी होगी. वे सही मायने में शूद्रों/दलितों के प्रतिनिधि व मसीहा थे. इसलिए वर्तमान भारतीय संविधान की संरचन...

हम मोहब्बत का छप्पर उठाते रहे...वो दीवार हरदम ही ढाते रहे... हम मोहब्बत का छप्पर उठाते रहे.... जब वो कह के गये थे, मिलेंगे नहीं... फिर भला क्यूँ वो ख्वाबों में आते रहे... एक रिश्ते की यूँ भी कहानी रही... वो निभा न सके, हम निभाते रहे... ...नेपाल यात्रा- दिल्ली से गोरखपुरइस यात्रा का कोई इरादा नहीं था। अचानक इतनी जल्दी सबकुछ हुआ कि मैं समझ ही पाया कि हो क्या रहा है। पिछले महीने ही गौमुख तपोवन गया था, आठ दिन की छुट्टी ली थी, अगले महीने अगस्त में भारत परिक्रमा पर निकलना है, ...चांदनी की अभिलाषा भारतीय हॉकी से लंदन ओलम्पिक आरंभ होना ही चाहता है। बरसों तक भारतीय जिस एक स्वर्ण से आश्वस्त रहे वह हॉकी से आता था। आज भी हर भारतीय के मन में एक हूक उठती है कि चाहे कुछ भी हो एक पदक तो हॉकी से आना ही चाहिए। हॉक...

नर्मदा मंदिर अमरकंटकरामघाट नर्मदा नदी अमरकंटकप्रारंभ से पढें कार में पड़े-पड़े नींद कम आयी और अलसाए अधिक। कच्ची नींद की खुमारी लिए सुबह हुई। कार से बाहर निकले तो सूरज का रथ धरा पर आ रहा था। हमने कार रामघाट पर लगाई, बाहर निकलत...उर्वशी, एक कथाकथाओं का अपना संसार है, सच हों या कल्पना। उनमें एकसूत्रता होती है जो पात्रों को जोड़े रहती है। कथा में पात्रों का चरित्र महत्वपूर्ण है या परिस्थितियों का क्रम, कहना कठिन है, क्योंकि दोनों ही ऐसे गुँथे रहत...आदमी सिर्फ आदमी हैबोलते विचार 60 आदमी सिर्फ आदमी आदमी है आलेख व स्‍वर डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा बात दसों साल पहले की है। मेरी नानी पास के नगर से हमारे नगर, हमारे घर आई हुई थीं। उन्होंने कुछ पैसे देकर मुझे जलेबियाँ खरी...

चलते चलते एक व्यंग्य चित्र

वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद…… एक कविता यहाँ  भी है…… राम राम

14 टिप्पणियाँ:

शुभप्रभात ...बढ़िया वार्ता...
आभार ललित जी ...मेरी रचना को यहाँ स्थान मिला ......!!

अच्छे लिंक्स के साथ अच्छा व्यंग्य चित्र बहुत बढ़िया रहा.

सुप्रभात... सुन्दर लिंक्स, बढ़िया वार्ता के लिए आभार ललित जी ...

अच्‍छी वार्ता ..
सुंदर लिंक्‍स !!

बेहतरीन प्रस्‍तुति।

बढ़िया वार्ता ललित जी.....
सभी लिंक्स लाजवाब..
आभार
अनु

अच्छे लिंक के साथ लाजवाब वार्ता ...

बेहतरीन वार्ता बेहतरीन लिंक्स !

सुन्दर लिंक्स………… बढ़िया वार्ता

अच्छे लिंक्स ...बढिया वार्ता ...सुंदर व्यंग चित्र !
आभार!

बहुत अच्छी लिंक्स |अमरकंटक पर लेख ने तो मुझे नर्मदा उदगम स्थल पर फिर से पहुंचा दिया |
बहुत सी यादें ताजा हो गईं |
अच्छा लेख और चित्र |
आशा

सूत्रों की सतत श्रंखला..पठनीयता का पर्याय..

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