शनिवार, 7 जुलाई 2012

ये क्या हो रहा है ?पकौड़ों को बकरा बना दिया... ब्लॉग4वार्ता- संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार...बरसों पहले फिल्म आई थी, रोटी, कपडा और मकान। इसमें महंगाई पर गीतकार वर्मा मलिक का लिखा एक गीत बेहद चर्चित हुआ था-
"गरीब को तो बच्चों की पढाई मार गई
बेटी की शादी और सगाई मार गई
किसी को तो रोटी की कमाई मार गई
किसी को मकान की बनवाई मार गई
सच-सच बोला तो सच्चाई मार गई
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई..।"
सुरसा के मुंह की तरह बढती जा रही महंगाई पर यह गीत आज भी सटीक है। आम आदमी हैरान-परेशान है। कहावत है, पैर उतने ही फैलाएं, जितनी चादर हो। लेकिन सच यह है कि पैरों को सिकोडने की भी तो कोई सीमा होती है..। दूध, ब्रेड, बटर, दालें, पेट्रोल, गैस...आखिर कितनी जरूरतों में कटौती की जा सकती है! आइये अब चलते हैं आज की ब्लॉग 4 वार्ता पर...
अब सावन से आस है! - कविता की अपनी एक कशमकश भरी सृजन प्रक्रिया है ..किसी प्रसव वेदना से कम नहीं .. जब तक वह भीतर हो एक बेचैनी सी बनी रहती है ...मगर बाहर आते ही एक गहन संतोष... पकौड़ों को बकरा बना दिया, बरसात में बलि चढ़ा दिया -  - मानसून आया या यूं कहें मौसम आया गर्मागर्म पकौड़ों का साथ में लेंगे चाय या नशे की कोई चीज अलाय-बलाय चाय चाहेंगे तो यहां मिलेंगी अलाय-बलाय खुद लानी होगी ...गज़ल - फिर से घनघोर घाटा छाई है अमराई मे कहाँ हो आन मिलो शाम की तनहाई मे विरह की आग पे छींटे न दे अरे बादल कहीं धुआँ न उठे फिर कहीं रुसवाई मे चाँद बेज़ार भटकता... 

ये मेरे गाँव वाली बरसात नही ... ये कविता मैंने नहीं लिखी मेरे हसबेंड ने लिखी है मुझे बहुत अच्छी लगी इसलिए यहाँ मेरे ब्लॉग पर साझा कर रही हु कुछ कमी सी है इस सावन में , इसमें अब वो बात नहीं , एसी वैसी जेसी भी हो , ये मेरे...पानी रे पानी मचा हुआ है चारों तरफ बिजली पानी का हाहाकार, न जाने कब आएगी ,वो प्यारी -प्यारी मानसून की बहार | इस कुदरत के खेल भी हैं, अजब- गजब न्यारे -न्यारे , कहीं पर सूखाग्रस्त और कहीं पर बाढ़ से मर रहें हैं बेचारे | जब...सावन की इस सुबह - *सावन की इस सुबह चुपके से यादों में बोलो तुम क्यों आये? आँगन में पौधों पर** फूलों पर, पत्तों पर बरसाती खुशबू से मुझ पर ही क्यों छाये खिड़की की चौखट पर* .....

घर पर दस्तक दी तो दिखी एक ब्लॉगर की हैरानी, ख़ुशी और दहशत - लगभग डेढ़ वर्ष पहले, 2010 के शुरूआती हफ्ते में GTalk पर कनाडा निवासी, काव्य मंजूषा वालीं स्वप्न मंजूषा शैल ‘अदा’ से बतियाते एकाएक मैंने उनकी वेबसाईट (ब्लॉग...बेतरतीबी - अधिकतर लोग कोई काम कायदे से नहीं कर सकते जाना है ...चले जाएँ पर जब जाएँ तो पूरी तरह यह नहीं कि अपना कुछ कभी कहीं इधर-उधर छोड़ जाएँ. इस तरह की बेतरतीबी मुझ... ये क्या हो रहा है ? - घर बनाया तो आंगन में हरियाली की गुंजायश की थी ! ख्याल ये कि परिंदे आया करेंगे , हुआ भी यही , वे आते हैं , यहां तक कि मैं उनमें से कईयों के नाम तक नहीं जान... 

गुज़रे कल का प्यार ...और आज का प्यार ??? - *कल का प्यार ...आज का व्यापार.....* *गुज़रे कल का प्यार.... और * *सौ बार डर के पहले * *इधर-उधर देखा ,* *तब घबरा के तुझे इक * *नजर देखा | * *  .सामने जो दिख रहा है - किसको देखना चाहता है दिल मेरा कुछ पाना नहीं - कुछ खोना चाहता है दिल मेरा खुद को देखने के लिये जब भी आया ये आइने के सामने खुद को देखकर बस, चौंका है दिल मेरा।... प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो - * * *प्राण**, **क**ह दो**, **आज तुम मेरे लिए हो ।* ** * * * * * * * * * * *हरिवंश राय बच्चन* * * * * *मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब**... 

अपनी ही छाया डसती है अपनी ही छाया डसती है ज्यों अपनी ही छाया ढक लेती है सम्मुख मार्ग को जब चल पड़ते हैं हम प्रकाश से विमुख होकर ! वैसे ही विचार भाव से विमुख हुआ यदि   स्वयं के आग्रहों से होता है ग्रसित कोई नही... अगला जीवन *अगला जीवन * जीवन की शाख पर बैठा मन का पाखी भोर का गीत सुनाता.. मैं कहती … ये तो संध्या है चीर निन्द्रा की आती बेला है भोर बीते युग बीता क्यों है याद दिलाता..? बहुत जीया इस जीवन को अब अगले सफर की बारी है ...रीत रहा है, फूटा प्याला  आँख मूंदे हुए बुद्ध की मूरतों की तस्वीरें, किसी यात्री की भुजाओं पर गुदे हुए नीले टेटू, बालकनी में पड़े हुए खाली केन्स, सड़क पर उड़ता हुआ कागज से बना चाय का कप, आंधी के साथ बह कर आई रेत पर बनी हुई लहर...

सावधान, सावधान, सावधान --- जिस *बीमारी* का ईलाज नहीं, उसकी हजारों दवाएं हैं। लाईलाज बीमारियाँ लोगों को दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर करती हैं। *ऐलोपैथी* के प्रति अभी तक ग्रामीण अंचल में पूरी तरह लोगों को विश्वास नहीं है। थोड़ी सी भी..." माउस " से दिल तक ......." पहले जब कम्प्यूटर का प्रयोग नहीं होता था तब कवि या लेखक अपनी कलम से कागज़ पर लिखने के लिए स्याही का प्रयोग करते थे | परन्तु सच तो यह होता था कि लिखते समय उनका ह्रदय भावों की अतिरेकता में पसीजता रहता था... सरकारी अनुदान झिंगुरों से पूछते, खेत के मेंढक... बिजली कड़की बादल गरजे बरसात हुयी हमने देखा तुमने देखा सबने देखा मगर जो दिखना चाहिए वही नहीं दिखता ! यार ! हमें कहीं, वर्षा का जल ही नहीं दिखता ! एक झिंगुर अपनी ...

मेरा कुछ दर्द, मेरे शेर सहा करते हैं... आसमाँ में रोज़ जश्न हुआ करते हैं... आँच सूरज की और चाँद पका करते हैं... मैं तन्हा बैठ के साहिल पे समझ पाया हूँ.. के समंदर में कुछ आँसू भी बहा करते हैं... कभी अमराइयाँ रहती थी दरख्तो पे यहाँ... अब तो मुर्द... दोहे,,,, - दोहे धार ओर मुख नाव का फिर तू काहे खेय ! अमिय देय दुश्मन मरे,तब बिष काहे देय !! खटको से तू वारकर, चाहे तू जितनी बार ! प्रेम ढाल से रोक कर, करू प्यार से ..किटी पार्टी वाली नारियां - यह पोस्ट चंद महिलाओं को समर्पित है। कृपया तीन-चौथाई महिला-जगत आग-बबूला न होवें मुझ पर। लेकिन ये भी एक यथार्थ है की धन-संपन्न महिलाएं , घर में हर प्रकार के ...  

अब लेते हैं आपसे विदा मिलते हैं अगली वार्ता में तब तक के लिए नमस्कार ....

11 टिप्पणियाँ:

बहुत बढ़िया वार्ता संध्या जी.....
सभी लिंक्स देख लिए......कुछ नए भी पाए...
शुक्रिया
सस्नेह
अनु

बहुत बढिया वार्ता ..

महत्‍वपूर्ण लिंक्‍स मिले ..

बहुत बहुत आभार संध्‍याजी !!

बहुत बढिया वार्ता संध्या जी .. आभार एवं शुभकामनाएं

इस सुन्दर वार्ता में कुछ रोचक और कुछ अनमोल मोती मिले...आभार संध्या जी।

बहुत ही रोचक वार्त है। आप कितनी मेहनत करती हैं हम सबके लिए? गजब!

बहुरंगी लिंक्स से सजी वार्ता मन को छू गई संध्या जी |
आशा

मन को छूते सुंदर सतरंगी वार्ता,,,,

RECENT POST...: दोहे,,,,

पकौड़ों को बना दिया बकरा
आपने नोटिस लिया
इस पर पकौड़े खूब खुश हैं
खुशी में उनकी आंखों से
खुशी का तेल बह रहा है।

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