गुरुवार, 12 जुलाई 2012

सना नना सायँ सायँ... पुरवा करत अठखेली...ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार... "कल्पना ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है। ज्ञान की तो सीमा है, लेकिन कल्पना दुनिया के किसी भी छोर तक पहुंच सकती है। - अल्बर्ट आइंस्टाइन "
महान वैज्ञानिक का कथन जो भी हो, लेकिन टाइम-टेबल में बंधे बचपन के पास आज कल्पना का समय कहां है! होमवर्क से समय बचे तो टीवी, कंप्यूटर, इंटरनेट, विडियो गेम्स की दुनिया है। हाइटेक हैं ये बच्चे, सूचनाओं से लबालब हैं। हाथ से चम्मच पकडना ठीक से आए न आए, पेंसिल-पेन और माउस ठीक से पकडना आना चाहिए। साबित करो खुद को..। ढाई वर्ष की उम्र से यही तो सिखाया जाने लगता है। आखिर कब भरेंगे ये कल्पना की उड़ान...?  आइये हम चलें अपनी कल्पना की उड़ान पर लीजिये प्रस्तुत है, आज की ब्लॉग 4  वार्ता इन खूबसूरत लिंक्स के साथ...
 
हजार रंज़ सही ... .मिरी निगाह में कुछ और ख्व़ाब आने दो हजार रंज़ सही मुझको मुस्कराने दो तमाम उम्र दुआओं में काट दी हमने कभी कभार मुझे पास भी तो आने दो बहस-पसंद जमातें हुई हैं दुनिया की मुझे सुकून से तनहाइयों में गाने ...क्या तुम मेरा तुम्हारे जेसा हो जाना स्वीकार कर सकोगे...? म अट्टालिकाओं के चन्द्रमा हो सकते हो जिसकी चांदनी छन छन कर रूपगर्विकाओं के आँचल पर सोंदर्य की वर्षा करे! पर मेरे लिए तुम चाँद की खुरचन की तरह हो जिसका कण कण आत्मा को शीतल कर दे ,सारी दुनिया के लिए ... दोनों वक़्त का चाँद बेहयाई से दिखता है दोनों पक्षों में रात में और दिन में भी बिना सोचे बिना समझे 'फिकरों'* की फिकर किये बगैर ये चाँद करता है परिक्रमा...
 
बूंद बूंद रिसती ज़िंदगी ज़िंदगी की उलझने जब बन जाती हैं सवाल तो उत्तर की प्रतीक्षा में अल्फ़ाज़ों में ढला करती हैं उतर आती हैं अक्सर मन के कागज पर जो अश्कों की स्याही से रचा करती हैं पढ़ने वाले भी बस पढ़ते हैं .. चांद की लोरी से .....दर्द की आंखों में सूनापन देखकर अब जी घबराता नहीं बस यह लगता था कि कहीं ये रो न दे मेरी मायूसियों का चर्चा रहा सारा दिन उसकी पलकों पे कोई ख्‍वाब बह गया गया तो कैसे संभाल पाएगी वह .... बरसात के रंग देखो मेरे संग .. *आजा बरखा तेरी* *राह तकू मैं कब से* *झुमने को, नाचने को, गाने को* *मन तरस रहा है कब से.....* *सुनी जो पुकार है तुने* *मन आभारी है तेरा बदरीया* *भीगी - भीगी, रिमझिम - रिमझिम फुहार में* *पिया संग नाचे ये...
 
पनाह-ए-इश्क ये दिल की बात उसे आज बतला दूं शायद परदे मे बेपर्दा वो मिल जाए गोया शायद ! आरज़ू के कँवल हर तरफ खिल रहे हें शायद शाक-सारों से मिलेगी पनाह-ए-इश्क शायद / मैं अकेला नहीं अब जबसे एक नज़र उसने देखा आँखों में ... नहीं तो... नहीं तो... देह नहीं हो सकता वह क्योंकि देह उसकी अस्वस्थ है पर वह पूर्ववत् है मन भी नहीं क्योंकि मन उसका उदास भी हो सकता है पर वह खिला रहता है भीतर पूर्ववत् वह खुद का पता जानने जाता है जब भीतर ...रंगों के नए अर्थ ... चलो रंगों को नए अर्थ दें नए भाव नए रंग दें खून के लाल रंग को पानी का बेरंग रंग कहें (रंगों की विश्वसनीयता बरकरार रखने के लिए) सफ़ेद को नीला (आँखों को गहराई तो मिले) धूप को काला ...
 
फेसबुक की एक काली दुनिया में रौशनी की एक किरण . रागिनी ने अपने पति सोमेश के हाथ में एक पैकेट सा देखा तो पूछ बैठी "कोरियर वाला क्या दे कर गया है ". सोमेश भी थोड़ा सा मुस्कुराते हुए बोले "सुन्दरम की शादी का कार्ड है "..फिर तो रागिनी ने झट से लगभग लपकते... चिदम्बरमजी! यह भिखारी आपको क्षमा करता है.. अब तो ‘सारिका’ को बन्द हुए ही बरसों हो गए। बन्द होने के बरसों पहले उसमें छपी एक लघु कथा याद ... क्योंकि ज़िन्दा बुतों के ताजमहल नहीं बना करते पता नहीं कैसे संजोते हो तुम मुझे अपने शब्दों की लड़ियों में तो कभी भावों की भाव भंगिमा में और मैं उलझ कर रह जाती हूँ घिर जाती हूँ तुम्हारे बनाये मोहब्बत के मकडजाल में कैसे तुम मोहब्बत को घूँट घूँट मे...
 
ये दोस्ती .जब नासूर तुम्हारे भरने लगें जब दिल की जलन ठंडी होने लगे जब अश्क आँखों से सूख चलें जब विकार राहें भटकने लगें. जब अविश्वास पर विश्वास आने लगे जब रिश्तों की गर्माहट याद आने लगे जब दोस्ती की चाह फिर से जगे  .........आज कुछ बातें कर लें .रंगमंच की सुप्रसिद्ध अदाकारा और निर्देशिका , श्रीमती नादिरा बब्बर 'अज्ञात रावण' के विषय में कहती हैं .... यह नाटक हमारी भारतीय संस्कृति के जाने माने खलनायक रावण को एक नए दृष्टिकोणसे देखने का प्रयास ...कमबख्त प्यार वो जो एक अजीब सी बेचैनी है न इस कमबख्त प्यार में जो न कायदे से जीने देती है न मरने.... वही शायद रास आती है,मुझे लगता है कुछ अटक सा गया है हलक में जो यह निकला तो जान लेकर निकलेगा . इसी जीने मरने के बीच की ...
 
मचल रही बूंदरी ...!!!!!!  सना नना... सना नना सायँ सायँ .... पुरवा करत अठखेली ... उड़ाए ले रही सर से चूनरी ...!! चम-चम चमक चमक..... चमके ......मन कामिनी... दम-दम दमक दमक .... दमके दुति दामिनी .... री सखी ...रूम-झूम ... लूम-झू... मुस्कुराहटों की किताब आपके गुलाबी लवों में बड़ा दम है हंसती कलियाँ भी,इनके आगे कम हैं // आपकी सुरीली अंखियों की क्या बात है इनके आगे ,मयखाने की क्या औकात है // आपकी मुस्कुराहटों पर लिख रहा हूँ किताब परेशान हूँ मैं ,..."नेट लैग " ...यह "जेट लैग" का बाप है .......|  पौ फटने को है | रात भर की फटी आँखें अब मुंदने को है | फटी फटी आँखों से देख रहा हूँ सारी दुनिया सो रही है | बरसात हो रही है पर झींगुर तक मौन है | मेंढक भी साइलेंट मोड पर है | पूरे मोहल्ले में शमशानी सन्ना...
 
सत्यमेव जयते!!! - रे !सूरज आधी सदी बीत गई... तुम मुझे झुलसाने की कोशिश करते रहे हो, मैं अब तक झुलसी नहीं... और आगे भी तुम्हारी सारी कोशिशें बेकार जाएंगी.. शायद तुम्हें पता ...  बदबू आती है ऐसे नेताओं से ... - *स*च कहूं तो ऐसे नेताओं से बदबू आती है जो जनता की भावनाओं को समझने के बजाए उनकी खिल्ली उड़ाते हैं। पहले हम गृहमंत्री पी चिदंबरम को गंभीर नेता मानते थे, ... मिटा तो न दोगे ? - वो लड़का किराये पर जीप चलाता था. टेक्सी स्टेंड के आगे से गुज़रती हुई स्कूल की लड़कियों को देखा करता..
 
 
.. 
 
जानिये अपना राशिफल और मिलिये एक बंजारे से... फिर भेंट होगी अगली वार्ता में तब तक के लिए नमस्कार .........

20 टिप्पणियाँ:

बढिया वार्ता संध्या जी,,,,,,आभार सुप्रभात

शुभप्रभात ...!!
संध्या जी सावनी बौछार सी ...सुकून देती ...बहुत बढ़िया वार्ता ...
आभार ...बहुत आभार ....मुझे यहाँ स्थान मिला ...!!

ढेर सारे लिंकों से सजी ..

बहुत ही सुंदर वार्ता ..

आभार संध्‍या जी !!

अच्छे बहुत सारे लिंक मिल गये पढ़ने के लिये, धन्यवाद

बहुत बढ़िया वार्ता संध्या जी....

लिंक्स अब देखती हूँ...
शुक्रिया
सस्नेह
अनु

बहुत रोचक। 'क्‍या पढा जाए' की उलझन में रास्‍ता दिखाने में सहायक।

मुझ पर कृपा वर्षा हेतु एकबार फिर आभार।

इस ब्‍लॉग को साझा (शेअर) करने का प्रावधान उपलब्‍ध करने पर विचार करें।

बहुत अच्छा प्रयोग करती है आप शीर्षकों के साथ | बहुत बहुत आभार |

बहुत ही करीने से सज़ाई वार्ता । संध्या जी का बहुत बहुत शुक्रिया और आभार सुंदर पोस्ट लिंक्स उपलब्ध कराने के लिए । जय हो :)

bahut acche links diye hain aapne...Kajal ji ka cartoon brilliant hai.
aabhaar

sandhya ji blog varta me meri rachna ko sthan dene ke lie bahut bahut aabhar....

अच्छी वार्ता
यहां ढेर सारे लिंक्स होते हैं,
मै समझ सकता हूं कि एक एक लिंक्स का चयन और संयोजन कितना मुश्किल है।
ललितजी और संध्या जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

सुन्दर लिंक्स से सजी रोचक वार्ता

लिंक्स उपयोगी हैं।
नीचे का विज्ञापन मज़ेदार है।

आज 'वार्ता' में मुझे श्री आभास जोशी का 'बायो डाटा' मिला है। सूचनार्थ।

nice collection and efforts by Ms Sharma, thank you for giving me space in your blog..

वाह, रोचक और पठनीय वार्ता।

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