ललित शर्मा का नमस्कार, आज रविवार है, होगी फ़ुरसतिया वार्ता, हम फ़ुरसत से लिख रहे हैं, पाठक भी फ़ुरसत से बांचे। फ़ुरसत में होना भी गजब का जज्बा है। चचा छक्कन कभी फ़ुरसत में नहीं होते। जब भी कोई काम कहो तो कहते हैं कि फ़ुरसत में नहीं हैं। जबकि लोगों ने कभी उन्हे एक चने की दो दाल करते नहीं देता। देखा है तो दिन में पाँच बार लोटा परेड करते हुए। दिन भर भैंस के जैसे पान चबाते हैं और जुगाली करते हैं। किस्मत भी उन्होने माशा अल्ला पाई है। जब तक उनके बच्चे जवान हुए तब तक बाप की कमाई खाई मजे से बैठकर। जब बाप मर गया तो बच्चे कमाने लग गए। मतलब चचा की उमर यूँ ही निकल गयी लोटा परेड में। लेकिन फ़ुरसत कभी नहीं पाई। एक दिन टहलते टहलते दुनिया से भी टहल गए, पर मजाल है उन्हे फ़ुरसत मिली हो। हम फ़ुल्ल फ़ुरसत में हैं। इसलिए आज प्रस्तुत है फ़ुरसती वार्ता……… प्रस्तुत है कुछ उम्दा लिंक
नीरज जाट चिल्ला में, इब चिल्ला तो दे :) |
कल रात कारे मतवारे घुँघरारे बदरवा घनघोर बरसे, अखबारों ने सुबह कहा प्री-मानसून है, हमने कहा श्रीमानसुन है। श्रीमान कहाँ सुने? फ़ुरसत हो तब न सुनें। जब बादल गरजें, बिजलियाँ कड़कने लगे, तब मुझे बहुत डर लगता है। बादलों की गड़गड़ाहट से धड़कने बढ जाती है, तब खामोश दिल की सुगबुगाहट होती है, एक बार गले से लगा लेना.. एक बार काहे जी, गला तो आपका ही है, जब चाहे तब लग जाईए, छाती भी अंग्रेजों के जमाने के जेलर जैसी है, परिंदा भी पर नहीं मार सकता। आपके लिए ही रिजर्व रखी हैयादों की खुरचनें, खुरचिए और हल्के हल्के दर्द का मजा लीजिए। आकाश से बरसते शोलों की दहशत में प्रतीक्षा थी मानसून की चंद बूंदों की। दम तोड़ती धरती को भी जरुरत है प्राण वर्षा की। शायद पड़ती हुई मानसूनी फ़ूहारें, अबकि बार प्राण बचाने में कामयाब हो जाएं क्योंकि ये आभासी दुनिया है, यहाँ संबंधों की कोई कदर नहीं।
वैसे तो हम अरसे से लिखना भूल चुके हैं, पर कभी कभी सीने के दाग उभर आते हैं, ईश्क प्रीत लव, गम, धोखा, आँसू, रोना, चिल्लाना जैसे विषयों से फ़ेसबुक भरा पड़ा है पर गीत प्यार का लिखते लिखते एक कहानी लिख गए। ज्यों जाना था जापान पहुंच गए चीन, अहँकार भी जीवन में मायने रखता है। सीधे-सरल आदमी को तो कोई समझता नहीं है, जब तक 2 घंटे बाहर बेंच पर न बैठे मिलने वाला, तब तक बाबू जी भेंटने बुलाते ही नहीं। चपरासी कह देता है फ़ाईल में बिजि हैं, फ़िर चाहे चेम्बर में बैठ कर वोदका के सिप मार रहे हों। जब खत्म हो गयी घूंट तो कहने लगे कल रात इक ग़ज़ल पी थी , ये हुई न बात, यूँ कहो न कल रात एक गजल जी थी फ़ुरसत में , बात फ़ुरसत की ही है। पर फ़ुरसत मिले तब न।
अब बात खुदा की की निकल ही आई, कहते हैं कि प्यार खुदा होता है, मैं कहता हूँ कि नुक्ते से खुदा, ज़ुदा होता है। आबिदा परवीन कहती है, एक नुक्ते विच गल मुकदी है, एक नुक्ते विच गल मुकदी है। इत्थे कोई नी मुकदी, मुकदी होएगी होर किसी दुनिया जहांन विच्चों। इस प्यार को क्या नाम दूँ..? बस यहीं गलती हो जाती है, प्यार को नाम देने में बड़ी भारी। प्यार को नाम की जरुरत नहीं। प्यार तो एक अहसास है, जो बेनामी कमेंट जैसा दर्द देता है। प्यार की उड़े चिरैया बागों में, चूं-चूँ करती बुलबुल जैसे। शायद . उसके गीत से गुल मुस्का दे और सुबह हो जाए। प्यार में मुश्किलें पड़ीं इतनी कि आसां हो गईं, बात आत्मबल की है। जिसका जितना आत्मबल उसके लिए मुस्किलें भी उतनी ही आसान। उम्र भर जिन मुश्किलों से पाला पड़ता रहा, एक दिन जिंदगी ने उन्हे आसान कर दिया।
नीरज जाट हांड के लौट आया है इसके दिल्ली से उत्तरकाशी आते ही मुगल गार्डन की रौनक पर बढ़ता खतरा पैना गया। जाट की खोज में तीन एम आई हेलीकाप्टर भेजे हैं अन्ना स्वामी ने। लागै तो नूं है छोरा आग की नदी पार कर रहया सै। बात जुवानी के जोश की भी होया करे हे। बंदे का कोई दोस नहीं होया करता। काश, इतना सा हो जाये, इसका बापु इसकी पसंद जोगी छोरी देख के इसका ब्याह करवा दे, ओर इसकी घुमक्कड़ी की वाट लगा दे। इब कह रहया है के आम सहमति की भावना को बढ़ाने का एक अवसर बनाओ यो सहमति तो जद बणैगी न, तूँ हां कर देगा। दिल्ली के राष्ट्रपति का चुनाव भी नुंए हो रहया सै। समझा के नहीं। ताऊ नै एक चिट्ठी सिम्पल अंकल के नाम लिखी सै। देख इब के बेरा पाटै सै। एक बर हिम्मत जुटा ले और गंगा जी म्है डुबकी लगा ले, यो बात ताऊ नै भी तेरे तै आखरी बार कही सै…कॄष्ण की चेतावनी……कुछ नहीं कहते, ना रोते हैं; दुःख पिता की तरह होते ह
18 टिप्पणियाँ:
वाह चित्र भी अच्छे फ़ुरसतिया ही लगाए हैं ☺
गज़ब ! मान गए उस्ताद
दिन भर की ब्लॉग यात्रा को नीरजजी की यात्रा में समेट दिया है आपने, वाह..
ललित जी दमदार है फुरसतिया वार्ता |बहुत रोचक वार्ता ....बहुत आभार आपका कारे .. घुंघरारे बदरवा यहाँ छाये हुए हैं ...!!
फ़ुरसत से पढ़ने के लिए ढेर सारी लिंक्स!
सचमुच फुर्सत से लिखी गयी वार्ता है ..
लिंकों को पढने के लिए भी काफी फुर्सत चाहिए ..
रोचक वार्ता के लिए आपका बहुत बहुत आभार ललित जी !!
लिंक्स को जोड़कर एक उम्दा लेख ही बना देते हैं आप।
आज तो हम भी फुरसत में हैं, दिन भर पढ़ेंगे।
रोचक फ़ुरसती वार्ता के लिए आपका बहुत बहुत आभार..साथ ही सैर करने और करवाने का शुक्रिया !!
सचमुच बड़ी दमदार, शानदार, जानदार वार्ता है. ऐसी फुर्सत जल्दी-जल्दी मिलना जरुरी है.... पेसल वार्ता के लिए आभार ललित जी...
जय हो...
उम्दा प्रस्तुति, बेहतरीन ब्लोग्स आभार
दमदार फ़ुरसतिया वार्ता लगता है फुर्सत से तैयार किये है,तो फुर्सत से समय निकाल कर पढ़ना पडेगा,,,
लिकों का लेख बनाना खेल है आपके लिए।
लिकों का लेख बनाना खेल है आपके लिए।
इनके लिए सब कुछ आसान है दादा
बहुत रोचक वार्ता
बढिया वार्ता
वार्ता में नीरज जाट के साथ गठबंधन अच्छा रहा .
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