ललित शर्मा का नमस्कार, फ़ेसबुक पर पंकज झा कह रहे हैं - बिहार में रणवीर सेना के संस्थापक ब्रह्मेश्वर मुखिया मारे गए. वास्तव में जो राह उन्होंने चुनी थी उसका अंत तो यही होना था, ऐसा ही होता भी आया है. लेकिन ये भी सच है कि नक्सलियों-माओवादियों-जातिवादी सेनाओं का सामना करने के लिए विकल्प भी तब सीमित ही थे. उनका प्रतिरोध भी आवश्यक था. जब सरकारें जाति के आधार पर न्याय देने लगें तब ऐसे संगठन प्रासंगिक हो जाते हैं. इसके सिवा तब कोई चारा भी नहीं बचता कि खुद की रक्षा करने हेतु अपना लाइसेंसी हथियार उठा लें. थोड़ा अफ़सोस तो हो रहा है मुखिया की मृत्यु पर....! अब चलते हैं आज की ब्लॉग4वार्ता पर…… प्रस्तुत हैं कुछ उम्दा चिट्ठों के लिंक… यमराज के एजेंटों की पहचान कर लिजिए, न जाने किस भेष मे मिल जाएं………
अलबेला खत्री जी ने मौत से कह दिया है रुक जा दो घड़ी आने वाला है जमाना प्यार का। पहले भाई इकरार होने दो प्यार का, इंतजार होने दो महबूब का। तभी तो कुछ बात बनेगी। आज मुझसे एक अहद कर लो मेरे दोस्त बनके रहना कभी दूर ना होना वरना बापू से आज तक की सारी पोल पट्टी खोल दूंगा, समझे के नहीं, हाँ नही तो। इधर धरती पर धरती पर यमराज के एजेंट घुम रहे हैं घर-घर। सारा मामला ठेके पर उठाते हैं, सुपारी खिलाते हैं और चीर फ़ाड़ डालते हैं, लानत हैं इन पर। युद्ध तो कहीं भी लड़ा जाता है, किचन से लेकर सीमा तक, चलता है युद्ध हर औरत के लिए यहाँ भी चल रहा है युद्ध, लेकिन यह विजय के लिए नहीं, जीवन के संघर्ष के लिए, बस लक्ष्मण रेखा पार न हो। बाकी तो सब ठीक है।
आज बारिश हुई है... भीषण गर्मी में मन-तन पर ठंडी फ़ूहार पड़ी, माहौल कुछ ठंडा हुआ। पेट्रोल-पेट्रोल ने भी आग लगा रखी है, ऐसे दो बूंद बरसात की मन को हर्षा जाएं तो कोई बात है। ये बरसात मै अपने लिए नहीं मांग रहा। सबकी भलाई में ही अपनी भलाई है। ईश्वर सभी को खुशी दे, सुख समृद्धि दे। इधर रायसीना हिल्स पर दादा की दावेदारी पक्की हो रही है, बरसो से रिसता मन कुछ विराम पाएगा अगले मोड़ पर ही जाकर सपनो का नैनीताल मिल जाएगा। खूब बोटिंग होगी, मन की होगी। पर कुल्फ़ी और चुस्की मत खाना, नज़ला-जुकाम होने की पूरी आशंका है। सारी सैलानियत धरी रह जाएगी। ठंड कम्बल से भी नहीं रुकेगी। बहती नाक के लिए फ़ायर ब्रिगेड बुलानी पड़ेगी।
अब पराया देश से खबर है कि कलयुग आ गया , जब पराए देश में कलयुग आएगा तभी अपने देश में सतयुग आने की उम्मीद की जा सकती है। गोरे बहुत सयाने थे, कलयुग हमारे लिए छोड़ गए और सतयुग अपने लिए ले गए। वो तो राज भाटिया जी ने जोर लगाया जर्मनी जाकर तभी हमें ये दिन देखना नसीब हो रहा है। कुछ पोस्टें शीर्षकहीन हो जाती हैं, शीर्षक लगाने के बाद भी डॉ संध्या तिवारी की एक पोस्ट ऐसी देखने मिली। निवेदन है कि अब शीर्षक लगा दिया करें, जिससे पोस्ट शीर्षकहीन न रहे। जातिवादी तत्वों के मुंह पर एक करारा तमाचा पड़ रहा है राजस्थान में। जातिवादी तत्वों ने देश का माहौल खराब कर डाला है। जाति के आधार पर राजनीति ने देश का बेड़ा गर्क कर दिया। भूखे को रोटी नहीं …… खा रहे खीर। इधर सरकार की निगाह आदिवासी वोट बैंक.. पर है। क्यों न हो बात तो जातिगत राजनीति की है। दो बार आदिवासी इन्हे सत्ता में बिठा चुके हैं अब तीसरी बार की तैयारी अभी से शुरु हो चुकी है।
मस्त हवाओं में, भीगी फ़िजाओं में शरद कोकास झील से प्यार करते हुए पकड़े गए। जबकि भाठागाँव कांड के पहले अटारी कांड से ही पुलिस ने डौंडी पिटवा रखी है कि सुनसान इलाके में अकेले न जाएं। अब शरद भाई जानें हम चलते हैं अगली पोस्ट की ओर… बाबू साहब आँच – 111 पर चढ गए हैं। आंच पर चढने के बाद तो कुंदन होना स्वाभाविक है। अग्नि समस्त को मल रहित कर देती है। आँच पर चढ कर क्या पाया यह मत बोल !, पाने की खुशी गुंगे के गुड़ जैसी है। भीतर ही भीतर आनंद लिया जा सकता है जब मुस्काती है एक औरत... और आता है पुरब से ताजी हवा का झोंका तब होती हैं दुर्घटनाएं इसलिए टेक केयर, वाहन हलु चालवा, पुढे स्पीड ब्रेकर आहे। सावधानी हटी दुर्घटना घटी फ़िर भी चलते चलो रे १ स्नो-बर्ड माउन्टेन क्लिफ क्लब ओर
चर्चा यहाँ बिगड़ी हुई औरत की हो रही है सुनिए फैज़ की कहानी फैज़ की जुबानी अगली किश्त आ गयी है दुआ का एक लफ्ज , और वर्षों की इबादत की, पढिए, गुनिए, समझिए।हाय हमारा आदरणीय़ शिखंडी जी परेशानी में है कुछ करो भाई इनके लिए भी और कुछ नहीं करें तो कम से कम पोस्ट पर एक कमेंट और चटका ही लगा दीजिए। बस यादें भर शेष रह गईं भूल जाईए और यूपीए 2 की तीन सौगात: महँगाई, भ्रष्टाचार और घोटाले को ग्रहण कीजिए। अब यही बचा है यूपीए के पास देने के लिए। जनता की कोई सुनता नहीं, मंहगाई का रोना सब रो रहे हैं। मोंटेक सिंह 28 रुपए कमाने वाले को पेट भर झुणका भाखर खिला रहे हैं। डॉ रमन सिंह की दाल-भात सेंटर की योजना फ़ेल हो चुकी है। सभी जगहों के सेंटर लगभग बंद हो चुके हैं लोग अपनी ही सुनाने में लगे हैं पर कोई सुने तब न। नक्कार खाने में तूती की आवाज सुनता कौन है?
वेदिका जी 30-12-2011 के बाद ब्लॉग पर पुन: दिखाई दी। लिखी हैं दो लाईने बहुत खूबसूरत गजल सा ये चेहरा किसी झील में इक कमल सा ये चेहरा, बात तो पते की है न सरदार पगला है, न सरकार पगली है, सिर्फ़ जनता पगली है, जनता सिर्फ़ पगली ही नहीं झल्ली भी है। बार-बार वोट देती है और चोट खाती है। पता नहीं नासमझी का यह सिलसिला कहाँ जाकर रुकेगा। बस कोसते रहने का जरिया बन गया है। चुनाव आने वाले हैं इनकी अब बिन धुले तौलिये से धुलाई होनी चाहिए। मतदाता तो पहलवान है, जरुरत है एक धोबी पछाड़ा दांव की। चारों खाने चित्त और सारी हेकडी निकल जाएगी। मधु कल्पना हो.... और सपनो के पुल से हम पहुंच जाएं अपने सपनों के गाँव तक। तब तक कहीं न जाईएगा, हम मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद्…बांचिए अधूरी कविता…… राम राम
चलते चलते व्यंग्य चित्रकार लहरी का एक व्यंग्य चित्र
7 टिप्पणियाँ:
अच्छी वार्ता आज की |
चेहरा दिखाती समाज की |
मेरी मेरी पोस्त शामिल करने के लिए आभार |
आशा
वाह ..
पूरे मन से लिखी गयी वार्ता ..
इतने सारे लिंकों के लिए आपका आभार !!
रोचक वार्ता..
वार्ता का यह अंक लाजबाब है ...!
वार्ता का खास बेहतरीन अंदाज, और सुन्दर लिंक्स. आभार ...
rochak varta
sugghar likhhathas ga ,,bane warta sajaye has ..te paye ke bhid rahithe aapke dukan ma ..badhai ho
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