गुरुवार, 14 जून 2012

उसके क़दमों में सर मेरा, मेरा गुरुर है... ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार... इस संसार में जन्म लेने वाला - जीवन धारण करने वाला प्रत्येक प्राणी मात्र एक ही लक्ष्य को प्राप्त करता है, और वह है - मृत्यु...! मनुष्य चिरकाल से इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ रहा है, लेकिन उत्तर नहीं मिला. हम कल्पनाएँ चाहे कितनी भी कैसी भी कर लें, किन्तु मृत्यु तो कल्पना नहीं है. वह एक शाश्वत सत्य है, और जब तक जीवन है, तब तक यह देहयात्रा है , और जब तक हमारा व्यक्तिगत स्वार्थ "परमार्थ" नहीं बन जाता, इस लक्ष्य को आसानी से प्राप्त करना नामुमकिन है... ये हुई जीवन और उससे जुडी सच्चाई की बातें...      आइये चलते हैं, आज की ब्लॉग 4 वार्ता पर कुछ बेहतरीन चुनिंदा लिंक्स के साथ...
ममता-मुलायम ने कसा सरकार का पेंज .... ममता और मुलायम ने सोनिया गांधी और सरकार का पेंच थोड़ा ज्यादा कस दिया है। पहले तो सोनिया के साथ बैठक में हुई बातचीत का उन्होने मीडिया के सामने खुलासा कर दिया, बाद में उनकी बात मानने से इनकार कर दिया। सरकार... ऋदम-ए-व्योम  रोष में खो बैठे क्यों, क्यों होश अपने ? कहाँ से पयोगे अब वो पुर जोश अपने मैं न 'मैं' की शमशीर उठाता दरमियान क्यों छूटते, और रहते खामोश अपने ? बेज़ार बेजात रख्खा अहल-ए-गरज को अब क्यों न करे हमें निकोहिश अ... कई बार यूँ भी होता है....रौशन और खुली, निरापद राहों से इतर कई बार अँधेरे मोड़ पर मुड़ जाने को दिल करता है. जहाँ ना हो मंजिल की तलाश , ना हो राह खो जाने का भय ना चौंधियाएं रौशनी से आँखें. ना हो जरुरत उन्हें मूंदने की टटोलने के ..

तब भी तू अपना था तब भी तू अपना था तब भी तू अपना था लगता जब सपना था, दूर तुझे मान यूँ ही नाम हमें जपना था ! चाहत कहो इसको या घन विवशताएँ, दोनों ही हाल में दिल को ही फंसना था ! स्मृतियों की अमराई शीतल... सूर्यास्त कहते हैं हुआ..... रंग की दहलीज पर उड़ती गुलालों की फुहारें, लाल,पीली,जामनी पनघट, कनक के हैं किनारे. दूर नभ के छोर पर,घट स्वर्ण का पानी,सिन्दूरी, सात घोड़ों के सजे रथ से,किरण उतरी सुनहरी. स्वर्ण घट में भरी लाली, धूप थाल... बेटियाँ दो दो घरों की इज्ज़त औ' प्यार बेटियाँ, कुदरत का सबसे अनुपम उपहार बेटियाँ. लगती है आग ज़ब, घर के चिराग से, शीतल बयार बनकर, आती हैं बेटियाँ. जब भी हैं घेर लेतीं, तनहाइयां मुझे, मीठी सी याद बनकर आती हैं बे... 

तेरे जाने और आने के बीच.... .हर दिल की तरह मेरा दिल भी ये चाहता था कि गर उसे मुझसे मोहब्बत नहीं तो किसी और से भी न हो ........वो चला जाए बेशक मुझे छोड़ कर...मगर किसी और के पहल... चलते चलो रे -३ (यलोस्टेन नेशनल पार्क- मैमथ हॉट स्प्रिंग्ज़, मड वॉल्केनो इत्यादि). आज १५ तारीख है । कल की थकान थी तो उठने की कोई जल्दी नही की पर फिर भी तैयार होकर सुबह ९ बजे निकल पडे । आज विजय भी हमारे साथ थे । उसके पहले कॉम्लिमेन्ट्री कॉन्टिनेन्टल ब्रेकफास्ट किया । लंच के लिये एक डे.. परदेशी जब से है लौटा परदेशी घर ..अपने ढूंढ रहा है .. अपनेपन का अहसास घर की दीवारों में, नए - पुराने चेहरों में, घूरती निगाहों में वही पुराना भरोसा वही विश्वास.. बदली- बदली सी है हवा भी, फ़िजा भी हवा में खुशब...

ऐसा न हुआ * * *ढूंढा,* *चार्वाकों , सांख्य,बौद्ध, जैन ,* *द्वैत ,अद्वैत दार्शनिकों ने ,* *अंधकार के गह्वर में * *तिरोहित ,* *पैरों में छाले,* *फटे वसन,अश्रु-भरे नेत्र * *कृशकाय तन ,* *अस्थियाँ अवशेष * *अस्पृश्य हो चुक.. उसके क़दमों में सर मेरा, मेरा गुरुर है चाहे ज़रा मैली भी हो, मुझे मेरी सच्चाई ही मंज़ूर है कहाँ तक साथ देगा धुंआ? एक दिन तस्वीर साफ़ होती ज़रूर है यूँ तो खुद्दार हूँ, सर उठा के चलने की आदत है, उसके क़दमों में सर मेरा, मेरा गुरुर है मज़हब तो स...दुआओं का अपनी असर ढूंढते हैं...! - स्टडी रूम जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ते हुए कुछ ऐसा लगा कि सांसे तेज हो रही है ! उधर घर के बाहर वाले प्लाट पे उभर आये नये मकान की छत की ढ़लाई शिद्दत से ज़ारी ... 

 अब के हम बिछड़े तो ... - मेहदी हसन साहेब ... नमन ... *अब* *के* *हम* बिछड़े *तो* *शायद* *कभी* *ख़्वाबों* में *मिलें* ये धुँआ सा कहाँ से उठता है बात करनी मुझे मुश्किल कभी ...ये धुआँ सा कहाँ से उठता है-अलविदा मेंहदी हसन साब - अभी अभी फेसबुक में शिवम मिश्रा के स्टेटस को पढ़कर अचानक दिल धक् से रह गया.हमारे अज़ीज गज़ल गायक और हिंदुस्तान-पाकिस्तान में समान रूप से सम्मान पाने वाले... मेहदी हसन साहब की कक्षा में जानिये "आवारा गाना" क्या होता है - मेरे पास मेहदी हसन साहब का एक तीन सीडी वाला सैट है. विशुद्ध शास्त्रीय शैली में गाई उस्ताद की ग़ज़लों की इस पूरी श्रृंखला के नगीने मैं, जब-तब एक-एक कर आपकी खि... 

आभासी रिश्ते...आभासी नहीं हैं...१ - *(ये मैं पहले 30 दिसंबर 2010 को पोस्ट कर चुकी हूं आज नये सिरे से करना पड़ रहा है वहाँ प्लेअर नही चलने की वजह से ) * ब्लॉग जगत में आभासी रिश्तों के बारे में... संयुक्त परिवार की तरह बिखरता ब्लॉगजगत। - आज ब्लॉगिंग करते हुए दो वर्ष पूरे होगये। इन दो वर्षों में बहुत कुछ देखा । सब कुछ बहुत नया लगा। महसूस भी हुआ की ज़िन्दगी के बहुत से रंग जो देखना बाकी था वो ...दंतैल हाथी से मुड़भेड़ ----------- ललित शर्मा - *महेशपुर* के मंदिरों के पुरावशेष देख कर जंगल के रास्ते से लौट रहे थे। तभी रास्ते में सड़क के किनारे हाथी दिखाई दिया। एक बारगी तो दिमाग की बत्ती जल गयी। सरग.....

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आज के लिए बस इतना ही, मिलते हैं अगली वार्ता में नमस्कार.... 

6 टिप्पणियाँ:

देह के साथ देही चलता है,सांसारिक दायित्यों को निभाते हुए भव सागर प्राप्त करने का एक मात्र साधन देह ही है। उम्दा लिंक्स से सजी वारता के लिए आभार संध्या जी………… सुप्रभात

चर्चा में कार्ट्रन ने भी पैठ बनाई. आपका आभार.

अच्छी वार्ता . शुक्रिया संध्याजी

अच्छी लिंक्स |
आशा

अच्छी वार्ता... सुंदर लिंक्स
सादर आभार।

बड़े सुन्दर और पठनीय सूत्र..

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