शनिवार, 16 जून 2012

हम समंदर हैं, हमें बादल का हुनर आता है .... ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार... देश में राष्ट्रपति पद को लेकर जाने कितनी चर्चायें, अटकलें लगाई जा रही हैं, बैठकों का दौर जारी है और यहाँ महंगाई दर फिर से बढ़ गई है. बड़ी मुश्किल है. लेकिन आज अपने ब्लॉग जगत का खजाना काफी भरा हुआ नज़र आया, बहुत से कीमती रत्न जगमगाते हुए दिखे. उन्ही में से कुछ हम लाये है आपके लिए चुनकर. आइये चलते हैं, आज की ब्लॉग 4 वार्ता पर...

प्रतिबिम्बित होता वह हममें  प्रतिबिम्बित होता वह हममें गीत मिलन के गाओगे गर विरह का दुःख भी कट जायेगा, उजले दिन की राह तको तो घोर तमस भी छंट जायेगा ! संदेहों को गले लगाते दुःख वीणा भी वही बजाते, उर आशा, विश्वासी अंत...इससे पहले कि तुम मुझसे कहीं दूर चली जाओ, जाते जाते मुझे एक बार गले से लगा लेना..  जाने क्यूँ जैसे उम्मीदें ख़त्म होती जा रही हैं... कलेंडर की ये बदलती तारीखें, एक एक दिन जैसे फास्ट-फॉरवर्ड मोड में हो... हर सुबह एक नयी उम्मीद के साथ शुरू होती है और रात ढलते ढलते दिल बुझता जाता है, .कारे मतवारे घुँघरारे बदरवा ....! धरा पर छाते हैं ...मन को लुभाते हैं .. घूम घूम घिरते हैं ...मतवारे बदरवा ... कैसे उड़ते है ......कारे बदरवा .... कारे मतवारे घुँघरारे बदरवा .............!! उड़ते हवा के संग-संग .. उलझी-उलझी लटों जैसे......

कोई मुझे राष्‍ट्रपति बना दे, फिर मेरी चाल .... हिंदी ब्‍लॉगर या राष्‍ट्रपति ? भारत का आम नागरिक अपने देश का राष्‍ट्रपति क्‍यों नहीं बन सकता और बनने की कौन कहे, जब उम्‍मीदवार बनने की धूमिल सी संभावना भी नजर आती नहीं दिखती है। मेरी हसरत रही है कि किसी औ... कई दिनों से शिकायत नहीं ज़माने से... आते-जाते बादलों को ताकते हुए देखना भी कई बार नीरस और ऊबाऊ होने लगता है. गर्मी से बेहाल पंछियों को डालों पे लटकते देख खुद पर भी झुंझलाहट ही होती अक्सर कि हम भी ज़िंदगी की डाल पे बेसबब लटके ही हुए हैं बस. ...श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (१५वीं-कड़ी) तृतीय अध्याय (कर्म-योग - ३.१६-२४) ईश्वर निर्मित चक्र न माने जीवन पापमयी है होता. इन्द्रिय सुख में रमा हुआ जो उसका जीवन व्यर्थ है होता. करता रमण आत्मा में जो तृप्त आत्मा में ही होता. ऐसा जो सन्यासी जन ...  

चाँद ने चांदनी लुटाई चाँद ने चांदनी लुटाई शरद पूनम की रात में सुहावनी मनभावनी फैली शीतलता धरनी पर कवि हृदय विछोह उसका सह नहीं पाते दूर उससे रह नहीं पाते हैं वे हृदयहीन जो इसे अनुभव नहीं करते इसमें उठते ज्वार को महसू... महामुक्ति  हे प्रभु! मुक्त करो मुझे मेरे अहंकार से. दे दो कष्ट अनेक जिससे बह जाये अहं मेरा अश्रुओं की धार से.... मुक्ति दो मुझे जीवन की आपधापी से बावला कर दो मुझे बिसरा दूँ सबको... सूझे ना कुछ मुझे.. सिवा तेरे.. सियार और बन्दर प्राचीन काल बात है, दो ब्यक्ति आपस में बहुत अच्छे मित्र थे, पर दूसरे जन्म में उनमें से एक को सियार की योनि मिली और दूसरा बन्दर बना। सियार जो था, वह शमशान में रहा करता थाऔर मुर्दों ...

युवा सन्यासी को कलहंस चाहिये ...! - एक बार एक वृद्ध साधु एक युवा सन्यासी को लेकर शहर आया , वो उसे उसकी , शैशव अवस्था में अपने साथ ले गया था और अब उसकी परीक्षा लेना चाहता था सो उसे शहर लेकर आय..पहले खुद अपनी भाषा को सम्मान दें - * जब तक हम ही अपनी भाषा की कद्र नहीं करेंगे, जब तक खुद उसे उचित सम्मान नहीं देंगे, तब तक हमें बाहर वालों की आलोचना करने का भी हक नहीं बनता।* आस्ट्रेलिया क...  .सौ साल बाद भी वो ऐसी ही होगी.... - वो फोन पर मेरा नाम तीन बार लेकर इतने जोर से चिल्लाई थी कि रसोई में काम करते हाथों को भी भनक लग गई...... बिना कुछः पूछे और सुने बस बोलती गई... मुझे मालुम थ... 

ग़ालिब ... - हसरतें दिल की, तो कब की टूट के बिखर गईं हैं 'उदय' अब ... ये कौन है, जो खामों-खां दस्तक दे रहा है वहां ? ... देखना, किसी भी पल, वे सब-के-सब चुप हो जा... सलीब - * कंधो से अब खून बहना बंद हो गया है ... आँखों से अब सूखे आंसू गिर रहे है.. मुंह से अब आहे - कराहे नही निकलती है..! बहुत सी सलीबें लटका रखी है मैंने यारों .. जिन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं ...!!! - *वो एक अज़ीम और अदीब शख्सियत थे ,* *अपनी मौसिकी की दुनिया के ....* *ज़नाब मेहदी हसन साहब !* गज़लों के *"शहंशाह-ए-गज़ल"* * १३ जून ,बुधवार २०१२ को इंतकाल फरमा...

जलती हुई दास्तान हूँ ए मेरे दोस्तो - मेरे साथ ना चल आग रास्ता है मेरा!! तू मेरे साथ दोस्ती ना झेल पाएगा!! मैं हूँ एक सुलगती चिता अरमानों की!! मेरे साथ जो चला तो तू भी जल जाएगा!! बहुत लोगों ने ... मेरी अभिव्यक्ति..........  *ऐ वक्त ! अगर बनकर सूरज तू कड़ी धूप बरसाता है, तो हम भी समंदर हैं, हमें बादल का हुनर भी आता है.* इंतज़ार रंगों का - चाँद ने आज कोई साजिश की है चाँदनी भी आज कहीं दिखती नहीं है मन की झील पर जो अक्स बना था उसकी रंगत भी अब खिलती नहीं है , कर रही हूँ इंतज़ार ... 




चलते - चलते कीजिये रामगढ़ की सैर, मुझे दीजिये इजाजत. मिलते हैं अगली वार्ता में नमस्कार....

17 टिप्पणियाँ:

बहुत बढिया वार्ता रही आज की ..
महत्‍वपूर्ण लिंक्‍स उपलब्‍ध कराने के लिए आपका आभार !!

पहली बार यहाँ आकर हर्ष हुआ, आभार मेरी कविता को शामिल करने के लिये....कई नए लिंक्स मिले हैं यकीनन अच्छे होंगे.

वार्ता पढ़ने में रोचक है।

सुन्दर वार्ता संध्या जी.............
लिंक्स पर अब जाती हूँ....धीरे धीरे.............
हमारी रचना को शामिल करने का शुक्रिया..

अनु

बहुत सुंदर प्रस्तुति ....
लिंक्स भी ज़ोरदार ....
आभार यहाँ भी हमारे बादल छा गये ...!!
बहुत आभार ...!!

सुसज्जित वार्ता, संध्या जी आभार

यहाँ लगने वाले लिंक्स तो पढने ज़रूरी होते हैं... अच्छी वार्ता... मुझे शामिल करने के लिए आभार...

सुन्दर व रोचक लिंक संयोजन्।

बहुत सुन्दर लिंक्स....रोचक चर्चा....

कई तरह की लिंक्स से सजी रंगबिरंगी वार्ता बहुत अच्छी लगी |रामगढ़ की यात्रा में आनंद आ गया |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा

सुन्दर व रोचक लिंक संयोजन्। मुझे शामिल करने के लिए आभार|

रोचक,सुन्दर वार्ता।आभार,संध्याजी!

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