मंगलवार, 5 जून 2012

जिन्दगी की खूबसूरत राहें और खुदगर्जी...ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

 संध्या शर्मा का नमस्कार.परिवर्तन सृष्टि का नियम है, किन्तु कुछ परिवर्तन समाज के लिए घातक तथा अंधकार की ओर ले जाते हैं. इसी परिवर्तन के तहत हमारे खेल आज लुप्त होते जा रहे हैं. कुश्ती, गिल्ली-डंडा, खो-खो, लट्टू जैसे कई अन्य खेलों की जगह आज इलेक्ट्रोनिक गेम्स तथा टी.वी. कार्टून्स का बोलबाला है. हमारे नन्हे-मुन्ने खेलकूद से ज्यादा इनमे उलझे रहते हैं, जिसके कारण अनेक स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं. एक जमाना था जब बच्चे मस्ती में जीते थे, छुट्टियाँ लगते ही मामा-बुआ के घर चले जाते थे या अपने देशी खेल का आनंद उठाते थे, आजकल ये सब खेल इतिहास बनते जा रहे हैं. सिमट रहा है बचपन एक दायरे में. बच्चे तो बच्चे हैं, जरुरत है हम बड़ों को समझने और उन्हें समझाने की. आइये अब चलते हैं आज की ब्लॉग 4  वार्ता पर. मैं समेट आई हूँ कुछ लिंक्स आपके लिए...         .

पुन:पुन:... - तुममें खोई थी कुछ बीजों को बोई थी अब फूल खिलें हैं काँटों में भी उलझे हैं.... तुममें खोती रही बस तुम्हें फूल ही फूल देती रही और कांटे चुभोती रही.... .मौसम की रखवाली करेंगे....... - नीम का एक पेड़ बाहर के, ओसारे से लगे तो गर्मियों के दिन में उसकी छांव में बैठा करेंगे..... कड़ी होगी धूप जो जाड़ों में सर पर, नीम की डाली से हम पर्दा... वो साढे सात साल की उम्र के " भाई साहब " - *"भाई साहब मुझे भी "* मंदिर की कतार में खडे उस शख्स ने, जो यूं तो एकटक मंदिर के प्रवेश द्वार के पीछे भगवान की मूरत और वहां साथ ही दीवार पर लगी पर अपन... 

उपजाऊ माटी में उद्योग और इमारत - अन्न उत्पादन के क्षेत्र में भारत शुरू से ही अग्रणी रहा है देश के लगभग सभी प्रांत फसल विशेष का उत्पादन करने में अपनी-अपनी पहचान बनायी हुई हैं। छत्तीसगढ़ मे... विकसित देशों का बाई-प्रोडक्ट है कैंसर - विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अगले दो दशक में कैंसर पीड़ितों की संख्या में 75 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है.शो...बिना साहित्य संगीत में अभिरुचि के मनुष्य पशु समान है! - मनुष्य में संगीत प्रेम एक सहज बोध है . बांसुरी सरीखे वाद्य यंत्र 30 हजार वर्ष से भी पुराने पुरातत्व उत्खननों में मिले हैं . यहाँ तक कि तब की चिड़ियों की...

खुदगर्जी ... - ऐ दोस्त ... तेरी खुदगर्जी जिसे तू ... अपना हथियार समझता है ये हथियार बेहद प्राणघातक है ! किन्तु ... ये किसी और के लिए नहीं वरन खुद तेरे लिए...तेरा मेरा मेल हो कैसे - तेरा मेरा मेल हो कैसे तू अनंत आकाश सरीखा यह नन्हा दिल एक झमेला,  तू सनातन शांत सदा है यहाँ विचारों का इक मेला,   तू सत्य है सदा एक सा बदल रहा य...  अनुभूतियों का आकाश- आओ रिसते जख्म से बातें करें कोई सुने या फिर कुछ भी ना सुने अंतर्मुखी का मुख भी चाहे बंद हो जख्म का आपस में कितना द्वंद हो खुली खिडकियों से हवाए लौ.. 

है वह कौन - हूँ एक अनगढ़ खिलोना बनाया सवारा बुद्धि दी किसी अज्ञात शक्ति ने पर स्वतंत्र न होने दिया बुद्धि जहाँ हांक ले गयी उस ओर ही खिंचता गया राह की बाधाओं से...छुट्टे पशुओं का आतंक - आपके शहर में कितना है यह तो मैं नहीं जानता लेकिन बनारस में छुट्टे पशुओं का भंयकर आतंक है। नींद खुलते ही कानों में चिड़ियों की चहचहाहट नहीं बंदरों की चीख प.ताकि, जब जाएँ तो...! साँसें चुक जायेंगी जिस दिन... उस दिन चल देंगे जग से हम! मात्र पड़ाव ही तो है जीवन फिर मोह कैसा... कैसा गम! बस रहें जब तक तब तक बना रहे मन-प्राण... शुभ संकल्पों का आँगन! कांटें चुनते हुए गुजरें राहों से ताकि,...

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (१२वीं-कड़ी) द्वितीय अध्याय (सांख्य योग - २.६४-७२) राग द्वेष से जो विमुक्त हो संसारिक विषयों को भोगता. कर लेता वश में जो इन्द्रिय, वह ज्ञानी आनन्द भोगता. पाता परम शान्ति साधक, सब दुखों का नाश है होता. बुद्धि प्रतिष्...हिंदी इतनी सरल भी नहीं.... ( हिंदी को पढ़ते हुए ) - हमारी हिंदी की क्या बात है . हिंदी से मेरा मतलब है हिंदी भाषा , वह हिंदी नहीं जो आमतौर पर ईर्ष्यावश लोंग एक दूसरे की कर दिया करते हैं . हिंदी यानि हमारी र... ...जिन्दगी की खुबसुरत राहें ...जिन्दगी की खुबसुरत राहें ... . जब - जब तुम्हें भटकाने लगे .. एक बार , तुम मुड़ के देख लेना .. उन आशा भरी निगाहों को ... जो तरस रही है तुम्हारी कामयाबी देखने ... तुम जब भी मारोगे.... उनकी आशाओ को ठोकर...

कार्टून :- क्‍या आपको ऐसी प्रेरणा मि‍ली ?


आज की वार्ता को देते हैं विराम मिलते हैं, अगली वार्ता पर तब तक के लिए नमस्कार .......

9 टिप्पणियाँ:

इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

चिन्तनशील अंदाज में की गयी वार्ता पसंद आई ...!

वाह बहुत खूब संध्‍या जी ..

बहुत बढ़िया वार्ता संध्या जी.....
अच्छे लिंक्स
आभार
अनु

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