सोमवार, 22 मार्च 2010

बोदूराम की खोज खबर--महफूज भाई का पता चला----ब्लाग4वार्ता --"संगीता पुरी"

आज 21 मार्च है , गणित ज्‍योतिष में इस दिन का बडा महत्‍व है , क्‍यूंकि आज पृथ्‍वी पर 12 घंटे का दिन और बारह घंटे की रात होती है। इससे पूर्व भारतवर्ष में दिन छोटे और रात बडी हो रही थी , आज के बाद यहां दिन बडे और रातें छोटी होने लगेंगी। वैसे इस खास दिन का फलित ज्‍योतिष की गणना में कोई महत्‍व नहीं होता। पिछले सप्‍ताह 11 पोस्‍टों के साथ मैने इस मंच पर चर्चा की शुरूआत की थी , आज प्रस्‍तुत है 21 पोस्‍टों के साथ दूसरी सोमवारीय चर्चा ....

सुबह की शुरूआत में ही पोस्‍ट हुई आचार्य धनंजय शास्‍त्री जी की पोस्‍ट को पढकर सुख और आनंद में भेद समझा जा सकता है ..... जो इन्द्रियों को अच्छा लगे, वह सुख "सुहितं खेभ्य:" कहलाता है। शाश्वत सुख को आनंद कहते हैं। यह आत्मा का विषय है। यद्यपि इन्द्रिय जन्य सुख-दु:खादि का कर्ता-भोक्ता भी आत्मा है।जिसके पास जो वस्तु नही होती वह उसकी कामना करता है। प्रकृति जड़ होने के कारण जीव को क्षणि सुखानुभुति करा सकती है। शाश्वत सुख और आनंद के लिए उसे परमे्श्वर की ओर मुड़ना ही पड़ेगा।

राहूल प्रताप सिंह जी लगातार नई नई जानकारियां दे रहे हैं , आज उनकी पोस्‍ट पढें ....  कभी कभी ऐसी स्थिति आ जाती है , कि आपके फोन की बैटरी डाउन होती है ,और आपको चार्ज करने का कोई विकल्प भी मौजूद नहीं होता है | ऐसी स्थिति में आपके पास कोई विकल्प नहीं रह जाता है |ये स्थिति शहरों में तो कम पर ग्रामीण इलाकों में बहुत ही ज्यादा है,जहाँ दो या तीन तीन दिन तक बिजली के दर्शन ही नहीं होते है | या कहीं कहीं तो बिलकुल बिजली है ही नहीं | अब ऐसी दिक्कतों से छुटकारा मिलने वाला है।

महेश कुमार वर्मा जी द्वारा पूछे गए प्रश्‍नों के जबाब आप दिनेशराय द्विवेदी जी के इस पोस्‍ट में देख सकते हैं ......  दि कोई विशिष्ट विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करता है तो उन की संताने भी भारत में पैदा होने के कारण हिन्दू विवाह विधि से ही शासित होंगी। यदि कोई यह कहता है कि वह हिन्दू विधि से शासित नहीं होता है तो उसे स्वयं यह साबित करना होगा कि परंपरा और प्रयोग से वह हिन्दू विधि से शासित नहीं होता है।

यमुना की गंदगी अब दूर हो रही है , आर्ट ऑफ लिविंग का प्रयास सराहनीय है ....  दिल्ली में यमुना एक नाले के रूप में बहती है , आर्ट ऑफ़ लिविंग  के द्वारा १७ मार्च से एक सामूहिक  प्रयास शुरू किया गया है , बहुत प्रसंशनीय कार्य मानते हुए लोगों ने इसमें योगदान किया है  ! "मेरी दिल्ली मेरी यमुना " अभियान में बिसिनेस स्कूल और अन्य कालेज के विद्यार्थी बढ़ चढ़ के हिस्सा लेते देखे गए यह एक अच्छा शकुन है !
अगर यमुना के आस पास रहने वाले लोग ही, कमर कस कर निकल पड़ें तो मुझे विश्वास है कि हमारे माथे लगा यह गन्दा टीका साफ़ होते देर नहीं लगेगी ! 

मैं भी तेरी तरह उड़ूँ ये सपने मुझको आते हैं ,
आसमान में अपने संग मुझको भी लेकर उड़ जा तू !

प्यारी चूँ-चूँ आ जा तू भोली चूँ-चूँ आ जा तू !
सबका दिल बहला जा तू नन्हीं चूँ-चूँ आ जा तू ! 

कांक्रीट के घने जंगलों के बीच
मेरी छोटी बगिया मुस्‍काती है

और जब कोयल हाईब्रिड
बौर आये आम के पेड पर
बैठकर कूकती है,
गौरैया के झुंड फुदकते हैं
तब मेरा श्रम
सार्थक नजर आता है
तेजी से कांक्रीटमय होती
शहरी धरती में
कहीं कोई पेड भी है
जिसे मैंनें लगाया है.

मुहावरों और लोकोक्तियों से भी पोस्‍ट बन सकती हैं , अवधिया जी के इस पोस्‍ट को देखें ....  अब तो हम भी यहाँ आकर मस्त हो गये हैं। विषय आधारित ब्लोग न बना कर अपने "आधा तीतर आधा बटेर" ब्लोग से ही खुश रहते हैं। भले ही अब हमारा हाल "आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास" हो गया है पर किसी को बताते नहीं कि हम "धोबी के गधे, घर के ना घाट के" हो गये हैं। आखिर बताने से "अपनी जाँघ उघारिये, आपहि मरिये लाज" वाली मिसल ही तो चरितार्थ होगी। इसलिये "अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत" मंत्र को ध्यान में रखकर अपने ब्लोग में जो मन मे आता है वो लिख दिया करते हैं।

धर्म-निरपेक्षता की माला जपते, तुष्ठिकरण भी करते है।
राष्ट्र-हितों को दर किनार कर, वोट-बैंक पर मरते है ॥

भ्रष्टाचार के साधन ढूढते है ये नित यहां पर नये-नये ।
चाटुकारिता करते-करते, ये अपना धर्म भी भूल गये॥

पथ-भ्रष्ठ कर युवा शक्ति को, पैदा कर रहे हुड-दंगो को।
साठ साल मे अक्ल न आई,अपने इन भिखमंगों को ॥

नित्य नियम से विद्यालय में, मैं पढ़ने को जाता हूँ।
इण्टरवल जब हो जाता मैं टिफन खोल कर खाता हूँ।
खेल-खेल में दीदी जी विज्ञान गणित सिखलाती हैं।
हिन्दी और सामान्य-ज्ञान भी ढंग से हमें पढ़ाती हैं।।
कम्प्यूटर में सर जी हमको रोज लैब ले जाते है।
माउस और कर्सर का हमको सारा भेद बताते हैं।

कुमार राधारमण जी कहते हैं , सावधान! असाध्य टीबी के मामले भारत में बढ रहे हैं .....  विश्व स्वास्थ्य संगठन का सुझाव है कि टीबी की जांच सुविधाएं तुरंत बढाई जानी चाहिए और एमडीआर टीबी की जांच दो दिन में करने की सुविधा सब जगर होनी चाहिए। गौरतलब है कि पारंपरिक तरीकों से इस टीबी का पता लगने में ही चार महीने तक गुज़र जाते हैं।


पाठकों को बताते चलें कि असाधारण टीबी के मामले प्रायः तभी होते हैं जब पहले हुई टीबी का ठीक से इलाज़ न कराया गया हो या रोगी ने घटिया दवा इस्तेमाल की हो। एक्सडीआर टीबी की जांच की सुविधा अभी चंद देशों में ही है।  

आज डेली न्‍यूज एक्टिविस्‍ट में बहुत सारे ब्‍लोगों की चर्चा हुई है .....  30 जनवरी 2010 को डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट के साप्ताहिक स्तंभ 'ब्लॉग गुरू' में भारत मातरम्,हिन्दुस्तान का दर्द, अंधड़, भारत की कहानी हैदर की जुबानी, इतनी सी बात, मुकुल कामीडिया, सर्वत इंडिया, रंगकर्मी तथा राजतंत्र नामक ब्लोगों का उल्लेख करते हुए महंगाई, देशभक्ति व बसंत की बातें हुईं। 

बहुत दिनों बाद अजय कुमार झाजी की टिप्‍पणी चर्चा भी आज हुई है ...  ओह बहुते अफ़सोस की बात है जी आजकल सब लोग टिप्पी करना कम कर दिए हैं जी ...और दूसरों का क्या कहें जब हम ही खुद बहुते एबसेंटी चल रहे हैं । जो रहे सहे बचे हुए हैं ..ऊ सब दे धनाधन ...इश्वर लडा रहे हैं ....सारा ताकत तो उसी में खर्च हुआ जा रहा है ....तो का होगा ।खैर हम भी बहुत घुसेडू बिलागर हैं .....लीजीए झेला जाए ............
काफी दिनों बाद आज पंकज मिश्रा जी भी बोदूराम की खोज खबर ले रहे हैं .... काफी दिनों के बाद जब मै आज अपने इस ब्लॉग पर सुबह सुबह लौटा तो देखा की हमारा सबसे प्यारा बोदूराम तो दिखाई ही नहीं दे रहा है काफी लोगो से पूछताछ करने पर पता चला की बोदूराम को तो पुलिस उठा ले गयी ..
उलटे पाँव मै भागा-भागा पुलिस थाने पहुचा तो क्या देखता हु की बोदूराम को पुलिस वाले बुरी तरह पीट रहे थे ।


अरविंद चतुर्वेदी जी अपने गांव की मछली भात और नींबू के पत्‍ते की कहानी सुना रहे हैं .....  वह एक उत्सव जैसा दिन होता था। ब्राrाणों के घर की रसोई में तो मछली पक नहीं सकती थी, लेकिन उनके घरों के बाहरी आंगन के किसी छोर पर अस्थाई चूल्हा जलाया जाता था। पुरानी कड़ाही और कुछेक बरतन धो-मांज कर निकाले जाते थे जो मछली पकाने के लिए ही रखे होते थे। खास तौर पर बच्चों के लिए होता था यह मछली भोज। मगर यह शर्त होती थी कि मछली-भात खाने के बाद नींबू के पत्तों से दांत मांजने होंगे, ताकि मुंह से मछली की महक न आए।  

खुशदीप सहगल जी लापता स्‍टार महफूज भाई की तलाश में एक एड डाल चुके हैं , आपको पता चले तो अवश्‍य बताएं ... अब मैंने थक-हार कर लापता इस स्टार ब्लॉगर की तलाश में एड देने की सोची है...शुरुआत ब्लॉगवुड से ही कर रहा हूं...शायद यही बात बन जाए, थाने के चक्कर काटने की नौबत ही न आए...
तलाश......तलाश....तलाश 
आभास मुझे था जीवन में
कुछ ऐसा हम कर जाएंगे
देंगें इक मुट्ठी दान कभी
भर-भर के झोली पाएँगें ..!
जब मन इतराए बादल सा तुम सावन का रिम झिम सुर देना !!


तीस की उम्र में पचास की लगती हैं  
पहाड़ की औरतें  उदास सी लगती हैं
काली हथेलियाँ, पैर बिवाइयां
पत्थर हाथ, पहाड़ जिम्मेदारियां 
चांदनी में अमावस की रात लगती हैं
कड़ी मेहनत सूखी रोटियाँ
किस माटी की हैं ये बहू, बेटियाँ
नियति का किया मज़ाक लगती हैं

इंटरनेट को संस्कृत  में अंतर्जाल लिखें या अंतरजाल ? कौन सा शब्द सही होगा ?
ब्लागवुड  के सभी ख़ास-ओ-आम को इतल्ला दी जाती है....गर्ल फ्रेंड नंबर ३०१ मिल गई है....
महफूज़ मियाँ को उनके साथ देखा गया है....हमारे खोजी कैमरे ने वो चेहरा भी कैद कर लिया है.....
देख लीजिये आप भी..... 

C.M. Quiz - 30 के विजेता !


अब अंत में एक गीत का आनंद लीजिए , मैने पूरी चर्चा इसी गीत को सुनते हुए की है .... ललित शर्मा जी गायक सीमा कौशिक जी की आवाज में कुहु कुहु बोले ना कोयलिया नाम का मधुर गीत सुना रहे हैं 

15 टिप्पणियाँ:

वाह संगीता जी,
सुंदर चर्चा-अच्छे लिंक मिले।
आभार

बहुत बढ़िया चर्चा की संगीता जी आपने!!


हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

अनेक शुभकामनाएँ.

आपको आज नये अंदाज़ में देख कर सुखद लगा,बढ़िया चर्चा.

बहुत सुंदर वार्ता.

रामराम.

सुंदर चिट्ठाचर्चा आभार...

संगीता जी,
इस चर्चा के बारे में बस यही कहूंगा...

इट्स डिफरेंट...

जय हिंद...

सुन्दर और विस्तृत चर्चा!

सुंदर चिट्ठाचर्चा!!!
आभार्!

sangeeta ji ...aapne vaakai bahut achchhe charcha kee hai....badhaii

बहुत बढ़िया चर्चा, संगीता जी !

वाह संगीता जी,
सुंदर चर्चा-अच्छे लिंक मिले।

Sangeeta ji,
bahut badhai aapko ,
aapki charcha safal rahi..
bahut hi acche link diye aapne..
mujhe shamil karne ke liye aapka hriday se abbhar...

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