आप सबों को संगीता पुरी का नमस्कार, कछ महत्वपूर्ण चिटठों के साथ मैं आज की वार्ता शुरू कर रही हूं ......
स्वामीजी की पुण्यतिथि पर विशेष
स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था। उनका जन्म 12 मई, 1863 को कोलकाता के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त बहुत ही उदार एवं प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। स्वामी विवेकानंद पर अपने पिता के तर्कसंगत विचारों तथा माता की धार्मिक प्रवृति का असर था।
- मेरी किताब आ गई है: कहीं कोई पढ न डाले
- एक सलाह या एक जान कारी चाहिये आप से.....:वक़्त आने पर बता देंगे तुझे ए आसमाँ हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है.
- सृजनगाथा के चौथे आयोजन में ब्लॉगर संजीत त्रिपाठी सम्मानित : रिपोर्ट भी कर दी भाई लोगों ने
- कार्टून:- हिन्दी समर्थकों के लिए.. :का हिन्दी अनुवाद चाहिये
- कैरम और 'क्वीन' ... ,,, और , लगे हाथ सस्ती लोकप्रियता के प्रति 'सोच' का आग्रह , कुमार विश्वास के बहाने ... :पोस्ट लिख डाली
“आम” आज आम आदमी का फल नहीं रहा, लेकिन फिर भी “आम” आम है। गरीब अमीर हर कोई आम का मुरीद है।
आम की तारीफ में मलीहाबाद में जन्मे क्रान्तिकारी शायर जोश मलीहाबादी हिन्दुस्तान छोड़ते समय मलीहाबाद के आमों को याद करते हुए कहा था।
आम के बागों में जब बरसात होगी पुरखरोश
मेरी फुरकत में लहू रोएगी चश्मे मय फरामोश
रस की बूदें जब उड़ा देंगी गुलिस्तानों के होश
कुंज-ए-रंगी में पुकारेंगी हवांए जोश-जोश
सुन के मेरा नाम मौसम गम जदा हो जाएगा
एक महशर सा महफिल में गुलिस्तांये बयां हो जाएगा
ए मलीहाबाद के रंगीं गुलिस्तां अलविदा।
अलख निरंजन ! बुढ़ारी (बुढ़ापा) में गींजन !! हें...हें....हें....हें.... ! अलख निरंजन तो बहुते सुने होंगे मगर बुढ़ारी में गींजन परोरिया वाली काकी का जोरल मिसरा है। परोरिया वाली काकी याद हैं न.... उ रमलील्ला वाला झपसी कक्का के गाम पर.... ! हाँ वही, जो हाथ चमका-चमका के फकरा जोरे में इस्पात (एक्सपर्ट) थी।
झपसी कक्का रमलील्ला में विश्वामित्र के पाठ लेते थे। उ इस्टेज पर जो गरज के "अलख-निरंजन" बोलते थे कि बिना माइको-लाउडिसपीकर के टोला हिल जाए। गाँव-घर के धिया-पुता से लेकर बढ़-बुजरुग भी कक्का को देखते ही बोल पड़ते थे'अलख-निरंजन'।
यकीन मानिये मैं जब भी यश चोपड़ा की कोई फिल्म देखती थी उसके मनोरम दृश्यों को देख यही ख्याल आता था "अरे क्या है ऐसा स्विट्ज़रलैंड में जो हमारे यहाँ नहीं मिलता इन्हें ..क्या भारत में बर्फ नहीं पड़ती? या यहाँ हसीं वादियाँ और पहाड़ नहीं हैं ?..गायों और झरनों की कोई कमी है क्या भारत में? और वो बैल की घंटी ?.....जितनी चाहो मिल जाये फिर क्यों ये दौड़े छूटे बस पहुँच जाते हैं वहीँ ?
एक बहुत छोटी सी पोस्ट जिसमे बहुत बड़ी बात छीपी हुई है।ये बात मेरा अपना अनुभव नही है मगर मुझे मिले इस एसएमएस ने मुझे भी सोचने पर मज़बूर कर दिया है।मुझे जो एसएमएस मिला उसके अनुसार दिन भर जी तोड़ मेहनत करके घर लौटने के बाद पिता का सवाल-कितना कमाया?पत्नी का सवाल-कितना बचाया?बच्चों का सवाल-क्या लाये?और मां का सवाल -बेटा कुछ खाया या नही?सच मां तो मां है,जय माता दी।
पाठकों मैं जानता हूं कि आपको लगातार कष्ट हो रहा है. एक तो मैं आपको रूक बाबा रूक जैसा गाना सुना रहा हूं तो दूसरा कष्ट यह भी है कि आप विभिन्न ब्लागों पर जाकर जो टिप्पणी कर रहे हैं वह नजर नहीं आ रही है. शायद किसी तकनीकी दिक्कत की वजह से ऐसा हुआ है. धान के देश को संचालित करने वाले ब्लागर जीके अवधिया जी से जब मेरी इस बारे में बातचीत हुई तो पता चला कि कुछ साल पहले कुछ घंटों के लिए ऐसी घटना हो चुकी है. आरंभ वाले भाई संजीव तिवारी ने भी माना कि कोई तकनीकी दिक्कत सामने आई है. ललित डाट के ललित शर्माजी भी इस घटना पर आश्चर्यचकित है.
‘‘यह ठीक रहेगा। मैं आज ही से उसका पीछा करना शुरू कर देता हूं। किन्तु समस्या ये है कि जब मैं उसका पीछा करूंगा तो वह मुझे तुरंत पहचान जायेगी। और फिर मैं लल्लू को पहचानूंगा कैसे?’’
‘‘अरे मेरे होते हुए तुम्हें किस बात की चिन्ता! मैं करूंगा उसका पीछा तुम्हारी तरफ से। मैं पकड़ूंगा उन्हें रंगे हाथों।’’
‘‘तुम! किन्तु तुम कैसे पकड़ोगे उन्हें। तुम तो यहां बन्द हो।’’
‘‘अब इतना तो तुम्हें करना ही पड़ेगा। मैं एक तरकीब बताता हूं। तुम चुपके से इस कोठरी का ताला खोल दो। मैं जाकर तुम्हारा काम कर दूंगा फिर वापस आकर कोठरी मैं बैठ जाऊंगा और तुम ताला लगा देना।’’
‘‘और अगर तुम वापस न आये तो? मेरी नौकरी नहीं चली जायेगी?’’
जब वो मल्हार राग में शिव स्तुति गाती है तो इंद्रदेव इतने खुश होते हैं कि पूरे क्षेत्र को जलमग्न कर देते हैं। उसका जन्म गजियाबाद के एक अमीर परिवार में हुआ था और उसका ब्याह भी एक अमीर घर में, लेकिन वो सादगी भरा जीवन जीने में विश्वास करती थी, वो आज जिन्दा है या नहीं पता नहीं, लेकिन जब इंद्रदेव को खुश करना होता तो लोग उसके द्वार जाते थे। कुछ ऐसा ही किस्सा बता रहा था संकट मोचन मंदिर के निकट एक बिजली की दुकान पर एक भद्र पुरुष। आज से पहले तानसेन के बारे में तो सुना था कि वो दीपक राग गाकर दीए जला देते थे, लेकिन उक्त किस्सा पहली दफा सुनने में आया, हो सकता है सच भी हो और काल्पनिक भी।
.जब मैं मां की गोद को
जहां अपना समझता था
वक्त वह बड़ा ही अच्छा था
जब मैं छोटा बच्चा था।
50 पैसे का सिक्का पाने को
कविता शौक से सुनाता था
धूल के बीच सुबह से शाम तक
गुल्ली-डंडा खेला करता था।
मेहनत का फल आजकल कहाँ मिलता है?!! बैंक से मिला धन, चाहे वो काला हो, पीला हो, या फिर सफेद… उसी से पेट भरता है…
अब इलाहाबाद में ही पेट भरेगा… अपने मन पसन्द……भुट्टे खाकर :( :(
दस बार चिल्लाना होगा… कितने का है? वो बोलेगा… ये 5 रूपये, वो 7 रूपये… ये स्पेशल 10 रूपये… और जो नीचे पड़ा है मात्र 2 रूपये…
हम दस वाला दस तरफ से निहार कर देखेंगे… आखिर शाही नवाब जो ठहरे…आपको पता ही होगा कि नवाब साहब हफ्ते में 4 दिन खाली पेट दौड़ते हैं… मैंगी ठूँस कर…
परसो भारत बंद था इसलिए जाम के चलते पापा ऑफिस नहीं जा पाए .मैंने इस बंद का भरपूर लाभ उठाया , पापा के साथ खूब खेला .जब घर में खेल कर बोर हो गया तो बाहर जाने की जिद की . पापा नहीं माने तो रोने लगा , फिर मम्मी ने कहा की आज "भारत बंद" है "माधव बंद" नहीं है . सुबह से ही दिल्ले में बादल छाए हुवे थे और हल्की बारिस भी हुई थी ,बारिस होने के बाद की धुप बहुत कड़ी होती है , उसी कड़ी धुप में पापा मुझे लेकर बाहर गए . एक घंटे में पार्क में खेला फिर वापस घर आया .
13 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया चर्चा की है...आभार
बहुत बढ़िया रही आज की चर्चा!
बहुत अचछी चर्चा की है संगीता जी
कल से वायरल के कारण हमारी
कुछ ज्यादा ही तबियत नासाज है।
आभार
बहुत बढ़िया रही आज की चर्चा!
अनूप जी को मैंने चिटठा चर्चा में आपसे सावधान रहने को कहा है ! बहुत बढ़िया लिंक ढूंढ रही हैं आजकल आप !
बेहद उम्दा लिंक्स दिए आपने आज की वार्ता में ! आभार !
बहुत बढ़िया रही आज की चर्चा!
व्यवस्थित चर्चा ...मेरी यात्रा शामिल करने का आभार.
बहुत बढ़िया चर्चा....अच्छे लिंक्स देने का आभार
शानदार चर्चा...कई लिंक्स मिल गए...आभार !!
waah.........
bahut sundar !
bakwaas charcha
अच्छे लिंक्स, अच्छी चर्चा।
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