काजल भाई |
एक नाग नागिन का जोड़ा गांव के बाहर एक बांबी में चैन की ज़िंदगी बसर कर रहा था. गांव के लोग उनके बारे में सदैव अच्छा ही सोचते थे न तो वे किसी को डराते धमकाते और न ही ग्रामीण उनको. यानी एक अबोला अनलिखा समझौता सा था आपस में. एक बार गांव में अकाल की स्थिति आई नागिन ने कहा :- प्रिय, तुम इन निरीह इंसानों की कुछ मदद कर दो ?
नागराज़ को पत्नि की सलाह में एक अदभुत संदेश नज़र आया उसने कहा ठीक है मैं कुछ करता हूं... पर इसके लिये तुम को मेरा साथ देना होगा..!
आपसी सहमति से जोड़ा अपनी बांबी से बाहर निकल कर राजा के उस गुप्त खजाने की तलाश में निकले जो उस राजा के पूर्वजों ने छिपा कर रखा था . स्मृतियों के आधार पर खोजते खोजते आखिर नाग दम्पत्ति ने खजाने को खोज ही लिया. हीरे-जवाहरात, स्वर्णाभूषण, यथा शक्ति अपने मुंह में भर कर कठिन परिश्रम से नाग दम्पत्ति ने अपनी बांबी में ठूंस ठूंस कर धन भर दिया... कुछ जवाहरात मोती,सिक्के, आदि बांबी के बाहर बिखेर दिये ताकि ग्राम्यजनों को पता चल जाए. और अथक परिश्रम कर अन्य बांबी में रहने चले गये. बांबी के आसपास धन बिखरा देख ग्राम्यजनों ने अनुमान लगाया कि बांबी धन से भरी होगी.. बस फ़िर क्या था बांबी खोदी उससे धन निकाला गया. उस धन से अकाल के गांव को बड़ी राहत मिली. पर हाय रे इंसानी फ़ितरत.. उसे लगा कि जहां सांप का निवास होता है उधर धन होता है..बस फ़िर क्या था नागदम्पत्ति के बारे में लोग यह जानकारी तलाशते कि वे किस बांबी में रह रहे हैं.. पता लगते ही बांबी खोद देते .... एक एक कर सारी बांबियां खुद जाने पर नाग दम्पत्ति को इंसानी बस्ती छोड़कर वन में जाना पड़ा... लोग तबसे अब तक बांबियां खोदते आ रहे हैं.. हैं न नागों से ज़्यादा ज़हरीले हम इन्सान .. तो अब इन लिंक्स पर गौर कीजिये :-
- बात बक़वास
- कभी देखा है चिता को चीत्कार करते हुये? जी किसी ने भी नहीं
- एक सच्चा किस्सा -प्रतिक्रिया अवश्य दें लिंक से काम चलेगा
- ये बात समझ में आई नहीं हमारी समझ में भी नहीं
- सपनों की हकीकत क्या है - अचानक गुस्से भरी बीबी के जगाने पर टूट जाना
- लिखी ग़ज़ल आज दिल जलाने के बाद हमने जले दिल से मोमबत्ती जला दी
- हरियाणा सरकार गाँधी परिवार पर ही मेहरबान क्यों? क्या मालूम
- शराफत की सीमा ? या सीमा की शराफ़त
- क्या चाचा चौधरी और शकुंतला देवी का दिमाग कम्प्यूटर से तेज़ चलता है? - उस पर ब्लाग लिखें जाएंगे क्या
- क्या प्रियंका चोपड़ा का दारू को प्रमोट करना सही है...खुशदीप - नशीली का नशे को प्रमोट करना क्या बुरा है..
- कोइ पूर्ण नहीं होता एक शून्य के अलावा
- भारतीय क्रिकेट के बद्तमीज़....... - जब जीते थे तब क्या थे ?
- अच्छे बच्चे कौन ? - बस हम
- कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती... यानी प्रत्याशी जीतता है...?
- समझ लेने दो समझ में आया कि नहीं
- ये तो पूरी तरह से भारतीय है: राष्ट्रीय सहारा में ‘mangopeople’
- गोदान से जुड़ा वह वाकया: हिन्दुस्तान में ‘अनहद’
- कुछ चले गए, कुछ जाने को तैयार: दैनिक जागरण में ‘देशनामा’
- बम से ज्यादा खतरनाक है विचारधारा: पीपुल्स समाचार में ‘जिंदगीनामा’
- ये हॉरर किलिंग हैं: दैनिक छत्तीसगढ़ में ‘भारतीय नारी’
अब इज़ाज़त दीजियेसादर अभिवादनआपका मिसफ़िट
4 टिप्पणियाँ:
गिरीश जी बहुआयामी वार्ता के लिए बधाई |मेरी रचना आज शामिल करने के लिए आभार |
आशा
कथा के जरिये बढ़िया सन्देश ,आभार.
अच्छा संकलन।
यहां मुझे स्थान देने के लिए आपका शुक्रिया.
भारतीय क्रिकेट के बदतमीज... शीर्षक के आगे एक टिप्पणी है कि जब जीते थे तब क्या थे? शायद इसे पूरी तरह नहीं पढा गया है। मैने जीत पर साफ कहा है कि देश ने उन्हें सिर पर बैठाया। हारने पर भी मेरा कोई सवाल नहीं है। मैने लेख में साफ कहा है कि हार जीत खेल का हिस्सा है।
मेरा लेख लिखने आशय ये है कि देश के मान सम्मान को अब ठेस पहुंचा रहे हैं खिलाडी। वो कैसे.. मुझे लगता है प्लीज एक बार और पढ लें।
मेरी बात को बिल्कुल अन्यथा ना लें।
महेंद्र जी बस लिंक देना चाहा है... पुछल्ले बिंदु का सिर्फ़ शीर्षक के लिये विनोदवश प्रयोग किया है इसे पोस्ट की समीक्षा न मानिये..
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