शनिवार, 19 मई 2012

अभिव्यक्ति की आजादी और नाक का सवाल

वार्ता के इस अंक में आप सबका स्वागत है . मैं हूँ आप सबका दोस्त केवल राम . इधर कई दिनों से देख रहा हूँ कि लोग अपनी मान और मर्यादा को भूल कर सिर्फ और सिर्फ अपने स्वार्थों कि पूर्ति में लगे हैं , खुद के उद्देश्यों और कार्यों को बड़ा बताकर सब कुछ करने का श्रेय लेने कि जैसे होड़ लगी है , और दूसरी तरफ देखता हूँ तो लगता है कि काम करने वाले लोग सिर्फ काम से प्रेम करते हैं , उनके लिए निश्चित रूप से कर्म ही पूजा है . जो व्यक्ति किसी चाह और लालसा से कहीं पर अपना यागोदान अगर दे भी रहा है तो उस काम का क्या लाभ ? व्यक्ति के अंतर्मन के भाव लाख छुपाये छुपते नहीं और हम हैं कि चेहरों पर नकाब ओढने कि कोशिश करते हैं और इसी कोशिश में लगता है कि हम अपना सब कुछ खो देते हैं . अब जब पाने से अधिक खोया तो क्या पाया ...हिसाब तो सदा घटाव में ही रहा ....और संभवतः जिन्दगी का प्रत्येक पल हमें घटाव की तरफ ले जाता है , हम अपने वास्तविक लक्ष्यों की तरफ बढ़ रहे हैं तो ठीक है , वर्ना सब कुछ हासिल होते हुए भी अंततः कुछ भी हासिल नहीं होगा ....इसलिए अगर हम चाहते हैं कि हम किसी क्षेत्र में कुछ योगदान करें तो निश्चित रूप से पूरी पारदर्शिता और उसमें एक नया मानक स्थापित करते हुए करें ...! आइये शुरू करते हैं वार्ता का यह सुहाना सफ़र , बने रहिये मेरे साथ .....! 

अरूप सर्वव्यापी तुम्हारा रूप ... !! http://anupamassukrity.blogspot.in/ अरूप ... सर्वव्यापी  तुम्हारा रूप..अनेक रंग रंगे -पाखी पंख  में  भरे ......!! विविध  रंग रंगी  जल मीन .... दैत्याकार होते मनु पुत्र ! http://indianscifiarvind.blogspot.in/ अभी इसी वर्ष की बीती फरवरी में  रूसी वैज्ञानिकों के एक अभियान दल ने अन्टार्कटिका में एक इतिहास रच दिया .विगत तकरीबन एक दशक से यहाँ के विपरीत मौसम में भी प्रयोग परीक्षणों में जुटे इन वैज्ञानिकों ने ठोस बर्फ की ३.२ किमी गहरी  खुदाई पूरी करते ही एक ऐसा दृश्य देखा कि अभिभूत हो उठे ...भगवान कृष्ण को समर्पित नाथद्वारा मंदिर http://yadukul.blogspot.in/ भगवान श्री कृष्ण से सम्बंधित तमाम धार्मिक स्थल देश-विदेश में प्रसिद्द हैं. राजस्थान में नाथद्वारा मंदिर का नाम जग-जाहिर है.नाथद्वारा राजस्थान में उदयपुर से 48 किमी दूर है। भगवान श्रीनाथजी (भगवान कृष्ण) को समर्पित यह एक महान वैष्णव मंदिर है, जिसका निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था।  दिशा http://www.banarahebanaras.com/ हिमालय  किधर है ? मैंने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर पतंग उड़ा रहा था. शूर्पणखा:एक शोध! http://mishraarvind.blogspot.in/ अब कैसे कैसे शोध के विषय भी हिन्दी की प्राध्यापिकाएं चयनित करती हैं -इसका उदाहरण मुझे एक उच्च महिला विद्यालय में जाने पर दिखा -एक कथित रूप से माडर्न हिन्दी प्राध्यापिका ने अपनी पी एच डी में पंजीकृत छात्र को एक अद्भुत विषय दे रखा था ."शूर्पणखा के व्यवहार एवं उसके अधिकारों का एक समाजशास्त्रीय विवेचन " ...हद है ....मैंने सोचा अजीब खब्ती टीचर है ....अपनी स्टूडेंट का पूरा जीवन चौपट करने वाली है ..मैंने थोडा हस्तक्षेप करना चाहा ...यह कैसा विषय है? अभिव्यक्ति की आजादी और नाक का सवाल http://hashiya.blogspot.in/ मई दिवस के दिन जेएनयू में लाल बैंड की प्रस्तुति के दौरान जो कुछ हुआ, उस पर अलग-अलग तरह के नजरिए और टिप्पणियां सामने आई हैं. विभिन्न पहलुओं के साथ कुल मिला कर यह बहस अभी खत्म नहीं हुई है और फेसबुक से लेकर जेएनयू तक में यह बहस अब भी चल रही है. 

लौट आओ न पापा ! http://anamika7577.blogspot.in/ पापा देखो ना आज /मैं कितनी सायानी हो गयी हूँ./  आँखों में  नमी नहीं आने देती /   सदा मुस्कुराती हूँ. जड़ना वही नगीना सीखा http://manoramsuman.blogspot.in/ जिसने दुःख में जीना सीखा / जड़ना वही नगीना सीखा / फटेहाल जीवन की गाथा / चिथड़ों को भी सीना सीखा . वसीयत ! http://kriwija.blogspot.in/ उस दिन वृद्धाश्रम के अन्दर सन्नाटा छाया था , अचानक तिवारी जी का निधन हो गया और वहां के कर्ता धर्ता ने उनके बेटे को सूचना देने के लिए फ़ोन उठाया ही था की शर्मा जी ने उन्हें एक कागज़ पकड़ा दिया-' पहले इसको पढ़ लीजिये। ' मैं "मैं" हूँ...http://manoshichatterjee.blogspot.in/ इस साल बच्चों को पढ़ाते हुये, कई अनुभवों से गुज़रते हुए एक बड़ी सीख मिली- प्रोत्साहन में बला की शक्ति होती है। बच्चे को अगर कुछ समझ नहीं आ रहा तो वह उसकी गलती नहीं है। उसे क्यों डाँटा जाये, मेरी समझ से बाहर है। कुछ ऐसे भी अजूबे हैं --- http://tdaral.blogspot.in/ लेखकीय स्वाभिमान के निहितार्थ http://shrut-sugya.blogspot.in/ हम प्रायः सोचते है विचार या मुद्दे पर चर्चा करते हुए विवाद अक्सर व्यक्तिगत क्यों हो जाता है। किन्तु हम भूल जाते है कि जिसे हम लेखन का स्वाभिमान कहते है वह व्यक्तिगत अहंकार ही होता है। इसी कारण स्वाभिमान की ओट में छिपा व्यक्तिगत अहंकार पहचान लिया जाता है. 

आज की वार्ता में सिर्फ इतना ही मिलते हैं फिर चलते-चलते.......!

9 टिप्पणियाँ:

कर्म ही पूजा है ..
बहुत सही लिखा ..

अच्‍छे लिंक्‍स मिले ..

सुंदर वार्ता के लिए आपका आभार !!

सार्थक वार्ता |
आशा

बहुत अच्छे विचार... बढ़िया वार्ता, सुन्दर लिंक्स के साथ... आभार

सुन्दर समाचीन वार्ता!! आभार

सुज्ञ के आलेख को सम्मलित करने के लिए बहुत बहुत आभार आपका

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