संध्या शर्मा का नमस्कार, मई महिना आधा बीत गया और गर्मी ने अपना उग्र रूप धारण करना शुरू कर दिया है, शहर ने ओढ़ ली है हरी चादर. घर के बाहर ग्रीन शेड लग चुके हैं. घर को ठंडा रखने के उपाय तलाशे जा रहे हैं. इस चिलचिलाती धूप में खिली-खिली त्वचा के लिए स्किन केयर के साथ खान-पान का भी खास ख्याल रखना जरुरी है. तरल पदार्थों की मात्रा बढ़ाने से शरीर का तापमान संतुलित रखा जा सकता है. चुभती -जलती गर्मी से परेशान होने की बजाय रूटीन में थोडा सा बदलाव लाकर गर्मी को भी एन्जॉय किया जा सकता है. आइये अब चलें ब्लॉग 4 वार्ता की ओर कुछ उम्दा लिंक्स के साथ...
http://dheerendra11.blogspot.in/ पर धीरेन्द्र जी की रचना पढ़िए .बेटी,,,,, -.बेटी जब होता है जन्म किसी के, आँगन में बेटी का, सदा लाडली होती वह, धन होता माँ की गोद का! समय गुजरता ज्यों-ज्यों, लता सी वह बढती है, घासपात की तरह बढी, फूल सी वह खिलती है! हँस-हँसकर तुतली बोली में, वह स... .http://sushma-aahuti.blogspot.in/ पर सुषमा आहुति जी लिख रही हैं ये दूरियाँ.....!!! -*इतने पास हो तुम,* *फिर भी तुमसे, * *सरहदों की दूरियाँ लगती है.....* *जितनी बेचैन करती है मुझे,* *उतनी ही खुबसूरत ये दूरियाँ लगती है....* * * *कभी ये कितनी यादे,ख्यालों को ... http://udayaveersingh.blogspot.in/ पर उदयवीर जी लिखते हैं वो आया था*वो आता है ,* *बेल बजाता है ,* *मुझे देख हकलाता है * *बाबूजी ! मैडम ...* *तरन को देख सिर झुकाता है * *कुछ दे दीजिये * *हाथ फैलाता है ,* *पत्नी पूछती है * *फिर भाग आये आनाथालय से ?* *जी नहीं ,* *बाप उठा ला.
http://sharda-arorageetgazal.blogspot.in/ पर शारदा अरोरा जी ने कहा है भरी दुनिया में तन्हा *ये मेरा दिल जो तुमने तोड़ा है * *भरी दुनिया में तन्हा छोड़ा है * * * *काँच का कोई खिलौना हूँ मैं शायद * *खेल कर हाथ से जो छोड़ा है * * * *ढह जाती है लकड़ी दीमक लगी * *इश्क ने ऐसा घुना मरोड़ा है * *... .http://shashwat-shilp.blogspot.in/ पर महेंद्र वर्मा जी ने लिखे हैं सूरज: सात दोहे*सूरज सोया रात भर, सुबह गया वह जाग, बस्ती-बस्ती घूमकर, घर-घर बाँटे आग। भरी दुपहरी सूर्य ने, खेला ऐसा दाँव, पानी प्यासा हो गया, बरगद माँगे छाँव। सूरज बोला प्रेम से, सुन धरती मेरी बात, मैं ना उगलूँ आग तो,... http://www.anusheel.in/ पर अनुपमा पाठक जी कहती हैं .ख़ुशी थोड़ी कम है...! बहुत सारा दर्द बिखरा है ज़माने में, ख़ुशी थोड़ी कम है... सूखेपन से जगह-जगह दरक गयी है धरती, आँख कुछ नम है... ऐसे में बारिश की तस्वीर बना कर, मन बस बहल जाता है... कविता का अंतस कोमलता लिखते हुए, कई बार दहल जात....
http://akanksha-asha.blogspot.in/ पर आशा सक्सेना जी की रचना पढ़िए नीड़ वृक्ष पर एक घोंसला था कभी गुलजार कहीं से एक पक्षी आया चौंच डाल उसमें नष्ट उसे करना चाहा पर वह चूक गया असफल रहा चिड़िया ने आवाज उठाई चौच मार आहात किया उसे बहुत भयभीत किया वह डरा या थी मजबूरी वह चल... http://anitanihalani.blogspot.in/ पर अनिता जी ने लिखा है पले वहाँ विश्वास का मोती पले वहाँ विश्वास का मोती संभल संभल के चलने वाला गिरने से तो बच जायेगा, गिरकर भी जो संभल गया उसका गौरव न पायेगा ! पूर्ण बने कोई इस जग में इसकी नहीं जरूरत उसको, हृदय ग्राही, निष्ठावान हो ...http://allexpression.blogspot.in/ पर अनु जी लिखती हैं चुगलखोर पन्ने *डायरियां बड़ी चुगलखोर होतीं हैं................* *जब आप लिखते हैं तो भावनाओं का ज्वार उठा होता है........और आप लिख डालते हैं वो सब कुछ जो शायद आप किसी से कह नहीं सकते......बस कलम चलती जाती हैं और दिल का ख...
http://madhushaalaa-sumit.blogspot.in/ पर मधुरेश जी ने लिखा है अपना पहला प्यार. . पहला प्यार.. ना तो फिगर देखता है, ना ही पर्सनालिटी. ना शो-ऑफ होता है, ना ही वैनिटी. पहला प्यार... ना लूज़र होता है ना विनर. ना ही कोई कैंडल लाइट डिनर. ना कोई इगो, ना प्रेस्ट... http://gatika-sangeeta.blogspot.in/ पर संगीता स्वरुप जी ने लिखी है माँ की याद .... कुछ हाइकु रचनाएँ ... माँ का आँचल आज भी लहराता सुखद यादें । ****************** मीठी निबौरी माँ की फटकार गुणी औषध । ************** माँ का लगाया काजल का दिठौना याद है मुझे ***************** राह तकते ... http://hariharvaishnav.blogspot.in/ पर हरिहर वैष्णव जी की पोस्ट है लोगों को ढोते लोग -इस बार अमृत संदेश, 30 अक्तूबर 1984 अंक में प्रकाशित यह रपट : छोटे शहरों और शहराते हुए कस्बों में, जहाँ अभी टैक्सियों, आटोरिक्शों या ताँगों का प्रचलन (ताँगे तो वैसे भी इने-गिने शहरों में ही चल रहे हैं और...
http://meriparwaz.blogspot.in/ पर कनु जी कह रही हैं कुछ तो हो जिसकी खातिर वो जिए..... अकेलेपन का ज़हर सबसे जबरजस्त ज़हर होता है और इसके नशे से ज्यादा गज़ब का नशा भी और कोई नहीं होता ...लड़की हमेशा से इस ज़हर से बचना चाहती थी जब भी अकेली होती थी उसे लगता था खो जाएगी कही खुद में.zindaginaamaa.blogspot.com पर निधि टंडन जी ने लिखा है छुपाना नहीं है - मिलने की बात करते हो साथ ही साथ डरते हो.. मुझे मिलना है तुमसे वहाँ जहां कोई डर न हो. क्यूँ रात के अँधेरे में सबसे छुपते छुपाते हुए ही मिलें हम ? क्यूँ नहीं... http://www.chalte-chalte.com/ पर केवल राम जी ने लिखा है दुआ का एक लफ्ज , और वर्षों की इबादत - *इ*स ब्रह्माण्ड को जब भी हम देखते हैं , महसूस करते हैं , इसके रहस्यों को जानने की जब कोशिश करते हैं तो कहीं पर हम सीमित हो जाते हैं . हमारी सोच का दायरा ,...
वार्ता का सफ़र यूँ ही जारी रहेगा, मिलते हैं, अगली वार्ता में तब तक के लिए नमस्कार.....
9 टिप्पणियाँ:
swagatm
Behatreen
बहुत अच्छी वार्ता संध्या जी....
देखतीं हूँ सभी लिंक्स धीरे धीरे......
हमारी डायरी के पन्नों को शामिल करने का शुक्रिया.
आभार.
अनु
प्रकृति अपने नियम के हिसाब से काम करेगी ही ..
उसके अनुकूल हमें चलना ही चाहिए ..
अच्छे लिंक्स उपलब्ध कराए ..
अच्छी वार्ता के लिए आभार संएया जी !!
कई सार्थक लिंक्स संध्या जी |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
रोचक वार्ता
अच्छी वार्ता
bahut bahut dhanyvad hame jagah dene ke liye ...poetry links ko ab aaraam se padhoongi...
khubsurat links.....
very well written.
मैं लन्दन की सैर कर भारत लौट आई हूँ।बाहर जा कर कौन अपने प्यारे भारत को भुला सकता है।पर यहाँ वापिस आकर देखा कि मँहगाई तो सब को मारे ड़ाले दे रही है।हर कोई जूझ रहा है उसी से। खास तौर पर प्याज ब हुत मँहगा हुआ है। इस की जरूरत हर सब्जी में होती है।मेरा नया लेख ,"प्याज ने रुलाया ज़ार-ज़ार"जरा पढ़ कर देखिये।
Vinnie
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