मंगलवार, 17 जनवरी 2012

मुश्किल है अपनों से दूर होना ....इसलिए पास ला रहे हैं ......ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

आप सभी को संध्या शर्मा का नमस्कार . प्रकृति के विविध रंगों की तरह जीवन के भी रंग हैं , इसकी भी अपनी शान है . अपने मौसम हैं , अपनी ऋतुएं हैं , और ऐसे खुशनुमा माहौल में जब हमें कुछ सार्थक और मौलिक पढने को मिल जाता है , तो माहौल और भी खुशनुमा बन जाता है . तब हर कोई कहता है बड़ा मुश्किल है अपनों से दूर होना , और अगर आप किसी से होना ही नहीं चाहते तो सही है और हम भी कहते हैं कि अपनों के पास आ जाओ ....तो आइये सफ़र ऐसे शुरू करते हैं .....! 

 " वाइपर और ज़िन्दगी ...."
हलकी सी भी बारिश अगर लगातार हो रही हो और कार का वाइपर काम न करे ,तो फिर आँख के आगे का पूरा दृश्य धुंधला हो जाता है और आँखे बेमानी हो उठती हैं | कितनी भी ज़ोरों की बारिश हो ,वाइप...

हम होंगे कामयाब!
डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग, को जन्मदिन की शुभकामनाएं! गाँधी जी जिनके प्रेरणास्रोत थे…


छलावा !
*नादां, हतभाग्य भंवरा ! * ** *शरीफों के जमाने में * ** *उसके लिए टेढ़ी-मेढ़ी, * ** *भूलभुलैया हर गली थी, * *दिल में पुष्प की स्पृहा थी,* *मगर हर शाख़ पे मिलती * *उसको सिर्फ कली थी !* *और फिर वक्त आया जब ...

'मोहब्बत'
'मोहब्बत' हयात का है एक सफ़हा जोबन कि एक ऊँची परवाज़ है है इख़लास इरादत अरदास परवर दिगार की साज़ है वह रूह का इल्मे इलाही कि किताब है कभी अदक सी अज़ाब तो फिर गरल का घूँट भी है कभी फ़रेब मे लिपटी हुई ...

तेरी यादें .....
तेरी याद चली आयी या मौसम की शैतानी है ऐसा क्यों लगता है जैसे फिर से शाम सुहानी है तेरी यादों की दुनिया भी जालिम तेरे जैसी है पल भर में अपनी लगती है पल भर में बेगानी है तेरे पिंजरे का ये पंक्षी कब का ...

हो जाते हैं क्यूं आर्द् नयन
हो जाते हैं क्यूं आर्द्र नयन * * * **(प्रेम सागर सिंह)* *हर इसान के जीवन मेंयादें ही हैं जो उसे कुछ सोचने समझने के लिए मजबूर कर जाती हैं। इस सत्य से कोई भीविमुख नही हो सकता। युवावस्था का ...

किताबों की दुनिया - 65
पहले की बात है मैंने एक शेर कहा था : संजीदगी, वाबस्तगी, शाइस्तगी, खुद-आगही आसूदगी, इंसानियत, जिसमें नहीं, क्या आदमी (वाबस्तगी: सम्बन्ध, लगाव, शाइस्तगी: सभ्यता, खुद-आगही: आत्मज्ञान, आसूदगी:संतोष) कहने बाद म...

कुछ भूले बिसरे पन्ने...!
२५ अगस्त' २००९ को लिखे गए कुछ पन्ने हाथ आ गए... पढ़ा उन्हें... सहेजने का मन हुआ उन पन्नों को और पढ़ते हुए वो भाव फिर से जी गए हम जब यहाँ स्वीडन आये हफ्ते भर बीते थे बस... दिनचर्या व्यवस्थित नहीं हो पायी ...

अम्मा के लिये
आठ महीने कोमा में रहने के बाद हमारे परिचित परिवार की बुजुर्ग महिला ने देह त्याग दी, दो बच्चों की शादी उसी दौरान हुई, जो पहले से तय  थी. विवाह के कुछ ही दिनों बाद यह घटना घटी. अम्मा के लिये  अम्मा ! तुम चली ग...

तुला , वृश्चिक और धनु लग्‍न वालो के लिए लग्‍न राशिफल ... कैसा रहेगा आपके लिए वर्ष 2012
* तुला लग्नवालों के लिए ....... * 1. 22 दिसंबर 2011 से शुरू हुए कार्यक्रम 20 जनवरी तक किसी न किसी रूप में बने रहेंगे , इस समय भाई , बहन , बंधु बांधवों का महत्व बढेगा , उनके कार्यक्रमों के साथ...

चाबी वाला पत्थर और कस्तूरी की खुश्बू लिए चले गुजरात की ओर ---- ललित शर्मा
कई महीनों से गुजरात यात्रा करने विचार था लेकिन कोई न कोई अवरोध यात्रा में उत्पन्न होने के कारण जाना नहीं हो पा रहा था। पिछले 14 दिसम्बर को मित्र नामदेव जी ने गुजरात जाने की बात कही और मैं सहर्ष तैयार हो ग...

चूल्हे मे उसके अंगारे देखे हैं...
हमने दिन के घुप अँधियारे देखे हैं... बुझ बुझ कर मर जाते तारे देखे हैं... शाम मे फैले लाल खून मे सने हुए से... थके थके बेहोश नज़ारे देखे हैं... बोझ तले वो दबे हुए छुप छुप हैं रोते... हंसते लब हमने बेचारे..

एक पतंगा .......
 रात के अँधेरे में जब भी खोलकर बैठता हूँ मैं पार्क की ओर की खिड़की मेरे कानों में चीखने लगते है झींगुर पूछने लगते है कुछ सवाल कौन हो तुम ? मैं निरुत्तर हो जाता हूँ नहीं दे पाता अपना वास्तविक परिचय नेपथ्य ...

बड़ा मुश्किल होता है अपनों से दूर होना
रात के अँधेरे में जब भी खोलकर बैठता हूँ मैं पार्क की ओर की खिड़की मेरे कानों में चीखने लगते है झींगुर पूछने लगते है कुछ सवाल कौन हो तुम ? मैं निरुत्तर हो जाता हूँ नहीं दे पाता अपना वास्तविक परिचय नेपथ्य ...

मेरा चाहने वाला....
अपनी पलकों से मेरे खाब सजाने वाला, गया इक रोज मुझे छोड़,मेरा चाहने वाला तकती आँखों की फिर आज तमन्ना है वही, हँसे फिर आज मुझ पर,मेरा चाहने वाला वो नाज़िर था मेरा,संगदिल नहीं यार...

मुसाफिर हूँ यारों
6 दिसम्बर, 2011 की दोपहर करीब एक बजे हम लहर गांव में दावत उडाकर आगे पराशर झील के लिये चल पडे। लहर समुद्र तल से 1600 मीटर की ऊंचाई पर है यानी अभी हमें सात किलोमीटर पैदल चलने में 950 मीटर ऊपर भी चढना है। पराशर झील की ऊंचाई 2550 मीटर है... 

शायद तभी पक्के सौदे घाटे के नही होते…… 
उम्र की दराज खोलकर जो देखी उम्र ही वहाँ जमींदोज़ मिली सिर्फ़ एक लम्हा था रुका हुआ जिसके सीने मे था कैद ज़िन्दगी का वो सफ़ा जहाँ मोहब्बत ने मोहब्बत को जीया... 

अजीब दास्ताँ है ये !!! 
नमस्कार , ब्लॉग परिवार के मेरे सभी सदस्यों को मेरा बहुत दिनों बार एक सादर नमस्कार | जानती हूँ बहुत दिनों बाद आना हो पा रह है आपके बीच , सच मानिय..


जागो मेरे साथ ...  
कितनी तन्हां रातें... तेरे बिन गुजारी हैं. आज..... तुझे साथ पाके... साँसों की सरगम पर , धडकनें गीत गा रही हैं . मेरी उलझनें बढ़ा रहीं हैं . तुम हो आगोश में...

मिलते हैं अगली वार्ता में, नमस्कार...

9 टिप्पणियाँ:

संध्‍या जी, बहुत शानदार मंच जमाया है। आपकी मेहनत से ब्‍लॉग वार्ता का रंग निखर आया है।

बड़े अच्छे लगते हैं ये लेख,ये कविता ,
और.... और देख अपना लिंक |

आभार !!! संध्या जी .

बढिया वार्ता संध्या जी, मेरे ब्लॉग को शामिल करने के लिए आभार

अच्छे लिंक्स सजाएं हैं आपने

बेहतर लिंक्स संकलन ...!

रोचक अन्दाज़ मे सुन्दर वार्ता।

उपयोगी रही वार्ता.

nice collection and great service to bloggers, thanks for giving space to my blog

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