शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

बंटी चोर के चोरी के ब्‍लॉग में सभी ब्‍लोगरों की प्रविष्टियां पढिए .. ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

आप सबों को संगीता पुरी का नमस्‍कार , चिट्ठाजगत में आई समस्‍या के कारण पिछले सप्‍ताह इस मंच पर नए महत्‍वपूर्ण चिट्ठों का स्‍वागत नहीं हो पाया था। पिछले सप्‍ताह आए नए नए चिट्ठों की चर्चा करते हुए एक पोस्‍ट पर नजर पडी। आज व‌र्ल्ड साइट डे (8 अक्टूबर)है ,नेत्रदान की भारत को बहुत जरूरत है , जबकि के लिए भारतीयों में जागरूकता कम है , ऐसे में शिवम जी की यह पोस्‍ट प्रासंगिक है ,इसे अवश्‍य पढें , इसके बाद चलते हैं पिछले सप्‍ताह जुडे कुछ नए चिट्ठों और उनकी प्रविष्टियों पर डालते हैं एक नजर .....
वन्दे नितरां भारतवसुधाम्।
दिव्यहिमालय-गंगा-यमुना-सरयू-कृष्णशोभितसरसाम् ।।
मुनिजनदेवैरनिशं पूज्यां जलधितरंगैरंचितसीमाम् ।
भगवल्लीलाधाममयीं  तां नानातीर्थैरभिरमणीयाम् ।।
अध्यात्मधरित्रीं गौरवपूर्णां शान्तिवहां श्रीवरदां सुखदाम् ।
सस्यश्यामलां कलिताममलां कोटि-कोटिजनसेवितमुदिताम् ।।

प्राइमरी की कक्षाओं में पढ़ने तक आनंद और श्रीकांत की दोस्ती खूब निभी मगर ज्यों ही कक्षा पाँच पास करने के पश्चात दोनों का दाखिला अलग-अलग इण्टरमीडिएट स्तर के कॉलेजों में हुआ तो वे एक दूसरे को लगभग भूल से गये। एक ही मोहल्ले में रहने के कारण कभी-कभार का आना जाना अलग बात है मगर पहले जैसी यारी अब नहीं रही। नया स्कूल, नये दोस्त, नई ट्रेन, नये यात्री, नई पहचान, नये रिश्ते, नए रास्ते......             बचपन के दोस्त भी अजीब होते हैं। मिलते हैं तो विपरीत दिशाओं से बहकर आती दो नदियों की तरह जिन्हें संगम तट के बाद देखकर पहचानना असंभव हो जाता है कि कौन गंगा है, कौन यमुना ! 

जब से पहाड़ पर वर्षा और बाढ़ आई है मेरे एक मित्र की पत्नी को अचानक अपने आप पर कोप हो आया। उनको पहाड़ से उतरे बहुत दिन नहीं हुए। यह दुर्घटना भी इसी साल घटनी थी और मित्र को भी इसी वर्ष स्थानान्तरण करवाना था। लाहौल विला कूव्वत। विगत् गर्मियों में अनेक शहरों को डुबा देने वाली बाढ़ के कारण उनका मन पहाड़ से मैदान की ओर हुआ था। ये कल्याण अधिकारी तब जनकल्याण की भावना से ओतप्रोत होकर पहाड़ से मैदान उतर आये थे, पर इस ऊपर वाले से उनको हमेशा नाराजगी रही, वे जहाँ भी ‘कल्याण‘ करने गये वहॉं न कोई बाढ़ आती है, न सूखा पड़ता है और न भूकम्प आते हैं न दंगे, न झगड़े, आखिर क्या करेंगे वे ऐसे पद को हथिया कर जो कोई जुगाड़ ही न बैठा सके। 

न अल्लाह रहता है मस्जिद में
न राम रहता है मन्दिर में
ये दोनो तो बस रहते हैं
इंसान के ही दिल में
हम सबको पता है ये बात
लेकिन फिर भी कहाँ मानते हैं
हम राम की बात या अल्लाह का फरमान
बस निकल पडते है ले के मौत का सामान
जो उससे मरता है 

सितम्बर माह के ये आखिरि दिन और ये सुहाना मौसम मन को हौले हौले गुदगुदा रहा है . ऐसा लगता है मानो हर कोई खुश है और चारों तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ हैं . ये चारों तरफ फैली हरीयाली दिल को कितना सुकून दे जाती है . अब ये मत सोचियेगा की हम इस सुकून को भी बयां कर पाएँगे क्योंकि ये तो सिर्फ महसूस करने की चीज़ है .
वैसे इस बार वर्षा रानी भी दिल्ली पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान रही हैं . सितम्बर के अंत में तो इन्होंने इतना पानी बरसाया की अब कम से कम अगले एक साल तक दिल्ली और आस पास के इलाकों में तो पानी की कमी नहीं होगी और दिल्ली वालों के लिए ये एक ख़ुशी की बात है .

 माननीय सुप्रीम कोर्ट ने लखनऊ की इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पीठ में लम्बित रामजन्मभूंमि/बाबरी मस्जिद प्रकरण के सिलसिले में २४ सितम्बर को जो अंतरिम आदेश दिया है, वह कानूनी दृष्टि से व विभिन्न दृष्टिकोण से गहन विचारणीय है। पूर्व नौकरशाह श्री रमेशचंद्र त्रिपाठी द्वारा एक आम नागरिक की हैसियत से दाखिल किये गये आवेदन पर माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा उच्च न्यायालय को २८ सितम्बर तक निर्णय देने से रोके जाने के अंतरिम आदेश पारित किये गये जो वास्तव में सर्वदृष्टि से आश्चर्यजनक व कानूनी दृष्टि से अनपेक्षित है।

हरियाणा के महेन्द्रगढ़ ज़िला मुख्यालय से क़रीब तीस किलोमीटर दूर स्थित बेवल गांव एक पारंपरिक गांव की सारी ख़ूबियों को समेटे हुए है। एक ऐसा गांव, जहां विकास कागज़ों में तो दौड़ता है मगर गांव की हालत देखकर लगता है कि वह बैलगाड़ी पर सवार है। इलाक़े की बलुई मिट्टी बग़ैर ठीक से पानी पिए गांव का पेट नहीं भरती है। इसके बावजूद गांव की ज्यादातर आबादी के पास खेती पर निर्भर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
विकल्प की ऐसी ही कमी चुनाव के मामले में भी थी। भ्रष्टाचार की तमाम शिक़ायतों के बावजूद गांव का सरपंच लगातार दो बार जीतने में कामयाब हो चुका था। लेकिन जून 2010 में हुए पंचायत चुनाव में सरपंच महावीर सिंह का मुक़ाबला संजय ब्रह्मचारी उर्फ़ स्वामी जी से हुआ। 40 साल के स्वामी जी ने ऐलान किया कि सरपंच बनने पर वो गांव से जुड़े सभी फैसले ग्राम सभा की खुली बैठक में लेंगे।

चेतनाजी लघुकथा का जाना पहचाना नाम हे हम यहाँ उनकी कुछ लघु कथाये दे रहे हे-संपादक
उन्हें विदा करने के बाद भी रवि-रीता की छवि आँखों से हटती न थी। काफी देर तो गेट पर खड़े हाथ हिलाते उन्हें जाते हुये, देखती रही फिर अंदर आकर सोफा, बैक ठीक किये,कुषन जमाये और चाय नाष्ते की कप प्लेटे उठाते हुये दरवाजे पर पड़े तिरछे पायदान को पैर से सीधे करते हुये किचन में आ गई। बचे हुये बिस्किट्स रेपर में लपेट कर डब्बे में डाले और बरतन सिंब में। और अखबार उठा कर लेट गई, बरामदे में पड़ी इजी चेयर पर। दोपहर में ही तो समय मिल पाता है कुछ लिखने-पढ़ने को, लेकिन नजरें अवष्य अखबार पर थी मगर दिमाग कहीं और।

कैसी तो जबरदस्त सुनामी आई थी, उनकी जिंदगी में कि देखते ही देखते सब गायब हो गया, जैसे कि कुछ था ही नहीं पानी ही पानी अंदर बाहर मन में आंगन में। आंखे गीली दिल भी भीगा।
 
कल मैंने एक पोस्ट लिखी थी 'हम नहीं सुधरेंगे'.. 'यहाँ' और 'वहाँ' के परिवेश में जो फर्क है लिख कर बताना मुझे जैसे कलमकार के वश की  बात नहीं है...फिर भी कोशिश करना मेरा कर्तव्य है...फर्क  बुनियादी सोच की है...'यहाँ' अधिकतर जगहों में जो, सोच देखने को मिलती है वो 'वहाँ' बिरले ही नज़र आता है,   ख़ैर आज फिर कुछ घटनाओं का ज़िक्र करती हूँ....मेरी इन बातों का ग़लत अर्थ न लिया जाए, हमारे यहाँ ही कहा गया है...

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय 
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय

थोड़े भीगे भीगे से थोड़े नम हैं हम.... रमण शर्मा जी के ब्‍लॉग पर भी एक नजर .....

लहरों की ध्वनि....स्पष्ट...सॉफ....हवा की ठंडक कुछ जिस्म को चीरती सी हुई....रात्रि का पहर...वो हवा में
में कुछ नमक सी घुली हुई खुश्बू...आँखों पर ज्यों ही ठंडी फुहारी पड़ी तो मस्तिक्श जैसे कुछ चैतन्य हुआ...ओर
में शायद उस नौका में बैठा हुआ कुछ विस्मित सा देख रहा था ....हर और केवल एक समंदर ....अताह...विशाल...ओर असीम ...

मेरी नौका पर झिलमिलता वो रोशनी का पुंज हवा की थपेड़ों में कुछ जलता हुआ ...कुछ बुझता हुआ....अपने जीवन की
राह देख रहा था....कुछ मेरी तरह...ओर में...उस समुद्र में ...एक बंजर समुन्द्र में ...कुछ खोया 

माधव के खाने पर भी डालिए एक नजर .... 

टोमेटो केच अप और चीनी खाने का चस्का वैसे तो पुराना है पर आज कल इस आदत ने जोर पकड़ रखा है . एक कटोरी उठा लेता हूँ फिर मम्मी से साँस माँगता हूँ . फिर उसे कमरे में लाकर खाता हूँ , खतम होने पर फिर किचेन में पहुच कर मम्मी से मांगता हूँ . मम्मी परेशान हो कर मना कर देती है तो पापा से फ़रियाद होती है , पापा एक बार दे देते है , दुबारा माँगने पर परेशान हो जाते है . आज कल इतना साँस खा रहा हूँ की पोटी का रंग भी लाल हो जा रहा है , पर दिल है की मानता नहीं . जब भी याद आता है साँस खाने के लिए कटोरी उठा लेता हूँ .

राहूल त्रिपाठी जी की उपस्थिति अनादि तक ....  

आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर मर गई फुलिया बिचारी कि कुएँ में डूब कर है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा मैं इसे कहता हूँ सरजूपार की मोनालिसा कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है 
मेरा मन आज बहुत ही उदास है तो बैठ गया यह ब्लॉग लिखने कुछ समझ में नहीं आ रहा है की क्या लिखू तो अपने मन की व्यथा ही लिख रहा हूँ......
मै एक बहुत ही मध्यम परिवार का सदस्य हूँ और मुझ पर से मेरे पिता का साया ४ वर्ष की आयु में ही उठ गया और मेरी माँ ने मुझे और मेरे छोटे भाई को किसी तरह से पढाया लिखाया, १९८८ - ८९ में मै जब १० वी की पढाई कर रहा था तभी मुझमे आर्टिकल लिखने का शौक जागा, और मै अक्सर किसी न किसी विषय पर लेख लिखता रहता था पर उसे कही भेजता नहीं था, और जब ११ वी में आया तो मुझसे किसी ने कहा की तुम इतनी बढ़िया लेख लिखते हो इसे कही ना कही प्रकाशन के लिए भेज दिया करो तो तुम्हारा जेब खर्च भी निकल जाया करेगा, फिर मै स्थानीय अखबार दैनिक आज में लिख देता था फिर कॉलेज की घटनाओं को देने लगा तो स्थानीय दैनिक स्वतंत्र भारत ने मुझे कॉलेज का प्रतिनिधि बना दिया,  

नदी के किनारे एक गांव था. गांव के बीच एक छोटा सा बरगद का पेड़ था. उस पेड़ पर चिड़िया का एक जोड़ा घोंसला बना कर रहता था. उस जोड़े का जीवन बड़ा शांतिपूर्वक व्यतीत हो रहा था. तभी एक कौआ उस पेड़ पर आया और चिड़िया के उस जोड़े से कहने लगा-"यह पेड़ हमारा है. तुमलोग इसे छोड़कर चले जाओ."
उस जोड़े ने कहा-"कैसे यह पेड़ तुम्हारा है? हम तो कई वर्षों से यहाँ रह रहे हैं."
"लेकिन अब मेरा है." कौआ बोला. 

आज ज़िन्दगी की एक और शाम ढल गयी....
दे के कुछ हसीं यादें, एक पल कम कर गयी....
कुछ गम, कुछ आंसू, और कुछ हँसी के पल दिए इसने,
दिए कुछ अंधेरे .... कुछ तारे चमका के चली गयी....

चाहता था मैं भी हँसना, और लोगो को हँसाना,

चाहता था रूठ कर मैं, उनसे अपनी बाते मनवाना,
पर कुछ ही पल में, मैं हो गया सबसे बेगाना...
हँसा-हँसा कर ये, मेरी आँखों मैं बिछड़ने के आंसू दे गयी..
26 सितंबर का दिन बेटियों के लिए खास है। इस बार 26 सितंबर को ‘बालिका दिवस’ है। कुछ साल पहले तक मां, पिता और बेटे से लेकर दोस्त तक सभी के नाम पर साल में कोई न कोई एक दिन जरूर तय रहता था, मगर बेटियों के नाम पर कोई दिन नहीं होता था। इसी कमी को देखते हुए बेटियों के लिए भी एक दिन चुना गया, जिसे अब ‘बालिका दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है। 

अंत में रेलवे सेफ्टी के बारे में जानकारी देने वाले इस ब्‍लॉग को पढिए ..... 
अब लेती हूं विदा .. मिलती हूं अगले सप्‍ताह कुछ महत्‍वपूर्ण प्रविष्टियों के साथ .. नमस्‍कार 

27 टिप्पणियाँ:

संगीता जी,
बढिया लिंक दिए आपने वार्ता के माध्यम से।
आभार

बहुत अच्छी प्रस्तुति। नवरात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं!

बंटी वाली लिंक में गड़बड़ है :-(

बंटी वाली लिंक में गड़बड़ है

चर्चा तो बढ़िया है ... चोरों को चर्चा में स्थान देना क्या जरुरी है .... आभार

बढ़िया लिंक देने के लिए आभार संगीता जी !!

@महेन्द्र मिश्र,
आप हमसे इतना नाराज क्यों है ....
बढ़िया चर्चा ....आभार इसमें शामिल करने के लिए

बंटीवाले पोस्‍ट में लिंक लगाने में हुई गल्‍ती के लिए खेद है .. ध्‍यान दिलाने के लिए पाबला जी और संजय भास्‍कर जी का शुक्रिया .. अब गल्‍ती सुधार दी गयी है !!

बंटी चोर सवाल के जवाब की तलाश में है अब
शेष चर्चा अति उत्तम

achhi charcha...
dhanayawaad....
मेरे ब्लॉग मेरी रचना स्त्री...

बहुत बढ़िया वार्ता ..यहाँ से नए लिंक्स मिलते हैं ..आभार

काफी अच्छे लिंक्स मिल गए ..आभार.

अच्छी वार्ता।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
आपको नवरात्र की ढेर सारी शुभकामनाएं!

बढ़िया चर्चा...कई अच्छे लिंक्स मिले...

सुन्दर वार्ता --बढ़िया लिंक्स मिले।

dhanywaad, iss naacheez ke chithey ke vardan ke liye!

बढ़िया चर्चा!

अच्छे लिंक्स !

भारत माता और भारती संस्कृत भाषा के वैभव के गौरव गान के लिए शुरू किये गए ब्लॉग को चर्चा में लेने के लिए आभार !

बहुत खूब संगीता दीदी ..... बेहद उम्दा नगीने छांट कर लायी है आप ब्लॉग जगत से !
यह एक परम सत्य है कि किसी भी ब्लॉग को चलये रखने में पाठको का बहुत बड़ा हाथ होता है खास कर अगर लेखक नया है तो उसके सामने पाठको की कमी सब से बड़ा मुद्दा होता है | ऐसे में आप जैसे ब्लॉग चर्चाकारो का अगर उसको सहयोग मिल जाए तो काफी हद तक उसकी यह समस्या ख़त्म हो जाती है !
आपको बहुत बहुत साधुवाद हिंदी ब्लॉग जगत के नए सदस्यों का परिचय करवाने के लिए !

बढ़िया लिंक देने के लिए आभार

बहुत बढियाँ चर्चा बहुत से अच्छे लिनक्स मिले धन्यवाद !

आप सभी को नवरात्रि के पावन पर्व की हार्दिक शुबकामनाएं !

प्रभावशाली प्रस्तूति
नवरात्रा स्थापना के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं आपको और आपके पाठकों को भी!!
आभार!!

अपनी चर्चा देखी,दूसरों का नहीं पढ़ पा रहा हूँ..कभी फुर्सत में..
..आभार।

बहुत अच्छी प्रस्तुति। नवरात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं!

बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुत करने के लिये आभार

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