शुक्रवार, 16 मार्च 2012

क्यूँ होते हैं लोग ऐसे...ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

 संध्या शर्मा का नमस्कार... महंगाई के एक चाबुक की तरह पड़ने वाले रेल बजट के साथ ही विदर्भ में २४ घंटों के अन्दर ४ किसानो द्वारा आत्महत्या करना सरकार व प्रशासन के लिए बहुत बड़ा कलंक है, बीच में यह सिलसिला कुछ थम सा गया था लेकिन फिर से इस दुखद दौर का शुरू होने का अर्थ यही होता है कि किसान अपने आप को असुरक्षित, असहाय और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. सरकार कि ढुलमुल नीतियां इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार हैं, नहीं तो इतनी आत्महत्याओं के बाद कुछ ठोस कदम अवश्य उठाये जाते... बहुत अफ़सोस कि बात है, देश का अन्नदाता आज जीवन जीने के लिए मोहताज है. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति और उनके परिजनों को दुःख सहने कि शक्ति दे...
चलिए अब चलते हैं आज की ब्लॉग4वार्ता पर, प्रस्तुत है मेरी पसंद के कुछ लिंक्स      

शत् शत् नमन स्व.राहुल शर्मा जी को विनम्र श्रद्धांजली...
एसपी स्व. राहुल शर्मा की खुदकुशी के दो दिनों बाद उनके पिता, पत्नी व परिजन खुलकर सामने आए। परिजनों ने उनकी मौत के पीछे पुलिस सिस्टम को दोषी माना है, साथ ही इस मामले में एफआईआर दर्ज करने की मांग शासन से की ...

जो हासिये पर नही जीते
दरअसल वह आसमान की आंख से विसंगतियों पर पत्थर की तरह चोट करता ऐसा जब जब करता था यकीन मानो दोंनों जहाँ धुँआ धुँआ होता था उतना ही पढा उसने जितना उसने सपनों को बुना था जल में बनें महल की तरह लिखता बु...

एक लघुकथा
किसी कहानी के लिए ,कथानक ,संवाद भाषाशैली , पात्र चरित्रचित्रण ,देशकाल एवं वातावरण तत्वों का होना आवश्यक है । शायद यह सबसे छोटी कहानी होगी । एक रेल में दो आदमी यात्रा कर रहे थे । एक ने दुसरे से पूछा क्या ...

ये तस्वीरें
रह रह कर मन के पर्दे पर उभर रही हैं कुछ तस्वीरें जो बरबस तैर रही हैं आँखों के सामने ये तस्वीरें दिन का ख्वाब हैं या सहेजी हुई कोई बेशक्ल बेतुकी नज़्म या किसी पुरानी किताब के गलते पन्नों पर अस्तित्व खोते अ...

सपने
*सपने * सोई सोई इन आँखों में …. अकसर सपने जगा करते है ये सपने मेरे अपने हैं.. क्यों कि.. जीवन के हर लम्हें ,इन में बसा करते हैं कभी खुशियों का सौगात बन कर कभी उम्मीदों की बगिया बनकर फूल अकसर यहाँ खिला ...

शुक्रगुज़ार होना चाहिए, तुम्हें...
मौसम ऐसा है कि देर रात तक जागने लगा हूँ और सुबह सो नहीं पाता. उलझनों के अनदेखे परदे के पार खुद से पूछता हूँ कि क्या चाहिए दोस्त, किसलिए इतने अधीर हो और बहुत दिनों से क्यों टूटे डूबे रहते हो? सवाल राहत न...

खिली धूप के बाद की उदासी...!
क्यूँ होते हैं लोग ऐसे... दुनिया इतनी बुरी क्यूँ है... हम किसी के क्षेत्र में प्रवेश नहीं करते तो कोई क्यूँ बेवजह हमें कष्ट पहुंचता है... ये ऐसे सवाल हैं जो ज़िन्दगी हमेशा दागती रहती है! अभी कुछ ही दिन पूर...

दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है!
सत्ता के सामने कभी सयानापन नहीं चलता है जिसके हाथ बाजी उसकी बात में दम होता है कोई जंजीर सबसे कमजोर कड़ी से ज्यादा मजबूत नहीं होती है हर कोई भाग खड़ा होता जहाँ दीवार सबसे कमजोर दिखती है जब बड़े घंटे बजने लग...
 (गिरीश"मुकुल") at मिसफिट Misfit  
मेष लग्नवालों के लिए 15 और 16 मार्च 2012 को भाग्य , भगवान , धर्म . ये सब चिंतन के विषय बने रहेंगे। धार्मिक क्रियाकलाप में व्यस्तता रहेगी! कोई बडा खर्च उपस्थित होगा, बाह़य संबंध मजबूत होंगे , पर बाहरी व्य...
*''एक ऐसी चिडिया जो स्‍कूल जाती है। प्रार्थना में शामिल होती है। पढाई करती है। मध्‍यान्‍ह भोजन करती है। बच्‍चों के साथ खेलती है।'' इस चिडिया का नाम है रमली। याद आया......। जी हां, पिछले साल मार्च महीने म...
ना ही कोई दरख़्त हूँ न सायबान हूँ बस्ती से जरा दूर का तनहा मकान हूँ चाहे जिधर से देखिये बदशक्ल लगूंगा मैं जिंदगी की चोट का ताज़ा निशान हूँ कैसे कहूं कि मेरा तवक्को करो जनाब मैं खुद किसी गवाह का पल...
हर सुबह मेरी मां यूं गुनगुनाती है ये प्राची की किरणें एक शाम लाती है हर शाम की घंटी एक गीत गाती है उठ देख आ लल्ला तेरी दीदी बुलाती है लहरें समंदर की या हो रेत की आंधी बरसे गगन अग्नि या रात अंधियारी बन वृक...
दिल बंजारा ठहर गया क्यों इसको तो चलते जाना है. मंज़िल नहीं कोई भी इसकी, इसको तो बढ़ते जाना है. कोई नहीं उम्र का बंधन, जो मिल जाये प्यार बाँट लो. कोई नहीं ठांह है अपनी, जहां रुको उसको अपना लो. हर राहों ...
जादू प्रेम का उसका जाना एक नेमत बन गया याद का बादल बरसा हुलसा तन, मन भीग गया ! बेरुखी उसकी बनी इनायत ऐसे खुद को परखा दिखे ऐब भीतर कैसे - कैसे ! उससे दूरी मिलन का सबब बनी धुलीं आँखें अश्रुओं से भीतर रोशनी छन...
इन्द्रधनुषी छटा बिखरी प्रकृति के हर कौनेमें विविध रंगों मेंरंगी प्रकृति नटीस्वप्नों में सतरंगी चूनर पहन विचरण करती मधुवनमें सारे रंग सिमटने लगे एक अनोखे रंग में शुभ्र चन्द्र की धवलचांदनी बिखरी जल...
.न ज़ख्मों को हवा दो कोई मरहम लगा दो हवा देती है दस्तक चरागों को बुझा दो लदे हैं फूल से जो शजर नीचे झुका दो पडोसी अजनबी हैं दिवारों को उठा दो मुहब्बत मर्ज़ जिनका उन्हें तो बस दुआ दो मेरी नाकामि...
नेता जी एक बात बताईये ये मामला क्या है जरा हमें भी समझाईये। मंत्री बनने से पहले आपके घर में फॉके बरसते थे धोती तो क्या आप लंगोट को भी तरसते थे। ये कैसी आपने जादू की छड़ी घुम...
सुनो ........ हाँ ........... क्यूँ इतनी उदास हो तुम आज? ....................... क्या आज फिर? ......................... कुछ तो कहो ना ........................ देखो तुम्हारा मौन मुझे झुलसाता है कुछ तो कहो ..
चकित हूँ / चिंतित भी कलम - कागज़ के बीच कसमसाती सृजनशीलता को देखकर जी करता है हरवक्त उसे हौले - हौले सहलाती रहूँ विवशताओं की कमजोरियों को अक्षरों से गुदगुदाती रहूँ........ अब तो इस कलम के सहारे छोटे - बड़े ...
आजादी के गीत हम तो गाने लगे हैं लाल किले पे झंडा भी फहराने लगे हैं बुलबुलों को पिंजरों से उड़ने लगे हैं भूखे बच्चे पेटों को सहलाने लगे हैं रोते हुए झुनझुने बजाने लगे हैं आजादी के गीत ..................... न......

अब लेते हैं आपसे विदा मिलते हैं, अगली वार्ता में, नमस्कार.....  ...

5 टिप्पणियाँ:

संध्या जी आज की वार्ता बहुत अच्छी रही |आपने कई लिंक्स दे दी हैं पढने के लिए |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
मुझे यह बताते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है कि मेरी पुस्तक "अनकहा सच "प्रकाशित हो गयी है |
आशा |

बढिया वार्ता संध्या जी, किसानों की मौत पर आंसु बहाने के अलावा कुछ नहीं किया जा सकता। भारत में परम्परागत शिल्पकारों की स्थिति इससे भी अधिक खराब है।

इसलिए तो आमजन खेती छोडने को विवश हैं ..
अच्‍छे अच्‍छे लिंक्‍स ..
सुंदर वार्ता !!

रोचक वार्ता सुन्दर लिंक संयोजन

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