सोमवार, 9 अप्रैल 2012

कविताएं और देउरपारा की रामेश्‍वरी .. ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

भावों और विचारों को अभिव्‍यक्ति देने के लिए साहित्‍य की एक महत्‍वपूर्ण विधा काव्य है। भाव और विचार प्रधान कविता का सीधा सम्बन्ध हृदय से होता है। कविता में कही गई बात का असर तेज और स्थायी होता है।  कवि की दृष्टि से समाज को नवीन दृष्टिकोण से विचार करना आता है और जगत के रहस्यों का नया अर्थ बोध होता है।   बुद्धि और कल्पना के योग से कवि बड़ी सरलता से बड़ी-बड़ी बातें कह देता है , हर युग में कवि अपनी कविता के माध्यम से सत्य के ही दर्शन कराता आ रहा है। कविता में निहित नीति व उपदेश सुनने वाले के पूरे जीवन को बदलने की सामर्थ्य रखते हैं। दर्शन आध्यात्म्य, प्रकृति और सूक्ष्म संवेदनाऍं कविता के माध्यम से बड़ी सरलता से समझाई जा सकती हैं। हिंदी ब्‍लोगर भी काव्य के माध्‍यम से अपने भावों और विचारों को अभिव्‍यक्ति देते आ रहे हैं , ब्‍लोगरों के द्वारा आज पोस्‍ट की गयी कुछ सुंदर कविताओं के लिंक प्रस्‍तुत है  ....
.
उन्हें ख़ुशी दे दो-
प्रतीक्षा में अधर सूखे ,
उन्हें हंसी दे दो -
*
वलय अभिशप्त तिरोहित हो ,
सुयश ,सम्मान के सागर ,
वरण शुभ का नियोजित हो ,
मिले सुधा भरी गागर-
चराचर मांगता है ,स्नेह से 
भरी अंजुरी दे दो-

अमावसी, बेजान मूर्तियाँ,
समय के प्रवाह में,
कब की,
विसर्जित हो चुकीं हैं,
फिर भी... 
मेरे पीछे-पीछे,
क्यों लक्ष्यहीन सी,
ये धीरे-धीरे, 
डग भरतीं हैं ?

देखना तुझको बंदगी मेरी ,
 तुझको खो खो के मैंने पाया है
 अब मिटी जा के तिश्नगी मेरी ...
 यूँ सहेजा है इक अनाम सा कुछ ,
 के जैसे आब-ए-शब गुलों पे हो ,
ना लगे धूप इस जहां की ...

दोस्त जितने भी मिलेरंगीन थे 
कुछ न कुछ तो था मगर 
जाने न तुम
कनखियों की राह 
पहचाने न तुम 
रास्ते में जो मिले
ग़मगीन थेजो भी मिले संगी सभी 
नमकीन थे

खुदा ये मुहोब्बत के गम क्यूँ दे दिए..
मैं अकेला भला था इस संसार में
तूने तन्हाइयों के सागर क्यूँ दे दिए...

मैं तो हँसता था फाके मस्ती में भी..
बे-रब्त उम्मीदों के सैलाब क्यूं दे दिए..
आरज़ू ना की जिसने शब्-ए-महताब की,
उसे खुद पे रोने के सिलसिले क्यूं दे दिए..

खिल उठी है ज़िन्दगी फिर, जो अंधेरा छा गया।।

आइने में शक्ल देखी, फिर जवां लगने लगा,
लो हवा का एक झोंका, चेहरा ये सहला गया।।

हौसला है कूद करके, यह समन्दर तैर लूँ,
बाजुओं में अब कहाँ से फिर वही दम आ गया।।

भूख खुलकर लग रही है, अंतड़ियां चलने लगीं,
बन्द था जो मर्तबानों में गिज़ा सब खा गया।।

नज़रों को 
फूल हरसिंगार के |
तुमने 
कुछ बोल दिया 
चर्चे हैं प्यार के |


मौसम का 
रंग -रूप 
और अधिक निखरा है ,
सैलानी 
मन मेरा 
आसपास बिखरा है ,
आज 
मिला कोई 
बिन चिट्ठी ,बिन तार के |

कटोरा सामने रखकर 
नुक्कड़ पर बैठी
कभी भी बूढी
न होने वाली
बुढिया

और
बरसो से
फुटपाथ पर
चाय और सिगरेट
बेचती
असमय ही
बूढी होती
बुढिया
मानो ,
अकर्मण्य सरकार का
लम्बा खोखला जीवन

ना लगाओ
मैंने तो नहीं चाहा
उसकी तमन्ना बनूँ
मैंने तो सिर्फ चाहा था
वो तन्हा ना रहे
तन्हाई में अश्क ना
बहाए
रो रो कर झील सी
नीली आँखों की
ख़ूबसूरती ना खो दे
मैंने तो चाहा तो
वो मायूस ना रहे
मायूसी में
जिंदा रहने की ख्वाइश
ना छोड़ दे


रहते हुए भी

मैं बेखबर हूँ

सलाखों के अंदर की
इस दुनिया से
बिलकुल वैसे ही
जैसे
रंगबिरंगी मछलियाँ
मस्त रहती हैं 
एक्वेरियम की
दीवारों के चारों ओर।

जीवन में अन्धकार
शून्य सी हो जाती हूँ
मिटाने को अकेलापन
लगाती हूँ
हम प्याले, हम निवाले,
हम साये, हम शक्ल से
कुछ अंक,
शून्य से पहले
और हमेशा ही घटती
और विभजित होती हूँ
सम संख्याओं की तरह
कुछ इस तरह की
कुछ भी बचा नहीं पाती अपने लिए

मयपान कर रही हैं , रंगीन तितलियाँ.
क्या बात है , बाजार बड़े सूनसान हैं
सजने लगी हैं आजकल श्मशान की गलियाँ.
बरसात अपने साथ लिये, बाढ़ आ गई
जो बच गया,उस पे गिरीं आज बिजलियाँ.
बागों में बड़ी शान से, हैं खार हँस रहे
खिलने को तरसती हैं मासूम-सी कलियाँ.

अहसास मानो खाली पड़ी हवेली की तरह है
लगता है ज़ख्म आज भी थोडा तो हरा है
लफ्जो में बयां होती किसी पहेली की तरह है
चाहत कभी जो इस कदर बरसी हो किसी पर
चांदनी में तू खिलती हुई चमेली की तरह है
कोशिश बीते वक़्त की पूरी रही मगर
हर दिन तेरा ख्याल नई नवेली की तरह है

मजबूरों से काम न लो
वक्त का पहिया घूम रहा है
व्यर्थ कोई इल्जाम न लो

धर्म, जगत - श्रृंगार है
पर कुछ का व्यापार है
धर्म सामने पर पीछे में
मचा हुआ व्यभिचार है
अब लेती हूं एक ब्रेक .. मिलती हूं अगली वार्ता में ..
तबतक मिलिए  .. देऊर पारा की रामेश्वरी से 

12 टिप्पणियाँ:

वार्ता का यह स्वरूप मन भाया ........!

बदली बदली सी वार्ता मन को छू गयी और अधिक रस मई हो गयी |
अच्छी रही आज की वार्ता |
आशा

काव्यमयी वार्ता, ब्लॉग जगत से चुन चुन कर काव्य पुष्प एकत्रित किए हैं……… आभार

Chun-chun ke aise hain dikhe...
Sapnon ki baat jyon...
Kavita ke sang khil uthe...
Man ke jo bhav hon....

Subah-savere kavitaon ne man prasann kar diya...sundar sankalan...

Saadar...

Deepak..

behtrin kawitaye , ewm chune huwe sunder kavya ke liye badhai..

फूलों की खुशबू से महकती सुन्दर वार्ता के लिए आभार... लाज़वाब अंदाज़

संगीता जी बहुत ही सुन्दर वार्ता रही आपकी सभी लिंक्स शानदार हैं, हार्दिक बधाई

सभी लिंक्स अच्छे लगे संगीता जी ...
आभार ..

काव्यमयी वार्ता ..सुकून दे गई.

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी में किसी भी तरह का लिंक न लगाएं।
लिंक लगाने पर आपकी टिप्पणी हटा दी जाएगी।

Twitter Delicious Facebook Digg Stumbleupon Favorites More