आप सबों को संगीता पुरी का नमसकार , कल अक्षय तृतीया था , हिंदी ब्लॉग जगत में भी इसपर बहुत पोस्ट लिखे गए ...प्रस्तुत है उनमें से कुछ आज की वार्ता में ...
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं।
इस बार अक्षय तृतीया का पर्व 24 अप्रैल, मंगलवार को है। इसे सौभाग्य दिवस भी कहते हैं। इसका कारण है कि पूरे वर्ष में कोई भी तिथि क्षय हो सकती है लेकिन यह तिथि अर्थात वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया कभी भी क्षय नहीं होती। इसी कारण इस दिन किए गए हवन, दान, जप या साधना का फल अक्षय(संपूर्ण) होता है।
यह सौभाग्य दिवस है, इस कारण स्त्रियां अपने परिवार की समृद्धि के लिए विशेष व्रत आदि इस दिन करती हैं और पूर्वजों का आशीर्वाद एवं पुण्यात्माओं से परिवार वृद्धि की कामना करती हैं। अक्षय तृतीया लक्ष्मी सिद्धि दिवस है, इस कारण इस दिन लक्ष्मी संबंधित साधनाएं विशेष रूप से की जाती हैं। हिंदू धर्म में हर शुभ कार्य मुहूर्त देखकर किया जाता है लेकिन अक्षय तृतीया ऐसा पर्व है जो सभी मांगलिक कार्यों के लिए सर्वाधिक श्रेष्ठ सिद्ध माना गया है।
भारतीय कालगणना के अनुसार वर्ष में चार स्वयंसिद्ध अभिजीत मुहूर्त होते हैं, अक्षय तृतीया (आखा तीज) भी उन्हीं में से एक है। इसके अलावा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ी पड़वा), दशहरा और दीपावली के पूर्व की प्रदोष तिथि भी अभिजीत मुहूर्त हैं।
अक्षय तृतीया
“अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥„
अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है।
इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।
वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है।
अक्षय तृतीया का लौकिक और लोकोत्तर-दोनों ही दृष्टियों में महत्व है।
प्रागैतिहासिक काल से यह परम्परा रही है कि आज के दिन राजा अपने देश के विशिष्ट किसानों को राज दरबार में आमंत्रित करता था और उन्हें अगले वर्ष बुवाई के लिए विशेष प्रकार के बीज उपहार में देता था। लोगों में यह धारणा प्रचलित थी कि उन बीजों की बुवाई करने वाले किसान के धान्य-कोष्ठक कभी खाली नहीं रहते। यह इसका लौकिक दृष्टिकोण है।
लोकोत्तर दृष्टि से अक्षय तृतीया पर्व का संबंध भगवान ऋषभ के साथ जुड़ा हुआ है। तपस्या हमारी संस्कृति का मूल तत्व है, आधार तत्व है। कहा जाता है कि संसार की जितनी समस्याएं हैं तपस्या से उनका समाधान संभव है। संभवतः इसीलिए लोग विशेष प्रकार की तपस्याएं करते हैं और तपस्या के द्वारा संसार की संपदाओं को हासिल करने का प्रयास करते हैं।
मुझे इस विचार से कोई आपत्ति नहीं है,
परन्तु बंधुओ ज़रा सोचिये कि इस संसार में ऐसी कौनसी चीज़ है जो हमारा साथ कभी नहीं छोडेगी. यदि वेह वस्तु हमसे अलग नहीं होगी तो एक दिन हमें उस वस्तु का त्याग करना होगा क्यूंकि इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है. यदि कोई ऐसी चीज़ है जो हमेशा हमारे साथ रहेगी तो वो है हमारे बांके बिहारी और हमारी राधा राणी का नाम. इसलिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम इस दिन अपनी तिजोरी को तो भरें पर अपने प्रभु को भी याद कर लें क्यूंकि वास्तविकता में अक्षय तो वही हैं. केवल प्रभु कि कृपा ही है, केवल हमारे गुरुजनों का आशीर्वाद ही है और केवल हमारे माता-पिता का प्यार ही है जो हमारा साथ कभी नहीं छोड़ता.
हमारे रसिक चक्र चूडामणि स्वामी श्री हरिदास जी महाराज कहते हैं:
हरी को ऐसो ही सब खेल
मृग तृष्णा जग व्याप रह्यो है, कहूँ बिजोरी न बेल
धन मद् जोबन मद् रज मद्, ज्यों पंछिन में डेल
कहें श्री हरिदास यही जिया जानो, तीरथ को सो मेल
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं।
इस बार अक्षय तृतीया का पर्व 24 अप्रैल, मंगलवार को है। इसे सौभाग्य दिवस भी कहते हैं। इसका कारण है कि पूरे वर्ष में कोई भी तिथि क्षय हो सकती है लेकिन यह तिथि अर्थात वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया कभी भी क्षय नहीं होती। इसी कारण इस दिन किए गए हवन, दान, जप या साधना का फल अक्षय(संपूर्ण) होता है।
यह सौभाग्य दिवस है, इस कारण स्त्रियां अपने परिवार की समृद्धि के लिए विशेष व्रत आदि इस दिन करती हैं और पूर्वजों का आशीर्वाद एवं पुण्यात्माओं से परिवार वृद्धि की कामना करती हैं। अक्षय तृतीया लक्ष्मी सिद्धि दिवस है, इस कारण इस दिन लक्ष्मी संबंधित साधनाएं विशेष रूप से की जाती हैं। हिंदू धर्म में हर शुभ कार्य मुहूर्त देखकर किया जाता है लेकिन अक्षय तृतीया ऐसा पर्व है जो सभी मांगलिक कार्यों के लिए सर्वाधिक श्रेष्ठ सिद्ध माना गया है।
भारतीय कालगणना के अनुसार वर्ष में चार स्वयंसिद्ध अभिजीत मुहूर्त होते हैं, अक्षय तृतीया (आखा तीज) भी उन्हीं में से एक है। इसके अलावा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ी पड़वा), दशहरा और दीपावली के पूर्व की प्रदोष तिथि भी अभिजीत मुहूर्त हैं।
अक्षय तृतीया
“अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥„
अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है।
इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।
वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है।
अक्षय तृतीया का लौकिक और लोकोत्तर-दोनों ही दृष्टियों में महत्व है।
प्रागैतिहासिक काल से यह परम्परा रही है कि आज के दिन राजा अपने देश के विशिष्ट किसानों को राज दरबार में आमंत्रित करता था और उन्हें अगले वर्ष बुवाई के लिए विशेष प्रकार के बीज उपहार में देता था। लोगों में यह धारणा प्रचलित थी कि उन बीजों की बुवाई करने वाले किसान के धान्य-कोष्ठक कभी खाली नहीं रहते। यह इसका लौकिक दृष्टिकोण है।
लोकोत्तर दृष्टि से अक्षय तृतीया पर्व का संबंध भगवान ऋषभ के साथ जुड़ा हुआ है। तपस्या हमारी संस्कृति का मूल तत्व है, आधार तत्व है। कहा जाता है कि संसार की जितनी समस्याएं हैं तपस्या से उनका समाधान संभव है। संभवतः इसीलिए लोग विशेष प्रकार की तपस्याएं करते हैं और तपस्या के द्वारा संसार की संपदाओं को हासिल करने का प्रयास करते हैं।
मुझे इस विचार से कोई आपत्ति नहीं है,
परन्तु बंधुओ ज़रा सोचिये कि इस संसार में ऐसी कौनसी चीज़ है जो हमारा साथ कभी नहीं छोडेगी. यदि वेह वस्तु हमसे अलग नहीं होगी तो एक दिन हमें उस वस्तु का त्याग करना होगा क्यूंकि इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है. यदि कोई ऐसी चीज़ है जो हमेशा हमारे साथ रहेगी तो वो है हमारे बांके बिहारी और हमारी राधा राणी का नाम. इसलिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम इस दिन अपनी तिजोरी को तो भरें पर अपने प्रभु को भी याद कर लें क्यूंकि वास्तविकता में अक्षय तो वही हैं. केवल प्रभु कि कृपा ही है, केवल हमारे गुरुजनों का आशीर्वाद ही है और केवल हमारे माता-पिता का प्यार ही है जो हमारा साथ कभी नहीं छोड़ता.
हमारे रसिक चक्र चूडामणि स्वामी श्री हरिदास जी महाराज कहते हैं:
हरी को ऐसो ही सब खेल
मृग तृष्णा जग व्याप रह्यो है, कहूँ बिजोरी न बेल
धन मद् जोबन मद् रज मद्, ज्यों पंछिन में डेल
कहें श्री हरिदास यही जिया जानो, तीरथ को सो मेल