मंगलवार, 30 नवंबर 2010

हिन्दी को अंतर्जाल पर लाने प्रभावशाली बनाते पोर्टल सृजनगाथा,कविताकोष तथा अभिव्यक्ति-अनुभूती


आज़ अचानक कार्याधिक्य के कारण अस्वस्थ्य  हूं बस शीर्षक के लिंक ही दे पा रहा हूं   काम चलेगा..............?
हिन्दी को अंतर्जाल पर लाने प्रभावशाली बनाते पोर्टल  सृजनगाथा,कविताकोष तथा अभिव्यक्ति-अनुभूती
आप सब से माफ़ी चाहता हूं 
अन्य पत्रिकाओं सहित विस्तृत चर्चा फ़िर कभी 
शेष-शुभ गिरीश

सोमवार, 29 नवंबर 2010

काजल भाई गज़ब पिटने वाले के बारे में तो नही जानता पर पीटने वाला जाना पहचाना लग रहा है..?



काजल भाई गज़ब पिटने वाले के बारे में तो नही जानता पर पीटने वाला जाना पहचाना लग रहा है..? पर बोलूंगा नहीं.
सेनापति पांडुरंग महादेव बापट का जीवन संघर्ष जनोक्ति पर देखिये यह लिंक मुझे ब्लाग प्रहरी से मिला जिनको आप ब्लागप्रहरी-एग्रीगेटर  पर देख सकतें हैं.
1                 2                 3                 4                 5यह साईट बेहद उपयोगी साबित होगी यदि हम सब मिल कर सहयोग करें एक क्लिक से आप इस कुरसी आईये बैठिये :-
                  
पर काज़ल भाई सही कह रहें हैं इस दौर में पाज़िटिव सोच का होना बेहद ज़रूरी है. लाल एण्ड बबाल के बबाल साब ने आज़ एक ताज़ा पोस्ट लगा ही दी :- सौवां धमाल: लाल और बवाल, लाल जी  बवाल को लाए खींच ही लाए उधर अजित गुप्ता  जी  का  ब्लाग भी मुझे भाया ... न कोय ? . ब्लाग जगत में तेजी से उपलब्ध हो रहे टूलस और उनका अनुप्रयोग किया जाना चाहिये. इस बात से सभी सहमत रहे मेरे घर से हुए सर्वप्रथम  एतिहासिक ब्लागर्स लाइव-नेट कास्टिंग के दौरान
इस नये प्रयोग से  दर्शकों की कमी  महसूस नही हुई. वास्तव में सहजता से ही  लिंक बज़्ज़ पर पेस्ट करते ही सारे आन लाईन साथी मिल गए,इस पंक्ति के लिखे  जाने तक 81 दर्शक  आ चुके हैं आप यक़ीन कीजिये आज़ मुझे आश्चर्य हुआ कि जब  मैने बावरे-फ़क़ीरा का प्रसारण  किया तब 27 सीधा दर्शक थे . अब तक 49 दर्शक आ  चुके हैं यहां.  बाबा का आशीर्वाद ही कहूंगा.प्रयोग का अनुसरण अर्चना चावजी ने तुरंत किया "चलो चलें नव युग की ओर " . इस तकनीकी के प्रयोग का नमूना 01/12/2010 की कार्यशाला के दौरान देखा जा सकता है. यदि कोई तक़नीकी समस्या न रही तो. इस कार्यशाला के कार्यशाला  के मुख्य अतिथि होंगे श्री विजय सत्पथी, विशिष्ठ अतिथि श्री ललित शर्मा.  पाण्डिचेरी में थे एक राष्ट्रीय आर्टीजन-कार्यशाला जिसके लिये वे छत्तीसगढ़  के प्रमुख प्रतिनिधि थे को अधूरा में  छोड़ कर रवाना हो चुके हैं
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मित्रो इस ब्लाग को इन दिनों काफ़ी ध्यान से देखा जा रहा है I555 ♣ Whispers From A Silent Heart  है भी रुचिकर ब्लाग. उधर भै राम ने कुछ दिनों के लिये बिदेस त्याग दिया और हो गए राम त्यागी कह रहें हैं ब्लागिंग से कुछ कमा लिया है , देखिये क्या कमाया गुरु ने ?
आज़ बीस से ज़्यादा टिपियाए गए ब्लाग ये थे:-
कार्टून:- क्या आपका ब्लाग PhD थीसिस में शामिल है? [25]क्या किया है तुने खुदा बनके [24]तस्वीर.... [24]आकर्षण [23]दुख के सब साथी सुख में ना कोय  - अजित गुप्‍ता [23]छिपकलियां छिनाल नहीं होतीं, छिपती नहीं हैं, छिड़ती नहीं हैं छिपकलियां [22]पत्नीश्री, मैं और ट्रेड फेयर का डिप्लोमेटिक टूर...खुशदीप [21]हम लोटे (लौटे लिखना था )अपने गांव सब को राम राम ...... गंगा राम की.... [21]
एक से अधिक   पसंद किये गए ब्लाग:-
जबकि पचास से सौ पाठक जुटाए इन ब्लाग्स ने :-
जब हम जवान थे - सतीश सक्सेना [111]
ब्लॉग्गिंग से कमाया धन [65]
छिपकलियां छिनाल नहीं होतीं, छिपती नहीं हैं, छिड़ती नहीं हैं छिपकलियां [58]
आज हमारी शादी की सालगिरह है.. [56]
सौवां धमाल: लाल और बवाल [52]पत्नीश्री, मैं और ट्रेड फेयर का डिप्लोमेटिक टूर...खुशदीप [50] 
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मित्रो रात गहरा रही है नीद भी सता रही है सबको सादर अभिवादन के साथ गिरीश विदा चाहता है प्रिय कवि बच्चन जी की इस कविता के साथ जो कविता-कोष पर उपलब्ध है
क़दम बढाने वाले: कलम चलाने वाले 
अगर तुम्हारा मुकाबला
दीवार से है,
पहाड़ से है,
खाई-खंदक से,
झाड़-झंकाड़ से है
तो दो ही रास्ते हैं-
दीवार को गिराओ,
पहाड़ को काटो,
खाई-खंदक को पाटो,
झाड़-झंकाड़ को छांटो, दूर हटाओ
और एसा नहीं कर सकते-
सीमाएँ सब की हैं-
तो उनकी तरफ पीठ करो, वापस आओ।
प्रगति एक ही राह से नहीं चलती है,
लौटने वालों के साथ भी रहती है।
तुम कदम बढाने वालों में हो
कलम चलाने वालो में नहीं
कि वहीं बैठ रहो
और गर्यवरोध पर लेख-पर-लेख
लिखते जाओ।

रविवार, 28 नवंबर 2010

शहीदों के जिस्‍म पर .. इंजीनियरर्स की परेशानी .. ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

आप सभी पाठकों को संगीता पुरी का नमस्‍कार .. आज एशियाई खेलों का आखिरी दिन है, भारत के लिए पदकों का सफर अब खत्म हो चुका है। एथलेटिक्स और बॉक्सिंग में अपने खिलाड़ियों के जोरदार प्रदर्शन के कारण भारतीय दल ने कुल मिलाकर 14 गोल्ड, 17 सिल्वर और 33 ब्राउंज सहित कुल 64 मेडल जीते। चीन 197 गोल्ड मेडल के साथ नंबर वन बना हुआ है। जबकि दूसरे नंबर पर 75 गोल्ड मेडल के साथ दक्षिण कोरिया है। जापान तीसरे नंबर पर है, जबकि भारतीय दल 14 गोल्ड मेडल के साथ छठे नंबर पर मौजूद है। इस खास खबर के बाद कुछ नए चिट्ठों और चिट्ठाकारों से मिलिए ....

आज हर धर्म मे दो प्रकार के संप्रदाय है । जो साकार ब्रह्म को मानते हैं वो निराकार ब्रह्म को भी मानते हैं परंतु जो निराकार ब्रह्म को मानते हैं वो साकार ब्रह्म की नही मानते और पलट इसकी आलोचना भी करते हैं ।इस तरह हर धर्म मे हैं । हिंदुओं मे आर्य ,जैन मे स्वेतांबर और दिगंबर ,मुस्लिमो मे सिया सुन्नी एसे ही ईसाइयों मे भी हैं सब कंही न कंही हिन्दू धर्म का अंश रह चुके हैं इस बात का प्रमाण सभी धर्मो के धर्मग्रंथों मे मिलता है। मै यंहा सिर्फ उन हिंदुओं को जो आर्य समाज को मानते हैं । यह पूछता हूँ की हमको तो विश्वास है ब्रह्म के साकार और निराकार दोनों होने का और हम प्रमाणित भी कर सकते हैं पर क्या वो प्रमाणित कर सकते हैं की सिर्फ निराकार ब्रह्म है , कभी नही कर सकते । उन्होने सिर्फ वेदों की एक बात पकडली है "निराकार ब्रह्म "उसके आगे न कुछ बता सकते न ही प्रमाणित कर सकते हैं ।


कल रात बरसी बारिश की रिमझिम फुहार है।

सर्दियों की शुरू हो गई अब बहार है।।


अब तो निकलेंगे मोटे कंबल, जैकेस, मौजे और रजाइयां,
हीटर और गीजर भी पानी गर्म करने को तैयार है।
दिन होते जायेंगे अब तो छोटे, छोटे और छोटे,
और रातें बड़ी, बड़ी और बड़ी हो जाने को तैयार हैं।। कल रात बरसी बारिश...



रोज़ नए नए घोटाले,"कॉमन वेल्थ,आदर्श सोसाइटी,रुचिका केस..." और आज एक और नयी बात सुनी "भारत पहले नो. पे है,जिसका सबसे ज्यादा काला धन स्विस बैंक में है(६५,२२५ अरब),(हर साल तकरीबन देश के हर नागरिक को २,००० रुपये,३० साल तक मिलें तो बनता है इतना रूपया|
ठोक बजाकर ये तो हम कह देते हैं,"इंडिया इस डेवेलोपिंग कंट्री".......पर शिक्षा बजेट से ६ गुना ज्यादा "२ ग" घोटाला है| 
नेहरु जी ने कहा था "घूसखोरों को बिजिली के खम्बों के साथ बांधकर मारना चाहिए" पर शायद खम्बे ही कम पड़ जायेंगे| 
"आखिर हमारा देश चल कैसे रहा है? सब हमारे सामने है......कौन करप्ट नहीं है....|
"उनको श्रधांजलि  अर्पित करता हूँ, जिन्होंने दिल्ली इमारत हादसे में अपनी जान गँवाई|"
"WHAT IF OUR INDIA WILL BE..


इस जहर से हर शख्स अनजान बनकर क्यों बैठा है। इस जहर को अपने जीवन का हिस्सा क्यों माने है? खतरे से आपको आगाह करना हमारा धर्म है। आप माने या न माने ये आपका कर्म है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं उस खतरे की जो धीरे-धीरे दबे पांव भारतवर्ष की एक अरब से भी ज्यादा आबादी में अपने पैर पसारने के लिए छटपटा रहा है। हम यहां बात कर रहे है उन जीन प्रसंस्कृत उत्पादों की जो न सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा हैं बल्कि मानव शरीर के लिए भी किसी मीठे जहर से कम नहीं है।


डायपर से लाल चकत्ते अपने बच्चे के ही मूत्र से ले कर नया भोजन तक किसी भी कारण से हो सकते हैं. कुछ कारणों की चर्चा हम आज कर रहे है . 
नमी: यहां तक कि सबसे शोषक डायपर आपके बच्चे की नाजुक त्वचा पर कुछ नमी छोड़ देता है. और जब आपके बच्चे का मूत्र मल के बैक्टीरिया के साथ घूल जाता है, तो यह टूट कर अपने रासायनिक रूपों मे अर्थार्त अमोनिया मे बदल जाता है , जो की आपके बच्चे की नाजुक त्वचा पर बहुत कठोर हो सकता है


बुद्धि, कौशल हर चीज में किरण लड़कों से कम नहीं। 'लोग क्या कहेंगे' इस बात की किरण ने कभी भी परवाह नहीं करते हुए अपनी जिंदगी के मायने खुद निर्धारित किए। अपने जीवन व पेशे की हर चुनौती का हँसकर सामना करने वाली किरण बेदी साहस व कुशाग्रता की एक मिसाल हैं, जिसका अनुसरण इस समाज को एक सकारात्मक बदलाव की राह पर ले जाएगा। 'क्रेन बेदी' के नाम से विख्यात इस महिला ने बहादुरी की जो इबारत लिखी है, उसे सालों तक पढ़ा जाएगा।

हमने की खास मुलाकात किरण बेदी जी के साथ।

आज ना जाने क्यों किसी एक दोस्त के एक एस ऍम एस (मेसेज) ने मन को झंझोड़ कर रख दिया | वो उस मेसेज के माध्यम से शायद मुझसे कुछ कहना चाहता था या कुछ पूछना चाहता था | 
उसने मेरे सामने भारत की वो तस्वीर रखने की कोशिश की जिसे शायद हम देखते हुए भी अनदेखा सा करते हैं |
कुछ बातें जो उसकी मुझे छु गयीं उन्हें यहाँ वर्णित कर रहा हूँ |


दस चेहरे अपने 
कब चाहा था मैंने 
एक ही चेहरा अन्दर 
और एक ही चेहरा बाहर 
बनाये रखा बरसों 

बदलती जा रही हूँ 
पुराने वजूद को 
जब ग़मगीन होती 
मुस्कराहट का मुखौटा 
चढ़ा लिया
नयनों से धारा बन बहते आंसू की जगह 
सख्त, तने चेहरे लिए

जब से देखा है तेरी .झील से आंखे,.......मैं जीना सीख गया हू
POET- PARVIN ALLAHABADI & MEHEK SULTANA

तेरी सादगी में क्या बात थी
तेरे सादगी में क्या बात थी
वोह तो पुरी के पुरी अल्लाहाबाद थी

तेरी सादगी में क्या बात थी
तेरे सादगी में क्या बात थी
वोह तो पुरी के पुरी अल्लाहाबाद थी

तू ही गंगा, तू ही दुर्गा, तू ही थी वोह सावत्री
तू ही सीता, तू ही यशोदा, टू ही माता सबरी 

शहीदों के जिस्म पर लगेंगे कब तलक जख्म गहरे,
कब तक बैठे रहेंगे निर्वाक लगाए सोच पर पेहरे,
निर्दोश लहू आखिर कब तक शहीद कहलाएगा,
पाक की सरजमीं पर तिरंगा कब लहराएगा !!

आज़ाद घूम रहे दुश्मन दोस्तों के ही भेस में,
मुल्ला-उमर,लादेन जैसे पनप रहे आज के परिवेश में,
पह्चान ही गये हैं जब हम अपने दुश्मनों को तो,
विलम्ब क्यूं लग रहा समर बिगुल के आदेश में !

जब इंटरनेट और ब्लॉग की दुनिया में आया तो सोनिया गाँधी के बारे में काफ़ी कुछ पढने को मिला । पहले तो मैंने भी इस पर विश्वास नहीं किया और इसे मात्र बकवास सोच कर खारिज कर दियालेकिन एक-दो नहीं कई साईटों पर कई लेखकों ने सोनिया के बारे में काफ़ी कुछ लिखा है जो कि अभी तक प्रिंट मीडिया में नहीं आया है (और भारत में इंटरनेट कितने और किस प्रकार के लोग उपयोग करते हैंयह बताने की आवश्यकता नहीं है) । यह तमाम सामग्री हिन्दी में और विशेषकर "यूनिकोड" में भी पाठकों को सुलभ होनी चाहियेयही सोचकर मैंने "नेहरू-गाँधी राजवंश" नामक पोस्ट लिखी थी जिस पर मुझे मिलीजुली प्रतिक्रिया मिलीकुछ ने इसकी तारीफ़ कीकुछ तटस्थ बने रहे और कुछ ने व्यक्तिगत मेल भेजकर गालियाँ भी दीं (मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्नाः) । 

लन्दन के हीथ्रो एअरपोर्ट से जैसे ही विमान ने उड़ान भरी, श्याम का दिल बल्लियों उछलने लगा. बचपन की स्मृतियाँ एक-एक कर मानस पटल पर उभरने लगीं और जैसे-जैसे विमान आसमान की ऊँचाई की ओर बढ़ता गया, वह आस-पास के वातावरण से बेसुध अतीत में मग्न होता चला गया. माँ की ममता, पिताजी का प्यार, मित्रों के साथ मिलकर धमाचौकड़ी करना, गाँव के खेल, नदी का रेता, हरे-भरे खेत, अनाजों से भरे खलिहान और वहां कार्यरत लोगों की अथक उमंग, तीज त्यौहार की चहल-पहल आदि ह्रदय को रससिक्त करते गए.

गाँव के खेलों की बात ही कुछ और है. चिकई, कबड्डी, कूद, कुश्ती, गिल्ली-डंडा, लुका-छिपी, ओल्हा-पाती, कनईल के बीज से गोटी खेलना, कपड़े से बनी हुई गेंद से एक-दूसरे को दौड़ा कर मारना आदि-आदि. मनोरंजन से भरपूर ये स्वास्थ्यप्रद खेल शारीरिक और मानसिक उन्नति तो प्रदान करते ही हैं, इनमें एक पैसे का खर्च भी नहीं होता है. अतः धर्म, जाति, सामाजिक-आर्थिक अवस्था से निरपेक्ष सबके बच्चे सामान रूप से इन्हें खेल सकते हैं.

चम्पक वन में शेरा नामक एक शेर रहता था एक दिन भोजन की तलाश में वह गुफा में बैठता था इस समय चिंकू चूहा वहां आया शेरा ने चिंकू को पकट लिया खुशी से उसका मन भर गया उसने कहा "आज तुम मेरे हाथ से नहीं बचेगा हां! हां!"
चिक्कू ने विनम्रता से कहा "हमेशा सब की हाल एक तरह नहीं होगा ' मुझ पर दया करो शेरा , अब मुझे छोड़ दो तो समय आने पर मैं तुमारी सहायता करूंगी उसने रोने लगा यह सुनकर शेरा ने हस लिया उसने चिक्कू पर हसने लगा
"तुम, इतना छोट्टा ,मेरे सहायता करें हा! हा! हा! ,देखते हें तुम मुझे कैसे सहायता करती हें "
इतना कहकर शीरा ने चिक्कू को छोड़ दिया

 सफल इन्सान बनना हैं तो शिक्षा का मार्ग उतम हैं" स्कूल की मिटती यादो में बस एक यही लाइन यादहैं समझ नहीं आता १२ साल स्कूल क्यूँ गया क्या सिखा क्या मिला स्कूल ने इंसानों के अन्दर सपनो की दुकान खोल दी जो वकत के साथ बड़ा होता चला गयायाद हैं मुझको माँ की १५० रूपये की वोह वेतन और पापा का कुल आय २०० जिसमे घर भी चलता था

  कहने को तो कुछ दिन में अब, मै भी इंजीनीयर कहलाऊँगा,
    टेक्नोलाजी और साफटवेयरस के ही,गीत सबको सुनाऊँगा,
 पर दरद का ये किस्सा पुराना,
 डिग्री के वास्ते खत्म हुई है मेरी जवानी।
कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी.                                                           इंजीनीयरस की परेशानी,
इक इंजीनीयर की जुबानी।

 चिकित्सक भगवान का दूसरा रूप माना जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं। इस वाक्य को इसलिए भी इसे जोर देते हुए लिख रहा हूँ कि मैं आज डाक्टर की वजह से ही इस लेख को लिखने तक की सफलतम जीवन यात्रा पर हूँ...। व्यक्तिगत मामले पर अधिक चर्चा न करते हुए मैं डाक्टर के पवित्र पेशे की वास्तविकता और वर्तमान में विदू्रप हो चुके चरित्र पर भी चर्चा करना चाहूँगा।
चिकित्सा जगत में नित नये अनुसंधान हो रहे हैं। नई-नई दवाइयों और उपचार के विधियों से असाध्य रोग भी साध्य हो गये हैं। जिस क्षय रोग के चलते व्यक्ति के लिए अंतिम सांसें गिनना ही शेष रह जाता था। परिवार से ही उपेक्षित हो जाता था। 

अब चलती हूं .. नमस्‍कार !!

शनिवार, 27 नवंबर 2010

प्रेम से ज्‍यादा कमिटमेंट मांगती है जिंदगी .. ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

आप सबों को संगीता पुरी का नमस्‍कार, 10 नवंबर के बाद हिंदी ब्‍लॉग जगत से पूरी दूरी बनी रही , पर फुर्सत मिलते ही यह समझने की कोशिश होगी कि पिछले सप्‍ताह कौन सी महत्‍वपूर्ण ग्रहस्थिति थी , जिसके कारण लोगों से मिलने जुलने के मामलों में यह समय कुछ खास रहा। दिल्‍ली में रिश्‍तेदारों और परिचितों के बाद तिलयार झील के ब्‍लॉगर मिलन में ढेर सारे ब्‍लोगरों से मिलना हुआ , फिर 22 को दिल्‍ली से रवानगी , 23 से ही हमारे घर में मेहमानों का आना जाना और 25 को एक भांजे के विवाह में एकत्रित हुए बहुत सारे परिचितों और रिश्‍तेदारों से मिलना हुआ। अभी भी घर में मेहमानों की मौजूदगी है , पर फुर्सत निकालकर ब्‍लॉग जगत का एक चक्‍कर लगा ही ले रही हूं। वैसे लगातार यात्रा के चक्‍कर में थकावट इतनी है कि अभी तक अपने किसी ब्‍लॉग को अपडेट नहीं कर सकी हूं। मेहमानों को विदा करके अपने सभी ब्‍लोगों को अपडेट करना शुरू कर दूंगी , तबतक आप इस वार्ता में देखिए कुछ महत्‍वपूर्ण लिंक्स .....


निर्मला कपिला जी का ब्‍लॉग 'वीर बहूटी' अपनी दूसरी वर्षगांठ मना रहा है ... 

उन्‍हें बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!


इतना भी क्या अहसान फ़रामोश। हद है कृतघ्नता की !!! ... कह रहे हैं हंसराज 'सुज्ञ जी' ....

तेरे जीवन निर्वाह के लिये,तेरी आवश्यकता से भी अधिक संसाधन तुझे प्रकृति ने दिएऔर तुने उसका अनियंत्रित अनवरत दोहन  व शोषण आरंभ कर दिया। तुझे प्रकृति ने धरा का मुखिया बनायातुने अन्य सदस्यों के मुंह का निवाला भी छीन लिया। तेरी सहायता के लिये प्राणी बनेतुने उन्हे पेट का खड्डा भरने का साधन बनाया। सवाल पेट का होता तो जननी इतनी दुखी न होती। पर स्वाद की खातिर, इतना भ्रष्ट हुआ कि अखिल प्रकृति पाकर भी तूं, धृष्टता से भूख और अभाव के बहाने बनाता रहा। 


हर दम्पति की आस है इक न इक सन्तान।

बेटी पहले ही मिले अगर कहीं भगवान।।


प्यारी होती बेटियाँ सबका करे खयाल।

नैहर में जीवन शुरू शेष कटे ससुराल।।


घर की रौनक बेटियाँ जाती है क्यों दूर।
समझ न पाया आजतक कैसा यह दस्तूर।।


कृष्ण को राधा से प्यार था, लेकिन जब वे गोकुल छोड़कर गए तो फिर लौटकर नहीं आए। बाद में उन्होंने बहुत सी शादियां कीं और आठ तो उनकी पटरानियां थीं। राधा का नाम उनकी ब्याहताओं में नहीं था, न ही इस बात की कोई जानकारी है कि लड़कपन के उस दौर के बाद फिर कभी राधा से उनकी मुलाकात भी हुई या नहीं। लेकिन आज भी अपने यहां प्रेम का श्रेष्ठतम रूप राधा और कृष्ण के संबंध को ही माना जाता है। सवाल यह है कि प्यार क्या एक ही बार होता है। क्या इसमें जुए या सट्टे जैसी कोई बात है, जो कभी एक ही बार में लग जाता है तो कभी हजार कोशिशों के बाद भी नहीं लगता।

नहीं ,सुबहे बनारस तो नहीं ,वह  तो एक रोजमर्रा सी सामान्य सी शाम थी  जब  सात समुद्र पार से प्रोफ़ेसर डॉ शिवेंद्र दत्त शुक्ल , मेरे बड़े श्याले (शब्द संदर्भ /सौजन्य :श्री प्रवीण पाण्डेय जी ) के फोन ने उसे घटनापूर्ण  बना दिया .उन्होंने सूचना दी कि उनकी एक पारिवारिक अमेरिकन मित्र एक विशेष मिशन पर भारत आ रही हैं और अपनी वापसी यात्रा में वे १ नवम्बर  से ४ नवम्बर ,१० तक वाराणसी दर्शन भी करेगीं .और हमें उन्हें अटेंड करना है .अब हमारे एक दशक के वाराणसी प्रवास ने हमें ऐसी स्थितियों के लिए काफी कुशल बना दिया है और इस जिम्मेदारी को हम बड़े संयम और समर्पण से पूरा कर लेते हैं ..


मरे थे नेता जी

खबर थी अपूरणीय क्षति की
फिर भी जगह भरनी थी
खुश थे वे-
शवयात्रा में वे खुश-खुश चेहरे देखो
कल उनमें से एक
बैठेगा इसी कुर्सी पर
और हम उसके गले में डालेंगे माला



हर लहू का रंग तो लाल होता है
फिर भी क्यूँ इतना सवाल होता है
.
कातिलों ने नया दस्तूर निकाला है
पहलू में इनके कोतवाल होता है
.
किसी के लिये मातम का दिन है
किसी के लिये कार्निवाल होता है



कल यानी 27 को मेरी इकलौती साली कुदशिया  की शादी है। विवाह समारोह गोरखपुर के अम्बिका मैरिज हाउस में रात 8 बजे सम्पन्न होगा।
कुदशिया एक ब्लागर भी हैं। उनके ब्लाग का नाम है. Human and Science!



में जब भी

पानी को देखता हूँ
सोचता हूँ
इससे कुछ सीखूं
जब प्यास इससे
किस की बुझती हे
और प्यासे के चेहरे पर
ठंडक देखता हूँ
तो सोचता हूँ
काश में पानी होता
जहां जिस बर्तन में
जिस हालत में होता
हर हाल में
हर आकर में
केसे एडजस्ट होते हें


हमारे   भारतीय   संस्कृति   और परम्पराओं  के  अनुसार  विवाह  को  एक पवित्र  बंधन  माना  जाता  है लेकिन  क्या सचमुच  में  आज  के  इस  समय  में  ये  एक पवित्र  बंधन  बन  के  रह  गया  है ????? ये गौर  करने  वाली  बात है कुछ   सामाजिक  कुप्रथाओं  के  कारण  ये  पवित्र बंधन  आज  एक  ऐसे  बंधन  में  परिणत  हो गया  है   जिसके  अंदर    एक  लड़की  की  शादी  करने  के  लिए  माँ  बाप  को किसी  अच्छे  लड़के  की  तलाश  में  दर  दर  की  ठोकरे    खाने   को  मजबूर  होना पड़ता  है पैसे  की  कमी  के  कारन  उन्हें  क्या  कुछ  नही  सहना  पड़ता  है ये सब  सिर्फ  इसलिए  होता  है  क्यूंकि    उनके  पास  अपनी  बेटी  के  लिए  लड़के खरीदने  के  लिए  उतना  पैसा  नही  होता  है  | 


एक बार दिल्ली में रात गए ग़ालिब किसी मुशायरे से सराहनपुर से आए हुए मौलाना फैज़ के साथ वापस आ रहे थे | रस्ते में एक तंग गली से गुजार रहे थे की आगे वही एक गधा खड़ा था | मौलाना ने यह देखकर कहा, " ग़ालिब साहब दिल्ली में गधे बहुत है |" " नहीं हजरत बाहर से आ जाते है |" ग़ालिब ने एक दम चुटकी ली | मौलाना झेप कर चुप हो गए |
अब देती हूं वार्ता को विराम .. मिलूंगी फिर कुछ नए चिट्ठों के साथ ..

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