आप सबों को संगीता पुरी का नमस्कार, 10 नवंबर के बाद हिंदी ब्लॉग जगत से पूरी दूरी बनी रही , पर फुर्सत मिलते ही यह समझने की कोशिश होगी कि पिछले सप्ताह कौन सी महत्वपूर्ण ग्रहस्थिति थी , जिसके कारण लोगों से मिलने जुलने के मामलों में यह समय कुछ खास रहा। दिल्ली में रिश्तेदारों और परिचितों के बाद तिलयार झील के ब्लॉगर मिलन में ढेर सारे ब्लोगरों से मिलना हुआ , फिर 22 को दिल्ली से रवानगी , 23 से ही हमारे घर में मेहमानों का आना जाना और 25 को एक भांजे के विवाह में एकत्रित हुए बहुत सारे परिचितों और रिश्तेदारों से मिलना हुआ। अभी भी घर में मेहमानों की मौजूदगी है , पर फुर्सत निकालकर ब्लॉग जगत का एक चक्कर लगा ही ले रही हूं। वैसे लगातार यात्रा के चक्कर में थकावट इतनी है कि अभी तक अपने किसी ब्लॉग को अपडेट नहीं कर सकी हूं। मेहमानों को विदा करके अपने सभी ब्लोगों को अपडेट करना शुरू कर दूंगी , तबतक आप इस वार्ता में देखिए कुछ महत्वपूर्ण लिंक्स .....
उन्हें बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!
तेरे जीवन निर्वाह के लिये,तेरी आवश्यकता से भी अधिक संसाधन तुझे प्रकृति ने दिए, और तुने उसका अनियंत्रित अनवरत दोहन व शोषण आरंभ कर दिया। तुझे प्रकृति ने धरा का मुखिया बनाया, तुने अन्य सदस्यों के मुंह का निवाला भी छीन लिया। तेरी सहायता के लिये प्राणी बने, तुने उन्हे पेट का खड्डा भरने का साधन बनाया। सवाल पेट का होता तो जननी इतनी दुखी न होती। पर स्वाद की खातिर, इतना भ्रष्ट हुआ कि अखिल प्रकृति पाकर भी तूं, धृष्टता से भूख और अभाव के बहाने बनाता रहा।
हर दम्पति की आस है इक न इक सन्तान।
बेटी पहले ही मिले अगर कहीं भगवान।।
प्यारी होती बेटियाँ सबका करे खयाल।
नैहर में जीवन शुरू शेष कटे ससुराल।।
घर की रौनक बेटियाँ जाती है क्यों दूर।
समझ न पाया आजतक कैसा यह दस्तूर।।
कृष्ण को राधा से प्यार था, लेकिन जब वे गोकुल छोड़कर गए तो फिर लौटकर नहीं आए। बाद में उन्होंने बहुत सी शादियां कीं और आठ तो उनकी पटरानियां थीं। राधा का नाम उनकी ब्याहताओं में नहीं था, न ही इस बात की कोई जानकारी है कि लड़कपन के उस दौर के बाद फिर कभी राधा से उनकी मुलाकात भी हुई या नहीं। लेकिन आज भी अपने यहां प्रेम का श्रेष्ठतम रूप राधा और कृष्ण के संबंध को ही माना जाता है। सवाल यह है कि प्यार क्या एक ही बार होता है। क्या इसमें जुए या सट्टे जैसी कोई बात है, जो कभी एक ही बार में लग जाता है तो कभी हजार कोशिशों के बाद भी नहीं लगता।
नहीं ,सुबहे बनारस तो नहीं ,वह तो एक रोजमर्रा सी सामान्य सी शाम थी जब सात समुद्र पार से प्रोफ़ेसर डॉ शिवेंद्र दत्त शुक्ल , मेरे बड़े श्याले (शब्द संदर्भ /सौजन्य :श्री प्रवीण पाण्डेय जी ) के फोन ने उसे घटनापूर्ण बना दिया .उन्होंने सूचना दी कि उनकी एक पारिवारिक अमेरिकन मित्र एक विशेष मिशन पर भारत आ रही हैं और अपनी वापसी यात्रा में वे १ नवम्बर से ४ नवम्बर ,१० तक वाराणसी दर्शन भी करेगीं .और हमें उन्हें अटेंड करना है .अब हमारे एक दशक के वाराणसी प्रवास ने हमें ऐसी स्थितियों के लिए काफी कुशल बना दिया है और इस जिम्मेदारी को हम बड़े संयम और समर्पण से पूरा कर लेते हैं ..
मरे थे नेता जी
खबर थी अपूरणीय क्षति की
फिर भी जगह भरनी थी
खुश थे वे-
शवयात्रा में वे खुश-खुश चेहरे देखो
कल उनमें से एक
बैठेगा इसी कुर्सी पर
और हम उसके गले में डालेंगे माला
हर लहू का रंग तो लाल होता है
फिर भी क्यूँ इतना सवाल होता है
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कातिलों ने नया दस्तूर निकाला है
पहलू में इनके कोतवाल होता है
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किसी के लिये मातम का दिन है
किसी के लिये कार्निवाल होता है
कल यानी 27 को मेरी इकलौती साली कुदशिया की शादी है। विवाह समारोह गोरखपुर के अम्बिका मैरिज हाउस में रात 8 बजे सम्पन्न होगा।
में जब भी
पानी को देखता हूँ
सोचता हूँ
इससे कुछ सीखूं
जब प्यास इससे
किस की बुझती हे
और प्यासे के चेहरे पर
ठंडक देखता हूँ
तो सोचता हूँ
काश में पानी होता
जहां जिस बर्तन में
जिस हालत में होता
हर हाल में
हर आकर में
केसे एडजस्ट होते हें
हमारे भारतीय संस्कृति और परम्पराओं के अनुसार विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है , लेकिन क्या सचमुच में आज के इस समय में ये एक पवित्र बंधन बन के रह गया है ????? ये गौर करने वाली बात है , कुछ सामाजिक कुप्रथाओं के कारण ये पवित्र बंधन आज एक ऐसे बंधन में परिणत हो गया है जिसके अंदर एक लड़की की शादी करने के लिए माँ बाप को किसी अच्छे लड़के की तलाश में दर दर की ठोकरे खाने को मजबूर होना पड़ता है , पैसे की कमी के कारन उन्हें क्या कुछ नही सहना पड़ता है , ये सब सिर्फ इसलिए होता है क्यूंकि उनके पास अपनी बेटी के लिए लड़के खरीदने के लिए उतना पैसा नही होता है |
एक बार दिल्ली में रात गए ग़ालिब किसी मुशायरे से सराहनपुर से आए हुए मौलाना फैज़ के साथ वापस आ रहे थे | रस्ते में एक तंग गली से गुजार रहे थे की आगे वही एक गधा खड़ा था | मौलाना ने यह देखकर कहा, " ग़ालिब साहब दिल्ली में गधे बहुत है |" " नहीं हजरत बाहर से आ जाते है |" ग़ालिब ने एक दम चुटकी ली | मौलाना झेप कर चुप हो गए |
अब देती हूं वार्ता को विराम .. मिलूंगी फिर कुछ नए चिट्ठों के साथ ..