काजल भाई गज़ब पिटने वाले के बारे में तो नही जानता पर पीटने वाला जाना पहचाना लग रहा है..? पर बोलूंगा नहीं.
सेनापति पांडुरंग महादेव बापट का जीवन संघर्ष जनोक्ति पर देखिये यह लिंक मुझे ब्लाग प्रहरी से मिला जिनको आप ब्लागप्रहरी-एग्रीगेटर पर देख सकतें हैं.
1 2 3 4 5यह साईट बेहद उपयोगी साबित होगी यदि हम सब मिल कर सहयोग करें एक क्लिक से आप इस कुरसी आईये बैठिये :-
पर काज़ल भाई सही कह रहें हैं इस दौर में पाज़िटिव सोच का होना बेहद ज़रूरी है. लाल एण्ड बबाल के बबाल साब ने आज़ एक ताज़ा पोस्ट लगा ही दी :- सौवां धमाल: लाल और बवाल, लाल जी बवाल को लाए खींच ही लाए उधर अजित गुप्ता जी का ब्लाग भी मुझे भाया ... न कोय ? . ब्लाग जगत में तेजी से उपलब्ध हो रहे टूलस और उनका अनुप्रयोग किया जाना चाहिये. इस बात से सभी सहमत रहे मेरे घर से हुए सर्वप्रथम एतिहासिक ब्लागर्स लाइव-नेट कास्टिंग के दौरान
इस नये प्रयोग से दर्शकों की कमी महसूस नही हुई. वास्तव में सहजता से ही लिंक बज़्ज़ पर पेस्ट करते ही सारे आन लाईन साथी मिल गए,इस पंक्ति के लिखे जाने तक 81 दर्शक आ चुके हैं आप यक़ीन कीजिये आज़ मुझे आश्चर्य हुआ कि जब मैने बावरे-फ़क़ीरा का प्रसारण किया तब 27 सीधा दर्शक थे . अब तक 49 दर्शक आ चुके हैं यहां. बाबा का आशीर्वाद ही कहूंगा.प्रयोग का अनुसरण अर्चना चावजी ने तुरंत किया "चलो चलें नव युग की ओर " . इस तकनीकी के प्रयोग का नमूना 01/12/2010 की कार्यशाला के दौरान देखा जा सकता है. यदि कोई तक़नीकी समस्या न रही तो. इस कार्यशाला के कार्यशाला के मुख्य अतिथि होंगे श्री विजय सत्पथी, विशिष्ठ अतिथि श्री ललित शर्मा. पाण्डिचेरी में थे एक राष्ट्रीय आर्टीजन-कार्यशाला जिसके लिये वे छत्तीसगढ़ के प्रमुख प्रतिनिधि थे को अधूरा में छोड़ कर रवाना हो चुके हैं
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मित्रो इस ब्लाग को इन दिनों काफ़ी ध्यान से देखा जा रहा है I555 ♣ Whispers From A Silent Heart है भी रुचिकर ब्लाग. उधर भै राम ने कुछ दिनों के लिये बिदेस त्याग दिया और हो गए राम त्यागी कह रहें हैं ब्लागिंग से कुछ कमा लिया है , देखिये क्या कमाया गुरु ने ?
आज़ बीस से ज़्यादा टिपियाए गए ब्लाग ये थे:-
एक से अधिक पसंद किये गए ब्लाग:-
ब्लॉग्गिंग से कमाया धन [65]
छिपकलियां छिनाल नहीं होतीं, छिपती नहीं हैं, छिड़ती नहीं हैं छिपकलियां [58]
आज हमारी शादी की सालगिरह है.. [56]
सौवां धमाल: लाल और बवाल [52]पत्नीश्री, मैं और ट्रेड फेयर का डिप्लोमेटिक टूर...खुशदीप [50]
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पहाड़ से है,
खाई-खंदक से,
झाड़-झंकाड़ से है
तो दो ही रास्ते हैं-
दीवार को गिराओ,
पहाड़ को काटो,
खाई-खंदक को पाटो,
झाड़-झंकाड़ को छांटो, दूर हटाओ
और एसा नहीं कर सकते-
सीमाएँ सब की हैं-
तो उनकी तरफ पीठ करो, वापस आओ।
प्रगति एक ही राह से नहीं चलती है,
लौटने वालों के साथ भी रहती है।
तुम कदम बढाने वालों में हो
कलम चलाने वालो में नहीं
कि वहीं बैठ रहो
और गर्यवरोध पर लेख-पर-लेख
लिखते जाओ।
6 टिप्पणियाँ:
आपकी यह पोस्ट निश्चय ही एक अलग तरह की पोस्ट है...बातचीत करती हुई. आपका यह प्रयोग वास्तव में ही अच्छा लगा. आभार.
समीर लाल जी ,समाधिया जी और बिल्लौरे जी को ब्लॉग वार्ता ४मे सुन कर बहुत प्रेरणा मिली अपने ब्लॉग (हिंदी} को लेखन से सम्रद्ध करने की |आज की चर्चा बहुत अच्छी लगी |आभार
आशा
गहराती रात की सार्थक चर्चा...हर कोई जाना पहचाना लग रहा है,
कविता यहीं पढ़ी...आभार..
चर्चा बढ़िया है ... पोस्ट के बारे में बताने के लिए शुक्रिया !
Good links
गुरुदेव समीर जी, बवाल जी और समाधिया जी के सानिध्य मे गिरीश भाई को इस क्रांतिकारी शुरुआत के लिए बहुत-बहुत बधाई...
जय हिंद...
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