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आज पर्यावरण की हानि होने से ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से पूरी दुनिया को जुझना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान सामने आ रहे हैं। हम पर्यावरण की रक्षा करें एवं आने वाली पी्ढी के लिए स्वच्छ वातावरण का निर्माण करें। पर्यावरण के प्रति जागरुक करने के लिए हम एक प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं।प्रतियोगिता में सम्मिलित होने के लिए सूचना एवं नियम इस प्रकार है।
विषय -- "बचपन और हमारा पर्यावरण"
प्रथम पुरस्कार
11000/= (ग्यारह हजार रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र
द्वितीय पुरस्कार
5100/= (इक्यावन सौ रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र
तृती्य पुरस्कार
2100/= (इक्की्स सौ रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र
सांत्वना पुरस्कार (10)
501/=(पाँच सौ एक रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र
इस खबर के बाद आपको लिए चलतें हैं ... नए चिट्ठों की ब्लॉग4वार्ता पर ......
सिर्फ, दो मिनट का मेला लगता है यहाँ
क्या कभी आपने देखा है ये जहाँ
ये मेला लगता है आपके, मेरे शहर के हर उस चौराहे पर
जहाँ गाड़ियों का काफिला सिर्फ दो मिनट के लिए रुकता है.
मेले में सौदागर भी आतें है
दो मिनट की दुकान लगाते है
और फिर, किनारे के फुटपाथ पर खड़े हो जाते हैं
बहुत ख़ाली सा मुझको छोड़ गए हो
जाने क्यों तुम ये रिश्ता तोड़ गए हो
अब तो बस बुत बना सा सोचता हूँ मैं हर वक़्त
जाने क्या बात थी , जाने क्या बात थी .
तुम आओगे ये बात हर पल जश्न का सबब थी मेरे लिए
तुम्हारे स्वागत में सजा रखे थे अनेकोनेक वंदन द्वार मैंने
मैं तुम्हारे इंतज़ार में हरेक पल तरसता तडपता था
मेरी उस तड़पन में भी तुम्हारी ही तो आस थी …. ….
देश की सुरक्षा में सबसे बड़ा योगदान हमारे सैनिकों का होता है जो हमारे देश की रक्षा में अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं अपनी जान की परवाह किये बिना अपने देश की सुरक्षा में संलग्न रहते हैं आज हम अगर चैन की सांस ले रहे हैं तो इनकी ही वजह से ये लोग अपने परिवार की चिंता किये बिना अपना फ़र्ज़ निभाते हैं
सिसकियाँ उभरती हैं
सरहदों पर ये कैसी सिसकियाँ उभरती हैं
बस धुआं उभरता है, हिचकियाँ उभरती हैं
जाने किस तसव्वुर की बात कर रहें हैं आप
ख़्वाब में गरीबों के रोटियाँ उभरती हैं
जब से दरवाज़ों पर हादसों का है पहरा
दस्तकें उभरती हैं, थपकियाँ उभरती हैं
लगता है ये चिंगारी अब ठहर न पायेगी
रह रह के ख़यालों में बिज़लियाँ उभरती हैं
ऐसी है हिन्दी
कहते हैं हिन्दी ऐसी है या वैसी है
कोई कहता है ना जाने कैसी है
भई हम तो बस इतना जानते हैं
ये वैसी है जैसी आप लिखते हैं
पढते हैं और खूब समझते भी हैं.
ये है माँ जैसी करुण सीधी-सादी
सरल सहज और नाज़ुक सी
न तो कठोर जो कहीं चोट करे
और न ही इतनी नर्म है कि
कोई महसूस ही न कर पाये.
व्यक्ति, समाज और संवाद का संबंध अटूट है। फिर भी न जाने क्यों हम और हमारा समाज ऐसी विकट परिस्थितियों से घिरे हुए हैं जिसमें संवाद की संभावनाएं क्षीण पड़ती जा रही है। कहने को सूचना क्रांति ने दुनिया को एक कमरे में कैद कर दिया है जिसे “ग्लोबल वर्ल्ड” कहा जा रहा है। टेलीविजन,इण्टरनेट और मोबाइल इसके अग्रदूत हैं। जबसे इन आविष्कारों का चलन बढ़ा है हमारे समक्ष नयी चुनौतियां भी खड़ी हुई हैं।
भूख जरूरी है
खाना खाने के लिए
खाना जरूरी है
जिन्दा रहने के लिए
भले जिन्दा रहना जरूरी न हो
सब के लिए
पर जो जिन्दा हैं
उनके लिए
हर हल में खाना जरूरी है
चाहे रोटी खाएँ
चाहे पुलिस कि गोलियां !
चाहे पुलिस कि गोलियां !
वहाँ अब घर नहीं बसते, बस मकान रहते हैं |
नहीं बनते वहाँ कुनबे, बस संग कुछ इंसान रहते हैं |
वहाँ बाबूजी की डांट, माँ का प्यार नहीं है अब,
हर शाम बेटे का माँ को इंतज़ार नहीं है अब |
खाने की मेज पर वहाँ अब बतकही नहीं होती,
ये सब बातें तो शायद अब कहीं नहीं होती |
रिमोट की ख़ातिर वहाँ अब कोई नहीं लड़ता |
घर लौटने पर
छोटू ने सुनाया
ताई के फोन
आने की बात बताया
भैया बहुत बीमार है
तुरंत कानपुर है बुलाया
मैंने सोचा
भैया के चार बच्चे
सभी व्यवस्थित
लेकर पद अच्छे
ऐसे में मैं कहाँ से भाया
जेहन में सारा
अतीत नजर आया
की किस तरह भैया ने बच्चो के
शिक्षा दीक्षा की दे दुहाई
अम्मा बापू परिवार व
गाँव को ठुकराया
पांच नवम्बर १९९८ की रात दरभंगा रेडियो से यह सूचना मिली थी कि बाबा नागार्जुन नहीं रहे. तरौनी में उनका अंतिम संस्कार होगा. अब तक कई कवियों के दिवंगत होने की सूचना रेडियो व टीवी से मिली थी लेकिन बाबा ऐसे पहले कवि थे जिनके गुजरने की खबर की चर्चा पूरे गाँव में हो रही थी. अभी कुछ दिन पहले कलम ही पकड़ा था और एक-दो कार्यक्रमों में उनसे भेंट भी हो चुकी थी. ऐसे में उनका अंतिम दर्शन नहीं करने का सवाल ही कहाँ पैदा होता था. मेरे गाँव से तरौनी की दूरी काफी नहीं थी, सो सुबह होते ही तरौनी के लिए निकल पड़ा था. सकरी स्टेशन से तरौनी जाने वाली सड़क पर काफी भीड़ लगी थी. भीड़ देखने से लगता था मानों किसी नेता का आगमन होने वाला हो. पूछने पर पता चला कि ये लोग किसी नेता का नहीं, बल्कि बाबा नागार्जुन का अंतिम दर्शन करने के लिए खड़े थे.
है गुजार से गुलज़ार लफ़्ज़ों का चमन...........
पिछले शनिवार जैसे ही में मेरी प्रिय किताबों की दुकान में घुसा तो सामने ही गुलज़ार की कविताओं की नई किताब ‘पन्द्रह पांच पचहत्तर’ पर नज़र पड़ी, आदत के मुताबिक जैसे ही मैंने बीच का एक पन्ना खोला तो पढ़ने को मिला
‘कार का इंजनबंद करके , और शीशे चढाके बारिश में, घने घने पेड़ों से ढंके ‘सेंट पौल रोड’ पर, आँखे मींच के बैठे रहो और कार की छत पर ताल सुनो बारिश की’
यार जिदंगी भर कहानियाँ ही लिखता रहा तो मैं ही कहानी बन जाऊँगा | वो वादा ही क्या जिसे तोडा ना जाए | वैसे तो ये भी मैं त्रिवेणी स्टाइल में लिख सकता था| बहरहाल ... गुलज़ार का ही आविष्कार है शायद त्रिवेनियाँ , अगर नहीं तो माफ़ करना क्योंकि हिंदी व्याकरण का मेरा ज्ञान थोडा कम है | अमीर खुसरो के बाद किसी को है भी कहाँ | त्रिवेणी का गहन और गुप्त (गुप्त इसलिए क्यूंकि ऑफिस में किया ) अध्ययन करने के उपरांत मैं ये बात समझा हूँ कि दो पंक्तियों का तीसरी पंक्ति से रिश्ता नहीं होते हुए भी होता है |
दीपावली के बारे में संक्षेप में बताएं
इन भारतीय उत्सवों के बारे में खगोल शास्त्र क्या कहता है ??
Origin of Deepavali from scientific point
दीपावली मनाने के धार्मिक या पारंपरिक कारण क्या हैं ??
इस दिन की जाने वाली आतिशबाजी के बारे में बताएं मुझे दीपावली के बारे में कोई जानकारी नहीं , कृपया यह बताएं की ये छोटी बड़ी दीपावली क्या होता है ??
इस दिन हुयी ऐतिहासक घटनाओं पर कुछ प्रकाश डालें
मैंने सुना है की इस दिन चांदी के वर्क से सजी मिठाइयां खाई और खिलाई जाती हैं आज के युग में ये कितना बदला है ??
ओह !! तो क्या असली चांदी का वर्क इस तरह बनता है ??
तु कौन है, क्या है किसको खबर, किसको पता
मैं कौन हूँ ,क्या हूँ किसको खबर, किसको पता
तु चाहता है मिलना मुझसे
मैं चाहता हूँ मिलना तुझसे
तु खोजता है मुझको, मैं खोजता हूँ तुझको
दोनों ही पहेली बने है अक्सर
तु प्यार है, तु जान है, तु दोस्त है, मेरा भगवान् है
पिछले दो दिनों से मैं देख रहा हूँ कि हर जगह दीवाली की शुभकामनाओं का सिलसिला अनवरत रूप से चल रहा है । हर कोई अपने परिचित को दीवाली की शुभकामनायें देने में मशगुल है , होना भी चाहिए क्योंकि अपनापन प्रकट करने के यही तो अवसर होते हैं ।
मुझे भी काफी सन्देश प्राप्त हुए , और मैंने भी हरेक सन्देश को काफी चाव से पढ़कर ख़ुशी जाहिर की । परन्तु फिर मैंने थोड़ी सी विश्लेषण की मुद्रा अपनाते हुए शुभकामनाओं के बारे मैं सोचना शुरू किया ।
वेदना का लिए प्रवाह ,
हृदय की पीड़ा झरने को आतुर ,
नयनों का मार्ग संजोये ,मुक्ति पाने की तड़फ ,
लडखडाते क़दमों को रही संभाल ,
हर ले कोई मर्म शीघ्र ,दे विषम, विशाल, यातना, से मुक्ति ,
असह्य वेदना ,का टूटे द्वार ,
याचक प्रसवा की गुहार /
सब व्यर्थ !
माया नहीं साथ ,पराये होते ज्ञात /
बंद कपाट ,खुले नहीं द्वार ,
अंदर से आयी आवाज -जा बेलाज !
क्यों किया गर्भ -धारण ?
जब जीना पशुओं की तरह /
हर नागरिक अभिभूत है। भावनाओं का सागर हिलोरें ले रहा है। कोई सामान्य घटना तो है नहीं। सदियों बाद ऐसा होता है। सब जानते थे कि सिर्फ दस अवतारों से इस धरती का काम नहीं चलने वाला है। उनको आना ही होगा। भक्तों की पीड़ा सुनने वे नहीं आएंगे तो कौन आएगा। हम न जाने कब से अंधकार में पड़े हैं। रोशनी दिखाने वाला आएगा। अब ज्यादा दिन नहीं हैं। वे बस आना ही चाहते हैं।
सबको खबर कर दी गई है। क्या राजा, क्या प्रजा, सभी पलक पांवड़े बिछाए हुए हैं। कहीं कोई कमी न रह जाए स्वागत में। तय कर दिया गया है कि मिनिस्टर-इन-वेटिंग कौन होगा। क्या पद है। वह बिछे जा रहे हैं कि हर किसी के जीवन में ऐसा अवसर नहीं आता। अब और जीवन से क्या चाहिए।
एक बार फिर दिवाली आ गई है। घर सज गए हैं और बाज़ारों में रौनक है।
हमारे यहां हर पर्व मेलों से जुड़ा है। बिना मेले के कोई त्यौहार कैसा। फिर अगर ये दशहरा और दिवाली हो तो बात कुछ ख़ास हो जाती है। शहर हो या गांव मेलों की संस्कृति हमारे हर पर्व का अभिन्न हिस्सा है।
दिवाली आते ही घर, बाज़ार और शहर जगमग हो उठते हैं। श्री राम के अयोध्या लोटने पर खुशी का इज़हार करने की ये प्रथा आज तक चली आ रही है।
असल में बाज़ारों में रौनक तो नवरात्र से ही शुरू हो जाती है। जगह- जगह रामलीला का मंचन और मेला- ठेला। सुबह होते ही मन करता है जल्दी से शाम ढले और निकला जाए बाज़ार की रौनक देखने को।
थोडा ज़ाहिर सा थोडा छुपा है वो,
थोडा काफिर सा थोडा खुदा है वो|
दिल के बहुत करीब तो है मगर,
फिर भी कुछ थोडा सा जुदा है वो|
थोडा ज़ाहिर सा थोडा छुपा है वो…
वक़्त, किस्मत, हालात और मजबूरी,
जाने किस-किस से तन्हा लड़ा है वो|
थोडा ज़ाहिर सा थोडा छुपा है वो…
आधुनिक हिंदी साहित्य .... लेकर आए हैं राकेश रोहित जी .........शायद यह स्पष्ट कर देना आवश्यक हो, मैं कतई नहीं मानता कि नारी लेखन और पुरुष लेखन जैसी कोई चीज होती है और हो भी तो वह रचना के मूल्यांकन का आधार नहीं बन सकती. पर बतौर वर्गीकरण, मुझे लगता है आज का महिला लेखन अपने जिस स्वरुप में ज्यादातर है वह एक किस्म की रचनात्मक तलाश तो है पर अविष्कार नहीं. कह सकते हैं कि तलाश का निजी दुनिया की जरूरतों से ज्यादा जुड़ाव है कि अविष्कार एक किस्म की रचनात्मक विलासिता है.
मेरी अन्तरात्मा
ये मेरे अन्दर एक मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरजाघर है जहाँ मेरे ईश्वर, अल्लाह, वाहे गुरु और क्राइस्ट रहते हैं।
अन्तरात्मा से संवाद
अन्तरात्मा मुझसे बात करती है। मुझे रास्ता दिखाती है। अच्छाई-बुराई, नेकी और बदी का अहसास कराती है।
आत्मा भी एक चिराग है
जी हाँ, आत्मा भी एक चिराग है। जब तक भगवान का बसेरा है, ये दीया जलता रहता है। SPADITYA FROM SIDHDHESH PANDEY , A 9 YEAR OLD STUDENT
पप्पू ने लौटा दिया रानी के मुकुट का मोती
परीलोक की रानी को आसमान से नीचे झांककर धरती को देखना बहुत अच्छा लगता था | एक बार की बात है रानी आसमान से नीचे नीले नीले समुद्र को देख रही थी तो उसके मुकुट का मोती नीचे समुद्र में गिर गया और एक सीपी में बंद हो गया |
वहाँ एक गोताखोर रहता था | उसका नाम पप्पू था | वो रोज़-रोज़ समुद्र में डुबकी लगाकर सीपी खोजता और जब उसे सीपी मिल जाती तो उसे बेच देता था और उसके खाने कि तैयारी हो जाती थी |
अंधकार पर प्रकाश,अज्ञान पर ज्ञान एवं असत्य पर सत्य की विजय का यह महापर्व दीपोत्सव समाज में उत्साह, उमंग, उल्लास, बंधुत्व एवं प्यार फैलाता है। सामूहिक एवं व्यक्तिगत दोनों ही प्रकार से मनाए जाने वाला यह त्यौहार धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक महत्व रखता है। दीपमाला हमारे अंदर के अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने के लिय्रे ज्ञान रूपी दीपक जलाने का सन्देश देती है जिससे कि मानव मात्र का जीवन रोशन हो सके |
आज फिर लौट आया हूं
अपनी छोटी सी दुनियां में
जिसे छोड़कर चला गया था
ये कहकर-
बहुत कुत्ते हैं यहां जो हरदम भौकते रहते हैं
बहुत बिच्छू हैं यहां जो पल-पल डसते रहते हैं
रातो को नींद भी न आए
अगर आए भी तो-
कुत्ते की भौंक से नींद टूट जाए
अंधेरी रात नंगे पांव गलियों में निकला भी न जाए
अगर निकलें भी तो पावों में बिच्छू डंक मार जाए
मेरे मन के आईने में ... गौतम कुमार कुटरियार जी ....
मेरे मन के आईने में ... गौतम कुमार कुटरियार जी ....
जला के सिगरेट होठों से लगा लेते हैं लोग,
मैं अनाम रहना चाहता हूं .........
आप किसी भी मुद्दे को लिजिए, यदि वह विवादास्पद है तो आपको दुनिया दो खेमे में बँटी दिखेगी । जिनसे आप मुद्दों के सन्तुलित विश्लेषण की उम्मीद करते हैं, जैसे कि पत्रकार, शिक्षाविद, बुद्दिजीवी इत्यादि, वे भी आपको किसी न किसी खेमे के प्रतिनिधि के रूप में दिखेंगे । दोनों खेमों की बातों को सुनने के बाद आपको लगेगा कि दोनो सही बोल रहे है परंतु अर्धसत्य ! कोई भी पूर्ण सत्य नहीं बोल रहा है । वे भी एक दूसरे के सत्य बातों को स्वीकार करने को तैयार नहीं है अथवा प्रतिपक्षी की बातों को झूठ साबित करने के लिए झूठ का सहारा भी ले रहे हैं ।
अभिषेक के झा लिख रहे हैं .... ME ME AND ONLY ME
एक सुनहरे सपने की तरह दीपावली आकर चली गई. छुट्टियों में हमने बहुत मजे किए. दोस्तों के साथ मूवी देखी, फिर शाम में मिठाइयां खाई, फिर पटाखे फोड़े और फिर चटपटी बातें. बड़ा मजा आया. यहाँ सभी खुशियों के दिए जला रहे थे और आकाश में तारे ऐसे टिमटिमा रहे थे जैसे एक दूसरे के प्रतिबिम्ब हों. आनंद ही आनंद था.
देखते ही देखते समय बीत गया. ज्यों ज्यों रात ढल रही थी त्यों त्यों पटाखों की आवाज बढती जा रही थी. न तो सोचने के लिए समय ठहर रहा था न ही कुछ समझने के लिए. बहुत दिनों के बाद मुझे इतना आनंद आया था.
चारो ओर छठ की ही धूम मची है ... आइउ सुनते हैं छठ का एक सदाबहार गीत ....पसीने की कमाई धुएँ में उड़ा देते हैं लोग।
जितने पैसों से रामधनी, दिन भर धुआँ उड़ाता है,
उन पैसों बिन उसका बच्चा भूखा हीं सो जाता है।
खुद जी भर के पीते हैं, औरों को भी पिलाते हैं,
मौत बाँटते फिरते है, दोस्ती की कस्में खाते हैं।
आप किसी भी मुद्दे को लिजिए, यदि वह विवादास्पद है तो आपको दुनिया दो खेमे में बँटी दिखेगी । जिनसे आप मुद्दों के सन्तुलित विश्लेषण की उम्मीद करते हैं, जैसे कि पत्रकार, शिक्षाविद, बुद्दिजीवी इत्यादि, वे भी आपको किसी न किसी खेमे के प्रतिनिधि के रूप में दिखेंगे । दोनों खेमों की बातों को सुनने के बाद आपको लगेगा कि दोनो सही बोल रहे है परंतु अर्धसत्य ! कोई भी पूर्ण सत्य नहीं बोल रहा है । वे भी एक दूसरे के सत्य बातों को स्वीकार करने को तैयार नहीं है अथवा प्रतिपक्षी की बातों को झूठ साबित करने के लिए झूठ का सहारा भी ले रहे हैं ।
अभिषेक के झा लिख रहे हैं .... ME ME AND ONLY ME
एक सुनहरे सपने की तरह दीपावली आकर चली गई. छुट्टियों में हमने बहुत मजे किए. दोस्तों के साथ मूवी देखी, फिर शाम में मिठाइयां खाई, फिर पटाखे फोड़े और फिर चटपटी बातें. बड़ा मजा आया. यहाँ सभी खुशियों के दिए जला रहे थे और आकाश में तारे ऐसे टिमटिमा रहे थे जैसे एक दूसरे के प्रतिबिम्ब हों. आनंद ही आनंद था.
देखते ही देखते समय बीत गया. ज्यों ज्यों रात ढल रही थी त्यों त्यों पटाखों की आवाज बढती जा रही थी. न तो सोचने के लिए समय ठहर रहा था न ही कुछ समझने के लिए. बहुत दिनों के बाद मुझे इतना आनंद आया था.
12 टिप्पणियाँ:
sare links achchhe hai..ek se badhkar ek
बहुत अच्छे नए लिंक्स का परिचय कराया ....
बहुत बढि्या वार्ता की है संगीता जी
लगभग सभी पठनीय लिंक समेट लिए
आभार
बढ़िया चर्चा ...शुभकामनायें !
बहुत ही शानदार चर्चा की है आपने
आपको बधाई
काफ़ी अच्छे लिंक्स्।
एक्सक्लूसिव रिपोर्ट व लिंक्स, ब्लॉग की दुनिया के चंद सरताजों में से एक संगीता जी हमारी बधाई स्वीकार करें।
बहुत बढ़िया विडिओ और बेहद उम्दा लिंक्स से सजाई है आपने आज की ब्लॉग वार्ता ....आभार !
बढ़िया जानकारी युक्त वार्ता.
सचमुच हमारा ध्यान कहीं और था, शुक्रिया।
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ब्लॉगर पंच बताएं, विजेता किसे बनाएं।
बहुत ही सुंदर चर्चा ..और दोबारा से ध्यान दिलाने के लिए भी ..प्रविष्टि भिजवाते हैं जल्दी ही
नमस्ते मैडम,
मेरे ब्लॉग को पढने के लिए और मेरा हौसला बढाने के लिए धन्यवाद
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