शिवम मिश्रा जी और ललित शर्मा जी जाने कब से कह रहे थे कि वार्ता की मेज पर अब हमें भी आ ही जाना चाहिए और देखिए आज मौका देख कर हमें ये जिम्मेदारी सौंप दी गई कि , लो भैय्या अब दो सौ के ऊपर एक अर्ध शतक और लगने जा रहा है वार्ता का तो फ़िर आप भी बैटिंग शुरू ही कर दो हमने कहा नेकी और पूछ पूछ । सबसे पहले तो ब्लॉग वार्ता की पूरी टीम को और हिंदी ब्लॉगजगत को भी वार्ता के इस सफ़र और इस मुकाम के लिए बधाई । अब कुछ लिंक्स कुछ पोस्ट झलकियां आपके
लिए
, मुझे आदेश आनन फ़ानन में मिला इसलिए बिना किसी खास प्रयोग और अंदाज के बस कुछ झलकियां आपके लिए चुन लाया हूं इस उम्मीद के साथ कि आज जबकि एग्रीगेटर्स की कमी सभी को इतनी खल रही है तो ऐसे में ऐसे पोस्ट संचयन करके सहेज कर आपके सामने रखने वाले प्रयासों की सार्थकता बढ जाती है ….इसी शुभकामना के साथ लीजीए ..देखिए कुछ बेतरतीब सा , कुछ बिखरा बिखरा सा , कुछ अलग थलग …कभी कभी पक्कों रास्तों को छोड …पगडंडियों पर चलना भी कितना भाता है मन को ………
Tuesday, 16 November 2010
हाँ शायद...
पहले जब वो होती थी
एक खुमारी सी छा जाती थी
पुतलियाँ आँखों की स्वत ही
चमक सी जाती थीं
आरक्त हो जाते थे कपोल
और सिहर सी जाती थी साँसें
गुलाब ,बेला चमेली यूँ ही
उग आते थे चारों तरफ.
कार्टून:- राजा की बारात है, पेट सबका न भरे... बहुत नाइंसाफ़ी है सरदार
एक दिन के वकील--फैसला ऑन दी स्पाट --- ललित शर्मा
रोहतक यात्रा प्रारंभ हो चुकी है. कल रायपुर से ४.५० को दुर्ग जयपुर एक्सप्रेस से रवाना हुए कोटा के लिए. स्टेशन पहुच कर देखा तो अपार भीड़ थी. इतनी भीड़ मैंने कभी रायपुर रेलवे स्टेशन पर नहीं देखी थी. मैंने सोचा कि यदि ये सभी जयपुर की सवारी है तो आज की यात्रा का भगवान ही मालिक है. तभी रायपुर डोंगरगढ़ लोकल गाड़ी आ कर खड़ी हुयी. आधी सवारी उसमे चली गई. थोडा साँस में साँस आया. अपनी गाड़ी भी आकर स्टेशन पर लगी. अपनी सीट पर हमने कब्ज़ा जमा लिया. तभी एक बालक भी आकर बैठा. खिड़की से उसके मम्मी-पापा उसे ठीक थक यात्रा करने की सलाह दे रहे थे. उसके पापा ने मुझे मुखातिब होते हुए कहा-"सर जरा बच्चे का ध्यान रखना और इसके पास मोबाइल और रिजर्वेशन नहीं है. कृपया टी टी को बोल कर कन्फर्म करवा देना और आप अपना नंबर भी दे दीजिये मैं इससे बात कर लूँगा. मैंने भी हां कह कर एक मुफ्त की जिम्मेदारी गले बांध ली. क्या करें अपनी आदत ही ऐसी है. दिल है की मानता नहीं है. दो चार सवारियां और आ गई हमारी बर्थ पर
आज विजय कुमार सप्पत्ति का जनमदिन है
>> बुधवार, १७ नवम्बर २०१०
दिल्ली ब्लॉगर संगोष्टी एवं विमर्श की आखिरी रिपोर्ट ..उडनतश्तरी जी उवाच ,,,कुछ दिलचस्प बातें ....now jha ji ..reported all sir ..
कल की इस पोस्ट पर आप सब पढ ही चुके हैं कि किस तरह से बालेन्दु दधीच जी ने , अपने आंकडों और सर्वेक्षण रिपोर्टों के माध्यम से बताया कि , वर्ष २०१० हिंदी ब्लॉगिंग की प्रगति के लिहाज़ से सबसे बुरा वर्ष रहा है । पिछली पोस्ट में डॉ. अमर कुमार जी ने जानना चाहा कि क्या उन कारणों की भी चर्चा की गई जिनके कारण ये परिणाम निकल कर सामने आए । तो जहां तक मुझे याद है कि श्री बालेन्दु दधीच जी ने बताया था कि ऐसा नहीं है कि दुर्दशा सिर्फ़ हिंदी ब्लॉगिंग की ही हुई है । उन्होंने खुलासा करते हुए बताया कि हाल हीं सबसे बडे ब्लॉग एग्रीगेटर ने एक सर्वेक्षण किया और पाया कि लगभग बीस करोड ब्लॉग्स में से सिर्फ़ पचहत्तर लाख ही ऐसे ब्लॉगस थे जिन्हें पिछले चार महीने में अपडेट किया गया था । और इसीसे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि लोगों का ब्लॉग लेखन पठन के प्रति रुझान कम हुआ था । इसका दूसरा कारण बताया गया कि पिछले एक वर्ष के दौरान जितने आननफ़ानन में ब्लॉग बने सामग्री के नाम पर उनकें मौलिकता और जिसे कंटेट यानि विषय वस्तु कहते हैं , वो अधिकांशत: कूडा कचरे की तरह फ़ैला । आम आदमी जब अंतर्जाल पर कुछ भी तलाशने की कोशिश करता है तो उसे पहले वो कूडा कचरा ही ऊपर तैरता हुआ मिल जाता है । इसी क्रम में उन्होंने जिक्र किया कि किस तरह से पिछले साल हिंदी ब्लॉगर्स ने अपना सबसे लोकप्रिय एग्रीगेटर खो दिया , उन्होंने सिरिल जी एवं मैथिली जी से इस बात पर विमर्श का हवाला देते हुअ बताया कि निकट भविष्य में ब्लॉगवाणी के वापस लौटने की कोई उम्मीद नहीं है ।
Monday, November 15, 2010
"दिल तो बच्चा है,जी....किसका??..हमारे नामचीन ब्लॉगर..." (2)
(पिछली पोस्ट में आपने पढ़े, ज्ञानदत्तजी, इंदु जी,राज भाटिया जी, समीर जी, अनुराग जी, डा.दराल एवं अली जी के बचपने के किस्से....आज कुछ और ब्लोगर साथियों के कारनामे पढ़िए )
पतिदेव का हाथों का ओक बना पानी लाना और साधना जी का घरौंदे बनाना
उम्र के इस मुकाम पर आकर बच्चों के साथ जब भी वक्त मिले, बाल-सुलभ क्रिया-कलापों में व्यस्त रहना, दीन-दुनिया की सुध भुलाकर बच्चों के साथ बच्चा बन जाना, उनसे छोटी-छोटी बातों पर स्पर्धा करना शायद सब बाबा-दादियों का सबसे ख़ूबसूरत समय होता है. बच्चों के साथ खेलते हुए इतना उत्साह भर जाता है मन में कि ना तो हाथ-पैर का दर्द याद रहता है ना ही कोई पारिवारिक समस्या ही मन को उद्वेलित करती है. आज आपको अपने उस अनमोल अनुभव के बारे में बता रही हूँ जब मैं ६-७ साल की बच्ची के चरित्र में पूरी तरह रूपांतरित हो गयी थी. और हर्ष उल्लास के समंदर में गोते लगा रही थी
WEDNESDAY, 17 NOVEMBER 2010
..और मैं बलि का बकरा बन गया ...... !
धार्मिक रीति रिवाजों के दौरान पशु पक्षियों की बर्बर ,नृशंस हत्या हमें अपने असभ्य और आदिम अतीत की याद दिलाती है .यह मुद्दा मुझे गहरे संवेदित करता रहा है .वैदिक काल में अश्वमेध यज्ञ के दौरान पशु बलि दी जाती थी ..आज भी आसाम के कामाख्या मंदिर या बनारस के सन्निकट विन्ध्याचल देवी के मंदिर में भैंसों और बकरों की बलि दी जाती है ..भारत में अन्य कई उत्सवों /त्योहारों में पशु बलि देने की परम्परा आज भी कायम है . नेपाल में हिन्दुओं द्वारा कुछ धार्मिक अवसरों पर पशुओं कासामूहिक कत्लेआम मानवता को शर्मसार कर जाता है .भारत में यद्यपि हिन्दू त्योहारों पर अब वास्तविक बलि के स्थान पर प्रतीकात्मक बलि देने का प्रचलन तेजी से बढ रहा है ....यहाँ तक कि अब अंतिम संस्कार से जुड़े एक अनिवार्य से रहे अनुष्ठान -वृषोत्सर्ग को लोग अब भूलते जा रहे हैं जिसमें वृषभ (बैल ) की बलि दी जाती है ...और कहीं अब यह अनुष्ठान दिखता भी है तो किसी बैल को दाग कर(बैंडिंग या मार्किंग ) छोड़ देने तक ही सीमित हो गया है .यह ट्रेंड बता रहा है कि हम उत्तरोत्तर जीव जंतुओं के प्रति और सहिष्णु ,दयावान होते जा रहे हैं ..और मानवीय होते जा रहे हैं .
मा पलायनम्
17.11.10
दोपहर के बाद कार्यालय में अधिक कार्य नहीं था अतः निरीक्षण करने निकल गया, टिकट चेकिंग पर। बाहर निकलते रहने से सम्पूर्ण कार्यपरिवेश का व्यवहारिक ज्ञान बना रहता है। सयत्न आप भले ही कुछ न करें पर स्वयं ही कमियाँ दिख जाती हैं और देर सबेर व्यवस्थित भी हो जाती हैं। पैसेंजर ट्रेन में दल बल के साथ चढ़ने से कोई भगदड़ जैसी नहीं मचती है यहाँ, सब यथासम्भव टिकट लेकर चढ़ते हैं। उत्तर भारत में अंग्रेजों से लड़ने का नशा अभी उतरा नहीं है। अब उनके प्रतीकों से लड़ने के क्रम में बहुत से साहसी युवा व स्वयंसिद्ध क्रान्तिकारी ट्रेन का टिकट नहीं लेते हैं। दक्षिण भारत में यह संख्या बहुत कम है अतः टिकट चेकिंग अभियान बड़े शान्तिपूर्वक निपट जाते हैं।
11.16.2010
.......ट्रेफिक जाम के लिए........ ज़िम्मेदार कौन ?
अगर हम किसी महानगर या शहर की बात करे तो एक ही तस्वीर दिमाग में उतरती है कि चारो तरफ होर्न की ची ची पो पो और ज्यादातर हिस्सों में ट्रेफिक जाम का होना |
हर साल न जाने कितने ही वाहन सड़क पर उतरते है परन्तु ज्यादा तर सड़को व बाजारों के हालात तो बहुत ही पुराने है ऐसे में ट्रेफिक जाम का होना आम बात है जहा पर इन सड़को के हालत न बदलने के लिए सरकार जिम्मेदार है , वहीँ पर कुछ बातों के लिए हम स्वयं भी जिम्मेदार है |
17/11/10
ब्लांग मिलन रोहतक मे
नमस्कार आप सब को, केसे हाल हे आप सब के, अजी हमारा जुगाड तो चला ही नही भारत मे, कोशिश कर रहा हुं कि किसी तरह से इस पोस्ट को आप तक पहुचा दुं… तो
तो साथियो मैने हमारे अमित जी ने हम सब के मिलन के लिये एक बहुत सुंदर जगह ढूढी हे, तो २१/११/२०१० को सुबह १० बजे हम सब मिलते हे रोहतक की तलियार झील पर, जहां सुंदर सुंदर नजारो के संग हम भी आप का ईंतजार कर रहे होंगे, पहुचने का रास्ता बहुत आसान हे,दिल्ली से आने वाले साथियो के लिये जो सडक के रास्ते हम तक पहुच रहे हे, ( बस , कार, साईकिल या फ़िर फ़टफ़टिये से) तो आप सब जब रोहतक के लिये चले तो शहर पहुचने से पहले ही आप को तलियार झील मिल जाये गी, बस का स्टाप भी यहां हे, आप बस से ऊतर कर जल्द से जल्द आये, वहां आप की इंतजार मे हम बेठे होंगे, बाते करेगे, खायेगे, घुमेगे.
Wednesday 17 November 2010
जाना था कोटा, पहुंच गये कहां
प्रस्तुतकर्ता नीरज जाट जी
उस दिन तारीख थी 26 जुलाई 2010. मुझे उदयपुर जाना था। कोई रिजर्वेशन नहीं था। दसेक दिन पहले ही अमरनाथ से आया था। जल्दबाजी इतनी कि कोई योजना भी नहीं बनी। सोचा कि किसी तरह 27 की सुबह तक उदयपुर पहुंच जाऊंगा। दिन भर घूमकर शाम सात-शाढे सात बजे तक वापस कोटा चला जाऊंगा। कोटा से वापसी का रिजर्वेशन कराया मेवाड एक्सप्रेस का। यह वैसे तो उदयपुर से ही आती है और कोटा आधी रात को पहुंचती है। अच्छा, इस दौरान दिनेशराय द्विवेदी जी से भी मिलने की चिट्ठी लिख दी।
हालांकि उदयपुर तो नहीं जा पाया लेकिन बीना-कोटा रूट पर पैसेंजर ट्रेन में मजा आ गया। आप भी लीजिये:
उन दिनों मानसून पूरे चरम पर था।
जय मानसून
इस स्टेशन के बारे में एक बार जाट पहेली में पूछा गया था।
बुधवार, १७ नवम्बर २०१०
मेरा कुछ सामान खो गया है ....तलाशने वाले को मेरी तरफ़ से खुशियों का एक कतरा दिया जाएगा ...
आप सोच रहे होंगे कि मैंने ये कौन सी मुनादी करवा दी ?? क्या करूं जब मेरे लाख कोशिश करने के बाद भी मुझे मेरी ये खोई हुई चीजें नहीं मिल पा रही हैं तो फ़िर आप दोस्त किस काम के जी यदि आप मेरी ये चीज़ें मुझे ढूंढ कर न दे सकें तो । आज सुबह सुबह एक कौआ मुंडेर पर आकर बैठ गया हालांकि अब राजधानी में कौव्वे भी आपको राष्ट्रमंडल खेल आदि जैसे बडे आयोजनों की तरह ही कभी कभी दिखाई देते हैं ।मगर यकायक ही मुझे अपनी एक सबसे प्रिय पक्षी का ध्यान आ गया जिसके साथ मैं बचपन में खूब खेला करता था । जी हां वही छोटी सी शैतान सी चंचल सी अपनी गोरैया ...ओह जाने कितने बरस बीत गए अब तो उसे देखे हुए ...मन दुख और वितृष्णा से भर गया ...मैंने सोचा कि चलो कोई बात नहीं मैना को ही तलाशते हैं , मगर अफ़सोस कि वो भी नहीं दिखी कहीं
लघुकथा :: शांति का दूत
लघुकथा
शांति का दूत
--- --- मनोज कुमार
साइबेरिया के प्रदेशों में इस बार काफी बर्फ पड़ रही थी। उस नर सारस की कुछ ही दिनों पहले एक मादा सारस से दोस्ती हुई थी। दोस्ती क्या हुई, बात थोड़ी आगे भी बढ़ गई। इतनी बर्फ पड़ती देख नर सारस ने मादा सारस को अपनी चिंता जताई – “हमारी दोस्ती का अंकुर पल्लवित-पुष्पित होने का समय आया तो इतनी जोरों की बर्फबारी शुरू हो गई है यहां .. क्या करें ?” मादा सारस ने सुझाया – “सुना है ऋषि मुनियों का एक देश है भारत ! वहां पर चलें तो हम इस मुसीबत के मौसम को सुखचैन से पार कर जाएंगे।”
दोनों हजारों मीलों की यात्रा तय कर भारत आ गए। यहां का खुशगवार मौसम उन्हें काफी रास आया। मादा सारस ने अपने नन्हें-मुन्नों को जन्म भी दिया। यहां के प्रवास के दौरान उनकी एक श्वेत-कपोत से मित्रता भी हो गई। श्वेत-कपोत हमेशा उनके साथ रहता, उन्हें भारत के पर्वत, वन-उपवन, वाटिका, सर-कूप आदि की सैर कराता।
बुधवार, १७ नवम्बर २०१०
आदर्शवाद का ढोंग !
मैंने अपने जीवन में ऐसा कोई काम शायद जानबूझ कर नहीं किया कि लोग मुझ पर अंगुली उठा सकें लेकिन लाभ हानि जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ तुलसीदास जी की इन पंक्तियों को तो मैं भूल ही गयी थी. मेरी एक टिप्पणी पर हमारे ब्लोगर भाई परम आर्य जी ने ऐसी टिप्पणी की कि मैंने मानव जाति की बात कैसे कर सकती हूँ जब कि मैंने स्वयं अपने नाम के आगे अपनी जाति लगा रखी है. ये आदर्शवाद का ढोंग है.उनकी टिप्पणी ने मुझे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया और फिर इसके लिए उठे प्रश्न से दो चार तो होना ही पड़ेगा.
क्या नाम के साथ लगी हुई जाति का प्रतीक इंसान की मानवता पर प्रश्न चिह्न लगा देता है? उसको मानवोचित गुणों से वंचित कर देता है या फिर उसकी सोच को जाति के दायरे से बाहर नहीं निकलने देता है. ऐसा कुछ भी नहीं है, ये जाति मेरे नाम के साथ मेरे पापा ने लगाई थी क्योंकि जब बच्चा स्कूल जाता है तो उसके माता पिता नाम देते हैं. मेरे पिता भी अपने नाम के साथ भी यही लगाते थे. किन्तु वे एक ऐसे इंसान थे जो इस दायरे से बाहर थे. हर जाति , धर्म और वर्ग में उनकी अपनी पैठ थी. उनके मित्र और अन्तरंग और सहयोगी थे. नाम कुछ भी हो मानवीय मूल्यों कि परिभाषा नहीं बदलती है या इसमें जाति या धर्म कहीं भी आड़े नहीं आता है.
शायद वो आदत से लाचार है.........
बुधवार, १७ नवम्बर २०१०
सुबह का वक्त--घर की छत पर बैठे, पुस्तक पढते हुए सर्दियों की हल्की गुनगुनी धूप का आनन्द लिया जा रहा है. थोडी देर में पुस्तक तो खत्म हो गई, लेकिन चाहने पर भी धूप से उठकर जाने का मन न हुआ. सो, बैठे-बैठे चाय की चुस्कियों के साथ धूप का आनन्द लिया जाने लगा. अब करने को कुछ काम तो था नहीं. दिमाग जरा किताब से हटकर खाली हुआ, तो स्वभाव के अनुसार उसे सोचने की फुर्सत मिली, पर वह सोचे क्या ?
भौं, भौं शब्द नें मस्तिष्क को राह दी, नजर घुमाकर देखा---सामने गली के मोड पर एक मकान की दहलीज में कुत्ता बैठा है और जो कोई भी सडक से गुजरता है, उस पर भौंकने लगता है. भौंकना उसकी आदत जो ठहरी!
अब दिमाग का सोचना कुत्ते से जा मिला. यह क्यों भौंकता है ? इसकी यह आदत क्यों है? आखिर यह कहता क्या है ? सवाल तो बहुत से हैं, पर जवाब तो किसी एक का भी नहीं. कुत्ता मेरी भाषा नहीं जानता कि मुझे बताये और मैं उसकी जुबान नहीं जानता कि उसे समझूँ. दोनों तरफ की इस नासमझी में अन्दाज को खुल के खेलने का अवसर तो मिला, पर अन्दाज भी कुछ नये सवाल …...
बुधवार, १७ नवम्बर २०१०
बड़े घराने बनाम सरकार !
जब रतन टाटा ने घूस माँगने के मामले का खुलासा किया तो सरकारके कान खड़े हो गए और तुरंत ही सरकार नतमस्तक हो गयी. उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने रतन टाटा के घाव पर मरहम लगाते हुए उन्हें इस क्षेत्र में आने के लिए निमंत्रण दे डाला. ये एक बड़े घराने का आरोप था और खुलासा करते ही रास्ता साफ हो गया. जब सरकार के मंत्रालय स्तर इतना भ्रष्ट है जहाँ करोड़ों की सौदा होती है और सतर्कता विभाग कभी कदार अपनी तत्परता और निष्पक्षता के लिए कुछ एक अधिकारियों पर हाथ डाल कर वाह वही लूट लेती है और ये बड़े करार होते हैं उन तक पहुँचने की हिम्मत उनमें नहीं है.
तो आज की वार्ता को यहीं समाप्त करने की इजाजत दें , अगली बार एक सुनियोजित , सुंदर और नए प्रयोग से युक्त वार्ता करने के वादे के साथ …………….
24 टिप्पणियाँ:
हार्दिक शुभ कामनाएं
पहले ही ओवर में ही ३६ बना लिये
यानी हर बाल पे कमाल
अब होगा धमाल
Good keep it up man !!!
आज कोटा के बड़े जिकरे हैं जी, इधर ललित जी वकील बने बैठे हैं उधर नीरज जाट कोटा आए, फोटो खिंचवाया और भूल गए कि साथ कौन बैठा है।
बहुत अच्चा लगा सुंदर २ तस्वीरें देख कर और लिंक्स देख कर |
बहुत बहुत बधाई |
आशा
आपकी बात बिलकुल सही है ...एक अच्छे एग्रीगेटर के आभाव में इस तरह की ब्लॉग वार्ता की उपयोगिता बहुत अधिक है ब्लॉग ४ वार्ता के २५० वे अंक पर समस्त टीम को बहुत बहुत बधाइयाँ ....अच्छी रही वार्ता .
२५०वे अंक की बधाई स्वीकार करें .......
कोटा स्टोन कि डिमांड लगता है बदने वाली है..
250वीं वार्ता की बहुत बहुत बधाईयाँ। सुन्दर लिंक्स।
sabhi lnks behtreen .... achhi rahi varta badhai....
अजय जी,
२५० चर्चा के लिए बधाई. इस बात के लिए धन्यवाद की आपने मेरी दो पोस्ट ko चर्चा के लायक समझ कर इसमें शामिल किया धन्यवाद.
250वीं वार्ता की बहुत बहुत बधाईयाँ।
चर्चाकार के तौर पर आपका स्वागत है।
भैया जी..अच्छे लिंक्स मिले कुछ..
(थैंक्स बोलूं की नहीं?) :)
धांसू शुरुआत .विस्तृत और रोचक वार्ता.
बहुत ही बढियां है सभी लेख
dabirnews.blogspot.com
रोचक वार्ता...
गोवा में ब्लॉगर मिलन की तैयारियां जोरों पर
पर आप कहां व्यस्त हैं
kya bat hai
250वे अंक की बधाई...
अजय भाई ...सब से पहले तो आपका बहुत बहुत हार्दिक स्वागत है ब्लॉग ४ वार्ता के वार्ता दल में !
आपको, पूरे वार्ता दल और सभी पाठको को २५० वी वार्ता की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
अजय भाई, इस बेहद उम्दा ब्लॉग वार्ता के लिए आपका बहुत बहुत आभार ... बहुत कम समय में आपने शानदार प्रस्तुति दी ! आगे आपके और भी नए नए प्रयोग देखने के लिए हम बेताब है सो ....लगे रहिये महाराज !!
शानदार, ढाई सौ वां कलश!!
बेहतरिन प्रस्तूति!!
२५०वे अंक की बधाई
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