आप सबों को संगीता पुरी का नमस्कार , सुबह सवेरे ही अजय जी के चैट स्टेटस से मालूम हो गया कि आज मातृ दिवस है , उन्होने लिखा था आज मेरे पास बंग्ला नहीं है , गाडी नहीं है , बैंक बैंलेंस भी नहीं है ..और मां ...नहीं रे ..मेरे पास तो मां भी नहीं है ...लेकिन मेरे भीतर है कहीं ....और उसे ही कहना है ...मां अगले जनम में इतनी जल्दी मत करना छोड कर जाने की ....मातृ दिवस की शुभकामनाएं आपको ..आप सभी को ...
इस मामले में मैं तो भाग्यशाली ठहरी , गाडी बंगला न सही , मैके और ससुराल दोनो ही ओर से अभी तक मां की छत्रछाया तो मिल रही है। दिनभर मौका ही नहीं मिला कि कुछ लिख और पोस्ट कर सकूं। लेकिन अभी ब्लॉग जगत पर भ्रमण किया तो मां पर ढेर सारे पोस्ट पढने को मिल गए। मैने तो आनंद लिया ही , आप भी इन लेखों का आनंद लीजिए .....
मां जलन है मुझे तुमसेअपनी ही मां सेतुम्हारी ममतामई आंखों सेजो मुझे देखने भर से लडने की हिम्मत देती हैं ।जलन है मुझे तुम्हारी उंगलियो के स्पर्श सेजो बालों को छूते ही नई दुनिया का अहसास कराती हैंजलन है मुझे तुम्हारी गोदि सेजिसमें सर रखते ही हर गम भूल जाती हूं।
भैया प्लीज़ कोई अच्छी सी मां का पता चले तो बताना,सम्मान करना है,आज मदर्स डे है ना
दो तीन दिनो से कथित समाजसेवी संस्थाओ के भाईयो और बहनो का लगातार फ़ोन आ रहा था।उन्हे मां की ज़रूरत थी मदर्स डे पर सम्मान के लिये! शर्त ये थी कि मां अच्छी होना चाहिये और गरीब भी,जिसने खुद दुःख उठाकर बच्चों को पढा लिखा कर बड़ा आदमी बनाया हो।मै हैरान था कि ये मां के साथ अच्छी और खराब के विशेषण कब से लगने लग गये।मै ये भी सोचने पर मज़बूर हो गया कि क्या मां का एक दिन सम्मान करने से सही मायने मे मां का कर्ज़ उतर सकता है।जैसे ही कोई कहता कि भैया प्लीज़ कोई अच्छी सी मां का पता चले तो बताना,सम्मान करना है, मदर्स डे पर,मेरा दिमाग फ़टने लगता था।ये शायद हमारी दिखावे की दुनिया की नीचता की पराकाष्ठा ही है॥
दुनिया का सबसे प्यारा शब्द। दुनिया में कई रिश्ते होते हैं लेकिन शायद ही ऐसा कोई रिश्ता होगा जो सिर्फ एक अक्षर में सिमटा हो, लेकिन उस रिश्ते की ताकत दुनिया के हर रिश्ते से बडी होती है। भगवान का नम्बर भी शायद इस रिश्ते के बाद आता है। ये रिश्ता है मां का।
मां। तुम बहुत याद आ रही हो। वैसे तो एक पल भी ऐसा नहीं बीता होगा जब तुम जेहन में न रहती हो... पर इंसानों के बनाए इस मदर्स डे में तुम्हारी याद और भी आ रही है और तुम्हे व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं.....
मां। एक गजल जो मैं अक्सर सुनता हूं... उसे यहां रख दे रहा हूं.... क्योंकि मुझे कोई शब्द नहीं सूझ रहे हैं तुम्हे व्यक्त करने को....।
आसमान में एक तारा होता है ध्रुव तारा. वैसे ही जिंदगी में मां एक ही मिलती है. मां तो सबके लिए अच्छी होती है. पता नहीं क्यों, कुछ लोगों को बुढ़ापे में मां पसंद नहीं आती. मैं मां को तब से याद करता हूं, जब मां के पास खेलकर आने के बाद खाने की मांग किया करता था. ग्रैजुएशन तक मां के बिना जिंदगी की कल्पना नहीं करता था. शादी हुई बच्चे हुए. लेकिन अब भी उसके हाथों से एक प्याली चाय की जिद जुबां पर आ ही जाती है.
खुद इंसान भी तो है , इसी ज़िद पर तुला ....
हवा बदली ,फ़िज़ा बदली , यूं तो मुहब्बत भी रोज बदलती रही ,
बस न बदला तो वो समाज जो हमेशा बेवफ़ा ही रहा .......
आजा माता का दिन है , तो है संतान का भी , पर ,
कोई ऐसा भी है जिसे किसी ने कभी मां न कहा ........
प्रकृति और पुरूष मिलकर सृष्टि उत्पन्न करते हैं और उसे चलाते भी हैं। सृष्टि में पुरूष बस एक है-अव्यय पुरूष और इसी का अंश ले-लेकर माया (प्रकृति) भिन्न-भिन्न रूपो में सृष्टि का निर्माण करती हैं।
पुरूष शक्तिमान है, किन्तु कत्ताü भाव उसमें नहीं है। कत्ताü भाव सारा माया का ही है। हमारा सिद्धान्त अर्द्धनारीश्वर पर टिका है और सृष्टि की हर मादा में प्रकृति अंश (सोम) अधिक रहता है। यह सोम ही रस प्रधान मिठास का तžव है।
मिठास ही आकर्षण का कारण भी है। इसी से संकुचन का भाव बना होता है। माया के स्पन्दन ही सृष्टि का संचालन करते हैं। अत: नारी, स्त्री, पत्नी और मां रूप से मानव सृष्टि एवं संस्कारों को धारण किए हुए है। माया प्रकृति रूप में तीन गुणों को धारण करती है-सत-रज-तम। तीन प्रकार की सृष्टि पैदा होती है। पशुभाव/ अज्ञान भाव सारा तम रूप है।
तुझ से ही आबाद है ,यह सारा जहां !!
तुझ में नहीं कोई दिखावट,
तुझ में नहीं कोई बनावट,
तुझ से ही हमारे जीवन की सजावट !
तू ही तो बसती है ,यहाँ वहां !! मां मेरी प्यारी मां -----
9 मई यानी मदर्स डे, इसकी कल्पना करते ही मन में मां के प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना जागृत हो जाती है। संतान की खुशी और सुख माँ के लिए उसका संसार होता है, लेकिन बड़े होने के बाद संतान यह भूल जाती है कि उन्हें पालने में मां ने कितनी मुसीबत झेली होगी।
दरअसल, मदर्स डे मनाने का मूल कारण माताओं को सम्मान देना और एक शिशु के उत्थान में उसकी महान भूमिका को सलाम करना है।
सालों पहले,
उंगली पकड़कर चलना सिखाया,
जिंदगानी की महफ़िल में इक शमा जलाया।
मगर,
इस वीरान शहर में,
जज़्बातों के श्मसान में,
अब, कोई अपनापन दिखाता नहीं,
अरमानों की सीढ़ियां चढ़ाता नहीं,
लड़खड़ाने पर भी कोई उठाता नहीं,
तब, मां की कमी खूब खलती है....।
अविश्वास की कंटीली झाड़ियाँ
ढेर सारे आंसू/आहें
लाल बिंदी/भरी हुई मांग
जिस्मानी रिश्तों के अजगर
ढेर सारे बच्चे/ममता/स्नेह
और एक निकम्मा पति--
उस मां के पास इनके सिवा
और कुछ नहीं था...
तू आदि और अनंत
इस धरा का अंत है
हर जन्म मेरी मां रहे तू
यही मेरी कामना
कर तेरी आराधना
सधती सारी साधना...
तू सृष्टि है
मेरी शक्ति है
तू भाव भी
और भक्ति है
उड़ेल अपनी भावना
कर तेरी आराधना
सधती सारी साधना..
वैसे तो माँ को याद करने के लिए कोई एक ख़ास दिन नहीं होता, वो हर समय पास-पास ही रहती है, उसकी तस्वीर आँखों में और यादें हर वक्त दिल में होती हैं,लेकिन फिर भी एक ख़ास दिन जब सब अपनी-अपनी माँ को याद करते हैं तो मुझे भी अम्मा की याद बेतरह आने लगती है. उसके छोटे-छोटे अरमान, कुछ बेहद साधारण आकांक्षाएं और मामूली से सपने उसे इतना ख़ास क्यों बनाते हैं?
डेढ़ साल पहले माँ पर लिखी एक कविता याद आ रही है, जो कि मेरे ब्लॉग फेमिनिस्ट पोयम्स पर प्रकाशित हो चुकी है.
मेरी अम्मा
बुनती थी सपने
काश और बल्ले से,
कुरुई, सिकहुली
और पिटारी के रूप में,
रंग-बिरंगे सपने…
अपनी बेटियों की शादी के,
हमको जन्म देने वाली माँ और फिरजीवनसाथी के साथ मिलनेवालीदूसरी माँ दोनों ही सम्मानीय हैं।दोनों का ही हमारेजीवनमेंमहत्वपूर्ण भूमिका होती है।
अब विदा लेती हूं ... मिलती हूं दूसरे दिन फिर कुछ पोस्टों के साथ ....
बुनती थी सपने
काश और बल्ले से,
कुरुई, सिकहुली
और पिटारी के रूप में,
रंग-बिरंगे सपने…
अपनी बेटियों की शादी के,
हमको जन्म देने वाली माँ और फिरजीवनसाथी के साथ मिलनेवालीदूसरी माँ दोनों ही सम्मानीय हैं।दोनों का ही हमारेजीवनमेंमहत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इस मदर्स डे पर 'अम्मा' नहीं है -पिछली बार मदर्स डे पर उनकेकहे बगैर ही ऑफिस जाने से पहले उनकीपसंदीदाडिश बना कर दीतो बोली आज क्या है? शतायु होने कि तरफउनके बड़ते कदमों नेश्रवण शक्ति छीन ली थी।इशारेसे ही बात कर लेतेथे। रोज तो उनकोजो नाश्ता बनाया वही दे दिया और चल दिए ऑफिस।
5 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छी वार्ता, कई नए लोगों से परिचय हुआ। कई जाने माने चेहरे भी मिले।
Vaah Vaah, varta pun: prarambh karne ke liye sadhuvad. ab nirantar jari rakhne kii koshish kii jayegi
sangita ji aabhar
प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
दोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?
मां तो आखिर, मां ही होती है,
शानदार ब्लॉग चर्चा!!
बहुत से नये लिंक प्राप्त हो गये
निरामिष: अहिंसा : सहजीवन सरोकार, विवेकी सम्वेदनाएं और संयम ही संस्कृति है
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी में किसी भी तरह का लिंक न लगाएं।
लिंक लगाने पर आपकी टिप्पणी हटा दी जाएगी।