मंगलवार, 24 जुलाई 2012

मत डरो साहस जुटाओ जाग जाओ...ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार...  प्रकृति हमें बहुत कुछ सिखाती हैं. वह हमें उपहार देती भी है और लेती भी है. हर मौसम, हर ऋतु, हमें जीवन का कोई अनमोल सूत्र देती है.प्रकृति से हम सबसे पहले देने की कला सीखें.  बिना भेदभाव, बिना किसी पूर्वाग्रह के सबको समान रूप से बांटने का तरीका प्रकृति से सीखा जा सकता है. लीजिये अब प्रस्तुत है, आज की ब्लॉग 4 वार्ता...

प्यार की खेती...आसमान का बटवारा आज चलो इस धरती और अम्बर का बटवारा कर लें मेरे लिए तुम चाँद हो मुझे आसमान का वो हिस्सा दे दो जिसमे तुम बसते हो अपने पंखों को थोडा फेलाकर कुछ उड़ाने भर लूंगी में वहां तुम्हारी रौशनी में.... तुम... मुर्दों का वतन ये सोये हुए लोगों का देश है ये नींद आज की नहीं सदियों गहरी हैं ये बुद्ध जैसे लोगों के जगाये नहीं जागे.....ज़मीन पर रेंगने की आदत पड़ गयी है लोगों की ......रीड़ तो जैसे खत्म हो चुकी है.....यहाँ की जनगणना में ... शब्द क्यों गुम हो गये छा गयी मन में उदासी, भाव क्यों मृत हो गये. लेखनी भी थक गयी है, शब्द क्यों गुम हो गये. अश्क कोरों पर थमे हैं, नयन देते न विदाई. नेह चुकता जा रहा पर आस की लौ बुझ न पायी. देहरी थक कर खड़ी है, पर कदम गुम हो...

था उसका कैसा बचपन जाने कब बचपन बीता यादें भर शेष रह गईं थी न कोई चिंता ना ही जिम्मेदारी कोई खेलना खाना और सो जाना चुपके से नजर बचा कर गली के बच्चों में खेलना पकडे जाने पर घर बुलाया जाना कभी प्यार से कभी डपट कर जा... जाग जाओ (१) मत डरो साहस जुटाओ जाग जाओ ! (२) बीन कंटक राह अपनी खुद बनाओ (३) हो सबल , अबला नहीं तुम जान जाओ ! (४) मुक्त होवो बेड़ियों को काट डालो (५) चल पड़ो निज शस्त्र धारो अरि हराओ ! (६) मत भजो ...सूरज सा निकलते रहिये  *ज़िन्दगी भोर है , सूरज सा निकलते रहिये * *चहकिए चिड़ियों सा , हर लम्हे को उत्सव कहिये * * धूप ही धूप है बराबर सबके लिए * *अपने गीतों में दुनिया की पीड़ा कहिये * *ज़िन्दगी ले जाए चाहे जिस भी तरफ * *उफ्...

पल में लय को न साधा तो  पल में लय को न साधा तो वर्तमान है सत्य अनोखा सूक्ष्म अति मृदु कोमल रेखा, इसी घड़ी में शुभ घटता है इस पल में अनंत को देखा ! मृत्यु भी इक पल में घटती इक क्षण में ही जन्म हुआ, सजग हुआ जो ...कि जिनके हाथ में जलती हुई माचिस की तीली है  नजाकत है न खुश्बू औ’ न कोई दिलकशी ही है गुलों के साथ फिर भी खार को रब ने जगह दी है किसी की याद चुपके से चली आती है जब दिल में कभी घुँघरू से बजते हैं, कभी तलवार चलती है वही करते हैं दावा आग नफरत की बुझान..गज़ल आजकल जी. मेल मे पता नही क्या प्राबलम आ गयी है। सिर्फ 4-5 मेल ही दिखाता है । कर्सर आगे जाता ही नही न ही मेल भेजी जा रही है। एक साइबर कैफे वाले से पूछा वो कहता है कि पीछे से ही ये प्राबलम ुसके कैफे मे भी नही..

अमरकंटक की ओर यायावर ……रेल के यात्री मालकिन कई दिनों से मायके जाने की कह रही थी। वैसे इनका मायके जाना 30 अप्रेल के बाद तय है। अब मई के प्रथम सप्ताह में ही कोई तारीख तय होती है जाने की। इस समय 6 मई की तारीख तय हुई। 4 मई को नामदेव......" मेरा मन पंछी सा " * " मेरा मन पंछी सा "* * * *आपके प्यार और समर्थन से पुरे हो गए ब्लॉग के एक वर्ष...* * * *कविता लिखने से जादा कविता पढ़ने में रूचि थी मुझे ,,,हा कुछ दो - चार पंक्तियाँ मै भी लिख लिया करती थी...* *गूगल पर कव... किसकी चली ? ना हिन्दू की चली ना मुस्लिम की चली , तभी तो रमजान में राम और दीवाली में अली । किसकी चली ? मजहबी दंगे में मेरे शहर में दो लाशें मिली, एक लाश दफ़न हुई और दूसरी जली। किसकी चली ? बना तो दीं एक सी, मग...

दर्दे- दिल .दर्दे- दिल: भीतर का दावानल है ,बांध तोड़ने को व्याकुल पर बाह्य जगत का यह असहज व्योम रोकता है हर पल क्यूंकि सहेजने में है वो अक्षम उस निर्लज्ज लावे...  एक शाम गंगा के नाम .बहुत दिन हुआ। चलिए आज आपको गंगा जी की सैर कराते हैं। आज रविवार का दिन था। दिन भर आराम किया तो सोचा शाम को चलें गंगा मैया का हाल चाल लें। सुना है गंगा मैया तेजी से बढ़ रही हैं। गत वर्ष तो इस समय तक खूब बढ़ ... "एक सावन ऐसा भी हो..........." आओ सजनी सजा दूँ तुझे, हाथों में मेहँदी लगा दूँ तुझे, उलझी जुल्फें सवांर दूँ, कान पे लट निकाल दूँ , मूँदे रखना ज़रा नयन अपने, कजरारी पलकें निखार दूँ , लगाऊं कुमकुम माथे पर, सिन्दूर से मांग संवार दूँ , ...

मौन रहना भी स्वास्थ्य वर्द्धक होता है। - *'एक चुप, हजार सुख'। जब तक आदमी मुंह बंद रखता है उसकी औकात पता नहीं चलती पर उसके मुंह के खुलते ही उसके स्वभाव, ज्ञान, चरित्र सब की पहचान हो जाती है। गीत : दीन दयाल साहू - मै हा नहकाहूं डोगा पार,आवत हे प्रभु मोर द्वार। तैहा जग के ,आये पालन हार ये मोरे स्वामी। राम लक्ष्मण दूनो भाई ,संग मा हावे सीता माई। तैहा जग के ,आये पालनहार...सत्‍यमेव जयते-12 : हाथ से फिसलते हालात-आमिर खान - जब मानव अंतरिक्ष के बाहर जीवन के लक्षणों की तलाश करता है तो सबसे पहले क्या देखता है? वह देखता है जल का अस्तित्व। किसी भी ग्रह में जल की उपस्थिति से यह संक...


चलते चलते एक व्यंग्य चित्र मस्तान सिंह जी की तूलिका से




लेते हैं विराम मिलते हैं अगली वार्ता में तब तक के लिए नमस्कार ..........

12 टिप्पणियाँ:

शुभप्रभात ...
सुंदर लिंक्स ..संध्या जी ..

संध्या जी शुभ प्रभात |अच्छी लिंक्स दी हैं पढने के लिए कुछ पढ़ ली हैं कुछ बाकी हैं |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |

बढिया वार्ता संध्‍या जी ..

बहुत सुन्दर वार्ता सजाई है संध्या जी ! बड़े प्रेरक लिंक्स लगाए हैं आपने ! मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद ! आपको व सभी पाठकों को नागपंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं !

बढिया वार्ता संध्‍या जी ..

खूबसूरत लिंक संयोजन

काफ़ी सारे लिंक समेट लिए, संध्या जी आभार आपका

वाह ... बेहतरीन लिंक्‍स ... उत्‍तम चर्चा

सुन्दर और बेहतरीन लिंक्स
बहुत बढ़िया चर्चा...
:-)

बहुत अच्छे लिंक्स संध्या जी.....जज़्बात की पोस्ट शामिल करने का बहुत बहुत शुक्रिया.....एक गुज़ारिश है ब्लॉग पर हलचल की तरह एक कमेन्ट छोड़ दें की आपकी पोस्ट यहाँ शामिल है तो आसानी रहेगी :-)

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